09-11-2011, 06:06 AM | #11 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
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09-11-2011, 03:14 PM | #12 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
मेरे देश की धरती / उपकार
संगीत : कल्याणजी आनंदजी गीत : इन्दीवर गायक : महेंद्र कपूर मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती बैलों के गले में जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं सुन के रहट की आवाज़ें यूं लगे कहीं शहनाई बजे आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अंगड़ाइयां लेती है क्यों ना पूजें इस माटी को जो जीवन का सुख देती है इस धरती पे जिसने जन्म लिया उसने ही पाया प्यार तेरा यहां अपना पराया कोई नही हैं सब पे है मां उपकार तेरा मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहां गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहां रंग हरा हरी सिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से रंग बना बसंती भगत सिंह से रंग अमन का वीर जवाहर से मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती
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09-11-2011, 10:08 PM | #13 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
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10-11-2011, 07:56 PM | #14 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
हर करम अपना करेंगे / कर्मा
संगीत : लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल रचनाकार: अनन्द बक्षी गायन : कविता कृष्णमूर्ती, मोहम्मद अज़ीज़ ऐ मुहब्बत -२ ऐ मुहब्बत तेरी दास्तां के लिए मैं हूँ तैयार हर इम्तिहां के लिए जान बुलबुल की है गुलिस्तां के लिए ऐ मुहब्बत तेरी दास्तां के... इक शोला हूं मैं इक बिजली हूं मैं आग रखकर हथेली पे निकली हूं मैं दुश्मनों के हर एक आशियाँ के लिए जान बुलबुल की है ... ये ज़माना अभी मुझको जाना नहीं सिर कटाना है पर सिर झुकाना नहीं मुझको मरना है अपने हिन्दुस्तां के लिए जान बुलबुल की है ... हर करम अपना करेंगे -२ ऐ वतन तेरे लिए दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए मेरा कर्मा तू मेरा धर्मा तू तेरा सब कुछ मैं मेरा सब कुछ तू हर करम अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिए दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए और कोई भी कसम कोई भी वादा कुछ नहीं एक बस तेरी मोहब्बत से ज्यादा कुछ नहीं कुछ नहीं हम जियेंगे और मरेंगे ऐ सनम तेरे लिए सबसे पहले तू है तेरे बाद हर एक नाम है तू मेरा आग़ाज़ था तू ही मेरा अन्जाम है अन्जाम है हम जिऐंगे और मरेंगे ऐ सनम तेरे लिए दिल दिया है जां भी ... मेरा कर्मा तू मेरा धर्मा तू तेरा सब कुछ मैं मेरा सब कुछ तू हर करम अपना करेंगे -२ ऐ वतन तेरे लिए दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए तू मेरा कर्मा तू मेरा धर्मा तू मेरा अभिमान है ऐ वतन महबूब मेरे तुझपे दिल क़ुर्बान है हम जिऐंगे या मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए दिल दिया है जां भी देंगे ... हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हमवतन हमनाम हैं जो करे इनको जुदा मज़हब नहीं इल्जाम है हम जिऐंगे या मरेंगे ... तेरी गलियों में चलाकर नफ़रतों की गोलियां लूटते हैं सब लुटेरे दुल्हनों की डोलियां लुट रहा है आंप वो अपने घरों को लूट कर खेलते हैं बेखबर अपने लहू से होलीयां हम जिऐंगे या मरेंगे ...
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10-11-2011, 08:15 PM | #15 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
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11-11-2011, 10:03 PM | #16 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
इब तो गाणा हम भी सिख ल्यांगे...........
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12-11-2011, 02:14 AM | #17 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
है प्रीत जहां की रीत सदा / पूरब और पश्चिम
रचनाकार : इंदीवर संगीत : कल्याणजी आनंदजी गायक : महेंद्र कपूर जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आई तारों की भाषा भारत ने, दुनिया को पहले सिखलाई देता न दशमलव भारत तो, यूं चांद पे जाना मुश्किल था धरती और चांद की दूरी का, अंदाज़ लगाना मुश्किल था सभ्यता जहां पहले आई, पहले जनमी है जहां पे कला अपना भारत वो भारत है, जिसके पीछे संसार चला संसार चला और आगे बढ़ा, ज्यूं आगे बढ़ा, बढ़ता ही गया भगवान करे ये और बढ़े, बढ़ता ही रहे और फूले-फले है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं काले-गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है कुछ और न आता हो हमको, हमें प्यार निभाना आता है जिसे मान चुकी सारी दुनिया, मैं बात वही दोहराता हूं भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं जीते हों किसी ने देश तो क्या, हमने तो दिलों को जीता है जहां राम अभी तक है नर में, नारी में अभी तक सीता है इतने पावन हैं लोग जहां, मैं नित-नित शीश झुकाता हूं भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं इतनी ममता नदियों को भी, जहां माता कहके बुलाते हैं इतना आदर इन्सान तो क्या, पत्थर भी पूजे जातें हैं उस धरती पे मैंने जन्म लिया, ये सोच के मैं इतराता हूं भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं
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12-11-2011, 07:11 AM | #18 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
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14-11-2011, 12:53 PM | #19 |
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है / बूट पॉलिश
रचना : शैलेन्द्र संगीत : शंकर जयकिशन गायन : आशा भोसले, मोहम्मद रफ़ी नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है मुट्ठी में है तकदीर हमारी मुट्ठी में है तकदीर हमारी हमने किस्मत को बस में किया है भोली भाली मतवाली आंखों में क्या है आंखों में झूमे उम्मीदों की दिवाली आंखों में झूमे उम्मीदों की दिवाली आने वाली दुनिया का सपना सजा है नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है भीख में जो मोती मिलेगा लोगे या न लोगे ज़िन्दगी के आंसुओं का बोलो क्या करोगे भीख में जो मोती मिले तो भी हम न लेंगे ज़िन्दगी के आंसुओं की माला पहनेंगे मुश्किलों से लड़ते फिरते जीने में मज़ा है नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है .. हमसे न छुपाओ बच्चो हमें तो बताओ आने वाली दुनिया कैसी होगी समझाओ आने वाली दुनिया में सब के सर पे ताज हो न भूखों की भीड़ होगी न दुखों का राज हो बदलेगा ज़माना यह सितारों पे लिखा है नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है ...
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Re: गुनगुनाओ, खुल कर गाओ, लेकिन सही गाओ
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