14-02-2015, 10:43 AM | #1 |
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वालन्ताइन दिवस
सन्त वालन्ताइन दिवस के शुभ (?) अवसर पर देशी और विदेशी लेखकों एवं बुद्धिजीवियों द्वारा इश्क़िया समुदाय के हित में कई उद्धरण जारी कर दिए गए हैं। देर रात फ्रेंच भाषा में जारी किया गया एक उद्धरण इश्क़िया समुदाय के आकर्षण का केंद्र बना रहा। आपके लिए जब हमने फ्रेंच उद्धरण का हिन्दी अनुवाद करना चाहा तो सन्त कबीरदास की आत्मा हमारे अन्दर प्रविष्ट कर गई और हमारा कलम बहकने लगा। लीजिए, प्रस्तुत है सन्त कबीरदास की वाणी में फ्रेंच उद्धरण का हिन्दी अनुवाद-
कबिरा पहिले प्रेम से, जो न करै सम्मान। 'ईलू' से का होत है, अँगरेज़ी गोबर समान।। अर्थ स्पष्ट है. सन्त कबीरदास कहते हैं- अपने पहले प्रेम से जो आपका मान और सम्मान न करता हो, 'आइ लव यू' कहना अंग्रेज़ी गोबर के समान होता है। कुछेक नवोदित लेखकों का उद्धरण भी प्रशंसनीय एवं इश्क़िया समुदाय के लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहा जिसमें यह कहा गया कि 'पहला नहीं, दूसरा प्रेम ही अन्तिम होता है'। पता है, पता है- 'दूसरों का उद्धरण मत सुनाइए। आप खुद सन्त वालन्ताइन दिवस पर क्या कहना चाहते हैं, बताइए?' कहने का आपका बड़ा मन कर रहा होगा। तो इस सन्दर्भ में हिन्दी में एक प्रचलित लोकोक्ति है- 'काँटे को काँटा ही निकालता है'. बाकी मतलब तो आप सभी समझ ही गए होंगे। चलते-चलते मीन-मेख निकालने वाले समुदाय के लिए एक सन्देश भी है, क्योंकि आप लोग बहुत देर से अपने मन में 'चले आए सेंट वैलेंटाइन दिवस पर लेख लिखने। आपको तो 'वैलेंटाइन' भी ठीक से लिखना नहीं आता. बहुत देर से 'वालन्ताइन-वालन्ताइन' कर रहे हैं!' कहकर हमें गाली दे रहे होंगे। ऐसे लोगों से हम यहाँ पर यह बताते चलें कि 'वैलेंटाइन' का हिन्दी अनुवाद करके हमने 'वालन्ताइन' कर दिया है. आज से सेंट वैलेंटाइन को भारत में 'सन्त वालन्ताइन' के नाम से जाना और पहचाना जाएगा। अंग्रेज़ों ने हमारे हिन्दी नामों के अंग्रेज़ी प्रारूप में बहुत वाट लगाया है. जैसे- 'कड़ा' को 'करा' कर दिया, 'हावड़ा' को 'हौराह' कर दिया। बदले में हमने अंग्रेज़ों के 'प्रिय' सेंट वैलेंटाइन को वाट लगाकर हिन्दी प्रारूप में सन्त वालन्ताइन कर दिया। किसी को कोई आपत्ति? सन्त वालन्ताइन के भारतीय चमचे और चमची अपनी आपत्ति तुरन्त दर्ज़ कराएँ। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि सूत्र-लेखक स्वयं सन्त वालन्ताइन के बहुत बड़े चमचे हैं!
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