11-08-2012, 01:18 PM | #1 |
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मौत आई तो मर जाना है ?
फूल - सा बन मुझे ख़ुश्बू - सा बिखर जाना है . जब मेरा बस नहीं सूरत पे , तो क्यों शरमाऊँ ; अपनी सीरत तराश करके सँवर जाना है . ख़ुद की नाकामियों से सीखना - सुधरना है ; ठोकरें जितनी मिलें उतना निखर जाना है . कभी चिराग़ बनूँगा मैं अंधेरों के लिये ; बन के सावन कभी सहरा से गुज़र जाना है . वज़ूद मेरा मौत भी न कर सकेगी फ़ना ; हसीन याद बन हर दिल में ठहर जाना है . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . शब्दार्थ ~~ सीरत = आन्तरिक गुण / Inner beauty , सहरा = रेगिस्तान , वज़ूद = अस्तित्व , फ़ना = नष्ट होना |
11-08-2012, 02:15 PM | #2 | |
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Re: मौत आई तो मर जाना है ?
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22-08-2012, 02:40 PM | #3 |
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Re: मौत आई तो मर जाना है ?
शुक्रिया डार्क सेंट अलैक जी ,अरविन्द जी तथा सभी अज्ञात पाठकों का .
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23-08-2012, 06:54 PM | #4 | |
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Re: मौत आई तो मर जाना है ?
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15-10-2012, 08:41 PM | #5 |
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Re: मौत आई तो मर जाना है ?
बहुत शुक्रिया आपका जनाब सिकंदर खान जी .
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