22-10-2011, 09:34 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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किश्तों में खुदकुशी
इक आग - सी अर्से से दिल में जल रही अब तक ;
मुझको मेरी वफ़ा की सजा मिल रही अब तक . जख्मे ज़िगर से जान रिस रही है बूँद - बूँद ; किश्तों में ख़ुदकुशी को भोगता हूँ मैं अब तक . सूरज मैं अपना कब का डुबा आया हूँ , तब क्यूँ ; तू चाँद - सी , रातों में फिर भी चमकी न अब तक . तुझ बिन सुलग रहा हूँ , तू भी जानती है , पर ; रिश्तों में जमी बर्फ न पिघला सका अब तक . तुझसे पुनर्मिलन का जुनूँ इस कदर जिया ; ख़ुद से भी मुलाकात न हो पाई है अब तक . झुक कर कमर कमान हुई , इतनी की नमाज़ ; ख़ुद के लिए दुआ क़ुबूल ना हुई अब तक . पहरा मेरी दुआएं तेरा करती है अब भी ; संजीदगी बाकी है मेरे इश्क में अब तक . रचयिता -- डॉ. राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - २ , गोमती नगर , लखनऊ Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 22-10-2011 at 09:55 PM. |
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