24-08-2014, 06:47 PM | #1 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
दक्षिणेश्वर काली मंदिर (कोलकाता, प. बंगाल)
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
24-08-2014, 06:49 PM | #2 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: दक्षिणेश्वर काली मंदिर (कोलकाता, प. बंगाल)
दक्षिणेश्वर काली कहते हैं इस कलियुग में भक्त और भगवान का जहां प्रत्यक्ष लीला दर्शन हुआ वहीं आज का दक्षिणेश्वर है जिसकी गणना न सिर्फ बंगाल वरन पूरे भारत के महानतम देवी तीर्थों में की जाती है। हुगली नदी के पूर्वी तट पर शोभायमान विश्व प्रसिद्ध काली मंदिर, द्वादश शिव मंदिर, साधना कक्ष व अन्यान्य देवी-देवताओं का मंदिर समूह ही दक्षिणेश्वर के नाम से जाना जाता है जहां साधक प्रवर रामकृष्ण माता काली के साक्षात दर्शनोपरांत साधना व योग के बल पर भारतीय महानात्माओं में परमहंस हुए। देवी पूजन, भक्त की निष्काम भक्ति, आस्था और समर्पण का प्रतीक यह स्थल आज कोलकाता के विशिष्ट तीर्थ के रूप में विभूषित है। कोलकाता आने वाले हर सैलानी की इच्छा यहां आकर मां काली के दर्शन करने की अवश्य होती है। साल के सभी दिन यहां भक्तों का आना-जाना चलता रहता है। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 24-08-2014 at 06:59 PM. |
24-08-2014, 07:02 PM | #3 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: दक्षिणेश्वर काली मंदिर (कोलकाता, प. बंगाल)
दक्षिणेश्वर काली मंदिर स्थापना कथा: रानी रासमणि द्वारा वर्ष 1847 से 1855 ईके बीच कुल नौ लाख रूपए की लागत से निर्मित इस विशालकाय मंदिर की निर्माण कथा कुछ इस प्रकार है। रानी रासमणि, जो कोलकाता के दक्षिण भाग में अवस्थित जाॅन बाजार में निवास करती थीं, ने अपने पति राजा राजचंद्र दास की मृत्यु के बाद चारों पुत्रियों के विवाहोपरांत तीर्थ पर जाने का निश्चय किया। अतः एक दिन वह काशी जाने की तैयारी करने लगीं। यात्रा खर्च के लिए उन्होंने धन का बड़ा भाग निकालकर अलग रख लिया, पर जाने के एक दिन पूर्व रात्रि में स्वप्न में उन्हें मां काली का दर्शन हुआ। मां ने स्वप्न में कहा- ‘‘काशी की यात्रा पर मत जाओ, बल्कि पहले भागीरथी के किनारे मेरा एक मंदिर बनवाओ। मंदिर सुंदर बनना चाहिए। मंदिर बनवाने के बाद उसमें नित्य मेरी पूजा की व्यवस्था हो ताकि मैं वहां तुम्हारी पूजा नित्य ग्रहण कर सकूं।’’
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
24-08-2014, 07:04 PM | #4 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: दक्षिणेश्वर काली मंदिर (कोलकाता, प. बंगाल)
दक्षिणेश्वर काली स्वप्न में मिले इस आदेश को रानी ने गंभीरता से लिया और भागीरथी के किनारे दक्षिणेश्वर गांव की तकरीबन पचास बीघा जमीन खरीद ली। सात वर्षों के अनवरत निर्माण के बाद 31 मई सन् 1855 को यहां देवी की प्राण प्रतिष्ठा भव्य समारोह के साथ की गई। ब्राह्मण विरोध और पुजारी की नियुक्ति: भक्ति भाव में जात-पांत क्या? पर भारतीय समाज में जाति संस्कार का जोर तो पुरातन काल से ही मिलता है। रानी धीवर जाति की थीं, इस कारण यहां कोई अच्छा ब्राह्मण नहीं आता। उस समय एक सामाजिक विधान था कि कोई ब्राह्मण शूद्र के मंदिर को प्रणाम भी नहीं करेगा, पूजा की बात दूर है। रानी ने ऐसे में स्वयं ही पूजा करने की बात सोची पर पुनः विचार आया कि ‘देव पूजन में शास्त्र के विरुद्ध आचरण कतई उचित नहीं।’
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
24-08-2014, 10:02 PM | #5 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: दक्षिणेश्वर काली मंदिर (कोलकाता, प. बंगाल)
^^ ऐसे में रानी की भेंट कोलकाता से तकरीबन एक सौ किलोमीटर दूर स्थित गांव कमारपुकुर के क्षुदीराम चट्टोपाध्याय के विद्वान ज्येष्ठ पुत्र रामकुमार से हुई जो उस समय कोलकाता में ही रहते थे। रामकुमार जी ने मंदिर के पुजारी नियुक्त होते ही यहां की सारी व्यवस्था अपने हाथों में ले ली और रानी की सारी चिंता दूर हो गई। गदाधर का पदार्पण: रामकुमार के पुजारी बनने की बात उनके अनुज गदाधर (श्री रामकृष्ण का मूल नाम) को ठीक नहीं लगी। उन्होंने सोचा हमारे पिता जी ने कभी शूद्रों का दान तक नहीं लिया जबकि मेरा बड़ा भाई तो शूद्रों की गुलामी करने लगा है। यह सोचकर गदाधर ने बड़े भाई को नौकरी छोड़ने की सलाह दी पर फिर पर्ची निकालकर निर्णय लिए जाने के क्रम में सही पक्ष रामकुमार की तरफ हो जाने के कारण गदाधर बाद में इस विषय पर कुछ नहीं बोले। यहां तक कि गदाधर वहां का प्रसाद तक नहीं लेते। रामकुमार ने कहा- ‘भाई तू एक काम कर, जाकर खाद्य सामग्री ले आ और गंगा जी के बालू पर पका। इससे सारी वस्तुएं पवित्र हो जाती हैं।’ तभी से गदाधर वहां अपने द्वारा पकाया खाना खाने लगे और दक्षिणेश्वर उनका स्थायी निवास बन गया। यहां काली के मंदिर में गदाधर जब भी भजन कीर्तन करते, सारा परिवेश धर्ममय हो जाता था। उनके इसी भक्तिभाव ने ऐसा संदेश व सुयोग उत्पन्न किया कि वे वर्ष 1856 से काली मां के स्थायी सेवक हो गए।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
24-08-2014, 10:08 PM | #6 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: दक्षिणेश्वर काली मंदिर (कोलकाता, प. बंगाल)
इधर भाई को नौकरी देकर रामकुमार भी निश्चिंत हो गए। गदाधर के हृदय में यह बदलाव रानी के तीसरे दामाद मधुरनाथ के कारण ही आया। गदाधर के आगमन के बाद ही यहां की आरती, पूजा और शृंगार की भव्यता और उसमें श्रद्धातत्व के समावेश की चर्चा चहुं ओर फैल गई। वर्तमान संदर्भ: लगभग 20 एकड़ भूखंड पर स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर के परिसर में पहुंचते ही अपूर्व शांति, शक्ति व श्रद्धा रूपी त्रितत्व का स्पष्ट आभास होता है, जिसके एक तरफ पतित पावनी गंगा का दर्शन मनभावन और सुखकर प्रतीत होता है। पूर्व में इसे भवतारिणी मंदिर कहा जाता था। बाद में अविभाजित बंगाल के दक्षिण शोणितपुर गांव के दक्षिण छोर पर शिव के इन बारह मंदिरों के स्थित होने के कारण इस तीर्थ को दक्षिणेश्वर कहा जाने लगा। दर्शनीय स्थल: दक्षिणेश्वर का प्रधान दर्शनीय स्थल है मां काली का मंदिर। प्रांगण में प्रवेश होते ही मुख्य द्वार के ऊपर लिखा वाक्य ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’’ यहां आए हर भक्त को प्रेरणा प्रदान करता है। आठ भागों विभक्त प्रधान मंदिर के छत्र पर नौ शिखर हैं जिनमें मुख्य शिखर की ऊंचाई करीब 100 फुट है। नीचे 20 फुट वर्गाकार गर्भगृह है जिसकी मुख्य पादपीठिका पर सुंदर सहस्रदल कमल पर भगवान शिव की संगमरमर की लेटी प्रतिमा विराजमान है। इनके वक्षःस्थल पर एक पांव रखे, नरमुंडों का हार पहने, लाल जिह्वा बाहर निकाले और मस्तक पर भृकुटियों के बीच ज्ञान नेत्र लिए मां काली का चतुर्मुखी विग्रह प्रेरणादायक है। मां की यह मुद्रा दुष्टों के लिए भले ही भयंकर हो, पर भक्तों के लिए यह अभयमुद्रा, वरमुद्रा वाली करुणामयी भवतारिणी मां हैं।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
24-08-2014, 10:15 PM | #7 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: दक्षिणेश्वर काली मंदिर (कोलकाता, प. बंगाल)
^
^ काली मंदिर के उत्तर में राधाकांत मंदिर (विष्णु मंदिर) और दक्षिण में नट मंदिर है। मंदिर की छत में माला जपते भैरव विद्यमान हैं। इस मंदिर के पीछे भंडारगृह और पाकशाला है जहां भक्तों के लिए नित्य महाभोग की व्यवस्था होती है। दक्षिणेश्वर में मां के मंदिर के ठीक सामने बंग शैली में निर्मित एक ही आकार प्रकार के शिव के बारह मंदिर शोभायमान हैं। मंदिर के प्रांगण के बाहर पंचवटी नामक ऐतिहासिक वृक्ष संगम स्थली है जहां अशोक, आंवले, पीपल, वट और बेल के वृक्ष एक साथ विद्यमान हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर रानी जी का एक मंदिर देखा जा सकता है जिसके चारों तरफ लोहे के फाटक में 21 अंकित हैं। पास में ही मां शारदा का मंदिर है। यहां का कल्पतरु उत्सव प्रसिद्ध है जिसमें दूर देश के भक्त भी भाग लेते हैं। बेलूर मठ: हुगली नदी के एक तरफ दक्षिणेश्वर है तो उसके ठीक तिर्यक दूसरी तरफ बेलूर मठ है जहां दक्षिणेश्वर से मोटर बोट व पानी के छोटे जहाज से जाना सहज है। यहां रामकृष्ण जी के अतिरिक्त मां शारदा, विवेकानंद व अन्य साधकों की समाधि स्थलियों के साथ-साथ स्वामी विवेकानंद निवास कक्ष व प्राचीन आम्रवृक्ष आदि दर्शनीय हैं। भक्त यहां नित्य भोग का भी आनंद लेते हैं। यहीं रामकृष्ण मिशन का कार्यालय है जहां विभिन्न धार्मिक विषयों की पुस्तकों को पढ़ने का लाभ उठाया जा सकता है। इस तरह यह कहना समीचीन जान पड़ता है कि इस कलियुग में महाकाल की अधिष्ठात्री शक्ति महामाया काली का यह स्थान परम शान्ति प्रदान करने वाला व कल्याण करने वाला है. **
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
Bookmarks |
Tags |
dakshineshwar kali mandir, kolkata |
|
|