24-05-2015, 10:26 PM | #1 |
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ईश्वर से अधूरी मुलाकात....बंसी
दिल खोल के भगवान से बात हो गयी मैने कह इमारतों की उँचाई है बड़ती जा रही इन्सान की इंसानियत है घटती जा रही पैसे के खातिर इन्सान क्या क्या है कर रहा पैसे को ही इन्सान भगवान है समझ रहा दींन ईमान को कोई अहमियत ना दे रहा ईमान बेच कर पैसा इक्कठा है कर रहा इन्सान रिश्तों को कुछ नहीं है समझ रहा पैसे के लिए भाई भाई का खून है कर रहा खाने को इन्सान सब कुछ है खा रहा ग़रीबों के खून से चुपड़ी रोटी है खा रहा मर्द की जिस्म की हवस है इतनी बड़ रही छोटी छोटी लड़कियों का बलात्कार है हो रहा राम कृष्ण की धरती पर ये क्या है हो रहा तेरा इन्सान कहाँ से कहाँ है जा रहा खामोश हो कर तू सब कुछ है देख रहा भगवान तू कुछ भी क्यूँ ना कर रहा जब तक भगवान जवाब देते आँख खुल गयी ईश्वर से मुलाकात अधूरी रह गयी बंसी(मधुर) Last edited by Bansi Dhameja; 25-05-2015 at 07:13 PM. |
26-05-2015, 11:05 PM | #2 |
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Re: ईश्वर से अधूरी मुलाकात....बंसी
खाने को इन्सान सब कुछ है खा रहा
ग़रीबों के खून से चुपड़ी रोटी है खा रहा आज के समय की परिस्थितियों का सही वर्णन है इस कविता में बंशी जी स्वार्थ लालच और अधर्म ने नेकी इमानदारी और सच्चाई का स्थान ले लिया है .. बहुत ही उत्कृष्ट रचना . |
28-05-2015, 11:24 PM | #3 | |
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Re: ईश्वर से अधूरी मुलाकात....बंसी
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