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Old 09-02-2011, 01:17 AM   #141
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Arrow बिहार का इतिहास

२५ जुलाई, १८५७ को दानापुर में हिन्दुस्तानी सिपाही विद्रोह शुरू कर दिया । वे इस समय ८० वर्ष के थे । वीर कुँअर सिंह ने कमिश्नर टेलर से मिलने के आग्रह को ठुकराकर अपने लगभग ५,००० सैनिकों के साथ आरा पर आक्रमण कर दिया । आरा नगर की कचहरी और राजकोष पर अधिकार कर लिया । आरा को मुक्*त करवाने के लिए दानापुर अंग्रेज एवं सिक्ख सैनिक कैप्टन डनवर के नेतृत्व में आरा पहुँचे ।

२ अगस्त, १८५७ को कुँअर सिंह एवं मेजर आयर की सेनाओं के बीच वीरगंज के निकट भयंकर संघर्ष हुआ । इसके बाद कुँअर सिंह ने नाना साहेब से मिलकर आजमगढ़ में अंग्रेजों को अह्राया । २३ अप्रैल, १८५८ को कैप्टन ली ग्राण्ड के नेतृत्व में आयी ब्रिटिश सेना को कुँअर सिंह ने पराजित किया । लेकिन इस लड़ाई में वे बुरी तरह से घायल हो गये थे । मरने से पूर्व कुँअर सिंह की एक बांह कट गई थी और जाँघ में सख्त चोट थी ।

२६ अप्रैल, १८५८ को उनकी मृत्यु हुई । अदम्य साहस, वीरता, सेनानायकों जैसे महान गुणों के कारण इन्हें बिहार का सिंह’ कहा जाता है । संघर्ष का क्रम उनके भाई अमर सिंह ने आगे बढ़ाया । उन्होंने शाहाबाद को अपने नियन्त्रण में बनाये रखा । ९ नवम्बर, १८५८ तक अंग्रेजी सरकार इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं कर सकी थी । उसने कैमूर पहाड़ियों में मोर्चाबन्दी कर अंग्रेज सरकार को चुनौती दी । उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध छापामार युद्ध जारी रखा । महारानी द्वारा क्षमादान की घोषणा के बाद ही इस क्षेत्र में विद्रोहियों ने हथियार डाले ।

अमर सिंह सहित १४ आदमियों को क्षमादान के प्रावधान से पृथक रखा गया एवं इन्हें दण्डित किया गया । १८५९ ई. तक ब्रिटिश सत्ता की बहाली न केवल बिहार बल्कि सारे देश में हो चुकी थी ।

कम्पनी शासन का अन्त हुआ और भारत का शासन इंग्लैण्ड की सरकार के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में आ गया ।

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भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार
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Arrow बिहार का इतिहास

१ अप्रैल, १९३३ को मोहम्मद युनुस ने अपने नेतृत्व में प्रथम भारतीय मन्त्रिमण्डल बिहार में स्थापित किया गया । इसके सदस्य बहाव अली, कुमार अजिट प्रताप सिंह और गुरु सहाय लाल थे । युनुस मन्त्रिमण्डल के गठन के दिन जयप्रकाश नारायण, बसावन सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी ने इसके विरुद्ध प्रदर्शन किया । फलतः गवर्नर ने वैधानिक कार्यों में गवर्नर हस्तक्षेप नहीं करेगी का आश्*वासन दिया ।

७ जुलाई, १८३७ को कांग्रेस कार्यकारिणी ने सरकारों के गठन का फैसला लिया । मोहम्मद यूनुस के अन्तरिम सरकार के त्यागपत्र के बाद २० जुलाई, १९३७ को श्रीकृष्ण सिंह ने अपने मन्त्रिमण्डल का संगठन किया लेकिन १५ जनवरी, १९३८ में राजनीतिक कैदियों की रिहाई के मुद्दे पर अपने मन्त्रिमण्डल को भंग कर दिया । १९ मार्च, १९३८ को द्वितीय विश्*व युद्ध में बिना ऐलान के भारतीयों को शामिल किया गया, जिसका पूरे देश भर में इसके विरुद्ध प्रदर्शन हुआ । २७ जून, १९३७ में लिनलियथगो ने आश्*वासन दिया कि भारतीय मन्त्रियों के वैधानिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा ।

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आजाद दस्ता

यह भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद क्रान्तिकारियों द्वारा प्रथम गुप्त गतिविधियाँ थीं । जयप्रकाश नारायण ने इसकी स्थापना नेपाल की तराई के जंगलों में रहकर की थी । इसके सदस्यों को छापामार युद्ध एवं विदेशी शासन को अस्त-व्यस्त एवं पंगु करने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा ।

बिहार प्रान्तीय आजाद दस्ते का नेतृत्व सूरज नारायण सिंह के अधीन था । परन्तु भारत सरकार के दबाव में मई, १९४३ में जय प्रकाश नारायण, डॉ. लोहिया, रामवृक्ष बेनीपुरी, बाबू श्यामनन्दन, कार्तिक प्रसाद सिंह इत्यादि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और हनुमान नगर जेल में डाल दिया गया । आजाद दस्ता के निर्देशक सरदार नित्यानन्द सिंह थे । मार्च, १९४३ में राजविलास (नेपाल) में प्रथम गुरिल्ला प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई ।

सियाराम दल- बिहार में गुप्त क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेतृत्व सियाराम दल ने स्थापित किया था । इसके क्रान्तिकारी दल के कार्यक्रम की चार बातें मुख्य थीं- धन संचय, शस्त्र संचय, शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण तथा सरकार का प्रतिरोध करने के लिए जनसंगठन बनाना । सियाराम दल का प्रभाव भागलपुर, मुंगेर, किशनगंज, बलिया, सुल्तानगंज, पूर्णिया आदि जिलों में था । क्रान्तिकारी आन्दोलन में हिंसा और पुलिस दमन के अनगिनत उदाहरण मिलते हैं ।

११ अगस्त, १९४२ को सचिवालय गोलीकाण्ड बिहार के इतिहास वरन्* भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का एक अविस्मरणीय दिन था । पटना के जिलाधिकारी डब्ल्यू. जी. आर्थर के आदेश पर पुलिस ने गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया । पुलिस ने १३ या १४ राउण्ड गोलियाँ चलाईं, इस गोलीकाण्ड में सात छात्र शहीद हुए, लगभग २५ गम्भीर रूप से घायल हुए । ११ अगस्त, १९४२ के सचिवालय गोलीकाण्ड ने बिहार में आन्दोलन को उग्र कर दिया ।

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Old 12-02-2011, 02:48 AM   #145
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Arrow बिहार का इतिहास

सचिवालय गोलीकाण्ड में शहीद सात महान बिहारी सपूत-

१. उमाकान्त प्रसाद सिंह- राम मोहन राय सेमीनरी स्कूल के १२वीं कक्षा का छात्र था । इसके पिता राजकुमार सिंह थे । वह सारण जिले के नरेन्द्रपुर ग्राम का निवासी था ।

२. रामानन्द सिंह- ये राम मोहन राय सेमीनरी स्कूल पटना के ११ वीं कक्षा का छात्र था । इनका जन्म पटना जिले के ग्राम शहादत नगर में हुआ था । इनके पिता लक्ष्मण सिंह थे ।

३. सतीश प्रसाद झा- सतीश प्रसाद का जन्म भागलपुर जिले के खडहरा में हुआ था । इनके पिता जगदीश प्रसाद झा थे । वह पटना कालेजियत स्कूल का ११वीं कक्षा का छात्र था । सीवान थाना में फुलेना प्रसाद श्रीवास्तव द्वारा राष्ट्रीय झण्डा लहराने की कोशिश में पुलिस गोली का शिकार हुए ।

४. जगपति कुमार- इस महान सपूत का जन्म गया जिले के खराठी गाँव में हुआ था ।

५. देवीपद चौधरी- इस महान सपूत का जन्म सिलहर जिले के अन्तर्गत जमालपुर गाँव में हुआ था । वे मीलर हाईस्कूल के ९वीं कक्षा का छात्र था ।

६. राजेन्द्र सिंह- इस महान सपूत का जन्म सारण जिले के बनवारी चक ग्राम में हुआ था । वह पटना हाईस्कूल के ११वीं का छात्र था ।

७. राय गोविन्द सिंह- इस महान सपूत का जन्म पटना जिले के दशरथ ग्राम में हुआ । वह पुनपुन हाईस्कूल का ११वीं का छात्र था ।

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Arrow बिहार का इतिहास

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इस स्थान पर शहीद स्मारक का निर्माण हुआ । इसका शिलान्यास स्वतन्त्रता दिवस को बिहार के प्रथम राज्यपाल जयराम दौलत राय के हाथों हुआ । औपचारिक अनावरण देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने १९५६ ई. में किया । भारत छोड़ो आन्दोलन के क्रम में बिहार में १५,००० से अधिक व्यक्*ति बन्दी बनाये गये, ८,७८३ को सजा मिली एवं १३४ व्यक्*ति मारे गये ।

बिहार में भारत छोड़ो आन्दोलन को सरकार द्वारा बलपूर्वक दबाने का प्रयास किया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि क्रान्तिकारियों को गुप्त रूप से आन्दोलन चलाने पर बाध्य होना पड़ा ।

९ नवम्बर, १९४२ दीवाली की रात में जयप्रकाश नारायण, रामनन्दन मिश्र, योगेन्द्र शुक्ला, सूरज नारायण सिंह इत्यादि व्यक्*ति हजारीबाग जेल की दीवार फाँदकर भाग गये । सभी शैक्षिक संस्थान हड़ताल पर चली गई और राष्ट्रीय झण्डे लहराये गये । ११ अगस्त को विद्यार्थियों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन के सामने विधायिका की इमारत पर राष्ट्रीय झण्डा लहराने की कोशिश की ।

द्वितीय विश्*व युद्ध की प्रगति और उससे उत्पन्*न गम्भीर परिस्थित्यों को देखते हुए कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार को सहायता व सहयोग दिया । अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स प्रस्ताव में दोष होने के कारण कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया था ।

दिसम्बर, १९४१ में जापानी आक्रमण से अंग्रेज भयभीत हो गये थे । मार्च, १९४२ में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विन्सटन चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में घोषणा की कि युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान किया जायेगा । २२ मार्च, १९४२ को स्टेफोर्ड किप्स ने इस व्यवस्था में लाया । फलतः उनके प्रस्ताव राष्ट्रवादियों के लिए असन्तोषजनक सिद्ध हुए । ३० जनवरी, १९४२ से १५ फरवरी, १९४२ तक पटना में रहकर मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने सार्वजनिक सभा को सम्बोधित किया ।

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Arrow बिहार का इतिहास

१४ जुलाई, १९४२ को वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का आयोजन किया गया । इसी समय सुप्रसिद्ध भारत छोड़ो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और उसे अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति को मुम्बई में होने वाली बैठक में प्रस्तुत करने का निर्णय हुआ । ५ अगस्त, १९४२ को मुम्बई में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और गाँधी जी ने करो या मरो का नारा दिया साथ ही कहा हम देश को चितरंजन दास की बेड़ियों में बँधे हुए देखने को जिन्दा नहीं रहेंगे । ८ अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के तुरन्त बाद कांग्रेस के अधिकतर नेता गिरफ्तार कर लिये गये । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया । इसके बाद में मथुरा बाबू, श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह बाबू इत्यादि भी गिरफ्तार कर लिए गये । बलदेव सहाय ने सरकारी नीति के विरोध में महाधिवक्*ता पद से इस्तीफा दे दिया । ९ अगस्त अध्यादेश द्वारा कांग्रेस को गैर-कानूनी घोषित कर दिया । इसके फलस्वरूप गवर्नर ने इण्डिपेंडेन्ट पार्टी के सदस्य मोहम्मद युनुस को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रण किया । मोहम्मद युनुस बिहार के भारतीय प्रधानमन्त्री बने ।

(तत्कालीन समय में प्रान्त के प्रधान को प्रधानमन्त्री कहा जाता था।)

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भारत सरकार अधिनियम, १९३५ एवं बिहार में प्रथम कांग्रेस का मन्त्रिमण्डल

ब्रिटिश संसद द्वारा १९३५ ई. में भारत के शासन के लिए एक शासन विधान को पारित किया गया । १९३५ ई. से १९४७ ई. तक इसी आधार पर भारतीय शासन होता रहा । इस विधान में एक संघीय शासन की व्यवस्था थी । कांग्रेस ने इसे अपेक्षाओं से कम माना लेकिन चुनाव में भाग लिया । १९३५-३६ ई. के चुनाव तैयार करने लगा । जवाहरलाल नेहरू एवं गोविन्द वल्लभ पन्त ने बिहार का दौरा कर कांग्रेसियों का जोश बढ़ाया ।

कांग्रेस ने अनेक रचनात्मक कार्य उद्योग संघ, चर्खा संघ आदि चलाये । रात्रि समय में पाठशाला, ग्राम पुसतकालय खोले गये । आटा चक्*की, दुकान चलाना एवं खजूर से गुड़ बनाना आदि कार्यों का प्रशिक्षण दिया गया । बिहार में कांग्रेसी आश्रम खोलने का शीलभद्र याज्ञी का विशेष योगदान रहा । १९३५ ई. का वर्ष कांग्रेस का स्वर्ण जयन्ती वर्ष था जो डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की अध्यक्षता में धूमधाम से मनाया गया । जनवरी १९३६ ई. में छः वर्षों के प्रतिबन्धों के पश्*चात्* बिहार राजनीतिक सम्मेलन का १९वाँ अधिवेशन पटना में आयोजित किया गया । २२ से २७ जनवरी के मध्य बिहार के १५२ निर्वाचन मण्डल क्षेत्रों में चुनाव सम्पन्*न हुए । कांग्रेस ने १०७ में से ९८ जीते । १७-१८ मार्च को दिल्ली में कांग्रेस बैठक के बाद बिहार में कांग्रेस मन्त्रिमण्डल का गठन हुआ ।

२१ जून को वायसराय लिनलिथगो के वक्*तव्य ने संशयों को दूर करने में सफलता पाई अन्त में युनुस को सरकार का निमन्त्रण न देकर श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व मन्त्रिमण्डल का गठन किया गया,अनुग्रह नारायण सिंह उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री बने । रामदयालु अध्यक्ष तथा प्रो. अब्दुल बारी विधानसभा के उपाध्यक्ष बने । इस बीच अण्डमान से लाये गये राजनीतिक कैदियों की रिहाई के प्रश्*न पर गंभीर विवाद उत्पन्*न हो गया फलतः वायसराय के समर्थन इन्कार के बाद १५ जनवरी, १९३८ के मन्त्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया । कांग्रेस ने बाद में सुधारात्मक एवं रचनात्मक कार्यों की तरफ ध्यान देने लगा । बिहार टेनेन्सी अमेण्टमेड एक्ट के तहत काश्तकारी व्यवस्था के अन्तर्गत किसानों को होने वाली समस्या को दूर करने का प्रयास किया । चम्पारण कृषि संशोधन कानून और छोटा नागपुर संशोधन कानून पारित किये गये । श्रमिकों में फैले असन्तोष से १९३७-३८ ई. में ग्यारह बार हड़तालें हुईं । अब्दुल बारी ने टाटा वर्क्स यूनियन की स्थापना की । योगेन्द्र शुक्ल, सत्यनारायण सिंह आदि प्रमुख श्रमिक नेता हुए । इस बीच मुस्लिम लीग की गतिविधियाँ बढ़ गयीं ।

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विदेशी वस्त्र बहिष्कार- ३ जनवरी, १९२९ को कलकत्ता में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने का निर्णय किया गया । इसमें अपने स्वदेशी वस्त्र खादी वस्त्र को बढ़ावा देने के लिए माँग की गई । सार्वजनिक सभाओं एवं मैजिक लालटेन की सहायता से कार्यकर्ता के सहारे गाँव में पहुँचे ।

पूर्ण स्वाधीनता प्रस्ताव- जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का २९-३१ दिसम्बर, १९२९ का लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता प्रस्ताव स्वीकृत किया गया । बिहार कांग्रेस कार्यसमिति की २० जनवरी, १९३० को पटना में एक बैठक आयोजित की गई । २६ जनवरी, १९३० को सभी जगह स्वतन्त्रता दिवस मनाने को निश्*चित किया और मनाया गया ।

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नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन

दिसम्बर १९२९ ई. में पण्डित जवाहरलाल की अध्यक्षता में लाहौर का अधिवेशन सम्पन्*न हुआ था । इसके साथ ही गाँधी जी ने फरवरी १९३० ई. में कार्यकारिणी कांग्रेस को गाँधी जी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन करने का अधिकार दिया ।

१२ मार्च, १९३० को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ नमक कानून तोड़ने के साथ शुरू हुआ । २६ जनवरी, १९३० को बिहार में स्वाधीनता मनाने के उपरान्त १२ मार्च को गाँधी जी की डांडी यात्रा शुरू हुई थी । बिहार में नमक सत्याग्रह का प्रारम्भ १५ अप्रैल, १९३० चम्पारण एवं सारण जिलों में नमकीन मिट्टी से नमक बनाकर किया गया । पटना में १६ अप्रैल, १९३० को नरवासपिण्ड नामक स्थान दरभंगा में सत्यनारायण सिंह, मुंगेर में श्रीकृष्ण सिंह ने नमक कानून को तोड़ा ।

४ मई, १९३० को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया । इसके विरोध में पूरे बिहार में विरोध प्रदर्शन किया गया । मई, १९३० ई. में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने विदेशी वस्त्रों और शराब की दुकानों के आगे धरने का प्रस्ताव किया । इसी आन्दोलन के क्रम में बिहार में चौकीदारी कर देना बन्द कर दिया गया । स्वदेशी वस्त्रों की माँग पर छपरा जिले में कैदियों ने नंगा रहने का निर्णय किया । इसे नंगी हड़ताल के नाम से जाना जाता है । ७ अप्रैल को गाँधी जी ने अपने वक्*तव्य द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित करने की सलाह दी । १८ मई, १९३४ को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने आन्दोलन को स्थगित कर दिया ।

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