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Old 10-12-2010, 08:54 AM   #61
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

मूर्खों का साथ हमेशा दुखदायी

विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय जहाँ कहीं भी जाते, जब भी जाते, अपने साथ हमेशा तेनालीराम को जरूर ले जाते थे। इस बात से अन्य दरबारियों को बड़ी चिढ़ होती थी। एक दिन तीन-चार दरबारियों ने मिलकर एकांत में महाराज से प्रार्थना की, ‘महाराज, कभी अपने साथ किसी अन्य व्यक्ति को भी बाहर चलने का अवसर दें।’ राजा को यह बात उचित लगी। उन्होंने उन दरबारियों को विश्वास दिलाया कि वे भविष्य में अन्य दरबारियों को भी अपने साथ घूमने-फिरने का अवसर अवश्य देंगे।

एक बार जब राजा कृष्णदेव राय वेष बदलकर कुछ गाँवों के भ्रमण को जाने लगे तो अपने साथ उन्होंने इस बार तेनालीराम को नहीं लिया बल्कि उसकी जगह दो अन्य दरबारियों को साथ ले लिया। घूमते-घूमते वे एक गाँव के खेतों में पहुँच गए। खेत से हटकर एक झोपड़ी थी, जहाँ कुछ किसान बैठे गपशप कर रहे थे। राजा और अन्य लोग उन किसानों के पास पहुँचे और उनसे पानी माँगकर पिया। फिर राजा ने किसानों से पूछा, ‘कहो भाई लोगों, तुम्हारे गाँव में कोई व्यक्ति कष्ट में तो नहीं है? अपने राजा से कोई असंतुष्ट तो नहीं है?’ इन प्रश्नों को सुनकर गाँववालों को लगा कि वे लोग अवश्य ही राज्य के कोई अधिकारीगण हैं। वे बोले, ‘महाशय, हमारे गाँव में खूब शांति है, चैन है। सब लोग सुखी हैं। दिन-भर कडी़ मेहनत करके अपना काम-काज करते हैं और रात को सुख की नींद सोते हैं। किसी को कोई दुख नहीं है। राजा कृष्णदेव राय अपनी प्रजा को अपनी संतान की तरह प्यार करते हैं, इसलिए राजा से असंतुष्ट होने का सवाल ही नहीं पैदा होता।

‘इस गाँव के लोग राजा को कैसा समझते हैं?’ राजा ने एक और प्रश्न किया। राजा के इस सवाल पर एक बूढ़ा किसान उठा और ईख के खेत में से एक मोटा-सा गन्ना तोड़ लाया। उस गन्ने को राजा को दिखाता हुआ वह बूढ़ा किसान बोला, ‘श्रीमान जी, हमारे राजा कृष्णदेव राय बिल्कुल इस गन्ने जैसे हैं।’ अपनी तुलना एक गन्ने से होती देख राजा कृष्णदेव राय सकपका गए। उनकी समझ में यह बात बिल्कुल भी न आई कि इस बूढ़े किसान की बात का अर्थ क्या है? उनकी यह भी समझ में न आया कि इस गाँव के रहने वाले अपने राजा के प्रति क्या विचार रखते हैं? राजा कृष्णदेव राय के साथ जो अन्य साथी थे, राजा ने उन साथियों से पूछा, ‘इस बूढ़े किसान के कहने का क्या अर्थ है?’ साथी राजा का यह सवाल सुनकर एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। फिर एक साथी ने हिम्मत की और बोला, ‘महाराज, इस बूढ़े किसान के कहने का साफ मतलब यही है कि हमारे राजा इस मोटे गन्ने की तरह कमजोर हैं। उसे जब भी कोई चाहे, एक झटके में उखाड़ सकता है। जैसे कि मैंने यह गन्ना उखाड़ लिया है।’ राजा ने अपने साथी की इस बात पर विचार किया तो राजा को यह बात सही मालूम हुई। वह गुस्से से भर गए और इस बूढ़े किसान से बोले, ‘तुम शायद मुझे नहीं जानते कि मैं कौन हूँ?’ राजा की क्रोध से भरी वाणी सुनकर वह बूढ़ा किसान डर के मारे थर-थर काँपने लगा। तभी झोंपड़ी में से एक अन्य बूढ़ा उठ खड़ा हुआ और बड़े नम्र स्वर में बोला-‘महाराज, हम आपको अच्छी तरह जान गए हैं, पहचान गए हैं, लेकिन हमें दुख इस बात का है कि आपके साथी ही आपके असली रूप को नहीं जानते। मेरे साथी किसान के कहने का मतलब यह है कि हमारे महाराज अपनी प्रजा के लिए तो गन्ने के समान कोमल और रसीले हैं किंतु दुष्टों और अपने दुश्मनों के लिए महानतम कठोर भी।’ उस बूढ़े ने एक कुत्ते पर गन्ने का प्रहार करते हुए अपनी बात पूरी की। इतना कहने के साथ ही उस बूढ़े ने अपना लबादा उतार फेंका और अपनी नकली दाढ़ी-मूँछें उतारने लगा। उसे देखते ही राजा चौंक पड़े। ‘तेनालीराम, तुमने यहाँ भी हमारा पीछा नहीं छोड़ा।’ ‘तुम लोगों का पीछा कैसे छोड़ता भाई? अगर मैं पीछा न करता तो तुम इन सरल हृदय किसानों को मौत के घाट ही उतरवा देते। महाराज के दिल में क्रोध का ज्वार पैदा करते, सो अलग।’

‘तुम ठीक ही कह रहे हो, तेनालीराम। मूर्खों का साथ हमेशा दुखदायी होता है। भविष्य में मैं कभी तुम्हारे अलावा किसी और को साथ नहीं रखा करूँगा।’ उन सबकी आपस की बातचीत से गाँववालों को पता चल ही गया था कि उनकी झोंपड़ी पर स्वयं महाराज पधारे हैं और

भेष बदलकर पहले से उनके बीच बैठा हुआ आदमी ही तेनालीराम है तो वे उनके स्वागत के लिए दौड़ पड़े। कोई चारपाई उठवाकर लाया तो कोई गन्ने का ताजा रस निकालकर ले आया। गाँववालों ने बड़े ही मन से अपने मेहमानों का स्वागत किया। उनकी आवभगत की। राजा कृष्णदेव राय उन ग्रामवासियों का प्यार देखकर आत्मविभोर हो गए। तेनालीराम की चोट से आहत हुए दरबारी मुँह लटकाए हुए जमीन कुरेदते रहे और तेनालीराम मंद-मंद मुस्करा रहे थे।
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Old 10-12-2010, 08:54 AM   #62
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

मॄत्युदण्ड की धमकी

थट्टाचारी कॄष्णदेव राय के दरबार में राजगुरु थे। वह तेनाली राम से बहुत ईर्ष्या करते थे। उन्हें जब भी मौका मिलता, तो वे तेनाली राम के विरुद्ध राजा के कान भरने से नहीं चूकते थे। एक बार क्रोध में आकर राजा ने तेनाली राम को मॄत्युदण्ड देने की घोषणा कर दी, परन्तु अपनी विलक्षण बुद्धि और हाजिर जवाबी से तेनाली राम ने जीवन की रक्षा की।

एक बार तेनाली राम ने राजा द्वारा दी जाने वाली मॄत्युदण्ड की धमकी को हमेशा के लिए समाप्त करने की योजना बनाई। वह थट्टाचारी के पास गए और बोले, “महाशय, एक सुन्दर नर्तकी शहर में आई है। वह आपके समान किसी महान व्यक्ति से मिलना चाहती है। उसने आपकी काफी प्रशंसा भी सुन रखी है। आपको आज की रात उसके घर जाकर, उससे अवश्य मिलना चाहिए, परन्तु आपकी बदनामी न हो, इसलिए उसने कहलवाया है कि आप उसके पास एक स्त्री के रुप में जाइएगा।”

थट्टाचारी तेनाली राम की बातों से सहमत ओ गए। इसके बाद तेनाली राम राजा के पास गए और वही सारी कहानी राजा को सुनाई। राजा की अनेक पत्नियॉ थीं तथा वह एक और नई पत्नी चाहते थे। अतः वे भी स्त्री के रुप में उस नर्तकी से मिलने के लिए तैयार हो गए।

शाम होते ही तेनाली राम ने उस भवन की सारी बत्तियॉ बुझा दीं, जहॉ उसने राजगुरु और राजा को बुलाया था। स्त्री वेश में थट्टाचारी पहले पहूँचे और अंधेरे कक्ष में जाकर बैठ गये। वहीं प्रतीक्षा करते हुए उन्हें पायल की झंकार सुनाई दी। उन्होंने देखा कि एक स्त्री ने कमरे में प्रवेश किया है, परन्तु अंधेरे के कारण वह उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पाए। वास्तव में राजगुरु जिसे स्त्री समझ रहे थे वह स्त्री नहीं, बल्कि राजा ही थे और वार्तालाप शुरु होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। थोडी देर पश्चात कमरे की खिडकी के पास खडे तेनाली राम को आवाज सुनाई डी।

“प्रिय, तुम मुझे अपना सुन्दर चेहरा क्यों नहीं दिखा रही हो?” थट्टाचारी मर्दाना आवाज में बोले ।

राजा ने राजगुरु की आवाज पहचान ली और बोले, “राजगुरु, आप यहॉ क्या कर रहे हैं

राजगुरु ने राजा की आवाज पहचान ली । शीघ्र ही वे दोनों समझ गए कि तेनाली राम ने उन्हें मूर्ख बनाया है। दोनों ने कक्ष से बाहर आने का प्रयास किया, परन्तु तेनाली राम ने द्वार बाहर से बन्द कर उस पर ताला लगा दिया था। वह खिडकी से चिल्लाया, “यदि आप दोनों यह वचन दें कि भविष्य में कभी मॄत्युदण्ड देने की धमकी नहीं देंगे, तो मैं दरवाजा खोल दूँगा।”

महाराज को तेनाली राम के इस दुस्साहस पर बहुत ही क्रोध आया, पर इस परिस्थिति में दोनों अंधकारमय कक्ष में असहाय थे और तेनाली राम की इस हरकत का उसे मजा भी नहीं चखा सकते थे। ऊपर से दोनों को बदनामी का डर अलग था और दोनों के पास अब कोई रास्ता भी नहीं बचा था, इसलिए दोनों ने ही तेनाली राम की बात मान ली।
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

मौत की सजा
बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिलशाह को डर था कि राजा कृष्णदेव राय अपने प्रदेश रायचूर और मदकल को वापस लेने के लिए हम पर हमला करेंगे। उसने सुन रखा था कि वैसे राजा ने अपनी वीरता से कोडीवडु, कोंडपल्ली, उदयगिरि, श्रीरंगपत्तिनम, उमत्तूर, और शिवसमुद्रम को जीत लिया था।

सुलतान ने सोचा कि इन दो नगरों को बचाने का एक ही उपाय है कि राजा कृष्णदेव राय की हत्या करवा दी जाए। उसने बड़े इनाम का लालच देकर तेनालीराम के पुराने सहपाठी और उसके मामा के संबंधी कनकराजू को इस काम के लिए राजी कर लिया।

कनकराजू तेनालीराम के घर पहुँचा। तेनालीराम ने अपने मित्र का खुले दिल से स्वागत किया। उसकी खूब आवभगत की और अपने घर में उसे ठहराया। एक दिन जब तेनालीराम काम से कहीं बाहर गया हुआ था, कनकराजू ने राजा को तेनालीराम की तरफ से संदेश भेजा-‘आप इसी समय मेरे घर आएँ तो आपको ऐसी अनोखी बात दिखाऊँ, जो आपने जीवनभर न देखी हो।

राजा बिना किसी हथियार के तेनालीराम के घर पहुँचे। अचानक कनकराजू ने छुरे से उन पर वार कर दिया। इससे पहले कि छुरे का वार राजा को लगता, उन्होंने कसकर उसकी कलाई पकड़ ली। उसी समय राजा के अंगरक्षकों के सरदार ने कनकराजू को पकड़ लिया और वहीं उसे ढेर कर दिया।

कानून के अनुसार, राजा को मारने की कोशिश करने वाले को जो व्यक्ति आश्रय देता था, उसे मृत्युदंड दिया जाता था। तेनालीराम को भी मृत्युदंड सुनाया गया। उसने राजा से दया की प्रार्थना की।

राजा ने कहा, ‘मैं राज्य के नियम के विरुद्ध जाकर तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता। तुमने उस दुष्ट को अपने यहाँ आश्रय दिया। तुम कैसे मुझसे क्षमा की आशा कर सकते हो? हाँ, यह हो सकता है कि तुम स्वयं फैसला कर लो, तुम्हें किस प्रकार की मृत्यु चाहिए?’

‘मुझे बुढ़ापे की मृत्यु चाहिए, महाराज।’ तेनालीराम ने कहा। सभी आश्चर्यचकित थे। राजा हँसकर बोले, ‘इस बार भी बच निकले तेनालीराम।’
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

रंग-बिरंगी मिठाइयॉ

बसन्त् ॠतु छाई हुई थी। राजा कॄष्णदेव राय बहुत ही प्रसन्न थे। वे तेनाली राम के साथ बाग में टहल रहे थे। वे चाह रहे थे कि एक ऐसा उत्सव मनाया जाए जिसमें उनके राज्य के सारे लोग सम्मिलित हों। पूरा राज्य उत्सव के के आनन्द में डूब जाए। इस विषय में वह तेनाली राम से भी राय लेना चाहते थे। तेनाली राम ने राजा की इस सोच की प्रशंसा की और इस प्रकार विजयनगर में राष्ट्रीय उत्सव मनाने का आदेश दिया गया । शीघ्र ही नगर को स्वच्छ करवा दिया गया, सडकों व इमरतों पर रोशनी की गई। पूरे नगर को फूलों से सजाया गया। सारे नगर में उत्सव का वातावरण था।

इसके बाद राजा ने घोषणा की कि राष्टीय उत्सव को मनाने के लिए मिठाइयों की दुकानों पर रंग-बिरंगी मिठाइयॉ बेची जाएँ। घोषणा के बाद मिठाई की दुकान वाले मिठाइयॉ बनाने में व्यस्त हो गए।

कई दिनों से तेनाली राम दरबार में नहीं आ रहा आ रहा था। राजा ने तेनाली राम को ढूँढने के लिए सिपाहियों को भेजा, परन्तु वे भी तेनाली राम को नहीं ढूँढ पाए। उन्होंने राजा को इस विषय में सूचित किया। इससे राजा और भी अधिक चिन्तित हो गए। उन्होंने तेनाली राम को सतर्कतापूर्वक ढूँढने का आदेश् दिया। कुछ दिन बाद सैनिकों ने तेनाली राम को ढूँढ निकाला। वापस आकर वे राजा से बोले, “महाराज, तेनाली राम ने कपडों की रंगाई की दुकान खोल ली है तथा वह सारा दिन आपने इसी काम में व्यस्त रहता है। जब हमने उसे अपने साथ आने को कहा तो उसने आने से मना कर दिया।”

यह सुनकर राजा क्रोधित हो गए। वह सैनिकों से बोले, “मैं तुम्हें आदेश देता हूँ कि तेनाली राम को जल्दी से जल्दी पकड कर यहॉ ले आओ। यदि वह तुम्हारे साथ न आए तो उसे बलपूर्वक लेकर आओ।”

राजा के आदेश का पालन करते हुए सैनिक तेनाली राम को बलपूर्वक पकडकर दरबार में ले आए।
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

राजा ने पूछा, “तेनाली, तुम्हें लाने के लिए जब मैंने सैनिकों को भेजा, तो तुमने शाही आदेश का पालन क्यों नहीं किया तथा तुमने यह रंगरेज की दुकान क्यों खोली? हमारे दरबार में तुम्हारा अच्छा स्थान है, जिससे तुम अपनी सभी आवश्यकताएँ पूरी कर सकते हो।”

तेनाली राम बोला,” महाराज दरअसल मैं राष्ट्रीय उत्सव के लिय अपने वस्त्रों को रँगना चाहता था। इससे पहले कि सारे रंगों का प्रयोग दूसरे कर लें, मैं रंगाई का कार्य पूर्ण कर लेना चाह्ता था।”

“सभी रंगों के प्रयोग से तुम्हारा क्या तात्पर्य है? क्या सभी अपने वस्त्रों को रंग रहे हैं?” राजा ने पूछा।

“नहीं महाराज, वास्तव में रंगीन मिठाइयॉ बनाने के आपके आदेश के पश्चात सभी मिठाई बनाने वाले मिठाइयों को रंगने के लिए रंग खरीदने में व्यस्त हो गए हैं। यदि वे सारे रंगों को मिठाइयों को रंगने के लिए खरीद लेंगे तो मेरे वस्त्र कैसे रंगे जाएँगे?”

इस पर राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ । वह बोले, “तो तुम यह कहना चाहते हो कि मेरा आदेश अनुचित है। मेरे आदेश का लाभ उठाकर मिठाइयॉ बनाने वाले मिठाइयों को रंगने के लिए घटिया व हानिकारक रंगो का प्रयोग कर रहे हैं। उन्हें केवल खाने योग्य रंगों का ही उपयोग करना चाहिए ” इतना कहकर महाराज ने तेनाली राम को देखा। तेनाली राम के चेहरे पर वही चिर-परिचित मुस्कुराहट थी।

राजा कॄष्णदेव राय ने गम्भीर होते हुए आदेश दिया कि जो मिठाई बनाने वाले हानिकारक रासायनिक रंगों का प्रयोग कर रहे हैं, उन्हें कठोर दण्ड दिया जाए।

इस प्रकार तेनाली राम ने अपनी बुध्दि के प्रयोग से एक बार फिर विजयनगर के लोगों की रक्षा की।
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रंग-बिरंगे नाखून

सभी जानते हैं कि राजा कॄष्णदेव राय पशु-पक्षियों से बहुते प्यार करते थे। एक दिन एक बहेलिया राजदरबार में आया। उसके पास पिंजरे में एक सुन्दर व रंगीन विचित्र किस्म का पक्षी था। वह राजा से बोला, “महाराज, इस सुन्दर व विचित्र पक्षी को मैंने कल जंगल से पकडा हैं। यह बहुत मीठा गाता हैं तथा तोते के समान बोल भी सकता हैं। यह मोर के समान रंग-बिरंगा ही नहीं हैं, बाल्कि उसके समान नाच कर भी दिखा सकता हैं। मैं यहॉ यह पक्षी आपको बेचने के लिए आया हूँ।”

राजा ने पक्षी को देखा और बोले, “हॉ, देखने में यह पक्षी बहुत रंग-बिरंगा और विचित्र है। तुम्हें इसके लिए उपयुक्त मूल्य दिया जाएगा।” राजा ने बहेलिए को पचास स्वर्ण मुद्राएँ दीं और उस पक्षी को अपने महल के बगीचे में रखवाने का आदेश दिया। तभी तेनाली राम अपने स्थान से उठा और बोला, “महाराज, मुझे नहीं लगता कि यह पक्षी बरसात में मोर के समान नॄत्य कर सकता है। बल्कि मुझे तो लगता है कि यह पक्षी कई वर्षो से नहाया भी नहीं हैं।” तेनाली राम की बात सुनकर बहेलिया डर गया और् दुःखी स्वर में राजा से बोल, “महाराज, मैं एक निर्धन बहेलिया हूँ। पक्षियों को पकडना और बेचना ही मेरी आजीविका है। अतः मैं समझता हूँ कि पक्षियों के बारे में मेरी जानकारी पर बिना किसी प्रमाण के आरोप लगाना अनुचित है। यदि मैं निर्धन हूँ तो क्या तेनाली जी को मुझे झुठा कहने का अधिकार मिल गया है।”

बहेलिए की यह बात सुन महाराज भी तेनाली राम से अप्रसन्न होते हुए बोले, “तेनाली राम, तुम्हें ऐसा कहना शोभा नहीं देता । क्या तुम अपनी बात सिद्ध कर सकते हो ?” “मैं अपनी बात सिद्ध करना चाहता हूँ, महाराज।” यह कहते हुए तेनाली राम ने एक गिलास पानी पक्षी के पिंजरे में गिरा दिया। पक्षी गीला हो गया और सभी दरबारी पक्षी को आश्चर्य से देखने लगे। पक्षी पर गिरा पानी रंगीन हो गया और उसका रंग हल्का भूरा हो गया। राजा तेनाली राम को आश्चर्य से देखने लगे। तेनाली राम बोला, “महाराज यह कोई विचित्र पक्षी नहीं है,बल्कि जंगली कबूतर है।”

“परन्तु तेनाली राम तुम्हें कैसे पता लगा कि यह पक्षी रंगा गया है?”

“महाराज, बहेलिए के रंगीन नाखूनों से। पक्षी पर लगे रंग तथा उसके नाखूनों का रंग एक समान है।” अपनी पोल खुलते देख बहेलिया भागने का प्रयास करने लगा, परन्तु सैनिकों ने उसे पकड लिया। राजा ने उसे धोखा देने के अपराध में जेल में डाल डिया और् उसे दिया गया पुरस्कार अर्थात पचास स्वर्ण मुद्राएँ तेनाली राम को दे दिया गया।
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राज्य में उत्सव

एक बार राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबार में कहा, “नया वर्ष आरम्भ होने वाला है। मैं चाहता हूं कि नए वर्ष पर जनता को कोई नई भेंट दी जाए, नया तोहफा दिया जाए। आप बताइए, वह भेंट क्या हो? वह तोहफा क्या हो?”

महाराज की बात सुनकर सभी दरबारी सोच में पड़ गए। तभी मंत्री महोदय कुछ सोचकर बोले, “महाराज, नए वर्ष पर राजधानी में एक शानदार उत्सव मनाया जाए। देश-भर से संगीतकार, नाटक मडंलियां व दूसरे कलाकार बुलवाए जाएं और वे रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करें। जनता के लिए इससे बढ़कर नए वर्ष का उपहार और क्या हो सकता है?”

राजा कृष्णदेव राय को यह सुझाव बहुत पसन्द आया। उन्होंने मंत्री से पूछा, “कितना खर्च आ जाएगा इस आयोजन पर?” “महाराज, कोई खास ज्यादा नहीं, यही दस-बीस लाख स्वर्ण मुद्राएं ही खर्च होंगी।” मंत्री ने उत्तर दिया।

“इतना खर्च…कैसे?” राजा कृष्णदेव राय महामंत्री का उत्तर सुन कर चौंके। फिर मंत्री महोदय ने खर्च का ब्यौरा देते हुए कहा, “महाराज, हजारों कलाकारों के खाने-पीने और रहने का प्रबन्ध करना होगा। नई रंगशालाएं बनवाई जाएंगी। पुरानी रंगशालाओं की मरम्मत करानी होगी। शहर-भर में रोशनी और सजावट होगी। इन सब चीजों पर इतना खर्च तो हो ही जाएगा।”
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मंत्री के इस ब्योरे पर राजपुरोहित और अन्य सभासदों ने भी हां में हां मिलाई। राजा कृष्णदेव राय इतने खर्च की बात सुनकर सोच में पड़ गए। उन्होंने इस बारे में तेनाली राम की राय ली। तेनाली राम ने कहा, “महाराज, उत्सव का विचार तो वास्तव में बहुत अच्छा है, मगर यह उत्सव राजधानी में नहीं होना चाहिए।” “क्यों?” राजा कृष्णदेव राय ने पूछा। दूसरे दरबारी भी तेनाली राम की ओर चिढ़कर देखने लगे।

“महाराज, उत्सव यदि केवल राजधानी में हो तो शेष राज्यों की जनता को उसका क्या आनन्द आएगा? गांव वाले अपना काम छोड़कर तो उत्सव देखने आएंगे नहीं। कलाकारों को राज्य के प्रत्येक गांव व कस्बे में जाकर जनता का मनोरंजन करना चाहिए। कलाकारों की कला के माध्यम से जनता अपनी संस्कृति, अपने इतिहास को जानेगी तथा कलाकार संस्कृति की धरोहर रखने वालों से परिचित होंगे साथ ही कलाकारों का स्वागत-सत्कार गांव वाले करेंगे।”

“तेनाली राम, तुम्हारी बात तो बिल्कुल ठीक है। इसके लिए जितना धन चाहो, खजाने से ले लो।”

“धन…मगर किसलिए! यह तो जनता स्वयं खर्च करेगी। उन्हीं के लिए तो यह उत्सव कर रहे हैं। इस उत्सव का नाम ‘मिलन मेला’ होगा। इस मेले में कलाकार जहां कहीं भी जाएंगे, उनके खाने-पीने और रहने का प्रबन्ध वे लोग बिना कहे कर देंगे। हां, आने-जाने का प्रबन्ध हम कर देंगे। इस तरह बहुत कम खर्च आएगा महाराज, मगर इस उत्सव (मिलन मेला) का आनन्द सभी उठाएंगे।

राजा कृष्णदेव राय को तेनाली राम की बात जंच गई। उन्होंने उत्सव का सारा काम तेनालीराम को सौंप दिया। आयोजन की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले मंत्री व अन्य सभासदों के चहरे उतर गए|
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लोभ विनाश का कारण है

एक नगर में एक सन्यासी रहता था। वह नगर में भिक्षा माँगकर गुजारा करता था। भिक्षा में मिले अन्न में से जो बच जाता, उसे सोते समय अपने भिक्षा-पात्र में रखकर खूँटी पर टाँग देता था। सवेरे वह इस बचे हुए अन्न को मंदिर में सफाई करने वालों में बाँट देता था।

एक दिन उस मंदिर में रहने वाले चूहों ने आकर अपने राजा से कहा- ‘हे स्वामी, इस मंदिर का पुजारी रोज रात को बहुत सारे पकवान अपने भिक्षा-पात्र में रखकर खूँटी पर टाँग देता है। आप आहार के लिए व्यर्थ ही इधर-उधर भटकते हैं। हम तो उस पकवान तक पहुँच नहीं पाते, किंतु आप तो समर्थ हैं। आप उस भोजन तक पहुँच सकते हैं। इस भिक्षा-पात्र पर चढ़कर आप पकवान का आनंद लीजिए। आप चलेंगे तो हमें भी आसानी से पकवान का आनंद मिल जाएगा।’

यह सुनकर चूहों का राजा झुंड के साथ वहाँ जा पहुंचा, जहाँ खूँटी पर भिक्षा-पात्र टँगा था। वह एक ही उछाल में खूँटी पर टँगे भिक्षा-पात्र पर जा चढ़ा। इसके बाद उसने पात्र में रखे स्वादिष्ट पकवान को नीचे गिरा दिया।

सभी चूहों ने पेट भरकर पकवान खाया। राजा चूहे ने भी पेट भकर भोजन किया। इस प्रकार वह हर रात अन्य चूहों को पकवान खिलाया करता और स्वयं भी खाता।
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

सन्यासी अपनी ओर से पूरी तरह सावधान रहता और चूहों को भगाने की पूरी कोशिश करता। लेकिन जैसे ही उसे नींद आती, चूहा राजा अपनी सेना लेकर पहुँच जाता और भिक्षा-पात्र में रखे हुए भोजन को चट कर जाता।

सन्यासी ने तंग आकर एक दिन भोजन की रक्षा करने के लिए नया ही उपाय किया। वह एक फटा हुआ बाँस ले आया और सोते समय वह उसे जोर-जोर से भिक्षा-पात्र पर पटकता रहता। इससे चूहों के भोजन में बाधा पड़ी। कितनी ही बार वे चोट के डर से बिना खाए ही भाग जाते। एक दिन सन्यासी का एक मित्र उसका मेहमान बनकर आया। रात को दोनों भोजन करके लेट गए। मित्र धार्मिक कथाएँ सुनाने लगा।

किंतु सन्यासी का मन चूहे को भगाने में लगा था। मेहमान मित्र ने देखा कि सन्यासी उसकी बात पर पूरा ध्यान नहीं दे रहा है। उसे क्रोध आ गया। उसने सन्यासी से कहा- ‘तू मेरे साथ प्रेमपूर्वक बातचीत नहीं कर रहा है। तेरे अंदर अहंकार पैदा हो गया है।’ इस पर सन्यासी ने कहा-‘ऐसा मत कहो। तुम मेरे परमप्रिय मित्र हो।

मैं तो चूहे को भगाने में लगा हुआ था। वह बार-बार उछलकर मेरे भिक्षा-पात्र तक पहुँच जाता है।’ मित्र ने कहा- ‘आश्चयर्य है कि तुम एक चूहे को नहीं समझ पाए। यह चूहा अवश्य ही धन-संपन्न है। इसे धन की ही गर्मी है। तुम्हें चूहे के आने-जाने का मार्ग मालूम होगा। तुम्हारे पास जमीन खोदने का कोई औजार हो तो निकालो।’ सन्यासी ने कहा-‘मेरे पास लोहे की एक कुदाल है।’

दोनों मिलकर चूहे के बिल तक पहुँच गए और बिल खोदकर उसकी सारी धन-दौलत निकाल लाए। सन्यासी के मित्र ने प्रसन्न होकर कहा- ‘अब तुम निश्चित होकर सोओ। वह दुष्ट चूहा इस धन के बल पर ही इतनी ऊँची छलाँग लगाया करता था। धन न रहने से उसका बल टूट गया है। अब कोशिश करने पर भी वह तुम्हारे भिक्षा-पात्र तक नहीं पहुँच पाएगा।’
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