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Old 11-01-2011, 07:22 AM   #21
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गोनूक नोकर
गोनू झाक बुद्धिमत्ताक खिस्सा मिथिलाक घर-घर मे आइयो कहल-सुनल जा रहल अछि । गोनूक नोकर रहनि – वसुआ । वसुआ रहय सोझमतिया लोक आ ओकरा एहि बातक मलाल रहैक जे अपन गिरहथे जेंका ओहो चन्सगर किएक ने अछि । ओ बेर-बेर गोनू सँ आग्रह करैक – “मालिक हमरो अपन किछ गुण सिखा दिअ ताकि अहीं जेंका हमरो नाम हुअय । लोक कहैत अछि जे गोनू अपने केहेन बुधियार छथि परन्तु हुनकर नोकर वसुआ केहेन बकलेल अछि आ ई गप्प हमरा एको रत्ती नीक नहि लगैत अछि ।” गोनू ओकरा आई-काल्हि करैत टारैत रहथिन्ह । परन्तु एक दिन वसुआ अड़ि गेल जे आई हम जरुर अहाँ सँ किछु गुण सीखब । गोनू ओकरा हर लऽ कऽ खेत जाय कहलथिन्ह आ पूछि देलथिन्ह जे तों आई की जलखै करबें? “हलुआ लेने आयब गिरहथ” वसुआ जबाव देलक । “ठीक छै” कहैत गोनू ओकरा विदा केलनि आ संगहि गोनू इहो कहलनि जे समय अयला पर हम तोरा सबटा सिखा देबौक । आश्वासन पाबि वसुआ हर लऽ कऽ खेत चलि गेल । ओ खूब मोन सँ खेत जोतलक । ओकरा उम्मीद छलैक जे मालिक आई हलुआ लऽ कऽ आबि रहल छथि । तथापि गोनू जलखैक बेर मे नहि पहुँचलाह । जखन करीब एगारह बजलैक तँ एकटा बड़का बरतन माथ पर लदने गोनू हाजिर भेलाह । हुनक हाव-भाव सँ लगैन जे हो ने हो बरतन मे बहुत रास हलुआ छैक । ओ बर्तन नीचाँ रखलाह आ वसुआ कें जलखै क’ लेबाक लेल कहलथिन्ह ।

वसुआ हाथ मुँह धोलक आ बैसि गेल जलखै करय । तथापि जलखै करै सँ पहिने ओ पुछ्लक जे मालिक एतेक देरी किएक भऽ गेल? हलुआ बनबै मे देरी तँ लगिते छैक – गोनूक सोझ जबाव छल । परन्तु जखनहि गोनू बरतनक ढक्कन हटेलनि तँ वसुआ देखलक जे ओहि मे मात्र एक कौर जोकरक हलुआ छैक । ओ तामसे लाल-पीयर भऽ गेल आ बाजय लागल । तथापि गोनू ओकरा बुझबैत कहलथिन्ह जे देखह! कनिये छैक ताहि सँ की । छैक तँ कतेक नीक । खा के देखहक । वसुआ व्यर्थ मे बहस करब उचित नहि बुझलक । ओ बुझि गेल जे गोनू ओकरा आई छका देलनि अछि । ओ चुपचाप जे हलुआ छलैक से खेलक आ अपन काज मे लागि गेल ।
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Old 11-01-2011, 07:23 AM   #22
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दू-चारि दिनक बाद फेर वसुआ पहुँचल दोसर खेत मे हर लऽ कऽ । ओहो आब नियारि लेने छल जे गोनू सँ बदला जरूर लेत । ओहि दिन ओ कनिके दूर मे लगातार हर जोतैत रहल । जखन गोनू जलखै लऽ कऽ अयलाह तँ बेस तमसेलाह जे तों भिनसर सँ एतबे खेत किएक जोतलें । आब वसुआ हुनका बुझबय लागल – “मालिक! बेसक हम कम्मे खेत जोतलहुँ अछि परन्तु देखियौक जे कतेक सुन्दर जोतलौं अछि । माटि कें कतेक मेंही कऽ देलियैक अछि । गर्दा-गर्दा भऽ गेल अछि एतेक दूरक खेत ।” गोनू वसुआक गप्प सुनैत रहलाह आ चुप्प रहलाह । जखन वसुआक गप्प खतम भऽ गेल तँ ओ ओकरा गला लगा लेलाह आ आशीर्वाद देलनि जे एहिना बुधियार बनल रह । वसुआ बुझि गेल जे ओहि दिनक हलुआ वला घटना मालिक हमरे बुझेबाक वास्ते कयने रहथि । आब गोनुए सदृश हुनक नोकर वसुआ सेहो बुधियार भऽ गेल आ शीघ्रे ओकर नाम परोपट्टा मे पसरि गेलैक ।
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Old 11-01-2011, 07:23 AM   #23
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फेर छकायल चोर
गोनू रहथि सतर्क आ बुद्धिमान लोक । अपन बुद्धिमत्ता आ विद्वताक बल पर ओ सदैव मिथिलाक राजदरवार मे आदर पाबथि आ यदा-कदा इनाम सेहो । ताहि सँ सौसें ई हल्ला रहैक जे गोनू झा लग बहुत रास संपत्ति छैन आ तें इलाकाक नामी-गिरामी चोर सभ हुनका घर मे चोरि करबाक प्लान बनेलक । चोरि आ सेहो गोनूक घर मे, छल तँ मुश्किल काज, तथापि एकबेर पूरा भऽ गेने बहुत रास धन प्राप्तिक आशा रहैक आ तें चोर सभ एहि दिशा मे काज करब शुरू कयलक ।

सभ सँ पहिने तीन-चारि चोरक एकटा दल कें एकर काज सौंपल गेल आ प्लानक अनुसार ओ सभ साँझ पड़ितहि हुनका दलान पड़हक एकटा पैघ झुड़मुट मे नुका रहल आ राति हेबाक इंतजार करय लागल । परंतु सतर्क गोनू साँझ मे दलान पर अबितहि बूझि गेलाह जे दालि मे जरूर किछु कारी छैक । ओ स्थिरचित्त भऽ एहि समस्या पर विचार केलनि आ अपना पत्नी के दलान पर बजाय, झूठ-मूठ पतरा देखय लगलाह । ओहि दिनक ग्रह दशा पर विचार करैत ओ बजलाह – आजुक ग्रह अपन सभ पर बड़ खराब अछि । पत्नी सशंकित होइत ग्रहक निवारणक उपाय सभ पूछय लगलथिन्ह । ओ पुन: पोथी-पतरा उन्टेलाह आ थोड़ेक कालक उधेर-बुनक पश्चात ई निष्कर्ष निकाललाह जे आई जँ पश्चिम दिस (जेम्हर झुड़मुट मे चोर सभ नुकायल रहय) १०८ टा ढ़ेपा फेकल जाय, तँ ग्रह शान्त भऽ सकैत अछि । जँ ढ़ेपा नम्हर फेकल जाय तँ ग्रहक शान्ति आर तीव्रता सँ भऽ सकैत अछि । पत्नी गोनूक एहि ग्रह शांतिक उपाय सँ सहमति जतेलनि । पुन: गोनू बजलाह जे अहाँ ढ़ेपा आनू आ हम फेकैत छी । फेर की छल शुरू भऽ गेलाह दुनू प्राणी । पत्नी नम्हर-नम्हर ढ़ेपा आनय लगलीह आ गोनू ओकरा पश्चिम दिस फेकय लगलाह, जेम्हर चोर सभ झुरमुट मे नुकायल छल । ढ़ेपा कखनो चोरक नाक पर लगैक तँ कखनो ओकरा सभक कपार पर । गोट पचासेक ढ़ेपा गोनू फेकने हेताह की हुनक पत्नी हर्दा बाजि देलखिन जे आब हमरा बुते नहि होयत ढ़ेपा आनल । ताहि पर गोनू बजलाह जे अहाँ कें ढ़ेपा अननाइ पार नहि लगैत अछि आ ओहि झुरमुट मे नुकायल माहानुभाव सभ सभटा ढ़ेपाक मारि खेलाक बादो एको बेर सगबगेलाह अछि नहि । एत्ते सुनितहि चोर सभ बूझि गेल जे गोनू बाबू हमरा सभ कें देखि लेलनि । ओ सभ झुड़मुट सँ बाहर निकलैत गेल आ आत्मसमर्पण कऽ देलक । ओ सभ पर्याप्त मारि खा चुकल छल आ तें गोनू ओकरा सभ कें माफ कऽ देलनि ।
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Old 11-01-2011, 07:24 AM   #24
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मारि खेलाक बाद कतेको मास धरि चोर सभ शांत रहल । तथापि एकबेर फेर गोनूक घर मे चोरि करबाक प्रोग्राम बनेलक । एहि बेर ओ सभ साँझे नहि जा कें राति मे जेबाक प्रोग्राम बनेलक । अनहरिया राति रहैक आ गोनू कें अपनी घरक बाहर किछु खड़बड़ सुनेलनि । ओ भाँपि गेलाह जे पुन: चोर सभ आबि गेल अछि । ओ पत्नी दिस तकलनि । परन्तु ओ तँ निश्चिंत भऽ फोंफ कटैत छलीह । गोनू हुनका जानि-बूझि के चुट्टी काटि लेलनि । ओ तमसाइत उठलीह आ लगलीह गोनू पर बाजय । चोर सभ साकांक्ष भऽ गेल आ दुबकि गेल । परन्तु गोनू तँ ओकरा सभ कें फेर छकेबाक जोगार सोचि रहल छलाह । पत्नी कें शांत करैत गोनू बजलाह जे एकटा जरूरी खबरि अहाँ कें नहि कहने रही तें उठबय पड़ल । पत्नी पुछलखिन जे एहन कोन जरूरी खबरि छैक जे ताहि लेल हमरा एत्ते जोर सँ चुट्टी काटि लेलहुँ । गोनू पत्नी कें हाथ सँ कम जोर सँ बजबाक इशारा केलनि आ पुछ्लनि जे बंगौर (बाँगक बीया) कतय अछि । पत्नी कहलखिन जे ओ तँ ओसारे पर अछि । गोनू बेस चिंतित्त भेलाह आ बजलाह जे बंगौरक दाम प्रति सेर पाँच टाका भऽ गेलैक अहाँ एहन चीज कें ओहिना ओसारा पर छोड़ि देलियैक । आब तँ चोर लैये लेत । काल्हिये तँ आठ अन्ने सेर छल आ आई पाँच टके सेर भऽ गेल । चोरो सभ सभटा सुनिते छल आ ओ सभ फटाफट अन्हारे मे जेना-तेना बंगौर तकलक आ तुरन्त निपत्ता भऽ गेल ।

गोनू कें ई अनुमान छलनि जे चोर सभ बंगौर के बेचक हेतु आई हाट पर जरुर आनत । आ तें ओ सबेरे सकाल हाट पर पहुँचि गेलाह । किछु अपरिचित चेहरा कें बंगौर बेचैत देखि ओकर भाव पुछलनि । ओ सभ पाँच टके सेर कहलक । गोनू बूझि गेलाह जे इएह महाशय सभ राति मे हमरा ओतय गेल छलाह । ओ प्रकट होइत बजलाह जे ई दाम तँ राति मे रहैक आ एखन तँ मात्र आठ अन्ने सेर अछि । ई सुनितहि चोर सभ कें सन्देह भेलैक जे कदाचित गोनू हमरा सभ कें चीन्हि गेलाह आ सभ बेरा-बेरी कें ओतय सँ घसकय लागल । एकबेर फेर चोर सभ कें छकेबा मे गोनू सफल भेलाह ।
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Old 11-01-2011, 07:25 AM   #25
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गोनूक ढ़ाकी
जहिना गोनूक नाम तहिना हुनक आ हुनक भायक बीच भेल बँटवारा । गोनूक बढ़ैत प्रतिष्ठा सँ हुनक भाय बड़ जरथि आ सगरो दुष्प्रचार करथि जे भाय हमरा संग अन्याय करैत छथि । बात बढ़ैत-बढ़ैत बढ़ि गेल । लोक सभ सेहो एहि झगड़ा मे यदा-कदा घी ढारथि । ताहि द्वारे बात बढ़ि के भिन्न-भिनाउज धरि आबि गेल । गोनू अपन भाय भोनूक ठीक सँ देखभालो करथि आ हरदम हुनकर बर-बेगरता मे ठाढ़ रहथि । ओ भोनू के बहुत बुझेबाक प्रयास केलनि जे ओ लोक के कहल मे नहि आबथि आ शांत रहथि, लोक सभ हुनका दुनू भायक बीच मे दरारि फारय चाहैत अछि आदि । तथापि भोनू नहि मानलथि । हारि के गोनू भिन्न-भिनाउज पर राजी भेलाह ।

आब गौंआँ सभ अलगे चालि देबय लागल । ओ भोनू के बुझेलक जे गोनू के कोन कमी छनि । हुनका तँ रोज राज-दरबार सँ किछु ने किछु भेटिते रहैत छनि । तें तों कहून जे घर मे जे धान अछि से सभटा हमरा दऽ दिअ । फेर भोनू पड़ि गेलाह गोनूक पाछू । गोनू तरे-तर सबटा भाँज-पता लगा लेलाह जे एहि काज मे के सभ सह दऽ रहल अछि आ ओ के अछि जे हमरा दुनू भाय मे भिन्न-भिनाउज हेबाक नौबत आनि देलक अछि । हुनका सभ के छ्केबाक लेल आ भाय के ठीक रस्ता पर अनबाक ले गोनू एकटा प्लान बनेलनि ।

भिन्न-भिनाउज पर ओ राजी तँ छलाहे, ओ गौंआँ सभक बैसार करेलनि । दुनू भाय के अलग करेबा मे जनिका सभक भूमिका छलनि तिनका सभ के गोनू विशेष रूप सँ पंचैती मे बजेलनि आ तें जेना की आशा छल, पंच लोकनि ई निर्णय देलनि जे अहाँ घर मे उपलब्ध सभटा धान भोनू के दऽ दियौ, कारण अहाँ के कोन कमी अछि, रोज दरबार सँ किछु ने किछु भेटिते रहैत अछि । पहिने बैसार मे ओ अनुनय-विनय केलनि जे बाप-दादाक अरजल खेत सँ जे किछु धान आदि भेल अछि, से आधा-आधा बँटेबाक चाही । परन्तु ओ पंच लोकनि जे भोनू के सनकबैत रहथिन से एहि पर राजी नहि भेलखिन आ जोर देलखिन जे सभटा धान भोनू के दऽ दियौ । गोनू के ई बात उचित नहि बुझेलनि जे सभटा धान भोनू के दऽ दियै आ हमरा काल्हिये सँ बेसाह लागय । आ तें गोनू प्रस्ताव देलनि जे हमरा आँगन मे राखल ढ़ाकी सँ एक ढ़ाकी धान दऽ देल जाय आ शेष धान भोनू राखथि । भोनू के भड़कावय वला पंच एहि बात पर राजी भऽ गेलाह ।
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Old 11-01-2011, 07:26 AM   #26
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फेर की छल । लोकक सोझे मे ढ़ाकी मे धान देब शुरू कयल गेल । ढ़ाकी मे धान देल जाइक आ पता नहि ओ धान कतय चलि जाय । ढ़ाकी हरदम खालीक खाली । धान देनहार थाकि गेल परन्तु ढ़ाकी नहि भरल । लोक के आश्चर्य लगैक । अंत मे लोक सभ ढ़ाकी उठेलक तँ देखैत अछि ओकर नीचाँ मे बड़का टा खाधि । लोक सभ आश्चर्यचकित रहि गेल आ गोनू पर छल करबाक दोषारोपण करय लागल ।

गोनू बजलाह – आखिर अहाँ लोकनि भोनू के भड़काय के हमरा घर मे भिन्न-भिनाउज कराइये देल आ हमरा अपन पुरषाक अड़जल खेतक धान सँ सेहो वंचित करबाक बहुत प्रयास कयल । जँ हमचाहितौं तँ अहाँ सभक पंचैतीक मोताबिक आई एक ढ़ाकी धान लऽ सकैत छलहुँ, तथापि भोनूक कोनो हक के मारब हमर ध्येय नहि अछि ।

एतबा सुनितहि भोनू गोनूक पायर पर खसि पड़ल आ भाय सँ भिन्न हेबाक विचार के तिलांजलि दऽ देलक आ ताहि दिन सँ गोनूक ढाकी पूरा मिथिलांचल मे नामी भऽ गेल ।
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