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![]() अमर शहीद भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के 83वें शहादत दिवस पर भावभीनी श्रधान्जली अर्पित करते हैं : ![]()
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![]() शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ ! ![]() आज पूरा देश भारत के वीर सपूत भगत सिंह और उनके दो क्रान्तिकारी साथियों राजगुरु और सुखदेव का 83वां शहादत दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। कुछ लोग इस दिन को महज एक अनुष्ठान के रूप में मनाते हैं जबकि हम लोगों का इस दिन को याद करने का उद्देश्य यही है कि भगत सिंह के उन क्रान्तिकारी विचारों, संकल्पों और सपनों को याद किया जाए जो आज भी हमें अन्याय, शोषण और असमानता से मुक्त एक नए भारत के निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं। हालांकि अंग्रेजों का राज खत्म हो गया है और देश-दुनिया की परिस्थितियों में भारी बदलाव हो चुका है, लेकिन हम भगत सिंह के उन सपनों को हकीकत में तब्दील किए जाने से उतने ही दूर हैं जितना कि पहले हुआ करते थे। भगत सिंह और उनके विचारों की यह प्रासंगिकता तब तक बनी रहने वाली है जबतक कि हम उनके सपनों का समाज निर्मित नहीं कर लेते। अपनी पार्टी ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन’, के घोषणापत्र में उन्होने स्पष्ट किया था कि “करोड़ों लोग आज अज्ञानता और गरीबी के शिकार हो रहे हैं। भारत की बहुत बडी आबादी जो मजदूरों और किसानों की है, उनको विदेशी दबाव और आर्थिक लूट ने पस्त कर दिया है। भारत के मेहनतकश वर्ग की हालत आज बहुत गम्भीर है। उनके सामने दोहरा खतरा हैं। विदेशी पूँजीवाद का एक तरफ से और भारतीय पूँजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरी तरफ से। भारतीय पूँजीवाद विदेशी पूंजी के साथ हर रोज नये गठजोड़ कर रहा है।” :.........
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![]() शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ ! ![]() इस बात को कहे जाने के आठ दशक से भी अधिक समय बीत चुका है लेकिन ऐसा लगता है कि ये बातें आज के हालात पर ही गई हैं। दुनिया एक ऐसी जगह लौटती हुई प्रतीत हो रही है जहाँ भगतसिंह और उनके साथियों के विचार मानों पहले से भी ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं। अमेरिका और यूरोप समेत पूरी दुनिया असमाधेय आर्थिक मन्दी से जूझ रही है। साम्राज्यवादी एवं पूँजीवादियों की मुनाफे की हवस ने पूरी मानवता को ही खतरे में डाल दिया है। अमीर देशों और मुठ्ठी भर अमीरों द्वारा पूरी दुनिया पर थोपी जा रही तथाकथित नवउदारवादी नीतियों के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों को कौडिय़ों के मोल देसी-विदेशी पूँजीपतियों को बेचा जा रहा है या मुफ्त में ही दे दिया जा रहा है। इसके चलते आदिवासियों को उनकी जगह जमीन से खदेड़ा जा रहा है और किसानों की उपजाऊ जमीन को जबरिया पूँजीपतियों के हवाले किया जा रहा है। फैक्ट्रियों में श्रमकानूनों को ताक पर रख दिया गया है, खुली ठेकेदारी प्रथा लागू कर दी गयी है और हर जायज-नाजाय तरीके से श्रम की लूट के लिए पूँजीपतियों को खुला छोड़ दिया गया है। 12-18 घण्टे बिना ओवरटाइम के जबरिया काम, हर तरह की कानूनी सुविधाओं की नामौजूदगी, बिना किसी पूर्व सूचना के बर्खास्तगी और तालाबन्दी और हर ऐसी चीज को जायज बना दिया गया है। चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है, सरकारी दफ्तरों में छोटे से छोटा काम भी बिना रिश्वत के नहीं होता। पिछले दो दशकों में सबसे तेज गति से बढऩे वाली कोई चीज है तो वो है मंहगाई और इसने हर करीब आदमी का जीना मुहाल कर दिया है। यह सब उन्हीं नीतियों का ही परिणाम है जो देसी व विदेशी पूँजीपतियों के हाथ मिलाने के चलते लागू हुई है। इसके चलते देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल होता जा रहा है। अन्य बुनियादी जरुरतें, पीने का स्वच्छ पानी, साफ सुथरा आवास, अस्पताल, स्कूल, आदि तो बहुत दूर की बात हो गई है। एक ओर जहाँ महंगाई से मेहनतकश अवाम-किसान मजदूर और छोटे कर्मचारियों का बुरा हाल है तो दूसरी ओर भारत में अरबपतियों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है :.........
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![]() शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ ! ![]() 1990 में लागू हुई नई आर्थिक नीतियों का ही यह परिणाम है कि देश की 75 प्रतिशत सम्पत्ति मात्र 8,200 लोगों के हाथों में सिमट गई है। पूरे देश में अराजकता का माहौल है। कोई भी कहीं भी सुरक्षित नही है। देश की राजधानी दिल्ली तक में सामूहिक बलात्कार, चोरी, हत्या, अपहरण आदि के समाचारों से अखबार भरे रहते हैं। जनता में जबरदस्त असंतोष और गुस्सा है, और यह गुस्सा या तो छोटे मोटे टकरावों को जन्म दे रहा है या स्वत:स्फूर्त आन्दोलनों को। इस स्थिति को जानने समझने के लिए हमें विचारों की उस रौशनी की जरूरत है जिसकी अलख भगत सिंह ने स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान जगाई थी। भगत सिंह और उनके साथियों के लेखों से हमें देश और समाज को इस परिस्थिति से निकालने का रास्ता मिलता है। भगतसिंह और उनके साथियों ने जिस भारतीय क्रान्ति का सपना देखा था आज वह एक ऐसे नाजुक पड़ाव पर है कि उसे प्रचण्ड वेग से आगे बढ़ाने के लिए फिर से नौजवानों के एक बड़े फौज की जरूरत है। मजदूरों, किसानों और आम आवाम के घरों से आए हुए सैंकड़ों की तादात में ऐसे नौजवान जो भगतसिंह के विचारों से अनुप्राणित हों, देश के मौजूदा हालत में बुनियादी परिवर्तन लाने की लड़ाई को नए सिरे से शुरू कर सकते हैं। इसके लिये इस लड़ाई के भावी सिपाहियों को इंकलाब की तलवार को विचारों की सान पर नई धार देनी होगी। आज भारतीय क्रान्ति का भगत सिंह का सपना अपने सामने उपस्थित ऐसे सवालों व चुनौतियों से जूझ रही है, जिनको हल करने का कार्यभार नई पीढ़ी के युवा क्रान्तिकारियों के कन्धों पर है :.........
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![]() शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ ! ![]() भगत सिंह और उनके साथियों के विचार हमें भारतीय समाज को समझने और बदलने के लिए न केवल उत्साह देते हैं बल्कि एक गहरी अन्तरदृष्टि भी देते हैं। इन विचारों को आधार बना कर ही हम समाज में बुनियादी बदलाव की लड़ाई को नए सिरे से संयोजित और संगठित करने के लिए आवश्यक एक वैज्ञानिक समझदारी की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। इसीलिए हमारे देश के शासकों ने बड़ी चालाकी से शहीद भगतसिंह और उनके साथियों के बलिदान को भुनाया है जबकि उनके क्रान्तिकारी विचारों को या तो भुला दिया गया या उनके बारे में भ्रम फैलाया गया :......... साभार :.........
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![]() शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ ! ![]() भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के 83वें शहादत दिवस के मौके पर हम भगतसिंह के चुनिन्दा लेखों के लिंक नीचे दे रहे है। इन लेखों को आप लेखों के नामों पर क्लिक करके खोल और डाउनलोड कर सकते है :......... भगतसिंह :......... (1907-1931) चित्रावली :......... घर को अलविदा, 1923 :......... अछूत समस्या, 1923 :......... युवक!, मई 1925 :......... नौजवान भारत सभा, लाहौर का घोषणापत्र, अप्रैल 1928 :......... साभार :.........
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![]() शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ ! ![]() भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के 83वें शहादत दिवस के मौके पर हम भगतसिंह के चुनिन्दा लेखों के लिंक नीचे दे रहे है। इन लेखों को आप लेखों के नामों पर क्लिक करके खोल और डाउनलोड कर सकते है :......... धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम, मई 1928 :......... साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज, जून 1928 :......... नये नेताओं के अलग-अलग विचार, जुलाई 1928 :......... विद्यार्थी और राजनीति, 1928 :......... हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र, 1929 :......... भगत सिंह का पत्र सुखदेव के नाम, अप्रैल 1929 :......... साभार :.........
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![]() शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ ! ![]() भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के 83वें शहादत दिवस के मौके पर हम भगतसिंह के चुनिन्दा लेखों के लिंक नीचे दे रहे है। इन लेखों को आप लेखों के नामों पर क्लिक करके खोल और डाउनलोड कर सकते है :......... असेम्बली हॉल में फेंका गया पर्चा, अप्रैल 1929 :......... बम काण्ड पर सेशन कोर्ट में बयान, जून 1929 :......... विद्यार्थियों के नाम पत्र, अक्तूबर 1929 :......... सम्पादक, माडर्न रिव्यू के नाम पत्र, दिसम्बर 1929 :......... बम का दर्शन, जनवरी 1930 :......... इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है, जनवरी 1930 :......... साभार :.........
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![]() शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ ! ![]() भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के 83वें शहादत दिवस के मौके पर हम भगतसिंह के चुनिन्दा लेखों के लिंक नीचे दे रहे है। इन लेखों को आप लेखों के नामों पर क्लिक करके खोल और डाउनलोड कर सकते है :......... लेनिन मृत्यु वार्षिकी पर तार, जनवरी 1930 :......... पिताजी के नाम पत्र, अक्तूबर 1930 :......... क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा, फ़रवरी 1931 :......... मैं नास्तिक क्यों हूँ, फ़रवरी 1931 :......... छोटे भाई कुलतार के नाम अन्तिम पत्र, मार्च 1931 :......... कुलबीर के नाम अन्तिम पत्र, मार्च 1931 :......... शहादत से पहले साथियों को अन्तिम पत्र, मार्च 1931 :......... हमें गोली से उड़ाया जाए, मार्च 1931 :......... कौम के नाम सन्देश, मार्च 1931 :......... साभार :.........
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