My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 26-11-2012, 10:41 PM   #141
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

देखा एक दृश्य अलबेला निर्जन श्मशान के ढाल में
काक-मांस को पका रही, चांडालिन मनुज कपाल में
बना लिया था शव अवयवों को वैकल्पित ईंधन का रूप
सहसा कौंधा प्रश्न एक फिर मेरे वैचारिक जाल में

'हे चंडालिन ! परम अधम तू, यह स्थल भी अवशिष्ट है
परम हेय है पात्र तुम्हारा, काक-मांस भी अति निकृष्ट है
शव के अवयव बने हैं ईंधन, फिर भी पात्र ढका क्यों है?
इन अधमों को भी अधम बना दे, ऐसा क्या अपविष्ट हैं?'

वह चंडालिन हँसी और फिर, बोली मुझसे, हे 'जय' जी
सत्य कहा मैं अधम नारि हूँ, यह स्थल भी त्याज्य सही
ईंधन, पात्र, अधम है भोजन, फिर भी ढका पात्र मैंने
कोई राष्ट्र-द्रोही आ जाए, पड़ ना जाए पद-धूलि कहीं।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 26-11-2012, 10:42 PM   #142
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

हम लघु समझ कर, उन्हें पुचकारते रहे
वे दीन हीन समझ, हमको डाँटते रहे
विडम्बना तो देखिये, जो दैवयोग भी है 'जय'
हम उससे दोगुना उठे, वे जितना गाड़ते रहे
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 26-11-2012, 10:42 PM   #143
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

हमने हमारे ख्वाबो को तहजीब दिया है
अपने से पहले यारों को तरजीह दिया है
'जय' दीवाना कहता रहा हमको ज़माना
हमने लहू से रिश्तों को सींच दिया है
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 26-11-2012, 10:43 PM   #144
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

मैं अमलताश सा बना रहा, तुम निशिगंधा सी महक गयी
द्विविधावश मैं मूक रहा, तुम मुक्त-कंठ से चहक गयीं


क्या बहती धाराओं में, कल कल संगीत नहीं है
मिलने पर गले लगाने की, अब वह रीति नहीं है
सप्तपदी में बंधे पुरुष, क्या अब परिणीत नहीं हैं
इस व्यावसायिक जग में, क्या रिश्ते अभिनीत नहीं है

मैं चिंतन-पथ पर ठहर गया, तुम स्वप्निल राहों में बहक गयी
मैं अमलताश सा बना रहा, तुम निशिगंधा सी महक गयी


उच्च शिखर की चोटी से, अब हमें उतरना ही होगा
आगत जीवन के लिए हमें, संकल्प नए करना ही होगा
भावनाओं की ऊंची लहरों से, हमको लड़ना भी होगा
अब प्रचंड दैनिक तापों को, हमें शमन करना ही होगा

मैं झंझावातों में उलझ गया, कुछ दिन रहते तुम समझ गयी
मैं अमलताश सा बना रहा, तुम निशिगंधा सी महक गयी



तुम जब भी मेरे पास रहो, क्यों लगे कि हम निर्जन में हैं
जब जीवन हम जीना चाहें, क्यों लगे कि हम उलझन में हैं
सम्मुख भी हम दृष्टि ना डालें, क्या दोष युगल नयनन में है
क्यों शब्द सभी 'जय' अकथ हुए, क्यों गतिरोध कथन में है

मन जीवन की डोर सहेज रहा, क्यों पीड़ा बन तुम कसक गयी
मैं अमलताश सा बना रहा, तुम निशिगंधा सी महक गयी
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 26-11-2012, 10:43 PM   #145
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

ये सोचा था ज़माने की निगाहों से बचा लूँ मैं
तुम्हे नज़दीक पाकर मैं, जमाने से छिपा लूँ मैं
ये मेरा था वहम खालिस, कि 'जय' तुम भोले भाले हो
ज़माने को नचाया है, खुदारा अब नचा हूँ मैं
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 26-11-2012, 10:43 PM   #146
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

हमारे गीत की पंक्ति कभी तो गुनगुनाओगे
मेरा वादा है, पढ़ कर तुम स्वयं ही मुस्कुराओगे
रहोगे दूर तुम कितना, अभी यह देखना है शेष
हृदय 'जय' कहता है मुझसे, अभी तुम पास आओगे
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 26-11-2012, 10:45 PM   #147
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

मंच-नियंत्रकों से अनुरोध है कि यदि प्रविष्टियों में पुनरावृत्ति हो रही हो तो कृपया बिना हिचक इन्हें मिटा सकते हैं। मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। धन्यवाद।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 26-11-2012, 10:51 PM   #148
sombirnaamdev
Diligent Member
 
sombirnaamdev's Avatar
 
Join Date: Jan 2012
Location: BOMBAY & HISSAR
Posts: 1,157
Rep Power: 36
sombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond reputesombirnaamdev has a reputation beyond repute
Send a message via Skype™ to sombirnaamdev
Default Re: रात हुई है तोह दिन भी होगा

Quote:
Originally Posted by anjaan View Post
दिन हुआ है तो रात भी होगी,
हो मत उदास कभी तो बात भी होगी,
इतने प्यार से दोस्ती की है खुदा की कसम
जिंदगी रही तो मुलाकात भी होगी.

कोशिश कीजिए हमें याद करने की
लम्हे तो अपने आप ही मिल जायेंगे
तमन्ना कीजिए हमें मिलने की
बहाने तो अपने आप ही मिल जायेंगे .

महक दोस्ती की इश्क से कम नहीं होती
इश्क से ज़िन्दगी ख़तम नहीं होती
अगर साथ हो ज़िन्दगी में अच्छे दोस्त का
तो ज़िन्दगी जन्नत से कम नहीं होती

सितारों के बीच से चुराया है आपको
दिल से अपना दोस्त बनाया है आपको
इस दिल का ख्याल रखना
nice one thank you very much keep it up
sombirnaamdev is offline   Reply With Quote
Old 30-11-2012, 11:53 PM   #149
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

भूले बिसरे मित्र 'अमित तिवारी' के लिए कुछ कालखण्ड पहले लयबद्ध किये गए कुछ शब्द .............

अटल नहीं तुम प्रबल बचन हो
प्रबल नहीं तुम सजल नयन हो

सजल नयन या तीव्र सरित हो
तीव्र सरित या हृदय व्यथित हो
व्यथित नहीं तुम अचल गगन हो
अटल नहीं तुम प्रबल बचन हो
प्रबल नहीं तुम सजल नयन हो


गगन नहीं तुम हरित धरा हो
धरा नहीं तुम स्वर्ण खरा हो
स्वर्ण नहीं तुम ज्ञान-गहन हो
अटल नहीं तुम प्रबल बचन हो
प्रबल नहीं तुम सजल नयन हो


ज्ञान नहीं उज्ज्वल प्रकाश हो
नहीं क्वचित तुम उच्छ्वास हो
अरे नहीं तुम मुक्त पवन हो
अटल नहीं तुम प्रबल बचन हो
प्रबल नहीं तुम सजल नयन हो


पवन नहीं तुम कार्य-त्रसित हो
त्रसित नहीं तुम नेह अमित हो
अमित नहीं 'जय' महा अटल हो
अटल नहीं तुम प्रबल बचन हो
प्रबल नहीं तुम सजल नयन हो
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 02-12-2012, 12:04 AM   #150
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: छींटे और बौछार

======= मंच के प्रति कुछ पंक्तियाँ ==========

कई प्रकोष्ठों में अनुशासित, शत-शत सूत्रों से है बंधा हुआ
मोहक, मादक और ज्ञानार्जक, लेखों-चित्रों से विंधा हुआ
पर्यटक सहस्त्रों निश-दिन के, पञ्च-सहस्त्र सहभागी हैं
भिन्न भिन्न परिदृश्य संजोये, कई देशों से गुंथा हुआ

अनजाने रिश्तों का है, कैसा यह पहचाना नगर
बिन चेहरे के भी आती हैं, कैसी कैसी भाव लहर
आओ, ठहरो, देखो, तब कुछ शब्द-कुण्ड में हवन करें
शुद्ध सौम्य संबंधों की फिर, मिल जायेगी सुखद डगर

मिल जाते हैं सुहृद अनेकों, अग्रज और अनुज मिलते हैं
और सलोनी भगिनी मिलती, तब नेह-कँवल खिलते हैं
प्रेम पुष्प खिलते रहते हैं, हिंदी मंच के आँगन में
मिलते कई युवा सूरज जो, भरी दोपहर में ढलते हैं

मिल सकता है यहाँ बहुत कुछ, यदि मानव-मन निर्मल हो
और दुखी हो जाता है मन, जब हुआ स्वयं से छल हो
हृदय सतत खोजा करता है, मिले असीमित नेह जहाँ
किन्तु परीक्षित रिश्ते रहते , ठोस धरा पर रहें अचल जो

आओ मित्रों! हम सब मिलकर, नया नया कुछ सृजित करें
पावस ऋतु के मेघों जैसे, इस हिंदी मंच को हरित करें
नए दृश्य परिदृश्य उकेरें, नयी धारणा को बल दें
नव-पथिकों के लिए आओ 'जय', नई वीथिका रचित करें
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
ghazals, hindi poems, poems, shayaris


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 08:48 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.