28-05-2015, 09:19 PM | #1 |
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ग़ज़ल- पास है अबतक
+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+ तू बहुत हैै दूर लेकिन पास है अबतक सच कहूँ तो दिल तुम्हारा दास है अबतक ऐसे आँखों से पिलाया ज़ाम ऐ साक़ी रोज पीता हूँ मगर वो प्यास है अबतक तू कहे टीका लगाना छोड़ दूँगा मैं तेरे ही खातिर लिया सन्यास है अबतक कैसे तेरी उस गली को भूल पाऊँगा जिस गली जिन्दा हमारी आस है अबतक तू मिले तो शूल भी ये फूल जैसा हो बिन तेरे मखमल भी जैसे घास है अबतक हैं हजारों चाहने वाले मगर फिर भी जिन्दगी मेरे लिए तू खास है अबतक क्या कहूँ 'आकाश' मैंने क्या नहीं पाया प्यार को तेरे मगर उपवास है अबतक ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी +-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+-+ पता- वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश |
28-05-2015, 10:12 PM | #2 | |
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Re: ग़ज़ल- पास है अबतक
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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