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Old 02-06-2011, 04:42 PM   #131
The ROYAL "JAAT''
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

इस लड़ाई में पराजय के लक्षण देखकर राजसिंह शेखावत बहुत घबराया व अन्होंने जयपुर महाराजा को इस आशय का पत्र लिखा कि निरन्तर दो माह से युद्ध चल रहा है, लेकिन अभी तक हमें प्रताप सिंह को परास्त करने में सफलता नहीं मिली है। सारी सेना हतोत्साहित हो रही है। जिससे अब विजय प्राप्ति की आज्ञा रखना दुराशा मात्रा है। सेना नायक का पत्र पाकर महाराजा पृथ्वी सिंह बड़ा भयभीत हुआ और उसे अपने मान रक्षा की बड़ी चिन्ता हुआ व अन्त में उसने प्रताप सिंह से क्षमा याचना की। प्रताप सिंह ने उसकी क्षमा याचना को स्वीकार कर लिया और अपने हृदय से सारा मन-मुटाव दूर कर जयपुर महाराजा पृथ्वी सिंह से मिलने के लिए जयपुर को प्रस्थान किया। जयपुर नरेश ने उसका यथोचित स्वागत किया। तत्पश्चात् प्रताप सिंह राजगढ़ लौट आया व अपनी शक्ति तथा राज्य विस्तार में लग गया।
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Old 02-06-2011, 07:15 PM   #132
deepkukna
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

क्या बात है यार मजा आ गया
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Old 02-06-2011, 10:32 PM   #133
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

सन् १७७३ में उसने काँकवाड़ी, अजबगढ़, बलदेवगढ़ आदि स्थानों में गड़िया बनवाई तथा अपनी शक्ति और राज्य विस्तार में लगा रहा। नजफ खाँ का भरतपुर पर द्वितीय आक्रमण और प्रताप सिंह की नजफ खाँ को सहायता (१७७४)।
मिर्जा नजफ खाँ ने भरतपुर पर द्वितीय आक्रमण १७७४ में किया। उस समय प्रताप सिंह ने मिर्जा नजफ खाँ की सहायता की। जिसके फलस्वरुप भरतपुर की सेना को आगरा का दुर्ग छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। इस सहायता के उपलक्ष्य में मिर्जा नजफ खाँ ने मुगल बादशाह शाह आलम (द्वितीय) से अनुरोध कर सन् १७७४ में उसको ""राव राजा बहादुर'' की उपाधि, पंच
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Old 02-06-2011, 10:35 PM   #134
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

हजारी मनसब (पाँच हजार जात और पाँच हजार सवार और माचेड़ी की जागीर) दिलवाई। इस प्रकार प्रताप सिंह को मुगल बादशाह शाह आलम ने एक स्वतंत्र राजा के रुप में स्वीकार कर लिया और उसकी माचेड़ी की जागीर हमेशा के लिए जयपुर से स्वतंत्र कर दी।इसके पश्चात् १७७५ में प्रताप सिंह ने प्रतापगढ़, मुगड़ा व सेन्थस आदि स्थानों में गढ़ बनवाये
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Old 02-06-2011, 10:40 PM   #135
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

अलवर राज्य की स्थापना २५ दिसम्बर १७७५

इस प्रकार प्रताप सिंह एक स्वतंत्र शासक बन गया। उसने अब आसपास के प्रदेश पर अधिकार करना शुरु किया जिससे उसके राज्य का विस्तार हो सके। इस नीति पर चलते हुए उसने सबसे पहले अलवर के प्रसिद्ध किले पर अधिकार किया। इस समय अलवर का दुर्ग भरतपुर के अधिन था, लेकिन भरतुप नरेश की इस गढ़ की ओर कुछ उपेक्ष दृष्टि थी। दुर्गाध्यक्ष और सैनिकों को बहुत समय से वेतन नहीं मिला था, इससे उनमें असंतोष, अशान्ति फैल गई थी। उन्होंने वेतन के लिए अनेक बार भरतपुर नरेश से प्रार्थना की, लेकिन उसने उनकी प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दिया।
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Old 02-06-2011, 10:44 PM   #136
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

अन्त में दुर्ग के रक्षकों ने निराश होकर भरतपुर नरेश को एक मर्मस्पर्शी भाषा में अपना अन्तिम प्रार्थना पत्र लिख भेजा। जिसमें उन्होंने उससे अपने आर्थिक कष्ट जनित असंतोष को खुले शब्दों में प्रकट किया। अपने स्वामी से अपना हार्दिक भाव प्रकट कर स्वामी भक्त रक्षकों ने वास्तव में अपने कर्त्तव्यों का यथोचित पालन किया था, परन्तु हृदयहीन भरतपुर नरेश पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भरतपुर नरेश की उदासीनता से झुंझलाकर अपने निर्वाह एवं प्राण रक्षा हेतु उन्होंने प्रताप सिंह को इस आश्य का प्रार्थना पत्र भेजा कि यदि वह उन लोगों का वेतन चुकाना स्वीकार करें, तो वे अलवर के दुर्ग उन्हें समर्पित करने के लिए प्रस्तुत हैं। प्रताप सिंह ने उनकी प्रार्थना को सहर्ष स्वीकार किया और खुशालीराम की सहायता से रुपयों की व्यवस्था कर उनका और उनके सैनिकों का वेतन चुका दिया।
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Old 03-06-2011, 10:19 PM   #137
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

खुशालीराम तथा अपनी सेना के साथ प्रताप सिंह ने मार्ग शीर्ष शुक्ला ३ संवत् १८३२ (२५ दिसम्बर, १७७५) सोमवार को अलवर के दुर्ग में प्रवेश किया और माचेड़ी के स्थान पर अलवर को ही अपनी राजधानी बनाकर अलवर राज्य की स्थापना की और अपनी राज्याभिषेक कराया। प्रताप सिंह अलवर के दुर्ग पर शासन करने के साथ-साथ बानसूर, रामपुर, हमीरपुर, नारायणपुर, मामूर, थानेगाजी आदि स्थानों पर भी प्रताप सिंह ने अधिकार कर लिया। इनमें से प्रत्येक स्थान पर दुर्ग का निर्माण करवाया। इसी प्रकार जामरोली, रेनी, खेडजी, लालपुरा आदि अन्य स्थानों पर भी उसने अधिकार कर दुर्ग बनवायें। प्रताप सिंह के सभी सम्बन्धियों, मित्रों तथा जाति वालों ने उसे अपना मुखिया और राजा स्वीकार कर लिया और सभी ने उसको उपहार स्वरुप भेंट दी।
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Old 03-06-2011, 10:20 PM   #138
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

प्रताप सिंह की प्रारम्भिक समस्याएँ

प्रताप सिंह के सामने कई आन्तरिक समस्याएँ आयी, जिनका समाधान उन्होंने बड़ी बुद्धिमत्ता और साहस के साथ किया। उनकी प्रारम्भिक समस्याएँ निम्न लिखित थीं-
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Old 03-06-2011, 10:22 PM   #139
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

प्रथम अलवर के किले एवं अन्य स्थानों पर अधिकार हो जाने के बाद भी लक्ष्मणगढ़ के दासावत नरुका सरदार स्वरुप सिंह ने न तो उसकी राजसत्ता स्वीकार की और न ही उसे भेंट दी। इसलिए प्रताप सिंह ने उस पर चढ़ाई कर दी। जिसका समाचार पाकर वह अपना गढ़ छोड़कर भाग गया। प्रताप सिंह के सैनिकों ने उसका पीछा किया। अन्त में वह पकड़कर अलवर लाया गया। वह ऐसा हठी व दुराग्रही था कि लोगों के समझाने पर भी अपनी बात पर अड़िग रहा और उसने प्रताप सिंह की अधिनता स्वीकार नहीं की। इसका फल उसे बहुत शीघ्र भोगना पड़ा। वस्तुत: वह बड़ा ही दुर्विनीत और दृष्ट था। उसके अशिष्टपूर्ण
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Old 03-06-2011, 10:23 PM   #140
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

व्यवहार से चिढ़कर और आवेश में आकर प्रताप सिंह ने उसे प्राण दण्ड की सजा दे दी। बात ही बात में उसके किसी पार्श्ववर्ती सहचर ने अपनी तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

इस घटना के कुछ समय बाद प्रताप सिंह ने बैराठ प्रदेश पर आक्रमण करने का निस्चय किया क्योंकि अभी तक उसकी महत्त्वकांक्षा पूर्ण नहीं हुई थी।
प्रताप सिंह के समक्ष दूसरी महत्त्वपूर्ण समस्या यह थी कि सन् १७७५ में पीपलखेड़े के बुद्धसिंह नामक एक बादशाही जागीरदार के मरने पर अहीरों और मेवों के बीच परस्पर वाद-विवाद उठ खड़ा हुआ। घटना इस प्रकार हुई कि उक्त जागीरदार
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