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Old 24-02-2013, 01:32 AM   #201
Dark Saint Alaick
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

सोच को लचीला बनाए रखें

जब आपकी सोच सख्त, तय और स्थापित हो जाती है तो आप लड़ाई हार जाते हैं। जब आप यह सोच लेते हैं कि आपके पास सारे जवाब हैं तो तय मानिए आपको किसी भी वक्त पीछे हटना पड़ सकता है। जब आपके तरीके पूर्व निर्धारित और स्थापित हो जाते हैं, तो संभवत: आप इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं। जीवन से अधिकतम पाने के लिए आपको अपने सभी विकल्प खुले रखने चाहिए। आपको अपनी सोच और जीवन को लचीला रखना चाहिए। जब तूफान आए, तो आपको सिर झुकाने के लिए तैयार रहना होगा। जब आपको तूफान का सबसे कम अंदेशा होता है, तभी यह सचमुच तेजी से आ जाता है। जिस पल आप किसी निश्चित परिपाटी में फंस जाते हैं तो एक तरह से आप दिशा से भटकने के लिए खुद को तैयार कर लेते हैं। आपको अपनी सोच की काफी गौर से जांच करनी चाहिए। लचीली सोच कुछ हद तक मानसिक मार्शल आर्ट्स जैसी है - झुकना और लहराना, चकमा देने और लयबद्ध गतिविधि के लिए तैयार रहना। जिंदगी को दुश्मन नहीं, दोस्ताना मुक्के मारने वाले साथी के रूप में देखने की कोशिश करें। अगर आप लचीले हैं, तो आपको मजा आएगा। अगर आप जमीन पर कसकर पैर जमा लेते हैं तो इस बात की आशंका है कि जिंदगी आपको जमकर धक्के मारेगी। हम सभी के जीवन में तयशुदा आदतें होती है। हम इस या उस चीज पर लेबल लगाना पसंद करते हैं। हम अपनी राय और धारणाओं पर काफी गर्व महसूस करते हैं। हम सभी कोई निश्चित अखबार पढ़ना पसंद करते हैं, निश्चित टीवी कार्यक्रम या फिल्म देखना पसंद करते हैं, हर बार एक खास किस्म की दुकानों में जाते हैं, खास किस्म का भोजन करते हैं, खुद को बाकी सभी संभावनाओं से पूरी तरह काट लें, तो हम नीरस, सख्त और कड़क बन जाते हैं। इस तरह हमारे इधर-उधर ठोकर खाने की संभावना हो जाती है। इससे बचें।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 24-02-2013, 01:36 AM   #202
Dark Saint Alaick
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

गुब्बारे वाले की सीख

एक आदमी बेहद गरीब था, लेकिन उसकी सोच काफी बड़ी थी। आर्थिक रूप से अन्य लोगों के मुकाबले काफी कमजोर होने के बावजूद भी वह कभी अपनी सोच को कमजोर नहीं होने देता था। वह आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापन करता था। वह अपने गांव में तो गुब्बारे बेचता ही था, साथ ही जब भी मौका मिलता, आस-पास लगने वाली हाटों में भी जाता था और गुब्बारे बेचा करता था। बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह के गुब्बारे रखता। लाल, पीले, हरे, नीले। उसे पता होता था कि बच्चे किस तरह के रंग के गुब्बारे पसंद करते हैं। और जब कभी उसे लगता की गुब्बारे की बिक्री कम हो रही है, वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे खरीदने के लिए उसके पास पहुंच जाते। इसी तरह एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढ़ाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था। पास ही खड़ा एक छोटा बच्चा ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि गुब्बारे वाला ऐसा क्यों कर रहा है। इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने एक सफेद गुब्बारा उड़ाया, वह तुरंत उसके पास पहुंचा और मासूमियत से बोला, अगर आप ये काला वाला गुब्बारा छोड़ेंगे, तो क्या वो भी ऊपर जाएगा? गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला - हां, बिलकुल जाएगा बेटा। गुब्बारे का ऊपर जाना इस बात पर नहीं निर्भर करता है कि वो किस रंग का है, बल्कि इस पर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है। ठीक इसी तरह हम इंसानों के लिए भी ये बात लागू होती है। कोई अपनी जिंदगी में कितना ऊपर जाएगा या ऊंचाई के किस मुकाम को छुएगा, ये उसके बाहरी रंग-रूप पर निर्भर नहीं करता है । ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है? अंतत: हमारा आत्मविश्वास ही यह बताता है कि हम किस ऊंचाई को छुएंगे।
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Old 24-02-2013, 11:16 AM   #203
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सोच को लचीला बनाए रखें

जब आपकी सोच सख्त, तय और स्थापित हो जाती है तो आप लड़ाई हार जाते हैं। जब आप यह सोच लेते हैं कि आपके पास सारे जवाब हैं तो तय मानिए आपको किसी भी वक्त पीछे हटना पड़ सकता है। जब आपके तरीके पूर्व निर्धारित और स्थापित हो जाते हैं, तो संभवत: आप इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं। जीवन से अधिकतम पाने के लिए आपको अपने सभी विकल्प खुले रखने चाहिए। आपको अपनी सोच और जीवन को लचीला रखना चाहिए। जब तूफान आए, तो आपको सिर झुकाने के लिए तैयार रहना होगा। जब आपको तूफान का सबसे कम अंदेशा होता है, तभी यह सचमुच तेजी से आ जाता है। जिस पल आप किसी निश्चित परिपाटी में फंस जाते हैं तो एक तरह से आप दिशा से भटकने के लिए खुद को तैयार कर लेते हैं। आपको अपनी सोच की काफी गौर से जांच करनी चाहिए। लचीली सोच कुछ हद तक मानसिक मार्शल आर्ट्स जैसी है - झुकना और लहराना, चकमा देने और लयबद्ध गतिविधि के लिए तैयार रहना। जिंदगी को दुश्मन नहीं, दोस्ताना मुक्के मारने वाले साथी के रूप में देखने की कोशिश करें। अगर आप लचीले हैं, तो आपको मजा आएगा। अगर आप जमीन पर कसकर पैर जमा लेते हैं तो इस बात की आशंका है कि जिंदगी आपको जमकर धक्के मारेगी। हम सभी के जीवन में तयशुदा आदतें होती है। हम इस या उस चीज पर लेबल लगाना पसंद करते हैं। हम अपनी राय और धारणाओं पर काफी गर्व महसूस करते हैं। हम सभी कोई निश्चित अखबार पढ़ना पसंद करते हैं, निश्चित टीवी कार्यक्रम या फिल्म देखना पसंद करते हैं, हर बार एक खास किस्म की दुकानों में जाते हैं, खास किस्म का भोजन करते हैं, खुद को बाकी सभी संभावनाओं से पूरी तरह काट लें, तो हम नीरस, सख्त और कड़क बन जाते हैं। इस तरह हमारे इधर-उधर ठोकर खाने की संभावना हो जाती है। इससे बचें।


बहुत सुन्दर, अलैक जी. विख्यात दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल से किसी ने पूछा कि क्या आप अपनी धारणाओं को ले कर मरने के लिए तैयार होंगे? उन्होंने उत्तर दिया -
"बिलकुल नहीं, अरे भाई! मैं गलत भी तो हो सकता हूँ."
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Old 26-02-2013, 03:53 PM   #204
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

नाकामियों से डरें नहीं

किसी भी इंसान को दूसरे उतना धोखा नहीं देते, जितना वह खुद को देता है। किसी भी इंसान की अवनति के लिए दूसरे उतने उत्तरदायी नहीं होते जितना वह खुद होता है। कुछ असफलताओं के बाद व्यक्ति के मन में हीनभावना आ जाती है और वह कायर हो जाता है। वह इस बात पर चिंतन नहीं कर पाता कि जीत और हार तो जीवन का हिस्सा है। वह खुद को भाग्यहीन मान लेता है। उसे लगता है कि संसार में उसका कोई मूल्य नहीं है। वह यह मान लेता है कि दूसरे उससे बेहतर हैं और वह आम रहने के लिए पैदा हुआ है। चाहे आपके साथ जो घटा हो, आपने कितना भी बुरा जीवन क्यों ना जिया हो, आपके जीवन का अभी अंत नहीं हुआ है। आपका मूल्य खत्म नहीं हुआ है। किसी को भी हक नहीं कि किसी अनुपयोगी वस्तु की तरह आपको कबाड़ में डाल दे। आप फिर खड़े हो सकते हैं। आप फिर मंजिल को पा सकते हैं। महत्व आपके अतीत का नहीं है। महत्व है तो आपके भविष्य के प्रति आपकी सोच का। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं जिसमें दुनिया ने किसी शख्स को चूका हुआ मान लिया था, उनका तिरस्कार होने लगा था लेकिन उनके हौंसलों की उड़ान ने उन्हें फिर से खड़ा कर दिया। वे सारे लोग जो कल तक उनका अपमान करते थे, आज फिर उनके प्रशंसक हैं और जय जयकार कर रहे हैं। रात चाहे कितनी भी गहरी हो, सूर्य को हमेशा नहीं ढक सकती। सोना चाहे धूल से सना हो, सोना ही रहता है। यदि आप अपनी इच्छा से एक खराब और मजबूर जिंदगी चुन रहें हैं तो कोई आपकी मदद नहीं कर सकता। लेकिन यदि आप बीती असफलताओं से डरे हुए हैं तो उठिए। यदि आप किसी कारण से हीन भावना से घिरे हैं तो अपने मन के अंदर उतरिए। आप पाएंगे कि बहुत से कार्य हैं जिन्हे आप बहुत अच्छे से कर सकते हैं। आप अपने आसपास देखिए। आपको बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जिनमें आपके जैसी योग्यता नहीं है फिर भी वे खुशहाल हैं। अपनी हीनभावना निकाल फैंकें।
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Old 26-02-2013, 03:55 PM   #205
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

सुल्तान को सलाम नहीं

शिवाजी के समक्ष एक बार उनके सैनिक किसी गांव के मुखिया को पकड़ कर ले आए। मुखिया पर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हो चुका था। उस समय शिवाजी मात्र 14 वर्ष के थे पर वह बड़े ही बहादुर, निडर और न्याय प्रिय थे और विशेषकर महिलाओं के प्रति उनके मन में असीम सम्मान था। उन्होंने तत्काल निर्णय सुना दिया कि इसके दोनों हाथ और पैर काट दो। ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती। शिवाजी जीवन पर्यन्त साहसिक कार्य करते रहे और गरीब, बेसहारा लोगों को हमेशा प्रेम और सम्मान देते रहे। शिवाजी के साहस का एक और किस्सा प्रसिद्द है। पुणे के करीब नचनी गांव में एक भयानक चीते का आतंक छाया हुआ था। वह अचानक ही कहीं से हमला करता था और जंगल में ओझल हो जाता। गांव वाले अपनी समस्या लेकर शिवाजी के पास पहुंच। शिवाजी ने कहा आप लोग चिंता मत करिए,मैं यहां आपकी मदद करने के लिए ही हूं। शिवाजी अपने सिपाहियों और कुछ सैनिकों के साथ जंगल में चीते को मारने के लिए निकल पड़े। बहुत ढूंढने के बाद जैसे ही वह सामने आया, सैनिक डर कर पीछे हट गए पर शिवाजी बिना डरे उस पर टूट पड़े और पलक झपकते ही उस मार गिराया। शिवाजी के पिता का नाम शाहजी था। वह अक्सर युद्ध लड़ने के लिए घर से दूर रहते थे इसलिए उन्हें शिवाजी के निडर और पराक्रमी होने का अधिक ज्ञान नहीं था। किसी अवसर पर वह शिवाजी को बीजापुर के सुलतान के दरबार में ले गए। शाहजी ने तीन बार झुककर सुलतान को सलाम किया और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा लेकिन शिवाजी अपना सर ऊपर उठाये सीधे खड़े रहे। विदेशी शासक के सामने वह किसी भी कीमत पर सर झुकाने को तैयार नहीं हुए और शेर की तरह शान से चलते हुए दरबार से चले गए। उन्होने साबित कर दिया कि वे किसी से भी नही डरते।
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Old 28-02-2013, 02:58 AM   #206
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

धारा के खिलाफ तैरना सीखें

जिंदगी मुश्किल है और इस बात के लिए आपको ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए। अगर सब कुछ सरल और मुलायम होता, तो जिंदगी में हमारा इम्तिहान नहीं होता, हमें आजमाया नहीं जाता, हमें ढाला नहीं जाता। हम विकास नहीं कर पाते, सीख नहीं पाते या बदल नहीं पाते। हमें खुद के ऊपर उठने का मौका नहीं मिल पाता। अगर जिंदगी सुहाने दिनों की शृंखला होती तो हम इससे जल्दी ही ऊब जाते। अगर बारिश नहीं होती तो हमें इसके बंद होने पर समुद्र तट पर जाने की खुशी कैसे मिलती? अगर सब कुछ आसान होता, तो ज्यादा मजबूत नहीं बन पाते। तो इस बात के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करें कि जिंदगी कई बार संघर्ष जैसी लगती है। बस यह जान लें कि सिर्फ मरी हुई मछलियां ही धारा के साथ बहती हैं। इंसान को धारा के खिलाफ तैरना होता है, चढ़ाई करने के लिए संघर्ष करना होता है। हमें जलप्रतापों, तूफानों और तेज बहाव से जूझना होता है। लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है। हमें तैरते रहना होगा, वरना धारा हमें दूर बहाकर ले जाएगी। और हमारे हाथ-पैर पटकने की हर हरकत, हमारे तैरने की हर गतिविधि हमें ज्यादा मजबूत और फिट बनाती है। ज्यादा छरहरा और खुश बनाती है। एक सर्वे से पता चलता है कि बहुत से लोगों के लिए रिटायरमेंट सचमुच बुरा होता है। बहुत सारे लोग रिटायरमेंट के कुछ ही समय बाद मर जाते हैं। उन्होंने धारा के खिलाफ तैरना छोड़ दिया और धारा उन्हें बहाकर ले गई। इसलिए तैरते रहो, तैरते रहो। हर विपत्ति को बेहतर बनने के अवसर के रूप में देखें। यह आपको कमजोर नहीं, ज्यादा मजबूत बनाती है। आप पर सिर्फ उतनी ही विपत्तियों का बोझ लादा जाएगा, जितनी आप उठा सकते हैं। संघर्ष कभी खत्म नहीं होता, लेकिन बीच-बीच में राहत का दौर भी आता है, शांत जल, जहां हम कुछ वक्त आराम कर सकते हैं और उस पल का आनंद ले सकते हैं। जिंदगी इसी तरह चलती है।
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Old 28-02-2013, 03:01 AM   #207
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चर्चा करो, चिल्लाओ मत

एक बार एक संन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा। वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे। संन्यासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पूछा, क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ? शिष्य कुछ देर सोचते रहे। एक ने उत्तर दिया, क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए। संन्यासी ने पुन: प्रश्न किया कि जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या जरुरत है। जो कहना है वो आप धीमी आवाज में भी तो कह सकते हैं। कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए। अंतत: संन्यासी ने समझाया कि जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाए नहीं सुन सकते। वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा। क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है। संन्यासी ने बोलना जारी रखा - और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है? तब वे बोलते भी नहीं। वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं? प्रिय शिष्यो, जब तुम किसी से बात करो तो ये ध्यान रखो की तुम्हारे ह्रदय आपस में दूर न होने पाएं। तुम ऐसे शब्द मत बोलो, जिससे तुम्हारे बीच की दूरी बढ़े, नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि ये दूरी इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि तुम्हे लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा। इसलिए चर्चा करो, बात करो लेकिन कभी किसी पर चिल्लाओ मत। शिष्यों को संन्यासी की बात समझ आ गई।
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Old 28-02-2013, 08:30 AM   #208
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चर्चा करो, चिल्लाओ मत

एक बार एक संन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा। वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे। संन्यासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पूछा, क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ? शिष्य कुछ देर सोचते रहे। एक ने उत्तर दिया, क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए। संन्यासी ने पुन: प्रश्न किया कि जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या जरुरत है। जो कहना है वो आप धीमी आवाज में भी तो कह सकते हैं। कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए। अंतत: संन्यासी ने समझाया कि जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाए नहीं सुन सकते। वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा। क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है। संन्यासी ने बोलना जारी रखा - और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है? तब वे बोलते भी नहीं। वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं? प्रिय शिष्यो, जब तुम किसी से बात करो तो ये ध्यान रखो की तुम्हारे ह्रदय आपस में दूर न होने पाएं। तुम ऐसे शब्द मत बोलो, जिससे तुम्हारे बीच की दूरी बढ़े, नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि ये दूरी इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि तुम्हे लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा। इसलिए चर्चा करो, बात करो लेकिन कभी किसी पर चिल्लाओ मत। शिष्यों को संन्यासी की बात समझ आ गई।
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शब्द नहीँ हैँ तारीफ के लिए
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दोस्ती करना तो ऐसे करना
जैसे इबादत करना
वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना
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Old 01-03-2013, 09:39 PM   #210
Sikandar_Khan
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चर्चा करो, चिल्लाओ मत

एक बार एक संन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा। वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे। संन्यासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पूछा, क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ? शिष्य कुछ देर सोचते रहे। एक ने उत्तर दिया, क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए। संन्यासी ने पुन: प्रश्न किया कि जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या जरुरत है। जो कहना है वो आप धीमी आवाज में भी तो कह सकते हैं। कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए। अंतत: संन्यासी ने समझाया कि जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाए नहीं सुन सकते। वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा। क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है। संन्यासी ने बोलना जारी रखा - और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है? तब वे बोलते भी नहीं। वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं? प्रिय शिष्यो, जब तुम किसी से बात करो तो ये ध्यान रखो की तुम्हारे ह्रदय आपस में दूर न होने पाएं। तुम ऐसे शब्द मत बोलो, जिससे तुम्हारे बीच की दूरी बढ़े, नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि ये दूरी इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि तुम्हे लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा। इसलिए चर्चा करो, बात करो लेकिन कभी किसी पर चिल्लाओ मत। शिष्यों को संन्यासी की बात समझ आ गई।
:fantasic::fantasic:
बहुत खूब .........
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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