27-02-2011, 10:57 AM | #1 |
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अपूर्ण
किसी कोने में
ऐसा नहीं की अब सब कुछ बदल गया पर हाँ हमने खुद को जरुर बदल डाला है कुछ हासिल नहीं होता छटपटाने से सो खुद से ही खुद को संभाला है ऐसा नहीं की अब आग बुझ चुकी है वो तो आज भी सुलगती है किसी कोने में हाथ से खोजते थे उसमे जाने क्या खोया हुआ और ये हाथ अक्सर तब जल जाता था बुझाने को फूंकते थे जब भी हम उसको चेहरा एक बार फिर से झुलस जाता था अब बस यही आदत बदल डाली है तबसे जाते ही नहीं अब कभी उस कोने में पर सुबह अपनी आँखे नम मिलने पे समझ आता है आज क्या ख्वाब देखा है हमने सोने में ?
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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