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Old 12-02-2011, 02:53 AM   #151
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Arrow बिहार का इतिहास

साइमन कमीशन वापस जाओ आन्दोलन

१९२७ ई. में ब्रिटिश संसद एवं भारतीय वायसराय लॉर्ड डरविन ने एक घोषणा की भारत में फैल रही नैराश्य स्थिति की समाप्ति हेतु १९२८ ई. में एक कमीशन की स्थापना की घोषणा की । इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे, अतः इसे साइमन कमीशन कहा जाता है किन्तु इसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं रखा गया था । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस आयोग के बहिष्कार एवं विरोध का फैसला किया । बिहार प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति की पटना में सर अली इमाम की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें साइमन कमीशन के पटना आगमन पर पूर्ण बहिष्कार किया गया ।

१८ दिसम्बर, १९२८ को साइमन कमीशन बिहार आया । हार्डिंग पार्क (पटना) के सामने बने विशेष प्लेटफार्म के सामने ३०,००० राष्ट्रवादियों ने साइमन वापस जाओ के नारे से स्वागत किया गया । साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लखनऊ में पण्डित जवाहर लाल एवं लाहौर में लाला लाजपत राय पर लाठियाँ बरसाई गईं । लाठी की चोट से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई । फलतः विद्रोह पूरे देश में फैल गया । कमीशन के विरोध में बिहार में राजेन्द्र प्रसाद ने इसकी अध्यक्षता की थी । बिहार राष्ट्रवादियों ने नारा दिया कि “जवानों सवेरा हुआ साइमन भगाने का बेरा हुआ" । विरोधी नेताओं में ब्रज किशोर जी, रामदयालु जी एवं अनुग्रह नारायण बाबू थे । इस घटना ने बिहार के लिए नई चेतना पैदा कर दी । १९२९ ई. में सर्वदलीय सम्मेलन हुआ जिसमें भारत के लिए संविधान बनाने के लिए मोती लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनी जिसे नेहरू रिपोर्ट कहते हैं । पटना में दानापुर रोड बना राष्ट्रीय पाठशाला (अन्य) भी खुली । एक मियाँ खैरूद्दीन के मकान के छात्रों को पढ़ाना शुरू किया गया । बाद में यही जगह सदाकत आश्रम के रूप में बदल गया ।

नवम्बर १९२१ ई. ब्रिटिश युवराज का भारत आगमन हुआ । इनके आगमन के विरोध करने का फैसला किया गया । इसके लिए बिहार प्रान्तीय सम्मेलन का आयोजन किया गया । जब राजकुमार २२ दिसम्बर, १९२१ को पटना आये तो पूरे शहर में हड़ताल थी । ५ जनवरी, १९२२ को उत्तर प्रदेश के चौरा-चौरी नामक स्थान पर उग्र भीड़ ने २१ सिपाहियों को जिन्दा जला दिया तो गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया । गाँधी जी को १० मार्च, १९२२ को गिरफ्तार कर ६ महीना के लिए जेल भेज दिया गया ।

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बिहार में स्वराज पार्टी

चौरा-चौरी काण्ड से दुःखी होकर गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को समाप्त कर दिया फलतः देशबन्धु चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू और विट्*ठलभाई पटेल ने एक स्वराज दल का गठन किया ।

बिहार में स्वराज दल का गठन फरवरी १९२३ ई. में हुआ । नारायण प्रसाद अध्यक्ष, अब्दुल बारी सचिव एवं कृष्ण सहाय तथा हरनन्दन सहाय को सहायक सचिव बनाया गया । मई, १९२३ ई. को नई कार्यकारिणी का गठन हुआ । २ जून, १९२३ को पटना में स्वराज दल की एक बैठक हुई जिसमें पटना, तिरहुत, छोटा नागपुर एवं भागलपुर मण्डलों में भी स्वराज दल की शाखाओं को गठित करने की घोषणा की गई, लेकिन यह आन्दोलन ज्यादा दिनों तक नहीं चला ।

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असहयोग आन्दोलन

इस आन्दोलन का प्रारूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सितम्बर, १९२० ई. में पारित हुआ, लेकिन बिहार में इसके पूर्व ही असहयोग प्रस्ताव पारित हो चुका था । २९ अगस्त, १९१८ को कांग्रेस ने अपने मुम्बई अधिवेशन में ंआण्टेक्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट पर विचार किया जिसकी अध्यक्षता बिहार के प्रसिद्ध बैरिस्टर हसन इमान ने की । हसन इमान के नेतृत्व में इंग्लैण्ड में एक शिष्ट मण्डल भेजा जा रहा था, जिससे ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया जाय । रौलेट एक्ट के काले कानून के विरुद्ध गाँधी जी ने पूरे देश में जनआन्दोलन छेड़ रखा था ।

बिहार में ६ अप्रैल, १९१९ को हड़ताल हुई । मुजफ्फरपुर, छपरा, गया, मुंगेर आदि स्थानों पर हड़ताल का व्यापक असर पड़ा । ११ अप्रैल, १९१९ को पटना में एक जनसभा का आयोजन किया गया जिसमें गाँधी जी की गिरफ्तारी का विरोध किया गया । असहयोग आन्दोलन के क्रम में मजरूलहक, राजेन्द्र प्रसाद,अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजकिशोर प्रसाद, मोहम्मद शफी और अन्य नेताओं ने विधायिका के चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली । छात्रों को वैकल्पिक शिक्षा प्रदान करने के लिए पटना-गया रोड पर एक राष्ट्रीय महाविद्यालय के ही प्रांगण में बिहार विद्यापीठ का उद्*घाटन ६ फरवरी, १९२१ को गाँधी जी द्वारा किया गया । २० सितम्बर, १९२१ से मजहरूल हक ने सदाकत आश्रय से ही मदरलैण्ड नामक अखबार निकालना शुरू किया । इसका प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय भावना के प्रचार-प्रसार एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता की स्थापना करना था । इन्होंने गाँधी जी को किसानों की आर्थिक दशा की तरफ ध्यान दिलाया । ब्रजकिशोर प्रसाद ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिससे समस्याओं का निदान किया जा सके । राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधी जी ने कलकत्ता से १५ अप्रैल, १९१७ को पटना, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा होते हुए चम्पारण पहुँचे । स्थानीय प्रशासन ने उनके आगमन एवं आचरण को गैर-कानूनी घोषित कर गिरफ्तार कर लिया और मोतिहारी की जेल में भेज दिया गया लेकिन अगले दिन छोड़ दिया गया । बाद में तत्कालीन उपराज्यपाल एडवर्ड गेट ने गाँधीजी को वार्ता के लिए बुलाया और किसानों के कष्टों की जाँच के लिए एक समिति के लिए एक कमेटी का गठन किया, जिसका नाम चम्पारण एग्रेरोरियन कमेटी पड़ा । गाँधी जी के कहने पर तीन कढ़िया व्यवस्था का अन्त कर दिया गया ।

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खिलाफत आन्दोलन

प्रथम विश्*वयुद्ध की समाप्ति के बाद जब विजयी राष्ट्रों ने तुर्की सुल्तान के खलीफा पद को समाप्त कर दिया तो अंग्रेजों द्वारा कोई आश्*वासन न मिलने के कारण भारतीय मुसलमानों एवं राष्ट्रवादियों का गुस्सा भड़क उठा । फलतः मौलाना मोहम्मद अली एवं शौकत अली ने खिलाफत आन्दोलन शुरू किया । यह आन्दोलन १९१९-२३ ई. में हुआ ।

१६ जनवरी, १९१९ को पटना में हसन इमाम की अध्यक्षता में एक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें खलीफा के प्रति मित्र राष्ट्रों द्वारा उचित व्यवहार करने को कहा गया । अप्रैल, १९१९ ई. में पटना में शौकत अली आये और १९२० ई. तक पूरे बिहार में यह आन्दोलन फैल गया । इसके लिए उन्होंने मोतीहारी, छपरा, पटना, फुलवारी शरीफ में जनसभाओं को सम्बोधित किया ।

१९२२ ई. में यह आन्दोलन पूर्णरूपेण समाप्त हो गया । शचिन्द्रनाथ सान्याल ने १९१३ ई. में पटना में अनुशीलन समिति की शाखा की नींव रखी । ढाका अनुशीलन समिति के सदस्य रेवती नाग ने भागलपुर में और यदुनाथ सरकार ने बक्सर में युवा क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षित किया ।

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होमरूल आन्दोलन

१९१६ ई. में भारत में होमरूल आन्दोलन प्रारम्भ हुआ था । श्रीमती एनी बेसेन्ट ने मद्रास में एवं बाल गंगाधर तिलक ने पूना में इसकी स्थापना की थी ।

बिहार में होमरूल लीग की स्थापना १६ दिसम्बर, १९१६ में हुई, इसके अध्यक्ष मौलाना मजहरूल हक, उपाध्यक्ष सरफराज हुसैन खान और पूर्गेन्दू नारायण सिंह तथा मन्त्री चन्द्रवंशी सहाय और वैद्यनाथ नारायण नियुक्*त किये गये । एनी बेसेन्ट भी होमरूल के आन्दोलन के सम्बन्ध में दो-तीन बार पटना भी आयीं । इनका भव्य स्वागत किया गया । वर्तमान पटना कॉलेज के सामने के सड़क का नाम एनी बेसेन्ट रोड इन्हीं के नाम पर रखा गया है ।

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चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन

बिहार का चम्पारण जिला १९१७ ई. में महात्मा गाँधी द्वारा भारत में सत्याग्रह के प्रयोग का पहला स्थल था

चम्पारण में अंग्रेज भूमिपतियों द्वारा किसानों पर निर्मम शोषण किया जा रहा था । जमींदारों द्वारा किसानों को बलात नील की खेती के लिए बाध्य किया जाता था । प्रत्येक बीघे पर उन्हें तीन कट्ठों में नील की खेती अनिवार्यतः करनी पड़ती थी । इन्हें तीन कठिया व्यवस्था कहा जाता था । बदले में उचित मजदूरी नहीं दी जाती थी । इसी कारण से किसानों एवं मजदूरों में भयंकर आक्रोश था । सन्* १९१६ में लखनऊ अधिवेशन में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल जो स्वयं जमींदार के आर्थिक शोषण से ग्रस्त थे, भाग लिया ।

२६ दिसम्बर, १९३८ को पटना में मुस्लिम लीग का २६वाँ अधिवेशन हुआ । २९ दिसम्बर, १९३८ को अखिल भारतीय मुसलमान छात्र सम्मेलन हुआ । ४ जनवरी, १९३२ को राजेन्द्र प्रसाद,अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजकिशोर प्रसाद, कृष्ण बल्लभ सहाय आदि नेतागण को गिरफ्तार किया गया । रैम्जे मैक्डोनाल्ड द्वारा हरिजन को कोटा की व्यवस्था से अस्त-व्यस्त हो गया । १२ जुलाई, १९३३ को सामुदायिक सविनय अवज्ञा के स्थान पर व्यक्*तिगत सविनय अवज्ञा का प्रारूप तैयार किया गया । १९२७ ई. में पटना युवा संघ की स्थापना की गई ।

नंगी हड़ताल- ४ मई, १९३० को गाँधी जी की गिरफ्तारी के बाद स्वदेशी के प्रचार एवं विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया । छपरा के कैदियों ने वस्त्र पहनने से इंकार कर दिया । नंगे शरीर रहकर विदेशी वस्त्रों का विरोध किया गया ।

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बेगूसराय गोलीकाण्ड एवं बिहार किसान आन्दोलन

२६ जनवरी, १९३१ को प्रथम स्वाधीनता दिवस को पूरे जोश से मनाने का निर्णय किया गया । रघुनाथ ब्रह्मचारी के नेतृत्व में बेगूसराय जिले के परहास से एक जुलूस निकाला गया । डीएसपी वशीर अहमद ने गोली चलाने का आदेश दे दिया । छः व्यक्*ति की घटना स्थल पर मृत्यु हो गई । टेदीनाथ मन्दिर के सामने गोलीकाण्ड हुआ था ।

१९१९ ई. में मधुबनी जिले के किसान स्वामी विद्यानन्द ने दरभंगा राज के विरुद्ध विरोध किया । १९२२-३३ ई. में मुंगेर में बिहार किसान सभा का गठन मोहम्मद जूबैर और श्रीकृष्ण सिंह द्वारा किया । १९२८ ई. में स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने प्रान्तीय किसान सभा की स्थापना की । इसकी स्थापना में कार्यानन्द शर्मा, राहुल सांकृत्यायन, पंचानन शर्मा, यदुनन्दन शर्मा आदि वामपंथी नेताओं का सहयोग मिला ।

स्वामी दयानन्द सहजानन्द ने ४ मार्च, १९२८ को किसान आन्दोलन प्रारम्भ किया । इसी वर्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल की बिहार यात्रा हुई और अपने भाषणों से किसानों को नई चेतना से जागृत किया । बाद में इस आन्दोलन को यूनाइटेड पोलीटीकल पार्टी का नाम दिया गया ।

१९३३ ई. में किसान सभा द्वारा जाँच कमेटी का गठन किया गया । कमेटी द्वारा किसानों की दयनीय दशा के प्रति केन्द्रीय कर लगाया गया । १९३६ ई. में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ था । इसके अध्यक्ष स्वामी सहजानन्द स्वामी थे और महासचिव प्रोफेसर एन. जे. रंगा थे ।

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बिहार में मजदूर आन्दोलन

बिहार में किसानों के समान मजदूरी का भी संगठन बना । बिहार में औद्योगिक मजदूर वर्ग ने मजदूर आन्दोलन चलाया । १९१७ ई. में बोल्शेविक क्रान्ति एवं साम्यवादी विचारों में परिवर्तन के साथ-साथ प्रचार-प्रसार हुआ । दिसम्बर, १९१९ ई. में प्रथम बार जमालपुर (मुंगेर) में मजदूरों की हड़ताल प्रारम्भ हुई । १९२० ई. में एस. एन. हैदर एवं व्यायकेश चक्रवर्ती के मार्गदर्शन में जमशेदपुर वर्क्स एसोसिएशन बनाया गया । १९२५ ई. और १९२८ ई. के बीच मजदूर संगठन की स्थापना हुई । सुभाषचन्द्र बोस, अब्दुल बारी, जयप्रकाश नारायण इसके प्रमुख नेता थे ।

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बिहार में संवैधानिक प्रगति और द्वैध शासन प्रणाली

बिहार प्रान्त का गठन १ अप्रैल, १९१२ में हुआ । इसके गठन के बाद १९१९ ई. को भारत सरकार का कानून लागू किया गया । द्वैध शासन की व्यवस्था बिहार में भी २० दिसम्बर, १९२० को प्रारम्भ हुई जिसकी अध्यक्षता आर. एन. मुधोलकर ने की । मौलाना मजरूलहक स्वागत समिति के अध्यक्ष बनाये गये । १९१६ ई. में पटना उच्च न्यायालय और १९१७ ई. में पटना विश्*वविद्यालय की स्थापना की गई । २० जनवरी, १९१३ को बिहार, उड़ीसा के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर के नवगठित काउन्सिल की प्रथम बैठक बांकीपुर में हुई, जिसकी अध्यक्षता बिहार-उड़ीसा के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली ने की ।

७ फरवरी, १९२१ को बिहार एवं उड़ीसा लेजिस्लेटिव काउन्सिल की प्रथम बैठक का उद्*घाटन हुआ जिसकी अध्यक्षता सर मुण्डी ने की ।

१ अप्रैल, १९३६ को बिहार से उड़ीसा प्रान्त अलग किया गया । पुराने गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट, १९१९ के एक सदनी विधानमण्डल की जगह नया कानून के अनुसार द्वि-सदनी विधानमण्डल स्थापित किया गया ।

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बिहार में क्रान्तिकारी आन्दोलन

बंग भंग विरोधी आन्दोलन से बिहार तथा बंगाल में क्रान्तिकारी आन्दोलन प्रारम्भ हो गया । बिहार के डॉ. ज्ञानेन्द्र नाथ, केदारनाथ बनर्जी एवं बाबा ठाकुर दास प्रमुख थे । बाबा ठाकुर दास ने १९०६-०७ ई. में पटना में रामकृष्ण मिशन सोसायटी की स्थापना की और समाचार-पत्र के द्वारा दी मदरलैण्ड का सम्पादन एवं प्रकाशन शुरू किया । १९०८ ई. में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी नामक दो युवकों ने मुजफ्फरपुर के जिला जज डी. एच. किंग्स फोर्ड की हत्या के प्रयास में मुजफ्फरपुर के नामी वकील की पत्*नी प्रिग्ल कैनेडी की बेटी की हत्या के कारण ११ अगस्त, १९०८ को फाँसी दी गई । इस घटना के बाद भारत को आजाद कराने की भावना प्रबल हो उठी । खेती नाग, चुनचुन पाण्डेय, बटेश्*वर पाण्डेय, घोटन सिंह, नालिन बागची आदि इस समय प्रमुख नेता थे ।

१९०८ ई. में ही नवाब सरफराज हुसैन खाँ की अध्यक्षता में बिहार कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ । इसमें सच्चिदानन्द सिंह, मजरूलहक हसन, इमाम दीपनारायण सिंह आदि शामिल थे । कांग्रेस कमेटी के गठन के बाद इसके अध्यक्ष इमाम हुसैन को बनाया गया ।

१९०९ ई. में बिहार कांग्रेस सम्मेलन का दूसरा अधिवेशन भागलपुर में सम्पन्*न हुआ । इसमें भी बिहार को अलग राज्य की माँग जोरदार ढंग से की गई ।

१९०७ ई. में ही फखरुद्दीन कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्*त होने वाले प्रथम बिहारी बने तथा स्थायी पारदर्शी के रूप में इमाम हुसैन को नियुक्*त किया गया । १९१० ई. में मार्लेमिण्टो सुधार के अन्तर्गत प्रथम चुनाव आयोजन में सच्चिदानन्द सिंह ने चार महाराजाओं को हराकर बंगाल विधान परिषद्* की ओर से केन्द्रीय विधान परिषद्* में विधि सदस्य के रूप में नियुक्*त हुए । १९११ ई. में दिल्ली दरबार में जार्ज पंचम के आगमन में केन्द्रीय परिषद्* के अधिवेशन के दौरान सच्चिदानन्द सिंह, अली इमाम एवं मोहम्मद अली ने पृथक बिहार की माँग की । फलतः इन बिहारी महान सपूतों द्वारा १२ दिसम्बर, १९११ को दिल्ली के शाही दरबार में बिहार और उड़ीसा को मिलाकर एक नया प्रान्त बनाने की घोषणा हुई । इस घोषणा के अनुसार १ अप्रैल, १९१२ को बिहार एवं उड़ीसा नये प्रान्त के रूप में इनकी विधिवत्* स्थापना की गई । बिहार के स्वतन्त्र अस्तित्व का मुहर लगने के तत्काल बाद पटना में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का २७वाँ वार्षिक सम्मेलन हुआ । मुगलकालीन समय में बिहार एक अलग सूबा था । मुगल सत्ता समाप्ति के समय बंगाल के नवाबों के अधीन बिहार चला गया । फलतः बिहार की अलग राज्य की माँग सर्वप्रथम मुस्लिम और कायस्थ ने की थी । जब लार्ड कर्जन ने बंगाल को १९०५ ई. में पूर्वी भाग एवं पश्*चिमी भाग में बाँध दिया था तब बिहार के लोगों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया एवं सच्चिदानन्द सिंह एवं महेश नारायण ने अखबारों में वैकल्पिक विभाजन की रूपरेखा देते हुए लेख लिखे थे जो पार्टीशन ऑफ बंगाल और लेपरेशन ऑफ बिहार १९०६ ई. में प्रकाशित हुए थे ।

इस समय कलकत्ता में राजेन्द्र प्रसाद अध्ययनरत थे वे वहाँ बिहारी क्लब के मन्त्री थे । डॉ. सच्चिदानन्द सिंह,अनुग्रह नारायण सिंह, हमेश नारायण तथा अन्य छात्र नेताओं से विचार-विमर्श के बाद पटना में एक विशाल बिहार छात्र सम्मेलन करवाया । यह सम्मेलन दशहरा की छुट्टी में पहला बिहारी छात्र सम्मेलन पटना कॉलेज के प्रांगण में पटना के प्रमुख शर्फुद्दीन के सभापतित्व में सम्पन्*न हुआ था । इससे बिहार पृथक्*करण आन्दोलन पर विशेष बल मिला । १९०६ ई. में बिहार टाइम्स का नाम बदलकर बिहारी कर दिया गया । १९०७ ई. में महेश नारायण का निधन हो गया । सच्चिदानन्द ने ब्रह्मदेव नारायण के सहयोग से पत्रिका का सम्पादन जारी रखा ।

बिहार प्रादेशिक सम्मेलन की स्थापना १२-१३ अप्रैल, १९०६ में पटना में हुई जिसकी अध्यक्षता अली इमाम ने की थी । इसमें बिहार को अलग प्रान्त की माँग के प्रस्ताव को पारित किया गया ।

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