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Old 20-04-2017, 10:47 PM   #1
Rajat Vynar
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Talking मॉल का नया ऑफ़र

हमारे शहर के मॉल ने गर्मियों में एक नया आकर्षक ऑफ़र दिया है और मॉल का कोई भी सदस्य इस सुविधा का लाभ उठा सकता है। वकील का कहना है कि नया ऑफ़र पूरी तरह लीगल है और इसमें कोई पेंच नहीं है। मेरी समस्या यह है कि मैंने मॉल के दो सदस्यता कार्ड बनवा रखे थे। छः-सात महीने पहले मॉल ने एक सदस्यता कार्ड को रद्द कर दिया। क्या मैं दूसरे कार्ड से नए ऑफ़र का लाभ उठा सकता हूँ? दूसरा कार्ड लेकर जाने पर मेरी सदस्यता रद्द तो नहीं कर दी जाएगी? दूसरी समस्या यह है कि मॉल ने यह नहीं बताया कि नए ऑफर की वैधता कब तक है? क्या मॉल को इस बाबत ई-मेल भेजकर या फोन करके पूछना ठीक रहेगा? या फिर मॉल को कोरियर भेजकर या पत्र लिखकर पूछना ठीक रहेगा? क्या मॉल को कोरियर या पत्र भेजते वक्त अन्दर थोड़ा सा सिंदूर रख दूँ जिससे हनुमान जी के प्रताप से फैसला अपने हक़ में हो और मॉल की सदस्यता रद्द न हो?

कृपया यथोचित सलाह दें।
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Last edited by Rajat Vynar; 20-04-2017 at 10:49 PM.
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Old 21-04-2017, 01:41 PM   #2
Rajat Vynar
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Talking Re: मॉल का नया ऑफ़र

दोस्तों,

पाठकों की ओर से कोई प्रतिक्रिया या सलाह नहीं आ रही है। तब तक मनोरंजन के लिए पढ़ते हैं एक मज़ेदार कहानी-

बेवकूफ गधे की कहानी

एक जंगल में एक शेर रहता था जो कुछ बूढा हो चुका था। शेर अकेला ही रहता था। कहने को तो वह शेर था, किन्तु उसमें शेरों जैसी कोई बात न थी। अपनी जवानी में वह सारे शेरों से लड़ाई में हार चुका था। अब उसके जीवन में उसका एकमात्र दोस्त एक गीदड़ ही था। वह गीदड़ अव्वल दर्जे का चापलूस था। शेर को एक ऐसे चमचे की ज़रूरत थी जो उसके साथ रहता और गीदड़ को भी बिना मेहनत का खाना चाहिए था।

एक बार शेर ने एक साँड पर हमला कर दिया। साँड भी गुस्से में आ गया। उसने शेर को उठा कर दूर पटक दिया। इस से शेर को काफी चोट आई। किसी तरह शेर अपनी जान बचा कर भागा। भागने के कारण शेर की जान तो बच गई, किन्तु जख्म दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। जख्मों और कमजोरी के कारण शेर कई दिन तक शिकार न कर सका और भूख के कारण शेर और गीदड़ की हालत ख़राब होने लगी।

भूख से व्याकुल शेर ने अपने दोस्त गीदड़ से कहा- 'देखो, मैं जख्मी होने के कारण शिकार करने में असमर्थ हूँ। तुम जंगल में जाओ और किसी मूर्ख जानवर को लेकर आओ। मैं यहाँ झाड़ियों के पीछे छिपा रहूँगा और उसके आने पर उस पर हमला कर दूँगा। इस तरह हम दोनों के खाने का इंतेजाम हो जाएगा।'

गीदड़ शेर की आज्ञा के अनुसार किसी मूर्ख जानवर की तलाश करने के लिए निकल पड़ा।

जंगल से बाहर जाकर गीदड़ ने देखा कि एक गधा सूखी हुई घास चर रहा था। गीदड़ को वह गधा देखने में ही मूर्ख लगा।

गीदड़ गधे के पास जाकर बोला- 'नमस्कार चाचा, कैसे हो? बहुत कमजोर लग रहे हो? क्या हुआ?”

सहानुभूति पाकर गधा बोला- 'नमस्कार, क्या बताऊँ। मैं जिस धोबी के पास काम करता हूँ, वह दिन भर काम करवाता है और पेट भर चारा भी नहीं देता।'

गीदड़ ने सहानुभूति जताते हुए कहा- 'तो चाचा तुम मेरे साथ जंगल में चलो। जंगल में हरी-हरी घास बहुत है। हरी-हरी ताज़ी घास चरकर आपकी सेहत बन जाएगी।'

गधे ने घबड़ाकर कहा- 'अरे नहीं! मैं जंगल में नहीं जाऊँगा। वहाँ मुझे जंगली जानवर खा जाएँगे।'

गीदड़ ने गधे को बहलाते हुए कहा- 'चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं- एक बार जंगल में एक बगुला भगत जी का सत्संग हुआ था। तब से जंगल के सारे जानवर शाकाहारी हो गए हैं।'

गधा प्रसन्न होकर गीदड़ को देखने लगा।

गधे को अपने जाल में फँसता देखकर गीदड़ ने झाँसा देते हुए कहा- 'सुना है- पास के गाँव से अपने मालिक से तंग आकर एक गधी भी जंगल में रहने आई है। शायद उसके साथ तुम्हारा मिलन हो जाए।'

गीदड़ की बात सुनकर गधे के मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और वह गीदड़ के साथ जाने के लिए राजी हो गया। गधा जब गीदड़ के साथ जंगल में पहुंचा तो उसे झाड़ियों के पीछे शेर की चमकती हुई आँखें दिखाई दीं। गधे ने आव देखा ना ताव और जान बचाकर सरपट भागने लगा। उसके बाद गधे ने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा और जंगल के बाहर जाकर ही दम लिया।

गधे के रफूचक्कर होने के बाद शेर ने शर्मिन्दा होकर गीदड़ से कहा- 'माफ करना। मेरी सुस्ती के कारण इस बार गधा भाग गया। तुम जाकर दोबारा उस बेवक़ूफ़ गधे को फुसलाकर यहाँ लेकर आओ। इस बार कोई गलती न होगी।'

गधे को फुसलाने के लिए एक नई योजना बनाकर गीदड़ एक बार फिर उस गधे के पास पहुँचा और आश्चर्यपूर्वक पूछा- 'अरे चाचा, तुम जंगल से भाग क्यों आये?'

गधे ने कहा- 'न भागता तो और क्या करता? तुम्हें क्या पता? वहाँ झाड़ियों के पीछे शेर छिपा बैठा हुआ था। मुझे अपनी जान प्यारी थी, इसलिए भाग आया।'

गीदड़ ने हँसते हुए कहा- 'हा-हा-हा.. अरे वो शेर नहीं, गधी थी। वही गधी.. जिसके बारे में मैंने आपसे बताया था।'

गधे ने अपना सन्देह व्यक्त किया- 'लेकिन उसकी तो आँखें चमक रहीं थीं?'

गीदड़ ने गधे को मूर्ख बनाते हुए कहा- 'अरे चाचा, इतनी सी बात भी नहीं समझे आप? गधी ने जब आपको देखा तो ख़ुशी के मारे उसकी आँखों में चमक आ गयी। आँखों में चमक आने का मतलब है- गधी आपको देखते ही अपना दिल दे बैठी और आप उससे मिले बिना ही वापस भाग गए।'

गधे को अपनी हरकत पर बहुत पछतावा हुआ। वह गीदड़ की चालाकी को समझ नहीं पाया। समझता भी कैसे? आखिर था तो गधा ही! गधा गीदड़ की बात सच मानकर उसके साथ फिर से जंगल में चला गया। गधा जैसे ही झाड़ियों के पास पहुँचा, इस बार शेर ने कोई गलती नहीं की और उसका शिकार कर अपने और गीदड़ के भोजन का इन्तेजाम कर लिया।

शिक्षा : गलतियाँ सब से होती हैं, किन्तु एक ही गलती बार-बार करने वाला मूर्ख होता है।
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Old 21-04-2017, 06:31 PM   #3
Rajat Vynar
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Talking Re: मॉल का नया ऑफ़र

'कहानी के रूपान्तरण' में बताया जा रहा है कि किसी भी कहानी को रूपान्तरित करना सम्भव है। तो प्रस्तुत है उपरोक्त कहानी का रूपान्तरण प्रारूप-

होशियार गधे की कहानी

एक जंगल में एक शेर रहता था जो कुछ बूढा हो चुका था। शेर अकेला ही रहता था। कहने को तो वह शेर था, किन्तु उसमें शेरों जैसी कोई बात न थी। अपनी जवानी में वह सारे शेरों से लड़ाई में हार चुका था। अब उसके जीवन में उसका एकमात्र दोस्त एक गीदड़ ही था। वह गीदड़ अव्वल दर्जे का चापलूस था। शेर को एक ऐसे चमचे की ज़रूरत थी जो उसके साथ रहता और गीदड़ को भी बिना मेहनत का खाना चाहिए था।

एक बार शेर ने एक साँड पर हमला कर दिया। साँड भी गुस्से में आ गया। उसने शेर को उठा कर दूर पटक दिया। इस से शेर को काफी चोट आई। किसी तरह शेर अपनी जान बचा कर भागा। भागने के कारण शेर की जान तो बच गई, किन्तु जख्म दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। जख्मों और कमजोरी के कारण शेर कई दिन तक शिकार न कर सका और भूख के कारण शेर और गीदड़ की हालत ख़राब होने लगी।

भूख से व्याकुल शेर ने अपने दोस्त गीदड़ से कहा- 'देखो, मैं जख्मी होने के कारण शिकार करने में असमर्थ हूँ। तुम जंगल में जाओ और किसी मूर्ख जानवर को लेकर आओ। मैं यहाँ झाड़ियों के पीछे छिपा रहूँगा और उसके आने पर उस पर हमला कर दूँगा। इस तरह हम दोनों के खाने का इंतेजाम हो जाएगा।'

गीदड़ शेर की आज्ञा के अनुसार किसी मूर्ख जानवर की तलाश करने के लिए निकल पड़ा।

जंगल से बाहर जाकर गीदड़ ने देखा कि एक गधा सूखी हुई घास चर रहा था। गीदड़ को वह गधा देखने में ही मूर्ख लगा।

गीदड़ गधे के पास जाकर बोला- 'नमस्कार चाचा, कैसे हो? बहुत कमजोर लग रहे हो? क्या हुआ?”

सहानुभूति पाकर गधा बोला- 'नमस्कार, क्या बताऊँ। मैं जिस धोबी के पास काम करता हूँ, वह दिन भर काम करवाता है और पेट भर चारा भी नहीं देता।'

गीदड़ ने सहानुभूति जताते हुए कहा- 'तो चाचा तुम मेरे साथ जंगल में चलो। जंगल में हरी-हरी घास बहुत है। हरी-हरी ताज़ी घास चरकर आपकी सेहत बन जाएगी।'

गधे ने घबड़ाकर कहा- 'अरे नहीं! मैं जंगल में नहीं जाऊँगा। वहाँ मुझे जंगली जानवर खा जाएँगे।'

गीदड़ ने गधे को बहलाते हुए कहा- 'चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं- एक बार जंगल में एक बगुला भगत जी का सत्संग हुआ था। तब से जंगल के सारे जानवर शाकाहारी हो गए हैं।'

गधा प्रसन्न होकर गीदड़ को देखने लगा।

गधे को अपने जाल में फँसता देखकर गीदड़ ने झाँसा देते हुए कहा- 'सुना है- पास के गाँव से अपने मालिक से तंग आकर एक गधी भी जंगल में रहने आई है। शायद उसके साथ तुम्हारा मिलन हो जाए।'

गीदड़ की बात सुनकर गधे के मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और वह गीदड़ के साथ जाने के लिए राजी हो गया। गधा जब गीदड़ के साथ जंगल में पहुंचा तो उसे झाड़ियों के पीछे शेर की चमकती हुई आँखें दिखाई दीं। गधे ने आव देखा ना ताव और जान बचाकर सरपट भागने लगा। उसके बाद गधे ने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा और जंगल के बाहर जाकर ही दम लिया।

गधे के रफूचक्कर होने के बाद शेर ने शर्मिन्दा होकर गीदड़ से कहा- 'माफ करना। मेरी सुस्ती के कारण इस बार गधा भाग गया। तुम जाकर दोबारा उस बेवक़ूफ़ गधे को फुसलाकर यहाँ लेकर आओ। इस बार कोई गलती न होगी।'

गधे को फुसलाने के लिए एक नई योजना बनाकर गीदड़ एक बार फिर उस गधे के पास पहुँचा और आश्चर्यपूर्वक पूछा- 'अरे चाचा, तुम जंगल से भाग क्यों आये?'

गधे ने कहा- 'न भागता तो और क्या करता? तुम्हें क्या पता? वहाँ झाड़ियों के पीछे शेर छिपा बैठा हुआ था। मुझे अपनी जान प्यारी थी, इसलिए भाग आया।'

गीदड़ ने हँसते हुए कहा- 'हा-हा-हा.. अरे वो शेर नहीं, गधी थी। वही गधी.. जिसके बारे में मैंने आपसे बताया था।'

गधे ने अपना सन्देह व्यक्त किया- 'लेकिन उसकी तो आँखें चमक रहीं थीं?'

गीदड़ ने गधे को मूर्ख बनाते हुए कहा- 'अरे चाचा, इतनी सी बात भी नहीं समझे आप? गधी ने जब आपको देखा तो ख़ुशी के मारे उसकी आँखों में चमक आ गयी। आँखों में चमक आने का मतलब है- गधी आपको देखते ही अपना दिल दे बैठी और आप उससे मिले बिना ही वापस भाग गए।'

गधे को अपनी हरकत पर बहुत पछतावा हुआ, किन्तु एक माँसाहारी गीदड़ की बातों पर आँख मूँदकर दोबारा विश्वास करना बहुत बड़ी मूर्खता हो सकती थी। केवल ताज़ी हरी-हरी घास की बात होती तो वह एक बार और इतना बड़ा जोखिम उठाने के लिए कभी तैयार न होता और गीदड़ को डाँट-डपटकर भगा देता, किन्तु यहाँ पर गधी का मामला था और गधी से दोस्ती करने के लिए एक बार और जंगल जाने का जोखिम उठाना ज़रूरी था। इसलिए गधे ने गीदड़ से कहा- 'तुम यहीं रुको। मैं अभी नहा-धोकर मेकअप करके आधे घण्टे में आता हूँ।'

गीदड़ गधे की चालाकी को समझ नहीं पाया। समझता भी कैसे? गधा गधा होता है। गधा चतुराई कर ही नहीं सकता। गधा गीदड़ को वहीं पर छोड़कर 'मिलती है गधी ज़िन्दगी में कभी-कभी' गुनगुनाते हुए अपने दोस्त हाथी से मिलने गया। हाथी ने सारी बातें सुनकर गधे को सुरक्षा देने का वादा किया। उसके बाद गधा गीदड़ के साथ जंगल में चला गया। गीदड़ को पता तक नहीं चला कि उसके पीछे हाथियों का झुण्ड चला आ रहा है। गधा जैसे ही झाड़ियों के पास पहुँचा, इस बार शेर ने कोई गलती नहीं की और गधे का शिकार करने के लिए उस पर हमला कर दिया। इससे पहले शेर के चंगुल में गधा आता, हाथियों के झुण्ड ने शेर को घेर लिया। हाथियों का झुण्ड देखकर शेर थर-थर काँपने लगा। गधे के दोस्त हाथी ने शेर को अपनी सूँड से उठाकर ज़मीन पर पटक दिया और अपने पैरों तले रौंद डाला। शेर को मरता देखकर गीदड़ ने भागने की कोशिश की तो गधे ने धोखेबाज़ गीदड़ पर दुलत्ती चलाकर उसका थोबड़ा तोड़ दिया। गीदड़ ने उठकर फिर भागना चाहा तो हाथियों के झुण्ड ने गीदड़ को घेर लिया। सिर पर मौत खड़ी देखकर गीदड़ ने सच कुबूलते हुए बता दिया कि गधे को फँसाने के लिए षड़यंत्र रचा गया था और जंगल में कोई गधी-वधी नहीं आई है। गीदड़ की बात सुनकर एक हाथी ने धूर्त गीदड़ को उठाकर ज़मीन पर पटक दिया और गीदड़ मारा गया।

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Old 21-04-2017, 11:22 PM   #4
soni pushpa
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Default Re: मॉल का नया ऑफ़र

prernadayak kahani ke liye dhanywad rajat ji.

kahani ke dwara di gai siksha sach me kabile tariff hai ek galti agar dobara ki jay to wo murkhta to hai hi . sath hi nuksan deh bhi hai isliye insan ko pahli bhul se hi sabak le lena chahiye .
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Old 22-04-2017, 03:00 PM   #5
Rajat Vynar
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Talking Re: मॉल का नया ऑफ़र

अब पढ़िए होशियार गधे की कहानी का आधुनिक प्रारूप-

होशियार गधे की कहानी (आधुनिक प्रारूप)

एक जंगल में एक शेर रहता था जो कुछ बूढा हो चुका था। शेर अकेला ही रहता था। कहने को तो वह शेर था, किन्तु उसमें शेरों जैसी कोई बात न थी। अपनी जवानी में वह सारे शेरों से लड़ाई में हार चुका था। अब उसके जीवन में उसका एकमात्र दोस्त एक गीदड़ ही था। वह गीदड़ अव्वल दर्जे का चापलूस था। शेर को एक ऐसे चमचे की ज़रूरत थी जो उसके साथ रहता और गीदड़ को भी बिना मेहनत का खाना चाहिए था।

एक बार शेर ने एक साँड पर हमला कर दिया। साँड भी गुस्से में आ गया। उसने शेर को उठा कर दूर पटक दिया। इस से शेर को काफी चोट आई। किसी तरह शेर अपनी जान बचा कर भागा। भागने के कारण शेर की जान तो बच गई, किन्तु जख्म दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। जख्मों और कमजोरी के कारण शेर कई दिन तक शिकार न कर सका और भूख के कारण शेर और गीदड़ की हालत ख़राब होने लगी।

भूख से व्याकुल शेर ने अपने दोस्त गीदड़ से कहा- 'देखो, मैं जख्मी होने के कारण शिकार करने में असमर्थ हूँ। तुम जंगल में जाओ और किसी मूर्ख जानवर को लेकर आओ। मैं यहाँ झाड़ियों के पीछे छिपा रहूँगा और उसके आने पर उस पर हमला कर दूँगा। इस तरह हम दोनों के खाने का इंतेजाम हो जाएगा।'

गीदड़ शेर की आज्ञा के अनुसार किसी मूर्ख जानवर की तलाश करने के लिए निकल पड़ा।

जंगल से बाहर जाकर गीदड़ ने देखा कि एक गधा सूखी हुई घास चर रहा था। गीदड़ को वह गधा देखने में ही मूर्ख लगा।

गीदड़ गधे के पास जाकर बोला- 'नमस्कार चाचा, कैसे हो? बहुत कमजोर लग रहे हो? क्या हुआ?”

सहानुभूति पाकर गधा बोला- 'नमस्कार, क्या बताऊँ। मैं जिस धोबी के पास काम करता हूँ, वह दिन भर काम करवाता है और पेट भर चारा भी नहीं देता।'

गीदड़ ने सहानुभूति जताते हुए कहा- 'तो चाचा तुम मेरे साथ जंगल में चलो। जंगल में हरी-हरी घास बहुत है। हरी-हरी ताज़ी घास चरकर आपकी सेहत बन जाएगी।'

गधे ने घबड़ाकर कहा- 'अरे नहीं! मैं जंगल में नहीं जाऊँगा। वहाँ मुझे जंगली जानवर खा जाएँगे।'

गीदड़ ने गधे को बहलाते हुए कहा- 'चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं- एक बार जंगल में एक बगुला भगत जी का सत्संग हुआ था। तब से जंगल के सारे जानवर शाकाहारी हो गए हैं।'

गधा प्रसन्न होकर गीदड़ को देखने लगा।

गधे को अपने जाल में फँसता देखकर गीदड़ ने झाँसा देते हुए कहा- 'सुना है- पास के गाँव से अपने मालिक से तंग आकर एक गधी भी जंगल में रहने आई है। शायद उसके साथ तुम्हारी दोस्ती हो जाए।'

गीदड़ की बात सुनकर गधे के मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और वह गीदड़ के साथ जाने के लिए राजी हो गया। गधा जब गीदड़ के साथ जंगल में पहुंचा तो उसे झाड़ियों के पीछे शेर की चमकती हुई आँखें दिखाई दीं। गधे ने आव देखा ना ताव और जान बचाकर सरपट भागने लगा। उसके बाद गधे ने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा और जंगल के बाहर जाकर ही दम लिया।

गधे के रफूचक्कर होने के बाद शेर ने शर्मिन्दा होकर गीदड़ से कहा- 'माफ करना। मेरी सुस्ती के कारण इस बार गधा भाग गया। तुम जाकर दोबारा उस बेवक़ूफ़ गधे को फुसलाकर यहाँ लेकर आओ। इस बार कोई गलती न होगी।'

गधे को फुसलाने के लिए एक नई योजना बनाकर गीदड़ एक बार फिर उस गधे के पास पहुँचा और आश्चर्यपूर्वक पूछा- 'अरे चाचा, तुम जंगल से भाग क्यों आये?'

गधे ने कहा- 'न भागता तो और क्या करता? तुम्हें क्या पता? वहाँ झाड़ियों के पीछे शेर छिपा बैठा हुआ था। मुझे अपनी जान प्यारी थी, इसलिए भाग आया।'

गीदड़ ने हँसते हुए कहा- 'हा-हा-हा.. अरे वो शेर नहीं, गधी थी। वही गधी.. जिसके बारे में मैंने आपसे बताया था।'

गधे ने अपना सन्देह व्यक्त किया- 'लेकिन उसकी तो आँखें चमक रहीं थीं?'

गीदड़ ने गधे को मूर्ख बनाते हुए कहा- 'अरे चाचा, इतनी सी बात भी नहीं समझे आप? गधी ने जब आपको देखा तो ख़ुशी के मारे उसकी आँखों में चमक आ गयी। आँखों में चमक आने का मतलब है- गधी आपको देखते ही अपना दिल दे बैठी और आप उससे मिले बिना ही वापस भाग गए।'

गधे को अपनी हरकत पर बहुत पछतावा हुआ, किन्तु एक बार शक पैदा हो जाने के बाद एक माँसाहारी गीदड़ की बातों पर आँख मूँदकर दोबारा विश्वास करना बहुत बड़ी मूर्खता साबित हो सकती थी। इसलिए गधे ने अपनी बुद्धि दौड़ाते हुए गीदड़ को फूलों का गुलदस्ता और तमाम उपहार देते हुए कहा- 'तुम तो जंगल में ही रहते हो और रोज़ाना यहाँ पर आते-जाते हो। तुम मेरा भला चाहते हो तो मेरा एक काम करो। यह फूलों का गुलदस्ता और उपहार मेरी ओर से गधी को भेंट करके बोलो- जंगल के बाहर एक खूबसूरत गधा रहता है। उसने तुम्हारे लिए उपहार भेजा है और तुमसे मिलना चाहता है। ऐसा कहकर गधी को यहाँ बुलाकर ले आओ।'

गीदड़ ने अपनी अक्ल दौड़ाते हुए कहा- 'आप भी कैसी बात करते हैं? गधी को यहाँ बुलाना गधी की शान में गुस्ताखी होगी। गधी कोई छोटी-मोटी गधी नहीं, बहुत बड़ी गधी है। पता है आपको- फेसबुक पर गधी के पाँच लाख फैन्स हैं। इसलिए उपहार लेकर आपको खुद जंगल जाकर गधी से भेंट करना चाहिए। इससे गधी की इज़्जत बढ़ेगी और वह खुश होकर आपसे तुरन्त दोस्ती कर लेगी।'

गधे को लगा कि गीदड़ की बातों में दम है, किन्तु फिर भी एहतियात ज़रूरी था। केवल ताज़ी हरी-हरी घास की बात होती तो वह एक बार और इतना बड़ा जोखिम उठाने के लिए कभी तैयार न होता और गीदड़ को डाँट-डपटकर भगा देता, किन्तु यहाँ पर गधी का मामला था और गधी से दोस्ती करने के लिए एक बार और जंगल जाने का जोखिम उठाना ज़रूरी था। इसलिए गधे ने गीदड़ से कहा- 'तुम यहीं रुको। मैं अभी नहा-धोकर मेकअप करके आधे घण्टे में आता हूँ।'

गीदड़ गधे की चालाकी को समझ नहीं पाया। समझता भी कैसे? गधा गधा होता है। गधा चतुराई कर ही नहीं सकता। गधा गीदड़ को वहीं पर छोड़कर 'मिलती है ज़िन्दगी में गधी कभी-कभी' गुनगुनाते हुए अपने दोस्त हाथी से मिलने गया। हाथी ने सारी बातें सुनकर गधे को सुरक्षा देने का वादा किया। उसके बाद गधा गीदड़ के साथ जंगल में चला गया। गीदड़ को पता तक नहीं चला कि उसके पीछे हाथियों का झुण्ड चला आ रहा है। गधा जैसे ही झाड़ियों के पास पहुँचा, इस बार शेर ने कोई गलती नहीं की और गधे का शिकार करने के लिए उस पर हमला कर दिया। इससे पहले शेर के चंगुल में गधा आता, हाथियों के झुण्ड ने शेर को घेर लिया। हाथियों का झुण्ड देखकर शेर थर-थर काँपने लगा। गधे के दोस्त हाथी ने शेर को अपनी सूँड से उठाकर ज़मीन पर पटक दिया और अपने पैरों तले रौंद डाला। शेर को मरता देखकर गीदड़ ने भागने की कोशिश की तो गधे ने धोखेबाज़ गीदड़ पर दुलत्ती चलाकर उसका थोबड़ा तोड़ दिया। गीदड़ ने उठकर फिर भागना चाहा तो हाथियों के झुण्ड ने गीदड़ को घेर लिया। सिर पर मौत खड़ी देखकर गीदड़ ने सच कुबूलते हुए बता दिया कि गधे को फँसाने के लिए षड़यंत्र रचा गया था और जंगल में कोई गधी-वधी नहीं आई है। गीदड़ की बात सुनकर एक हाथी ने धूर्त गीदड़ को उठाकर ज़मीन पर पटक दिया और गीदड़ मारा गया।

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