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Old 07-02-2015, 02:53 PM   #11
Rajat Vynar
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Talking Re: चाणक्यगीरी

‘चाणक्यगीरी’ सूत्र में पढ़ रहे हैं ऐतिहासिक पात्रों विद्योत्तमा, कालीदास और चाणक्य पर आधारित एक पूर्णतया काल्पनिक अग्रिम सूत्र ‘आई एम सिंगल अगेन’ का प्रोमोशन।
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Old 07-02-2015, 09:47 PM   #12
Pavitra
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Default Re: चाणक्यगीरी

wah wah....kya logic hai.....
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Old 07-02-2015, 10:15 PM   #13
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Default Re: चाणक्यगीरी

यह प्रयोग हास्यरस से भरपुर तो है ही...साथ साथ अत्यंत रोचक भी है। ईस हास्यलेख के लिए धन्यवाद! कृपया आगे जारी रखें।
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Old 07-02-2015, 10:52 PM   #14
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Default Re: चाणक्यगीरी

मजेदार ...!!
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Old 08-02-2015, 07:51 AM   #15
Rajat Vynar
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Talking Re: 1Ï41Ó01Ð31Î91Ô51Ñ51Ï11Ó2 1Ñ61Ó2

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Originally Posted by Deep_ View Post
यह प्रयोग हास्यरस से भरपुर तो है ही...साथ साथ अत्यंत रोचक भी है। ईस हास्यलेख के लिए धन्यवाद! कृपया आगे जारी रखें।
Aitihasik patron par kiya gaya yah hasya prayog kitna safal raha yah to is promotion ki agli kadi aane ke bad hi pata chalega.
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Last edited by Rajat Vynar; 11-02-2015 at 04:48 PM.
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Old 08-02-2015, 02:00 PM   #16
Rajat Vynar
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Originally Posted by Pavitra View Post
wah wah....kya logic hai.....
Pavitra ji, apko bahut-bahut dhanyavad. Apko 'MAKEUP' ki logic pasand aayi. Aap hamare sootra padhkar dil kholkar hansti hain, kya ye kam hai? Kyonki kisi ko hansana thik utna hi mushkil kam hota hai jitna ki valentine day ke din kisi ko patana.
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Old 08-02-2015, 04:46 PM   #17
Rajat Vynar
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Talking Re: चाणक्यगीरी

विद्योत्तमा के देश से आए गुप्तचरों ने चाणक्य से कहा- ‘‘मौर्य हाईकमान की जय हो। आज हम बड़ी अनोखी ख़बर लेकर लाए हैं।’’
चाणक्य ने प्रश्नवाचक दृष्टि से गुप्तचरों की ओर देखा।
एक गुप्तचर ने बताया- ‘‘विद्योत्तमा की सहेली और सेनापति अजूबी ने सेनापति के पद से त्यागपत्र दे दिया है और मैसूर महाराजा के देश की सेनापति बन गई है।’’
चाणक्य का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। चाणक्य ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- ‘‘आगे क्या ख़बर है, गुप्तचरों?’’
गुप्तचरों ने बताया- ‘‘हमारे गुप्तचर मैसूर गए हुए हैं। अभी तक तो कोई ख़ास ख़बर नहीं आई।’’
महागुप्तचर ने ‘गुप्तचरी की गणित’ बैठाते हुए अपना सन्देह व्यक्त किया- ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं, महामहिम- विद्योत्तमा मैसूर महाराजा के साथ मिलकर मौर्य देश पर आक्रमण करना चाहती हो? इसीलिए अजूबी को मैसूर महाराजा के यहाँ सेनापति के पद पर नियुक्त करवा दिया हो?’’
चाणक्य ने सोचते हुए कहा- ‘‘आज तक कभी ऐसा हुआ है, महागुप्तचर- विद्योत्तमा ने मौर्य देश पर हमला किया हो? हाँ, हमले का नाटक ज़रूर किया। क्या आपको याद नहीं- एक बार विद्योत्तमा अपनी सेना के साथ मौर्य देश की सीमा तक आकर यह बहाना बनाकर लौट गई कि उसकी सेना की तलवार में धार कम है। इसलिए वह लुहार से धार लगवाकर फिर से आकर हमला करेगी। दूसरी बार उसने बहाना बनाया कि उसकी सेना के धनुष का धागा बहुत ढ़ीला हो गया है। इसलिए वह धागा कसवाकर फिर से आकर हमला करेगी। तीसरी बार उसने बहाना बनाया कि वह जल्दीबाजी में अपनी विशेष तलवार नानी के यहाँ भूल आई है। इसलिए नानी के यहाँ से तलवार लाकर फिर से हमला करेगी। चैथी बार उसने बहाना बनाया कि आक्रमण करने का उसका मूड ख़त्म हो गया है। इसलिए जब फिर से मूड बनेगा तब आकर हमला करेगी। पाँचवीं बार उसने बहाना बनाया कि आमने-सामने लड़कर खून बहाने की क्या ज़रूरत है? चाणक्य से शतरंज पर लडू़ँगी।’’
महागुप्तचर ने कहा- ‘‘हाँ... याद आ गया, महामहिम। आप दोनों दस दिन तक शतरंज पर लड़ते रहे थे, किन्तु आप दोनों में से कोई एक-दूसरे का सिपाही तक न मार सका था। मौर्य सम्राट को दस दिन तक विद्योत्तमा और उसकी सेना को दावत खिलानी पड़ी थी। छटवीं बार उसने बहाना बनाया था कि उसे चाणक्य की लाइफ़स्टाइल पसन्द नहीं है। इसलिए लड़ने का मूड ख़त्म हो गया है।’’
उसी समय मैसूर से आए गुप्तचरों ने कक्ष में प्रवेश करते हुए चाणक्य से कहा- ‘‘मौर्य हाईकमान की जय हो।’’
चाणक्य ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘‘मैसूर से क्या ख़बर लाए हैं, गुप्तचरों? कुछ पता चला- अजूबी ने विद्योत्तमा की नौकरी क्यों छोड़ी?’’
एक गुप्तचर ने कहा- ‘‘सुनने में आया है- अजूबी ने आपके डर से विद्योत्तमा की नौकरी छोड़ दी है।’’
चाणक्य ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘मेरे डर से?’’
गुप्तचर ने कहा- ‘‘हाँ, आपके डर से। विद्योत्तमा की राजज्योतिषी और आपकी धर्मबहन ज्वालामुखी विद्योत्तमा और अजूबी का कान भरती रहती है। ज्वालामुखी कहती है- चाणक्य पर कभी भरोसा न करना। चाणक्य आज पीछे हट रहा है तो इसके पीछे ज़रूर चाणक्य की कोई चाल होगी। चाणक्य एक न एक दिन पूरी ताक़त के साथ विद्योत्तमा के देश पर हमला करेगा और विद्योत्तमा के देश को मौर्य देश में मिला लेगा। लड़ाई में सबसे पहले सेनापति मारा जाता है। इसीलिए अजूबी ने डरकर विद्योत्तमा की नौकरी छोड़ दी है और मैसूर महाराजा के यहाँ सेनापति बन गई है। यही नहीं, महामहिम- आपके डर के कारण ही विद्योत्तमा और अजूबी दिन-प्रतिदिन दुबली होती जा रही हैं।’’
गुप्तचर की बात सुनकर चाणक्य को एकाएक याद आया कि ज्वालामुखी ने अपने एक गुप्त सन्देश में उसे सूचित किया था कि विद्योत्तमा के देश में सभी चाहते हैं कि मक्खियाँ मर जाएँ। ज्वालामुखी के गुप्त सन्देश का अर्थ स्पष्ट था- विद्योत्तमा के देश में मौर्य देश के खिलाफ़ गुपचुप रूप से कोई षड़यन्त्र चल रहा था। अपने ऊपर झूठा आरोप लगा देखकर चाणक्य ने तिलमिलाकर कहा- ‘‘इसे कहते हैं- बद अच्छा, बदनाम बुरा। क्या विद्योत्तमा को पता नहीं- चाणक्य महिलाओं के देश पर आक्रमण नहीं करता? यह तो अत्यधिक चिन्ता का विषय है- विद्योत्तमा और अजूबी हमारे डर से दुबली होती जा रही हैं।’’
महागुप्तचर ने कहा- ‘‘आपकी बात तो ठीक है, महामहिम। मगर यह बात विद्योत्तमा और अजूबी को समझाए कौन?’’
चाणक्य ने चिन्तित स्वर में कहा- ‘‘हम समझाएँगे अजूबी को- चाणक्य से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।’’
महागुप्तचर ने अपना सन्देह व्यक्त किया- ‘‘क्या आपके समझाने से अजूबी मान जाएगी?’’
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘इस समय अजूबी मैसूर महाराजा के देश की सेनापति है। सभी जानते हैं- द्रविड़ों के देश में होली नहीं खेली जाती। होली आने वाली है। अजूबी होली खेलने के लिए व्याकुल होगी। होली के दिन हम मैसूर महाराजा से मिलने मैसूर जाएँगे।’’
मैसूर से आए एक गुप्तचर ने चाणक्य की बात को काटते हुए कहा- ‘‘क्षमा करें, महामहिम। होली वाले दिन मैसूर महाराजा स्वयं बंगलौर के सुल्तान से मिलने के लिए बंगलौर जा रहे हैं और लाल बाग़ में जाकर बंगलौर के सुल्तान से भेंट करेंगे। मैसूर महाराजा की सुरक्षा में सेनापति अजूबी भी उनके साथ रहेगी।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है। अजूबी की तलाश में अब हमें अधिक दूर नहीं जाना पड़ेगा। मैसूर महाराजा से हमारी पुरानी दोस्ती है। हम मैसूर महाराजा से लाल बाग़ में भी जाकर मिल सकते हैं। वहीं पर हमारी भेंट अजूबी से भी हो जाएगी। होली खेलने के लिए व्याकुल अजूबी को जब पता चलेगा- चाणक्य नौ सौ उन्नीस योजन, एक हज़ार पाँच सौ बाँस, आठ गज, आठ कदम और पैंतालीस अंगुल चलकर उससे होली खेलने के लिए छः पसेरी रंग लेकर आया है तो अजूबी खुश हो जाएगी। हम उसका ‘ब्रेनवाश’ कर देंगे और उसके मन से चाणक्य का डर हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा।’’
मुँह लगे महागुप्तचर ने चाणक्य से कहा- ‘‘और फिर अजूबी शोले फि़ल्म का गीत गाती हुई आपसे होली खेलने लगेगी- ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं... रंगों में रंग मिल जाते हैं‘। सुनने में आया है- अजूबी को शोले फि़ल्म बहुत पसन्द है। महीने में पाँच बार देखती है।’’
चाणक्य ने भड़ककर कहा- ‘‘शोले फि़ल्म का गीत क्यों? हम अपना खुद का गीत लिखेंगे- ‘होली के रंगो से डर कैसा? खेलने वाला हो कोई जो तेरे जैसा।’ चाणक्य आज से होली तक मौनव्रत धारण करेगा। पिछले वर्ष मौनव्रत धारण न करने के कारण बड़ी गड़बड़ी हो गई थी!’’

महागुप्तचर ने अपना सन्देह व्यक्त करते हुए कहा- ''छः पसेरी रंग तो बहुत होता है, महामहिम। आप अजूबी से रंग खेलने जा रहे हैं या मैसूर में रंग की दूकान लगाने जा रहे हैं?''

चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा- ''इतनी सी बात आप नहीं समझे, महागुप्तचर? मँहगाई रोज़ बढ़ती जा रही है। सस्ता मिलने के कारण आज छः पसेरी रंग ले लूँगा। होली खेलने के बाद जो रंग बचेगा, वह अजूबी के पास रखवा दूँगा। अगले साल काम आएगा।''

महागुप्तचर ने कहा- ''छः पसेरी रंग ही क्यों, महामहिम? सीधा-सीधा पाँच पसेरी ले जाइए।''

चाणक्य ने आगबबूला होते हुए कहा- ''चाणक्य की बात पर लात न मारिए, महागुप्तचर। चाणक्य की बातें गूढ़ होती हैं। आपकी समझ में न आएँगी। छः पसेरी से अगर थोड़ा भी रंग कम-ज़्यादा हुआ तो अजूबी से बात न हो पाएगी। छः पसेरी से कम रंग देखकर अजूबी नाराज़ हो जाएगी, क्योंकि छः अजूबी का लकी नम्बर है!''

महागुप्तचर ठीक उसी प्रकार संतुष्ट हो गया जैसे मौर्य सम्राट एक बार संतुष्ट हो गया था।
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Old 08-02-2015, 09:01 PM   #18
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अदभुत्!

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Old 09-02-2015, 03:10 PM   #19
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Default Re: चाणक्यगीरी

बहुत बढ़िया लिखा है रजतजी ,ऐसे ही लिखना जारी रखिये।
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Old 03-03-2015, 06:26 PM   #20
Rajat Vynar
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Talking Re: चाणक्यगीरी

चाणक्य अपने लेखन-कक्ष में ‘ब्रेन वाश’ नामक एक नई पुस्तक लिखने में व्यस्त थे। इसी पुस्तक के आधार पर अजूबी का ‘ब्रेन वाश’ किया जाना था। उसी समय महागुप्तचर ने आकर कहा- ‘‘मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त आपसे मिलने के लिए आए हैं और अन्दर आने की अनुमति चाहते हैं।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘आने दो। कितनी बार कह चुका हूँ- मौर्य सम्राट को हमसे मिलने के लिए अनुमति लेने की कोई ज़रूरत नहीं। जब चाहें, सीधे आकर मिल सकते हैं।’’
महागुप्तचर ने कहा- ‘‘मौर्य सम्राट को पता है- आजकल आप ‘चाणक्य नीति’ और ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ लिखने में बहुत व्यस्त हैं। मौर्य सम्राट के एकाएक आगमन से पुस्तक लेखन कार्य में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। इसीलिए अन्दर आने की अनुमति माँगते हैं।’’
चाणक्य ने पूछा- ‘‘मौर्य सम्राट आजकल मेरी पुस्तकों में बड़ी रुचि ले रहे हैं। आखिर बात क्या है?’’
महागुप्तचर ने कहा- ‘‘मौर्य सम्राट का कहना है- चाणक्य की पुस्तकों को सम्पूर्ण विश्व में बेचने से मौर्य देश को बहुत मुनाफ़ा होगा। मौर्य सम्राट कह रहे थे- ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ के साथ यदि ‘चाणक्य नीति’ मुफ़्त में दी जाए तो ख़रीददारों की लम्बी लाइन लग जाएगी। ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ की बिक्री दस गुना बढ़कर सम्पूर्ण विश्व में बेस्टसेलर बन जाएगी।’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘मनुष्य की आकांक्षाओं का कभी अन्त नहीं होता। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त सम्राट बनने से पहले मूँगफली का ठेला लगाता था। सम्राट बनने के बाद हमेशा अपने मौर्य देश के विस्तार और खजाने का धन बढ़ाने के चक्कर में लगा रहता है!’’
बाहर खड़े मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की बात सुनकर अन्दर आते हुए कहा- ‘‘चाणक्य की जय हो! मैं तो सिर्फ़ मौर्य देश के विस्तार और खजाने का धन बढ़ाने के चक्कर में लगा रहता हूँ, मगर आप....’’ मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
चाणक्य ने पूछा- ‘‘मगर आप क्या? आगे बोलिए। चुप क्यों हो गए?’’
मौर्य सम्राट ने अपना मुँह बन्द रखा। चाणक्य को नाराज़ करने का मतलब था- फिर से मूँगफली का ठेला लगाना जो मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त को किसी हालत में मंजू़र नहीं था।
चाणक्य ने कहा- ‘‘मुझे पता है- आप क्या कहना चाहते हैं। आप कहना चाहते हैं- मगर आप तो विद्योत्तमा की सेनापति अजूबी से होली खेलने के लिए इतनी दूर मैसूर जा रहे हैं।’’
चाणक्य की दूरगामी बुद्धि के आगे मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त एक बार फिर नतमस्तक हो गया और उसने अपना सिर झुका लिया। चाणक्य ने महागुप्तचर को संदेहास्पद दृष्टि से घूरकर देखा तो महागुप्तचर दाँत दिखाकर अपना सिर खुजलाने लगा। चाणक्य का अनुमान सही निकला। अजूबी से होली खेलने के लिए मैसूर जाने वाली बात महागुप्तचर ने ही मौर्य सम्राट को बताई थी। चाणक्य ने मन ही मन में महागुप्तचर को गाली देते हुए मौर्य सम्राट से चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘हमारा कार्यक्रम व्यक्तिगत नहीं, पूर्णतया राजकीय है। विद्योत्तमा और उसकी सेनापति अजूबी के कारण मौर्य देश पर जब-तब संकट आता रहता है। इसलिए हमने निर्णय लिया है- होली खेलने के बहाने से हम इस समस्या का अन्त हमेशा के लिए कर देंगे।’’
मौर्य सम्राट ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘होली खेलने से समस्या का अन्त कैसे होगा?’’
चाणक्य ने चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘होली खेलना तो सिर्फ़ एक बहाना है। यह रंगों वाली होली नहीं, खून की होली है।’’
मौर्य सम्राट ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘कैसे?’’
चाणक्य ने चतुराईपूर्वक कहा- ‘‘होली के रंग में हम इलेक्शन कमीशन वाली स्याही मिला देंगे, जो वोट डालने के समय ऊँगली में लगाई जाती है। होली खेलने के बाद अजूबी चाहे जितना रंग छुड़ाए, रंग छूटने वाला नहीं। रंग छुड़ाने के चक्कर में अजूबी अपने ही नाखून से अपना चेहरा और अपना शरीर घायल कर लेगी। इसे कहते हैं- दुश्मन के नाखून से ही दुश्मन को घायल करके लहूलुहान कर देना! चाणक्य की बुद्धिमानी का कौशल देखकर विद्योत्तमा और अजूबी भयभीत होकर मौर्य देश की ओर झाँकना तक भूल जाएँगी।’’
चाणक्य की बुद्धि के आगे मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त नतमस्तक होकर चाणक्य के पैरों पर लेटकर चाणक्य की जयजयकार करने लगा। चाणक्य ने मौर्य सम्राट को उठाते हुए कहा- ‘‘चलिए, उठिए। जयजयकार करने की कोई ज़रूरत नहीं।’’
मौर्य सम्राट ने खड़े होते हुए एकाएक अपना संदेह व्यक्त करते हुए पूछा- ‘‘मगर इलेक्शन कमीशन वाली स्याही खरीदने का आर्डर तो आपने अभी तक नहीं दिया?’’
चाणक्य ने दाँत पीसकर मन ही मन में मौर्य सम्राट को गाली देते हुए मौर्य सम्राट से कहा- ‘‘सुना है- द्रविड़ों के देश चेन्नई में इलेक्शन कमीशन वाली स्याही बहुत अच्छी और सस्ती मिल जाती है। वहीं से ले लूँगा। आजकल आप बहुत प्रश्न पूछने लगे हैं। लगता है- आपको चाणक्य पर भरोसा नहीं रहा।’’
मौर्य सम्राट ने क्षमा माँगते हुए कहा- ‘‘अब नहीं पूछूँगा।’’ कहते हुए मौर्य सम्राट ने चाणक्य की उस पाण्डुलिपि को देख लिया जो वह लिखने में व्यस्त थे। चाणक्य की पाण्डुलिपि का शीर्षक देखकर मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘ब्रेन वाश? नई पुस्तक लगती है। आपने कभी बताया नहीं- आप ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ और ‘चाणक्य नीति’ के अतिरिक्त तीसरी पुस्तक ‘ब्रेन वाश’ भी लिख रहे हैं?’’
चाणक्य का बहुत मन किया कि मौर्य सम्राट का गला दबा दे, किन्तु अपनी इच्छा का बलपूर्वक दमन करते हुए चाणक्य ने अत्यधिक चतुराईपूर्वक जवाब दिया- ‘‘आपने मेरी पूरी बात सुनी कहाँ? अजूबी से खूनी होली खेलने के बाद हम मैसूर महाराजा से मिलकर मौर्य देश के नए चमत्कारी शैम्पू ‘ब्रेन वाश’ का बहुत बड़ा आर्डर बुक करेंगे। यह पुस्तक ‘ब्रेन वाश’ मौर्य देश के नए चमत्कारी शैम्पू के प्रचार और प्रसार के लिए लिखा जा रहा है।’’
मौर्य सम्राट ने प्रसन्न होकर पूछा- ‘‘इस चमत्कारी शैम्पू ‘ब्रेन वाश’ की क्या विशेषता होगी?’’
‘ओफ़्फ़ोह! हद हो गई!! मौर्य सम्राट तो हाथ-पैर धोकर गले पड़ गया!!!’- सोचते हुए चाणक्य ने चतुराईपूर्वक जवाब दिया- ‘‘सिर और चेहरे के बालों को छोड़कर शरीर में कहीं भी लगाने पर यह शैम्पू हेयर रिमूवर का काम करता है! सारे बाल जड़ से उखड़ जाते हैं और फिर कभी नहीं उगते!’’
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त सन्तुष्ट होकर अत्यधिक प्रसन्नतापूर्वक चाणक्य की जयजयकार करता हुआ वहाँ से चला गया। मौर्य देश को मैसूर से ‘ब्रेन वाश’ शैम्पू का बहुत बड़ा आर्डर जो मिलने वाला था!
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