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13-02-2015, 07:07 PM | #1 |
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तर्क-वितर्क
यदि आप चाहते हैं- आपको सभी नापसन्द करें, आपसे नफ़रत करें, आपके पीठ पीछे आपको गाली दें, भला-बुरा कहें और आपके लिए गड्ढ़ा खोदें, तो आज से ही तर्क-वितर्क द्वारा लोगों की बात काटना, उनकी आलोचना करना और उनके झूठ को पकड़ना शुरू कर दें। आप देखेंगे कि हमारे इस 'अद्वितीय फॉर्मूले' पर अमल करके बहुत जल्दी आपके कई जानी दुश्मन बन गए हैं और आपके ख़िलाफ़ दुश्मनों की एक लम्बी-चौड़ी फ़ौज़ खड़ी हो गई है! यही नहीं, आप ऐसा अनुभव करेंगे कि आप इन दुश्मनों के कारण विख्यात से कुख्यात बनने की दिशा में तीव्र गति से अग्रसित होने लगे हैं. यह कटु सत्य है- किसी को जानी दोस्त बनाने के लिए यदि एक साल का समय लगे तो किसी को जानी दुश्मन बनाने के लिए एक सेकेण्ड का समय काफ़ी होता है। इसीलिए तो हिन्दी में एक प्रचलित लोकोक्ति भी है- 'बातहिं हाथी पाइए, बातहिं हाथी पाँव'।
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13-02-2015, 07:09 PM | #2 |
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Re: तर्क-वितर्क
कुछ लोग इतने नादान होते हैं- चुहल से घबड़ाकर 'आओ, इस बारे में तर्क-वितर्क करें' का निमन्त्रण देने लगते हैं। चुहल अलग चीज़ है और तर्क-वितर्क अलग चीज़। चुहल इसलिए नहीं किया जाता कि उस पर किसी प्रकार के तर्क-वितर्क की आवश्यकता है। हमसे बना तो हमने चुहल किया, आपको जब मौका लगे तो आप हमसे चुहल कीजिए। यहाँ पर यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि वास्तविक चुहल उसे कहते हैं जो सिर्फ़ दो लोगों के बीच हो और इसमें कोई तीसरा शामिल न हो, क्योंकि यदि इसमें तीसरा व्यक्ति शामिल हो गया तो यह चुहल की श्रेणी में न आकर मीन-मेख निकालने, मज़ाक़ उड़ाने और बेइज़्ज़ती करने की श्रेणी में आ जाएगा। अब इस बात को एक उदाहरण द्वारा समझाते हैं- कुछ वर्षों पूर्व एक लड़की जिसका कद नाटा था, अपने लिए ऊँची एढ़ी की एक चप्पल खरीदकर लाई। मैंने चुहल करते हुए पूछा- ''ये सीढ़ी कितने में खरीदी?'' जवाब में लड़की ने दाँत दिखाकर दाम बता दिया। चुहल से घबड़ाकर लड़की ने यह नहीं कहा कि 'आओ, इस बात पर तर्क-वितर्क करें- मैं कैसे नाटी हूँ? एक लड़की को नाटा मानने के लिए अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय मानक क्या हैं?' वस्तुतः हमारे बीच कोई तीसरा व्यक्ति नहीं था। यही बात यदि दस लोगों के सामने कही जाती तो यह चुहल न होकर लड़की का मज़ाक़ उड़ाने जैसा हो जाता और लड़की को बहुत बुरा लगता।
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13-02-2015, 07:10 PM | #3 |
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Re: तर्क-वितर्क
हमारे देश में तर्क-वितर्क करने का स्कोप बहुत बड़ा है। इसका एक कारण है- हमारे देश में एक से एक 'महान वैज्ञानिक' भरे पड़े हैं। विज्ञानं का सिद्धान्त कुछ और कहता है तो इन 'महान वैज्ञानिकों' का सिद्धान्त कुछ और। सभी जानते हैं- हीरा कैसे बनता है। एक बार मेरी भेंट देश के एक 'महान वैज्ञानिक' से हो गई। वैज्ञानिक महोदय ने आसमान की ओर देखते हुए हमें हीरे की उत्पत्ति का राज़ बताया- ''जानत हो- इ हीरा कहाँ से आवत है? इ जो तारा टूटत है न- ज़मीन मा गिर जात है और ज़मीन के अन्दर घुस जात है। ओके बाद हीरा बनके निकलत है!'' बातों ही बातों में हीरे के चमकने का महान राज़ भी वैज्ञानिक महोदय ने हमसे बता दिया कि 'तारा चमकता है, इसीलिए हीरा भी चमकता है'! बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोककर हमने वैज्ञानिक महोदय की प्रसंशा करते हुए कहा- ''वाह-वाह.. क्या ऊँची बात बताई आपने। आज आपके कारण मेरी अज्ञानता का अँधेरा दूर हो गया।'' वैज्ञानिक महोदय बहुत प्रसन्न हुए और तुरन्त हमारी दोस्ती उनसे हो गई। यदि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करके वैज्ञानिक महोदय से तर्क-वितर्क करने लगते तो हमारी दुश्मनी उनसे हो जाती। यही नहीं- अपने तर्क-वितर्क का गम्भीर परिणाम भी हमें भुगतना पड़ता, क्योंकि वैज्ञानिक महोदय शरीर से बॉडी-बिल्डर लग रहे थे। हमारे तर्क-वितर्क से घबड़ाकर क्रोध में हल्का सा तमाचा भी जड़ देते तो हमारी बत्तीसी झड़ जाती। देखा आपने- तर्क-वितर्क की अपार सम्भावना को तिलांजली देकर एक पहलवान को हमने अपना बॉडीगॉर्ड बना लिया। अब संकट के वक़्त हनुमान जी छुड़ाने के लिए आगे आएँ, न आएँ। वैज्ञानिक महोदय ज़रूर कूदकर आगे आकर बिना सोचे-समझे हमारे लिए किसी को भी एक घूँसा जड़ सकते हैं। पता है, पता है- हमारा लेख पढ़कर बहुत से लोग अपनी छाती पीटकर शोक मनाने लगे होंगे कि 'हमारी भेंट ऐसे महान वैज्ञानिकों से क्यों नहीं होती? हमें भी हँसने का मौका लगता।' हाय-हाय करने वालों के लिए मेरा उत्तर है- यदि आप 'पब्लिक-फ़िगर' हैं और ए.सी. कार से आते-जाते हैं तो आपकी भेंट देश के ऐसे महान वैज्ञानिकों से होने वाली नहीं। ऐसे महान वैज्ञानिकों से मिलकर हँसने के लिए आपको ए.सी. कार छोड़कर देश के गाँव-गाँव में जाना होगा। अरे-अरे.. यह क्या कर रहे हैं आप? आप तो सचमुच हमारे परामर्श पर गाँव-यात्रा की तैयारी में लग गए! यदि ऐसा है तो अपनी इच्छा से तुरन्त त्याग-पत्र दे दें, क्योंकि आपको हँसाने के लिए हम तो यह काम पहले से ही कर रहे हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कुछ 'महान लोग' हमें सिर्फ़ इस बात के लिए देश का बहुत बड़ा वैज्ञानिक मानते हैं, क्योंकि हम गैस के सिलेण्डर में रेगुलेटर लगा लेते हैं और बिजली के होल्डर में से फ्यूज़ बल्ब निकालकर नया बल्ब बड़ी आसानी से लगा देते हैं!
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13-02-2015, 07:11 PM | #4 |
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Re: तर्क-वितर्क
अब तो अब आपकी समझ में यह बात तो आ ही गई होगी कि तर्क-वितर्क द्वारा दोस्ती भी बड़ी आसानी से दुश्मनी में तब्दील हो सकती है। यही कारण है- हम तर्क-वितर्क करने के नाम पर बुरी तरह घबड़ाकर इस प्रकार नौ दो ग्यारह होते हैं, जैसे गधे के सिर से सींग! भगवान ने इस धरती पर दोस्त बनाने के लिए भेजा है, दुश्मन बनाने के लिए नहीं। एक बात हमेशा याद रखिए- आज के युग में 'दे दे प्यार दे दे हमें प्यार दे' कहकर बड़े-बड़े आँसूं गिराने वाली आपकी प्रेयसी भी आपकी बहुत छोटी सी गलती भी माफ़ करने के लिए तैयार नहीं होती। इन परिस्थितियों में दूसरे आपके तर्क-वितर्क पर कभी क्षमा करने वाले नहीं हैं! इस सन्दर्भ में एक अद्वितीय उद्धरण भी है- '...अन्त में लोग वही सुनते हैं जो वे सुनना चाहते हैं' और यह उद्धरण मेरा नहीं, किसी और का लिखा है!
क्या आप अब भी तर्क-वितर्क की आवश्यकता महसूस करते हैं? कृपया अपनी टिप्पणी दें!
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13-02-2015, 11:21 PM | #5 | |
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Re: तर्क-वितर्क
Quote:
टिप्पणी पुछ के आपने दुश्मनी का आमन्त्रण कर दिया मित्र ! (आ बेल मुझे मार !) सभी पोस्ट मजेदार और चटपटी ! |
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19-02-2015, 10:15 AM | #6 |
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Re: तर्क-वितर्क
तर्क—वितर्क के दुष्परिणाम का ज्वलन्त उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए निम्न उदाहरण पर्याप्त है—
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