05-11-2010, 07:44 AM | #11 |
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05-11-2010, 07:47 AM | #12 |
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चितवन है या खिली चांदनी या वैशाखी भोर
चितवन है या खिली
चांदनी या वैशाखी भोर सम्मोहन का पाश लजाया आमंत्रण की डोर मन की गोपन कुंज लता मे मौन खोलता है कोष कोष वारूणी मचलती बोध बोलता है मधू पराग की सुरधनु काया या फूलोँ की खोर शलभ त्याग सारे असमंजस पंख खोलता है ऐसे पांसे पड़े कि अंतर वाह्रय डोलता है नाव संदली ज्योतिधार मेँ बहा रही किस ओर नव किसलय सा गात ओज रूप का मन मे रस अलोक बोलता है परिरम्भी सोपनोँ पर मन नाचे जैसे मोर
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05-11-2010, 09:31 AM | #13 |
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बांहो मेँ जब गंध कुवांरी मचली थी
बांहो मे जब गंध कुवांरी
मचली थी ईंगुरी कपोलोँ पर सलज मुंदी पलकोँ पर तृषित से गुलाबो पर ह्रदय उमड़ आया था धड़कन की तालो पर धड़कन तब मचली थी सांसो की रंगत पर आलिँगन संगत पर शोखी , अलमस्ती पर तब दुलार आया था आंखो की भाषा पर आंखे तब मचली थीँ दृढ़तम विश्वासोँ पर कसमोँ और वादोँ पर साथ के इरादोँ पर सहज प्यार आया था जग को वश करने की एक चाह मचली थी
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05-11-2010, 09:41 AM | #14 |
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फिर चिट्ठी भेजी है
फिर चिट्ठी भेजी है
मतवाले मौसम ने शब्द शब्द बिसरा इतिहास रागोँ का स्वार्गिक एहसास स्मरणोँ की मीठी फांस प्रीति पगा भोरा विश्वास अनल सुधा भेजी है मतवाले मौसम ने किसलय तन के क्वांरे भास छुवनोँ की चिर मीठी प्यास परिरम्भी आहुति की आस पुष्प पुष्प निर्मल आकाश गंध गमक भेजी है मतवाले मौसम ने सूरज के भेजे अनुबन्ध आम्रमंजरी के सम्बन्ध फागुनाहट के भेजे छंद गीतोँ के आशय स्वछंद मदन मूठ भेजी है मतवाले मौसम ने
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05-11-2010, 10:50 AM | #15 |
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अनुज सिकंदर
आपके सूत्र को पढ़कर आनंदित हो गया मैं |
06-11-2010, 10:45 AM | #17 |
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पुरवा भी है बिजुरी भी है बादल भी बरसात भी
पुरवा भी है बिजुरी भी है बादल भी बरसात भी
हाथ ढूंढ़ते संस्पर्शो को ओठ अधर को ढूंढ़ रहे ह्रदय ढूंढ़ता है प्रियतम को भाव प्रीति को ढूंढ़ रहे यादेँ भी हैँ बातेँ भी हैँ आंखे भी अनुराग भी जिस कांटे से विंधा हुआ मन उस पीड़ा की आग भी तुम खोई होगी सखियोँ मे गुड़ियोँ मे औ फूलोँ मेँ याद कहां तुम करती होगी हम जैसोँ को भूले मेँ मोर,कोयलिया,दादुर,सब है जुगनू भी है रात भी बस केवल तुम साथ नही हो रोती यह बरसात भी हम हैँ राह घाट के संगी पल दो पल के साथी थे पर सच जानो प्रेम प्यार से कोर सीधे सादे थे तन्हाई है बेचैनी है शंका भी विश्वास भी शायद कभी याद आती हो इस चातक की प्यास भी
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06-11-2010, 06:27 PM | #18 |
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थके थके हैँ पांव चाव सब रूठ गये
थके थके हैँ पांव चाव
सब रूठ गये जाने कितने मंजर पीछे छूट गये वह अल्हड़ता वह अरूणाई गांव गली बौरी अमराई खेल, पसीना, दौड़, घुमाई फिर बप्पा की कांन खिचाई बचकाने वो मधुर बहाने रूठ गये दादी की वो कथा कहानी हम उम्रोँ की भीड़ दिवानी देह परस की प्यास सुहानी मन की चोरी की नादानी मादक मीठे ठाँव याद बन छूट गये रेखोँ वाली वह तरूणाई खट मिट्ठी अमियां गदराई रूप कशिश की वह अंगड़ाई गोपन ठावोँ की पहुनाई मदिर आँच के स्वाद सभी रस लूट गये जिम्मेदारी की भरपाई और विवशता की रुसवाई बंधी नाव की थकन दुहाई घनी रिक्तता पीड़ादाई अनचाहे पड़ाव तक पथ क्यो फूट गये..
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07-11-2010, 09:34 PM | #19 |
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इंतज़ार क्या होता है
तड़प कर देख किसी की चाह मैं
पता चले प्यार क्या होता है मील जाए हर कोई यूं ही राहों में तोह कैसे पता चले इंतज़ार क्या होता है |
08-11-2010, 02:20 PM | #20 |
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बंजरा है मन मितवा !
बंजारा है मन मितवा
चाह चाह भटके साध सी उम्र चली सपन सपन अटकी दर्प दर्प चोँट मिली पीर पीर खटकी बंजरा है मन मितवा आस आस भटके नयन नयन बांच गया बात बात जांचा अर्थोँ से परे रहा किन्तु सत्य सांचा बंजारा है मन मितवा अर्थ अर्थ भटके नीर नीर तरल हुआ सिँधु सिँधु गहरा उदित और अस्त हुआ ताल ताल पहरा बंजारा है मन मितवा प्यास प्यास भटके नेह नेह छला गया देँह देँह रोका बदरा ,बुजुरी,बरखा कभी पवन झोँका बंजरा है मन मितवा सांस सांस भटके
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