25-09-2011, 07:44 PM | #34 |
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Re: प्रणय रस
देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला, 'बस अब पाया!'- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे, किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला। |
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