17-04-2014, 08:39 PM | #1 |
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रोता है दिल सुबह सुबह अख़बार पड़ कर bansi
कुच्छ नेताओं के और जनता के कुकर्म की दास्तान पड़ कर कब तक यह दिल का दर्द सहना पड़ेगा हम सब को मिलकर नेताओ कुच्छ तो करो करता हूँ इलतजा हाथ जोड़ कर अंधेर्गर्दी देश में बड़ रही है रफ़्तार पकड़ कर क़ानून तोड़ रहे हैं सब नेता और जनता मिलकर लगने लगा है ज़रूरत नहीं रहने की क़ानून से डर कर कब तक सज़ा देने वाले बैठे रहेंगे हाथ बाँध कर हालात हमारे देश के बिगड़ रहे हैं बड़ चड़ कर ‘बंसी’ थक गया है क्या करूँ कैसे करूँ यह सोच कर सुना है भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीँ हैं सिर्फ़ तेरा ही सहारा है भगवान अब तो तू ही कुच्छ कर बंसी(मधुर) |
22-04-2014, 02:31 PM | #2 |
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Re: रोता है दिल सुबह सुबह अख़बार पड़ कर bansi
बंसी ,बहूत अच्छी रचना पेश की आपने धन्यवाद
आजकल अखबार में केवल नेताजी छाये हुए है Last edited by rafik; 22-04-2014 at 02:38 PM. |
22-04-2014, 08:53 PM | #3 |
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Re: रोता है दिल सुबह सुबह अख़बार पड़ कर bansi
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