20-11-2021, 06:52 PM | #1 |
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ग़ज़ल- ये सियासत...
■■■■■■■■■ आग ठण्डी पड़ी थी फिर से लगाने आयी ये सियासत सभी की नींद चुराने आयी ये सियासत हमें आपस में लड़ा देती है गाँव जलने लगा तो अक्ल ठिकाने आयी एक सदमा जिसे बस भूलना चाहा मैंने उसकी फिर याद मेरे दिल को दुखाने आयी ये तो आती है सितम हर किसी का हरने को फिर क्यूँ आयी तो ये सरकार सताने आयी वोट लेकर न वे 'आकाश' अभी लौटे हैं किंतु महँगाई हमें रोज रुलाने आयी ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी दिनांक- 20/11/2021 ■■■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरनाथ जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मो- 9919080399 ~~~~~~~~~~~~~~~~~ मापनी- 2122 1122 1122 22 Last edited by आकाश महेशपुरी; 20-11-2021 at 06:55 PM. |
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