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Old 24-09-2014, 09:33 AM   #31
Rajat Vynar
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Talking Re: प्रेम.. और... त्याग...

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Originally Posted by soni pushpa View Post
श्रीमान रजत जी ये गाना मैंने सुना है आप भूल रहे हैं मेने पहले कही कहा है की मै इंडिया से ही हूँ भले कुछ सालो से यहाँ हूँ ... और हाँ बात सही है आपकी की यदि किसी और विषय को लिया जाय तो हम ओर् ज्यादा ज्ञान हासिल कर सकते है और ज्ञान में वृध्धि हो सकती है,पर आप अपने अभी लिखे अंश को ही देखिये यहाँ से प्रेम और त्याग का विषय लोप हो गया है पर कोई बात नही आप अपना अमूल्य समय देते हो वो भीएक सकारात्मक तथ्य है . धन्यवाद रजत जी .. अब आगे कौन सी फिल्म या फिल्म के गाने के बारे में बात करनी है/?,,,

देखा, सोनी पुष्पा जी.. आप अब आगे कौन सी फिल्म या फिल्म के गाने के बारे में बात करनी है?’ कहकर कटाक्ष कर रहीं हैं और साहिर जी जैसे महान गीतकार का कद्र नहीं कर रहीं हैं. कभी फिल्मी सितारों के साथ उठा-बैठा होता तो आप ऐसा न कहतीं. सितारों का मतलब समझतीं हैं न आप? सितारों का मतलब अभिनेता या actor होता है. मेरा मतलब सिर्फ इतना था कि साहिर के गीत के बोल से स्पष्ट है कि गुण और संस्कार भी कोई माँ के पेट से सीखकर नहीं आता. लगता है- आपको यह गीत ज्यादा पसंद नहीं आया. इसका कारण यह हो सकता है कि कभी आपको ‘भूल गया सब कुछ, याद नहीं अब कुछ..’ और ‘खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों, इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों..’ जैसे गीत पसंद रहे हों. प्रेम की महत्ता के बारे में यहाँ पर वर्ष १९७० में लोकार्पित फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ में गीतकार इन्दीवर के लिखे एक गीत का उल्लेख करना अनुपयुक्त नहीं होगा-
‘’पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले
झूठा ही सही
दो दिन के लिए कोई इकरार कर ले
झूठा ही सही

हमने बहुत तुझको छुप छुपके देखा
दिल पे खिंची है तेरे काजल की रेखा
काजल की रेखा बनी लछमन की रेखा
राम में क्यों तुने रावण को देखा
खड़े खिड़की पे जोगी स्वीकार कर ले
झूठा ही सही...
पल भर के लिए...

धीरे से जड़े तेरे नैन बडे
जिस दिन से लड़े तेरे दर पे पडे
सुन सुनकर तेरी नहीं नहीं
जाँ, अपनी निकल जाए ना कहीं
ज़रा हाँ कह दे मेरी जाँ कह दे
मेरी जाँ कह दे ज़रा हाँ कह दे
जब रैन पडे नहीं चैन पड़े
नहीं चैन पडे जब रैन पड़े
माना तू सारे हँसीनो से हसीं है
अपनी भी सूरत बुरी तो नहीं है
कभी तु भी हमारा दीदार कर ले
झूठा ही सही...
पल भर के लिए...

पल भर के प्यार पे निसार सारा जीवन
हम वो नहीं जो छोड़ दे तेरा दामन
अपने होंठों की हँसी हम तुझको देंगे
आंसू तेरे अपनी आँखों में लेंगे
तू हमारी वफ़ा का ऐतबार कर ले
झूठा ही सही...
पल भर के लिए...’’
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Old 24-09-2014, 09:42 AM   #32
Rajat Vynar
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Talking Re: प्रेम.. और... त्याग...

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Originally Posted by pavitra View Post
rajat ji, mere blog par aap ye comment post karte to humare liye zyada beneficial hota.
Is topic par mere blog pe comment kijiega, aur aapne gunn aur kalaa ke bare me to bataya..... Bt seedhepan ke baare me bhi comment chahungi.
देखिये, पवित्रा जी.. मैं आपके सूत्र ‘गुण और कला’ पर यहाँ पर वाद-विवाद नहीं कर रहा हूँ. आपको यह तो पता ही होगा कि दोस्त लोग जहाँ पर मिल जाते हैं वहीँ पर बातचीत करना शुरू कर देते हैं. मैं तो सोनी जी को व्यक्तिगत रूप से सड़क पर खड़ा होकर यह बता रहा था कि सूत्र ‘गुण और कला’ में ऐसी चर्चा चल रही है. आपने बीच में सुन लिया. सीधेपन पर अवश्य चर्चा करूँगा आपके सूत्र पर.
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Old 24-09-2014, 11:41 AM   #33
soni pushpa
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soni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond reputesoni pushpa has a reputation beyond repute
Default Re: प्रेम.. और... त्याग...

shreeman rajat ji , aapki kahi baton ke liye kahne ke liye mere pas bahut kuchh hai kintu kai bar na bolna hi achha, ye sochkar mai aapki bat ka jawab nahi dungi ...
veise dhanywad , eise gane batane ke liye jispar kabhi mera dhyan hi nahi gaya tha ..
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Old 24-09-2014, 11:52 AM   #34
Rajat Vynar
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Talking Re: प्रेम.. और... त्याग...

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Originally Posted by soni pushpa View Post
shreeman rajat ji , aapki kahi baton ke liye kahne ke liye mere pas bahut kuchh hai kintu kai bar na bolna hi achha, ye sochkar mai aapki bat ka jawab nahi dungi ...
Veise dhanywad , eise gane batane ke liye jispar kabhi mera dhyan hi nahi gaya tha ..
देखिए, सोनी पुष्पा जी.. आपको मैं यह बता दूँ कि मैं बहुत बीमार हूँ और बहुत खतरनाक बीमारी है मुझे. कभी भी जान जा सकती है. देश के बहुत बड़े डॉक्टर के द्वारा मेरा इलाज चल रहा है. इलाज करवाने के लिए कई अस्पताल में 'अदल-बदल कर' जाना पड़ता है. इस तरह बोलेंगी तो मैं और बीमार पड़ जाऊँगा. संदर्भवश मैं यह बता दूँ कि लीला करना ईश्वर का गुण है और लीला करते समय ईश्वर अपनी विशेष शक्तियों का प्रदर्शन नहीं किया करते किन्तु फिर भी महाभारत में युद्ध न करने का शपथ लेने के बावजूद भी श्री कृष्ण चक्र लेकर दौड़े थे. क्यों दौड़े थे? अपनों को बचाने के लिए, मारने के लिए नहीं. महाभारत की इस घटना से प्रभावित होकर ही अमेरिकन अभिनेत्री ने Fanny Brice कहा है-

“Let the world know you as you are, not as you think you should be, because sooner or later, if you are posing, you will forget the pose, and then where are you?”

स्पष्ट है- कृष्ण थे तो भगवान लेकिन जबरदस्ती सारथी का 'रोल' कर रहे थे. जब क्रोध आया तो 'पोस' भूल गया!


Last edited by Rajat Vynar; 24-09-2014 at 12:32 PM.
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Old 24-09-2014, 09:37 PM   #35
Rajat Vynar
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Default Re: प्रेम.. और... त्याग...

सोनी पुष्पा जी, मेरा सेंचुरी बन गया. चलिए, प्रोफाइल पर कांग्रेट्स करिये. अति महान कृपा होगी.
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Old 29-09-2014, 12:53 PM   #36
rafik
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Thumbs up Re: प्रेम.. और... त्याग...

यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर ने अपने विद्यार्थियों को एक एसाइनमेंट दिया। विषय था मुंबई की धारावी झोपड़पट्टी में रहते 10 से 13 साल की उम्र के लड़कों के बारे में अध्यन करना और उनके घर की तथा सामाजिक परिस्थितियों की समीक्षा करके भविष्य में वे क्या बनेंगे, इसका अनुमान निकालना।
कॉलेज विद्यार्थी काम में लग गए। झोपड़पट्टी के 200 बच्चो के घर की पृष्ठभूमिका, मा-बाप की परिस्थिति, वहाँ के लोगों की जीवनशैली और शैक्षणिक स्तर, शराब तथा नशीले पदार्थो के सेवन , ऐसे कई सारे पॉइंट्स पर विचार किया गया । तदुपरांत हर एक लडके के विचार भी गंभीरतापूर्वक सुने तथा ‘नोट’ किये गए।
करीब करीब 1 साल लगा एसाइनमेंट पूरा होने में। इसका निष्कर्ष ये निकला कि उन लड़कों में से 95% बच्चे गुनाह के रास्ते पर चले जायेंगे और 90% बच्चे बड़े होकर किसी न किसी कारण से जेल जायेंगे। केवल 5% बच्चे ही अच्छा जीवन जी पाएंगे।
बस, उस समय यह एसाइनमेंट तो पूरा हो गया , और बाद में यह बात का विस्मरण हो गया। 25 साल के बाद एक दुसरे प्रोफ़ेसर की नज़र इस अध्यन पर पड़ी , उसने अनुमान कितना सही निकला यह जानने के लिए 3-3 विद्यार्थियो की 5 टीम बनाई और उन्हें धारावी भेज दिया । 200 में से कुछ का तो देहांत हो चुका था तो कुछ दूसरी जगह चले गए थे। फिर भी 180 लोगों से मिलना हुवा। कॉलेज विद्यार्थियो ने जब 180 लोगों की जिंदगी की सही-सही जानकारी प्राप्त की तब वे आश्चर्यचकित हो गए। पहले की गयी स्टडी के विपरीत ही परिणाम दिखे।
उन में से केवल 4-5 ही सामान्य मारामारी में थोड़े समय के लिए जेल गए थे ! और बाकी सभी इज़्ज़त के साथ एक सामान्य ज़िन्दगी जी रहे थे। कुछ तो आर्थिक दृष्टि से बहुत अच्छी स्थिति में थे।
अध्यन कर रहे विद्यार्थियो तथा उनके प्रोफ़ेसर साहब को बहुत अचरज हुआ कि जहाँ का माहौल गुनाह की और ले जाने के लिए उपयुक्त था वहां लोग महेनत तथा ईमानदारी की जिंदगी पसंद करे, ऐसा कैसे संभव हुवा ?
सोच-विचार कर के विद्यार्थी पुनः उन 180 लोगों से मिले और उनसे ही ये जानें की कोशिश की। तब उन लोगों में से हर एक ने कहा कि “शायद हम भी ग़लत रास्ते पर चले जाते, परन्तु हमारी एक टीचर के कारण हम सही रास्ते पर जीने लगे। यदि बचपन में उन्होंने हमें सही-गलत का ज्ञान नहीं दिया होता तो शायद आज हम भी अपराध में लिप्त होते…. !”
विद्यार्थियो ने उस टीचर से मिलना तय किया। वे स्कूल गए तो मालूम हुवा कि वे तो सेवानिवृत हो चुकी हैं । फिर तलाश करते-करते वे उनके घर पहुंचे । उनसे सब बातें बताई और फिर पूछा कि “आपने उन लड़कों पर ऐसा कौन सा चमत्कार किया कि वे एक सभ्य नागरिक बन गए ?”
शिक्षिकाबहन ने सरलता और स्वाभाविक रीति से कहा : “चमत्कार ? अरे ! मुझे कोई चमत्कार-वमत्कार तो आता नहीं। मैंने तो मेरे विद्यार्थियो को मेरी संतानों जैसा ही प्रेम किया। बस ! इतना ही !” और वह ठहाका देकर जोर से हँस पड़ी।
मित्रों , प्रेम व स्नेह से पशु भी वश हो जाते है। मधुर संगीत सुनाने से गौ भी अधिक दूध देने लगती है। मधुर वाणी-व्यवहार से पराये भी अपने हो जाते है। जो भी काम हम करे थोड़ा स्नेह-प्रेम और मधुरता की मात्रा उसमे मिला के करने लगे तो हमारी दुनिया जरुर सुन्दर होगी। आपका दिन मंगलमय हो, ऐसी शुभभावना।
__________________


Disclaimer......!
"The Forum has given me all the entries are not my personal opinion .....! Copy and paste all of the amazing ..."
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Old 29-09-2014, 10:39 PM   #37
Pavitra
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Default Re: प्रेम.. और... त्याग...

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Originally Posted by rafik View Post
यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर ने अपने विद्यार्थियों को एक एसाइनमेंट दिया। विषय था मुंबई की धारावी झोपड़पट्टी में रहते 10 से 13 साल की उम्र के लड़कों के बारे में अध्यन करना और उनके घर की तथा सामाजिक परिस्थितियों की समीक्षा करके भविष्य में वे क्या बनेंगे, इसका अनुमान निकालना।
कॉलेज विद्यार्थी काम में लग गए। झोपड़पट्टी के 200 बच्चो के घर की पृष्ठभूमिका, मा-बाप की परिस्थिति, वहाँ के लोगों की जीवनशैली और शैक्षणिक स्तर, शराब तथा नशीले पदार्थो के सेवन , ऐसे कई सारे पॉइंट्स पर विचार किया गया । तदुपरांत हर एक लडके के विचार भी गंभीरतापूर्वक सुने तथा ‘नोट’ किये गए।
करीब करीब 1 साल लगा एसाइनमेंट पूरा होने में। इसका निष्कर्ष ये निकला कि उन लड़कों में से 95% बच्चे गुनाह के रास्ते पर चले जायेंगे और 90% बच्चे बड़े होकर किसी न किसी कारण से जेल जायेंगे। केवल 5% बच्चे ही अच्छा जीवन जी पाएंगे।
बस, उस समय यह एसाइनमेंट तो पूरा हो गया , और बाद में यह बात का विस्मरण हो गया। 25 साल के बाद एक दुसरे प्रोफ़ेसर की नज़र इस अध्यन पर पड़ी , उसने अनुमान कितना सही निकला यह जानने के लिए 3-3 विद्यार्थियो की 5 टीम बनाई और उन्हें धारावी भेज दिया । 200 में से कुछ का तो देहांत हो चुका था तो कुछ दूसरी जगह चले गए थे। फिर भी 180 लोगों से मिलना हुवा। कॉलेज विद्यार्थियो ने जब 180 लोगों की जिंदगी की सही-सही जानकारी प्राप्त की तब वे आश्चर्यचकित हो गए। पहले की गयी स्टडी के विपरीत ही परिणाम दिखे।
उन में से केवल 4-5 ही सामान्य मारामारी में थोड़े समय के लिए जेल गए थे ! और बाकी सभी इज़्ज़त के साथ एक सामान्य ज़िन्दगी जी रहे थे। कुछ तो आर्थिक दृष्टि से बहुत अच्छी स्थिति में थे।
अध्यन कर रहे विद्यार्थियो तथा उनके प्रोफ़ेसर साहब को बहुत अचरज हुआ कि जहाँ का माहौल गुनाह की और ले जाने के लिए उपयुक्त था वहां लोग महेनत तथा ईमानदारी की जिंदगी पसंद करे, ऐसा कैसे संभव हुवा ?
सोच-विचार कर के विद्यार्थी पुनः उन 180 लोगों से मिले और उनसे ही ये जानें की कोशिश की। तब उन लोगों में से हर एक ने कहा कि “शायद हम भी ग़लत रास्ते पर चले जाते, परन्तु हमारी एक टीचर के कारण हम सही रास्ते पर जीने लगे। यदि बचपन में उन्होंने हमें सही-गलत का ज्ञान नहीं दिया होता तो शायद आज हम भी अपराध में लिप्त होते…. !”
विद्यार्थियो ने उस टीचर से मिलना तय किया। वे स्कूल गए तो मालूम हुवा कि वे तो सेवानिवृत हो चुकी हैं । फिर तलाश करते-करते वे उनके घर पहुंचे । उनसे सब बातें बताई और फिर पूछा कि “आपने उन लड़कों पर ऐसा कौन सा चमत्कार किया कि वे एक सभ्य नागरिक बन गए ?”
शिक्षिकाबहन ने सरलता और स्वाभाविक रीति से कहा : “चमत्कार ? अरे ! मुझे कोई चमत्कार-वमत्कार तो आता नहीं। मैंने तो मेरे विद्यार्थियो को मेरी संतानों जैसा ही प्रेम किया। बस ! इतना ही !” और वह ठहाका देकर जोर से हँस पड़ी।
मित्रों , प्रेम व स्नेह से पशु भी वश हो जाते है। मधुर संगीत सुनाने से गौ भी अधिक दूध देने लगती है। मधुर वाणी-व्यवहार से पराये भी अपने हो जाते है। जो भी काम हम करे थोड़ा स्नेह-प्रेम और मधुरता की मात्रा उसमे मिला के करने लगे तो हमारी दुनिया जरुर सुन्दर होगी। आपका दिन मंगलमय हो, ऐसी शुभभावना।
बहुत ही अच्छा पोस्ट रफीक जी। .....
Pavitra is offline   Reply With Quote
Old 30-09-2014, 06:21 PM   #38
soni pushpa
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bahut achhi kahani or kahani ke madhyam se diya gaya sandesh bhai ... prem wo hai jo insna ka jivan badla deta hai heivan ko insan bana deta hai or jivan ke sare sambhandho ki ek kadi hai ye jo sare samaaj ko ekduje se bandhe rakhty hai

bhai बहुत बहुत आभार की आपने मेरी बात को समझा और सही मतलब लिया इसका...मै बस ये ही कहना चहती थी की सारे समाज का भलाई हो सकती है \\




बहुत बहुत धन्यवाद,.. ,, भाई
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Old 02-10-2014, 02:29 PM   #39
Rajat Vynar
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Talking Re: प्रेम.. और... त्याग...

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Originally Posted by soni pushpa View Post
हम फिल्मों,serialsकी और आगे निकल जायेंगे
प ही नहीं, सोनी पुष्पा जी.. फ़िल्म का सन्दर्भ देने पर प्रायः सभी लोग आप जैसी ही बात करते हैं. इसमें आपका कोई दोष नहीं. एक विख्यात लेखिका के कथनानुसार भी- ‘एक कुली का एक करोड़पति की पुत्री के प्रेम में पड़ना दिखाने वाली बोंलीवुड फ़िल्में या एक अमेरिकन पर्यटक द्वारा एक भारतीय गाँव में एक अशिक्षित किसान से विवाह करना जैसे टी.वी. कार्यक्रम मनोरंजन के लिए बने हैं, लेकिन कदाचित् एक सम्पूर्ण व्यावहारिक जीवन के लिए नहीं.’ किन्तु यही बात यदि आप बोंलीवुड वालों से पूछिए तो कहेंगे कि हम वही दिखाते हैं जो समाज की सच्चाई होती है। भट्ट कैम्प की फ़िल्मों जिस्म और जिस्म-2 की कहानी की मूल (principle) संधारणा (concept) है- कहानी के अन्त में कारण चाहे जो भी हो, कहानी की नायिका कहानी के नायक को जान से मार देती है।समाचारपत्रों में प्रकाशित एक समाचार का सार यह है- एक युवती ने अपने प्रेमी को पार्क में मिलने के लिए बुलाया और गोली मार कर उसकी हत्या करवा दी। देखा आपने? समाचारपत्रों में प्रकाशित यह समाचार और भट्ट कैम्प की फ़िल्मों जिस्म और जिस्म-2 की मूल संधारणा- दोनों एक ही है। इसलिए यह निर्विवाद (implicit) रूप से सिद्ध हुआ कि फ़िल्मों में जो कुछ दिखाया जाता है उसकी संरचना यद्यपि काल्पनिक घटनाक्रम के आधार पर होती है किन्तु उसकी मूल संधारणा में कहीं न कहीं वास्तविक जीवन की सच्चाई छिपी होती है। यही कारण है कि उपरोक्त लेखिका स्वयं भ्रमित होकर अपनी सफाई में आगे लिखती हैं- ‘फिर भी, हो सकता है कि मेरे विचार गलत हों और हो सकता है- सच्चा प्यार इन सभी विषमताओं से ऊपर हो किन्तु आप और आपकी प्रेमासक्ति के बीच की व्यापक असमानता को इंगित करती हुई कहीं न कहीं पार्श्व में बजने वाली खतरे की घण्टियों के बारे में अपने कानों को खुला रखने में मैं कोई हानि नहीं समझती। क्या आप?
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Old 03-10-2014, 10:06 AM   #40
Rajat Vynar
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श्रीमान रजत जी ये गाना मैंने सुना है आप भूल रहे हैं मेने पहले कही कहा है की मै इंडिया से ही हूँ भले कुछ सालो से यहाँ हूँ ...
अच्छा हुआ आपने बता दिया- आप इंडिया से हैं नहीं तो आपको अफ्रीकन समझकर मेरा एक पानी का जहाज़ वेस्ट हो जाता! अफ्रीकन को पानी का जहाज़ गिफ्ट करता तो अफ्रीकन सरकार में मेरा बड़ा नाम होता!
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