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Old 05-01-2013, 11:16 PM   #1
aksh
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Default समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

दोस्तो हम अपने चारो तरफ कुछ ना कुछ नकारात्मक होता हुआ देखते रह्ते है...तो हम ऐसा मेहसूस करने लगते है कि शायद सब कुछ ठीक नही चल रहा है...और शायद सब कुछ गलत दिशा मै जा रहा है..आइये समझते हैं कि समाज मै, देश मै आ रही इस गिरावट की जिम्मेदारी आखिर उठायेगा कौन...??

हमारी सरकार गलत है...??

हमारा समाज गलत है...??

हमारी शिक्षा व्यवस्था गलत है...??

हमारा पूरा सिसटम ही गलत है...??

मीडिया गलत है...??

नेता गलत है....??

फिल्मकार गलत है....??

पडौसी देश गलत है....??

या हम खुद ही गलत है....??
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Old 06-01-2013, 12:25 AM   #2
aksh
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

एक जघन्य बलात्कार की घटना ने मुझे मिलाकर लगभग सभी को झिंझोड दिया है...और पिछ्ले दिनो ये एक मुद्दा ऐसा रहा जिसने सभी को एक बार सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम कैसे समाज मै रह रहे है...?? क्या हम एक असभ्य समाज मै जीने के लिये मजबूर है...?? बगैरह बगैरह...

मैने इस समस्या को काफी समय दिया और सोचा कि आखिर हमारा समाज ऐसे लोगो को कैसे पाल पोस रहा है जो इस तरह के जघन्य अपराध कर गुजरते है और समाज उनको नोटिस नही कर पाता...उनको चिन्हित नही कर पाता..??

मैने सोचा कि अगर उस रात ये जघन्य अपराध नही हुआ होता तो क्या ये सभी व्यक्ति जो उस मासूम युवा की जिन्दगी को दरिन्दगी से छीन लेने के अपराधी हैं आज शान से हमारे समाज का हिस्सा बने नही घूम रहे होते...?? क्या ये जघन्य अपराध करने से पहले उन्होने कोइ भी अपराध नही किया होगा...?? क्या वो रातो रात अपराधी बन गये..??

मेरे विचार से ऐसा नही हुआ होगा...उन्होने इससे पहले कई छोटे मोटे अपराध किये होंगे...और उनको नजरअन्दाज किया जाता रहा होगा..और जिन्होने उनके इन अपराधो को नजरअन्दाज किया वो सभी आज भी इस सभ्य समाज का हिस्सा है...फिर वो चाहे तो उन अपराधियो के सगे सम्बन्धी हो...उनको नौकरी पर रख्नने वाला व्यक्ति हो..या फिर हम खुद हो...जिन्होने उनके इन छोटे मोटे अपराधो पर परदा डाले रखा...और उसको कानून की नजरो मे आने से रोका...या फिर कानून का पालन करवाने वाले पुलिस के लोग हो...जिन्होने पता नही कितने ही बार इस तरह के छोटे मोटे मगर मह्त्वपूर्ण अपराधो को कानून के दायरे मै लेने मै किसी भी कारण से झिझक दिखायी होगी...??

आखिर हम इतने सहनशील क्यों है...?? और अगर हम एक समाज के तौर पर इतने सहनशील और लचीले है तो फिर इस तरह के अपराध ना हो...इसकी पहली गारंटी तो हमने ही खत्म कर दी...!! किसको दोषी समझा जाये...??

क्या वो आदमी एक औरत की अस्मिता के साथ नही खेल रहा जो सड्क पर, अपने घर मै, अपने ओफिस मै या फिर बस मै या अन्य किसी सार्वजनिक स्थान पर औरतो की मौजूदगी को जानते और समझते हुये असभ्य भाषा, गन्दी गन्दी गालियो का प्रयोग और उनके साथ सांकेतिक छेड्छाड कर रहा है..??

उदाहरण के लिये मेरे ओफिस के ठीक सामने एक पत्रकार महोदय का दफ्तर है...और वो अपने ओफिस मै फोन पर बात करते हुये..अपने कर्मचारियो से बात करते हुये..या फिर किसी तीसरी पार्टी से बात करते समय खुल कर जोर जोर से गालियो का प्रयोग करते है...और वो गालियो का प्रयोग इतना भद्दा और तेज होता है..कि मेरे ओफिस मै बैठी मेरी महिला स्टाफ के कानो तक एक दम साफ तौर पर पहुंचता है..!! क्या ये महिलाओ के साथ छेड-छाड नहीं है...??

क्या वो लोग महिलाओ के अस्मिता के साथ नही खेल रहे जो चाहै जहाँ अपनी पेंट खोल कर अपने आप को हल्का करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते है..फिर चाहै...उस जगह पर महिलाओ का कितना भी आना जाना हो...उनको इस बात से कोई फर्क नही पड्ता...

सार्वजनिक स्थलो पर शराब पीना मना होगा पर हमें तो नहीं लगता कि ऐसा है...क्योंकि जिस जगह पर शराब का ठेका है उसके आस पास आपको नमकीन से लेकर जूस तक हर प्रकार की सुविधा तुरंत हाजिर है..और सड्क पर ही बार खुले रह्ते है...दीवार के सहारे क्यों ?? खुल कर पी भाइ, कोइ रोकने वाला तो है नही तो फिर कानून की चिंता किस लिये...और अगर पकडा भी गया तो तेरे पापा और मम्मी से लेकर अडौसी पडौसी सभी इसे छोटा मोटा मामला ही तो समझते है...??

कानून को तोड्ना हम अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते है..फिर वो चाहै...रेड लाइट जम्प करनी हो...या फिर बिना लायसेंस के अपने बच्चो के हाथ मै मौत के हथियार वाहन सोंप देना या फिर उनसे अपने लिये शराब मंगवाना....ये सब तो छोटी मोटी बातै...है..होती ही रहती है..

क्या हम फिल्मो मे नंगेपन को लेकर और फिल्मो की भाषा को लेकर दिन प्रतिदिन सहनशील नहीं होते जा रहे...??
क्या फिल्म बनाने वाले हमारी सहनशीलता को नित नये आयाम नही दे रहे है...??

आज आपने इतना सहा तो कल एक इंच और मिलेगा...आज आपने डी के बोस सहा तो कल मुन्नी बदनाम होगी..और उसके बाद आपको बताया जायेगा कि लोंडिया को मिस काल देकर कैसे पटाया जाता है...

क्या ये फूह्ड्पन सहन करके हम अपने ही लिये कांटे नहीं बो रहे है...?? क्या यही गीत कल से हर लडकी छेड्ने वाले के होंठो पर नहीं होगा...?? क्या इससे महिलाओ के प्रति हमारी सोच और व्यवहार मै और गिरावट नहीं आयेगी...??
जब हमारी फिल्मे हमें बता रही है कि महिला को आइटेम गर्ल के रूप मै देखा जाये तो क्या समाज मै उसका कोइ प्रभाव नही होगा...?? क्या ऐसा नही होना चाहिये कि समाज औरतो को एक वस्तु समझना छोड दे...?? पर ऐसा हो नही रहा है...अब नेता भी चुनावी सभाओ मै भीड को बान्धे रखने के लिये इन भद्दे डांस और गीतो का सहारा ले रहे है.. जब भी ये अश्लीलता की बहस छिड्ती है तो कहा जाता है कि अश्लील कहने वाले की नजर ही अश्लील है...!!

जिस तेजी से रेडियो स्टेशन और टीवी, फ़िल्मो की जुबान बदल रही है...उस पर चिंता करनी जरूरी है...क्योंकि ये पूरे समाज की सोच को प्रभावित करते है...सेंसर बोर्ड का गठ्न इसलिये नही हुआ था कि वो नित नये सहनशीलता के पैमाने बनाता रहे...बल्कि इसलिये हुआ था कि क्या दिखाया जाना चाहिये...जिससे एक सभ्य समाज को खुले आम असभ्य होने से बचाया जा सके...चरित्र निर्माण की प्रक्रिया मै रुकावट ना आये...पर वो ऐसा कर नही रहा. ( आजकल की फिल्मो को देख कर तो यही लगता है..) पर इस तरह की बाते करने वाले दकियानूसी करार दे दिये जाते है..और हल्के पन का चारो तरफ बोल बाला है...

पुलिस वाला छोटे मोटे पर अति सम्वेदनशील अपराधो को दर्ज ना करके उन अपराधो को हलके मै लेकर उस चैन की सबसे अंतिम और महत्व्पूर्ण कडी बन जाता है...पर मजे की बात ये है कि ये सब मीडिया भी उसी समय हाइलाइट करता है जब कोइ बडा अपराध हो चुका होता है...वरना तो उनको "बिल्ली को कुत्ते से प्यार हो गया" "सन 2012 मै दुनिया ख्त्म हो जायेगी" "आपका साप्ताहिक भविष्यफल" "आपके तारे" "आपकी हंसी और कोमेडी" से ही फुर्सत नही है...उनको उनकी जिम्मेदारी तभी याद आती है जब एक बहादुर बेटी अपना सब कुछ गवा चुकी होती है...

वरना एक मामूली सी छेड्छाड को वो अपना मुद्दा बना सकते थे...पर उन्होने उसकी जगह इन बकवास प्रोग्राम को दिखाया और उन्होने अगर मामूली छेड्छाड को बडा मुद्दा बनाया होता तो तस्वीर कुछ अच्छी अवश्य होनी चाहिये थी..

दोस्तो...जब भी कोइ ऐसी दुखद घटना होती है...तो हमै उससे एक सबक लेने की जरूरत होती है..और हमारा सबक यही होगा कि हम आज के बाद अपनी सहनशीलता को कम करेंगे...महिलाओ को इज्जत से जीने के लायक माहौल तैयार करने मै अपनी ओर से ये योगदान करेंगे..कि गलत कार्य ना करेंगे...और ना किसी को करने देंगे...और एक जीरो टोलरेंस का माहौल बनाये रखेंगे...अपने घर मै, अपने ओफिस मै, अपने समाज मे..!!

उम्मीद करता हू कि नववर्ष 2013 मै हमारी सरकार, हमारे मीडिया कर्मी, हमारी पुलिस, हमारे नेता, हमारे फिल्मकार , हमारी जनता, हमारा समाज एक बेहतर समाज बन कर उभरेगा...तभी हम कह सकेंगे..कि हमारी बेटी का बलिदान बेकार नही गया...!! और सही मायनो मे यही उसके प्रति हमारे देश और समाज की सबसे बडी श्रद्धांजली होगी...!!

ज़य हिन्द...जय हिन्दी..
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Old 06-01-2013, 12:52 AM   #3
aksh
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

समाज मै चाहे कितना भी गलत घट जाये...पर निराश होने की जरूरत नही है...आज इस लेख के बारे मे सोचता हुआ घर आया तो मन बहुत बुझा बुझा सा था..मुझे दिन भर सरकारी तंत्र से आमना सामना होता है..और मै बढ्ते करप्शन का एक भयानक चेहरा देख कर अक्सर परेशान होता हू..!!

आज कुछ परेशान सा घर आया तो टी वी पर आइ बी एन सेवेन चैनल पर बिजनेस मेन ओफ द इयर का खिताब सिपला के चैयरमेन युसुफ हमिद साहब को दिया गया...और उसके बाद उनके विचार जाने तो आज ओवेसी साहब के विचार सुन कर जो नकारात्मकता घर कर गयी थी वो एकदम दूर हो गयी..

युसुफ हामिद साहब अपने पिताजी श्री ख्वाजा अब्दुल हमिद द्वारा स्थापित इस कम्पनी को दुनिया के नक्शे पर हर जगह पहुंचाने वाले और इस तरह भारत का नाम रोशन करने वाले युसुफ हमिद साहब के बारे मै सिर्फ ये जानकर बहुत अच्छा लगा कि उन्होने दुनिया भर मै जीवन रक्षक दवाओ की कीमत को बहुत अधिक नीचे लाकर भी एक उचित मुनाफा कमाने के लिये एक मुहिम चला रखी है...और इससे भारत ही नहीं पूरे विश्व के गरीब मरीजो के लिये वो साक्षात भगवान के अवतार है...

सही मायने मै वो एक सच्चे भारतीय है..और एक सच्चे बिजनेसमेन हैं...मै उनको सलाम करता हू...!! देश के लोगों को उनके आदर्शो से सीख लेनी चाहिये और कोई कारण नही कि अपने सपनो का भारत हम सभी बना न सकैगे....!!
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Old 07-01-2013, 10:39 PM   #4
jai_bhardwaj
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

अनिल जी नमस्कार।
बन्धु, यह ज्वलंत समस्या ना तो एक दिन में जन्मी है और ना ही एक दिन में समाप्त होगी। इस अवस्था तक आते आते ऐसी अव्यवस्थाओं की जड़ें समाज में बहुत गहरे धंस चुकी होती हैं। भारत को दासता की जंजीरों से मुक्त होने में 1857 से 1947 तक का समय लग गया था। रोम की सभ्यता एक दिन में नहीं तैयार हुयी थी। किसी भी अव्यवस्था अथवा व्यवस्था के लिए प्रथम प्रयास के साथ उस प्रयास पर लगातार चिंतन और नियमित कार्यवाहीकी आवश्यकता होती है। यह हमें बहुत अच्छे से आ गया है कि हम किसी भी (सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक अथवा व्यवहारिक) समस्या के आने पर तत्काल प्रतिक्रिया देते हैं और (व्यक्तिगत अथवा बाह्य) समाज से अपेक्षा रखते हैं कि इसका निदान अविलम्ब हो जाए। तार्किक एवं व्यवहारिक रूप से यह संभव नहीं है। तब हमें हताशा होती है और हम अवसादग्रस्त हो जाते हैं।

बन्धु, जहाँ तक सामाजिक विचारों में गिरावट की बात है तो इस पर मेरा विचार बहुत स्पष्ट है कि इसकी जिम्मेदारी हमें स्वयं को ही लेनी पड़ेगी। सरकार और समाज हमारे द्वारा ही निर्मित हुई है और हम इनकी प्रथम इकाई के रूप में हैं। शिक्षा व्यवस्था और चलचित्र जगत भी इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार प्रतीत होता होगा किन्तु परोक्ष रूप से हम अपने मन के अनुरूप अध्ययन करते हैं और जो हम देखना चाहते हैं वही फिल्मकार हमें दिखा देते हैं। पारिवारिक चलचित्रों के बजाय हिंसात्मक और द्विअर्थी सम्बादों से भरपूर चलचित्र - घरों पर दर्शकों की अधिक लम्बी कतार दिख जाती है। हम अपने बच्चों को अंगरेजी माध्यम के विद्यालयों में शिक्षित करते हुए गर्वोन्मत्त होते रहते हैं और बाद में उस पर सनातन - सांस्कारिक - संतान जैसे गुणों से हीन होने का दोष भी मढ़ देते हैं।कितने लोग हैं जो बच्चों को आचार्य पद्धति से जुड़े विद्यालयों में शिक्षा के लिए भेजते हैं? और आखिर क्यों नहीं भेजते हैं? हमारे अन्दर नैतिक शिक्षा का अभाव आखिर क्यों है? इसी कड़ी में मीडिया, नेता अथवा सिस्टम भी दोषी नहीं हैं क्योंकि इन सभी के लिए कहीं न कहीं हम स्वयं ही दोषी हैं।

सबसे पहले हमें स्वयं को ही परिवर्तित करना होगा। इसके बाद परिवार को .. फिर गाँव/मोहल्ले को .... फिर शहर को ... तब जिले को ... बाद में प्रदेश और अंत में देश को। क्या यह सब एक दिन अथवा कुछ साल का कार्य है ? यह परिवर्तन कई दशकों में आ सकता है वह भी तब जब इस के लिए समाज के सभी वर्गों, समुदायों, धर्मों के व्यक्तियों के सम्यक एवं लगातार सार्थक प्रयास चलते रहें। आज हम इस घटना पर बहुत कुछ घटित होते हुए देख रहे हैं। अपनी आदत के अनुसार क्या हम इसको भी जल्द ही भूल नहीं जायेंगे? बन्धु, हम सभी वर्तमान के साथ जीना जानते हैं। और हमारा वर्तमान कुछ दिनों का ही होता है।

हमारे नैतिक पतन के जो मुख्य कारण मुझे समझ में आ रहे हैं उनमे :
1. हमारी मानसिक दृढ़ता में कमी,
2. आत्मसंतुष्टि में कमी,
3. विज्ञान द्वारा प्रमाणित जनेऊ, खडाऊँ और पारंपरिक संस्कारों का त्याग,
4. आर्थिक प्रतिद्वंदिता की बढोत्तरी,
5. संयुक्त - पारिवार की विचारधारा का समापन,
6. एकल - परिवार की जीवनशैली में अधिक उन्मुक्त विचारधारा की प्रबलता
आदि प्रमुख हैं।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 08-01-2013, 10:54 PM   #5
aksh
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

मैं बहुत अच्छी तरह जानता हू कि किसी भी सुधार के लिये हमें ही शुरुआत करनी होगी और ये निश्चित ही एक दिन मे नही होगा, क्योंकि समाज हम सभी से बनता है इसलिये हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी भी है कि हम इसके पतन को रोके और इसे वापस उत्थान के रास्ते पर डालै...!!

आपने जो कारण गिनाये है वो सभी वास्तविक कारण है पर किसी भी समाज के लोगों को सही रास्ता दिखाने के लिये एक कुशल पथ प्रदर्शक की जरूरत पडती है और मेरे निजी अनुभव इतने निराशा भरे है कि जो भी ऐसा लगता है कि हमारा पथ प्रदर्शक बन सकता है, वही हमारी उम्मीदो पर कुठाराघात करके चला जाता है...!! मैने स्थिति को बद से बदतर होते देखा है और इस घोर आर्थिक युग मे किसी चमत्कारी नेतृत्व के बगैर इस समाज मे सुधार की उम्मीद को पूरी तरह मरा हुआ ना भी माना जाये तो लगभग मृत के नजदीक तो मान ही रहा हू...हालाकि मेरी दिली इच्छा है कि इसमे तेजी से ना सही धीरे धीरे ही सही सुधार आना चाहिये..और निश्चय ही ये धीमी गति एक दिन तेज होगी और समाज बदल जायेगा पर शुरुआत होती हुयी दिख नहीं रही...!! शायद कुछ कुर्बानियो के बाद ही हमें फिर से अक्ल आये..या क्या पता ?? फिर भी ना आये..!!

मेरे दोनो हाथ जुडे हुये है और तत्पर भी है कि देश और समाज इस स्थिति से निकले और आगे बढे...और मेरा योगदान जो हो सके वो मै दे सकू...!!
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Old 08-01-2013, 11:22 PM   #6
jai_bhardwaj
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

अनिल जी, नैराश्य के भावों के साथ सूत्रगत सामाजिक परिवर्तन कैसे संभव है!

आज से 10-12 वर्ष पूर्व बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित बाँदा जनपद की एक निरक्षर महिला संपत पाल द्वारा महिलाओं को उत्पीडन से बचाने के लिए गुलाबी साड़ी पहनने वाली महिलाओं का एक दल बनाया था तब किसे पता था कि यह दल एक दिन "गुलाबी गैंग" के नाम से जाना जाएगा और इसकी संयोजक संपत पाल को विदेशों में डिबेट्स के लिये बुलाया जाएगा। हाल ही में वे बिगबास सीजन 6 नामक टीवी रियलिटी शो से बाहर निकल कर आयी हैं।

10-12 ग्रामीण महिलाओं के दल द्वारा सृजित "अमूल" का इतने विशाल रूप के विषय में किसने सोचा होगा!!

मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छी तरह जानता हूँ कि आप समाज की एक नन्ही सी कड़ी को परिवर्तन का केन्द्रबिद्नु बना सकते हैं। सामान्यतया किसी भी प्रकार के प्रकोष्ठ के गठन के लिए जाग्रत जन समूह की आवश्यकता होती है जो तन-मन-धन से उस प्रकोष्ठ की सेवा कर सकें। आप स्वयं ऐसे परिवर्तन के लिए तत्पर हैं। आप बहुत दूर की सोचेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी। इसलिए उचित यही है कि सर्वप्रथम "मार्निंग वाकर्स ग्रुप" को ही प्राथमिक संस्था बनाते हुए अपनी सोसाइटी (निवास स्थान के आपस पास) के परिवेश में नैतिक उत्थान का कार्य किया जाए। इसकी सफलता के बाद सामाजिक परिवर्तन के लिए हम आगे बढ़ सकते हैं।

विचार ... मनन ..... प्रयास .....और निरंतरता .....यदि ये चार साथी हैं तो सफलता सुनिश्चित है।
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Old 09-01-2013, 05:15 PM   #7
rajnish manga
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

अक्ष जी ने और जय भारद्वाज जी ने बड़ी महत्वपूर्ण बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है. मुझे ख़ुशी है कि उन्होंने समाचारपत्रों में छपने वाले तथाकथित बयानों से परे जा कर अपनी निष्पक्ष राय हमारे सामने रखी है. उन्होंने विशेष रूप से आज परिवार में आये नकारात्मक सामाजिक / धार्मिक परिवर्तनों को समाज में व्याप्त मूल्यहीनता एवं घृणित यौन अपराधों के लिए उत्तरदायी ठहराया है. काफी हद तक यह सही है. किन्तु वैश्विक स्तर पर होने वाले सामाजिक – आर्थिक कारणों के चलते ही संयुक्त परिवारों का विघटन तथा एकल परिवारों की अवधारणा और ज़रुरत अस्तित्व में आयी. शिक्षा के क्षेत्र में आये क्रांतिकारी विकास के कारण निरंतर और समुचित रोजगार के अवसरों तथा विकल्पों ने अंतर्देशीय और अंतर्राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं को तिरोहित कर दिया व व्यक्ति को एक स्थान से बाँध कर रखने वाले फोबिया से मुक्त कर दिया. यह परिदृश्य बीस पचास साल में नहीं बल्कि सैंकड़ों वर्षों में आये राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक परिवर्तनों का ही एक परिणाम है. जिस प्रकार हमारा देश हज़ारों वर्ष तक जाति प्रथा के चंगुल में फंसा रहा और वावजूद सशक्त क़ानून, आर्थिक लाभों और शिक्षा संस्थानों में प्रवेश, सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता तथा विधायिका में सीटों का आरक्षण के आज भी छोटी या निम्न जाति के लोगों के साथ निंदनीय व्यवहार किया जाता है. बहुत से स्थान हैं जहाँ आज भी उनके साथ छुआछूत बरती जाती है, उनको मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता, पानी के लिए अलग बर्तन रखे जाते हैं, उनके लिए शर्मनाक भाषा का प्रयोग किया जाता है (इसके लिए कौन जिम्मेदार है यह अलग बहस का विषय है).
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Old 09-01-2013, 05:19 PM   #8
rajnish manga
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

ठीक उसी प्रकार भारतीय महिलाओं की स्थिति भी हज़ारों वर्षों से कमो-बेश समाज के तिरस्कृत वर्ग की भाँती ही बनी रही. इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि हमारा समाज पुरुषों की सत्ता का समाज है. कहने को उसे पति द्वारा सहभागिनी कहा जाता है लेकिन हकीकत में उसे उनुगामिनी बना कर रखा गया है. बल्कि कई समाजों में तो उसे पति के पावों की जूती, बिस्तर की शोभा, बच्चा पैदा करने की मशीन बना कर रखा गया और उसे गुलामों के समकक्ष रखा गया. उसके न कोई अधिकार थे और न कोई आवाज़. वैश्विक स्तर पर होने वाले आन्दोलनों और परिवर्तनों के चलते भारत में भी कुछ समाज सुधारकों के माध्यम से नवजागरण की लहर आयी. उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से महिलाओं की शिक्षा पर भी जोर दिया जाने लगा. राजनैतिक क्षेत्रों में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ने लगी. किन्तु, यह परिवर्तन बहुत मंथर गति से चला. समाज में, विशेष रूप से रूढ़ियों और परम्पराओं में जकड़े हुए एक बड़े क्षेत्र में, महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में कोई ख़ास फर्क नहीं आया. आज भी पुरुष वर्ग हर प्रकार से उसके ऊपर अपनी शर्तें लादना चाहता है. वह नहीं चाहता कि महिलायें तरक्की करे – आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और सबसे प्रमुख अपने आप अपने निर्णय ले सकने वाली शक्ति के रूप में. पुरुषों को महिलाओं के बरक्स अपनी सत्ता घटती हुयी और छिनती हुयी दीख रही है. यह स्थिति उससे हज़म नहीं हो रही. पुरुष अपनी पशुता व शारीरिक ताकत के बल पर स्त्री पर जोर-ज़बरदस्ती करता रहा है, ज़ुल्म ढाता रहा है जिसमे घरेलु हिंसा भी शामिल है. लेकिन, पुरुष का यह दंभ अधिक नहीं चलने वाला. आज का २० से ३५ वर्ष की आयु का नौजवान पढ़ा लिखा वर्ग, जिसका कुल जनसँख्या में निर्णायक प्रतिशत है, विवेकशील और बौद्धिक क्लास के साथ मिल कर आने वाले समय में भारत की सड़ी-गली मानसिकता और रूढ़ीवादियों द्वारा रची गई जर्जर व्यवस्था को बदलने का काम करेगा. मैं यह मानता हूँ कि सदियों से दबे-कुचले लोगों, जाति प्रथा के शिकार हुए असंख्यों प्रताड़ित व्यक्तियों और महिलाओं की स्थिति और उनके प्रति सारे समाज की मानसिकता में आशातीत गुणात्मक सुधार अवश्य आएगा और जल्द आएगा तथा इन उपेक्षित वर्गों को वही सम्मान प्राप्त होगा जिसके वह हकदार है.
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Old 10-01-2013, 07:42 AM   #9
bharat
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

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Originally Posted by aksh View Post


या हम खुद ही गलत है....??
हमसे मिलकर समाज बना है, देश बना है! मिडिया भी हम ही हैं! सरकार में बैठे नेता भी हम ही हैं! हमारी सोच ही ऐसी बन चुकी है ! ऊपर से पश्चिमी संस्कृति से नयी बातें सीखने की चाह और अपनी पुराणी संस्कृति से भी चिपक कर रहने की जिद!
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Old 10-01-2013, 08:27 AM   #10
Awara
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Default Re: समाज का गिरता हुआ स्तर-जिम्मेदार कौन ?

पहले तो गिरावट की परिभाषा स्पस्ट करनी चाहिए। आखिरकार गिरावट कौन से चीज़ में हो रही है, लोग दिल्ली गैंग rape काण्ड की बात करके बोल रहे है की समाज कितना विभस्त और गन्दा हो गया है। जहाँ तक rape काण्ड की बात है ऐसे रेप हर दिन होते हैं। लेकिन सबको इतना मीडिया कवरेज नहीं मिलता और कई रेप की घटनाएं लोक लाज की डर से रिपोर्ट नहीं की जाती।

खैर समाज में जो भी गिरावट है उसके लिए सभी जिम्मेदार है। फिल्म में वही होता है जो लोग देखना चाहते हैं। बिना आइटम नंबर के लोग तो आजकल फिल्म नहीं देखते। जब से मोबाइल आया है, रिंगटोन का व्यवसाय करीब 1000 करोड़ रुपैये को हो गया है। ऐसे आइटम सोंग आते ही रिंगटोन बनने लगते हैं और फिल्म रिलीज़ होने से पहले ही कमाई शुरू हो जाती है।

और एक चीज़ मैंने गौर की है की अधिकतर रेप की घटनाएं में रेप करने वाला नशे में रहता है। इसलिए मेरा ख्याल है अगर पुरे देश में शराब बैन कर दी जाए तो ऐसे घटनाओं में काफी कमी आएगी। नशे की हालत में अच्छा खासा आदमी शैतान हो जाता है।

और भी कई बातें हैं, लेकिन अभी ऑफिस जाना है।

शेष फिर
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