16-10-2013, 05:10 PM | #1 |
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First look of satya 2
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16-10-2013, 05:11 PM | #2 |
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Re: First look of satya 2
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16-10-2013, 05:11 PM | #3 |
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Re: First look of satya 2
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16-10-2013, 05:11 PM | #4 |
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Re: First look of satya 2
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16-10-2013, 05:12 PM | #5 |
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Re: First look of satya 2
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06-06-2014, 08:08 AM | #6 |
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Movie Reviews
भारतीय दर्शक इस तरह के सिनेमा से अक्सर दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन सिटी लाइट्स शायद इस ट्रेंड को बदल कर रख दे।
हिंदी सिनेमा में बदलाव का दौर आ गया है। पैरलल सिनेमा को लेकर मिथक टूटते दिखें तो आश्चर्य नहीं, तो दूसरी ओर ऐसी फिल्मों को दर्शक भी मिल रहे हैं। कम से कम 'आर राजकुमार', 'रागिनी एमएमएस-2' और 'हीरोपंती' जैसी फिल्मों को देख कर ऊब चुके दर्शकों के लिए तो सुकून भरी खबरें इधर आने लगी हैं। कमर्शियल सिनेमा को कड़ी टक्कर देने के लिए न केवल पैरलल सिनेमा मजबूत हो रहा है बल्कि निर्माता अब इन फिल्मों में पैसा लगाने से भी नहीं हिचकिचा रहे हैं। अब शायद ऐसी फिल्मों का दौर आने लगा है जो सिनेमा हॉल के अंदर तो दर्शकों को बांधे ही रखे, लेकिन जब दर्शक सिनेमा हॉल की सीट छोड़े तो कुछ सवाल भी अपने साथ लेकर जाए। ऐसी फिल्में जो न केवल सिनेमा के व्यापक मायनों को जीवित करे बल्कि ऐसी भी जो कि महज टाइमपास तक ही ना सिमटी रहें। 'सिटी लाइट्स' ऐसी ही फिल्म है, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी। कहानी: फिल्म की कहानी राजस्थान के एक ऐसे छोटे व्यापारी की कहानी है, जो बेहतर जिंदगी की तलाश में अपने परिवार के साथ मुंबई पहुंच जाता है। मुंबई जैसा कि वह सोचता है उससे कई गुना उलट है। एक ऐसा शहर जो कभी किसी की परवाह नहीं करता और रात भर जागता है। अगर आप 'सिटी लाइट्स' के ट्रेलर को देखकर दंग हैं तो फिर पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त। यहां हम फिल्म के दो न भुलाए जा सकने वाले सीन के साथ फिल्म के बारे में बात करते हैं। फिल्म के मध्य में राखी (पत्रलेखा) नौकरी की तलाश में एक डांस बार मालिक के पास जाती है, जो राखी को ऊपर से नीचे तक घूरता है और उसे पूरा देखने के लिए पीछे घूमने के लिए कहता है। इसके बाद वह उसे खुश करने के लिए रेखा को डांस करने के लिए कहता है, जबकि वह चिल्ला रही होती है। एक अन्य सीन में दीपक (राजकुमार) जो यह जानता है कि उसकी पत्नी एक डांस बार में काम कर रही है, गुस्से में घर लौटता है और अपनी पत्नी से डांस करने के लिए कहता है। वह इसके विरोध में दीपक को एक थप्पड़ जड़ती है, जिससे वह जमीन पर गिर जाता है। हंसल ने फिल्म के हर सीन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से कैमरे में कैद कर लिया है। फिल्म ने मुंबई के प्रति उस धारणा को भी खारिज किया हे, जिसे आप अक्सर फिल्मों में देखते हैं। फिल्म आपका ध्यान खींचती है और आपको बांधे रखती है। फिल्म खत्म होने के बाद भी आपको कचोटती रहेगी, जो आपके अंदर सवाल पैदा करती है। एक्टिंग: नेशनल अवार्ड विनिंग एक्टर राजकुमार राव दुबारा से अपनी परफॉरमेंस के जरिए अवार्ड की दौड़ में हैं। राजकुमार ने अपनी बेहतरीन अदाकारी से अपने किरदार में जान फूंक दी, जैसा कि उनसे उम्मीद की जा रही थी। इस फिल्म को देखकर लगता है मानों हंसल मेहता राजकुमार के लिए ही बने हों, जैसे करण जौहर शाहरुख खान या फिर डेविड धवन गोविंदा के लिए। पत्रलेखा ने भी राजकुमार राव की ही तरह फिल्म में बेहतर अभिनय किया है। कहीं भी फिल्म में उनकी अदाकारी को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि यह उनकी पहली फिल्म है। फिल्म के कुछ दृष्यों में वह राजकुमार को ओवरशैड़ो भी कर रही हैं। डायरेक्शन: फिल्म 'शाहिद' के बाद हंसल मेहता अपने चहेते राजकुमार राव के साथ ऐसी ही एक और फिल्म 'सिटी लाइट्स' लेकर आएं हैं जो अपको डराएगी भी तो जिंदगी की भयावह सच्चाई का आईना भी दिखा देगी। इसे महज एक फिल्म नहीं कहा जा सकता। यह एक आर्ट पीस है, लेकिन यह भी सच है कि यह कमर्शियल सिनेमा नहीं है। फिल्म का डायरेक्शन नि:संदेह शानदार है। डायरेक्टर हंसल मेहता ने महानगरों की सच्चाई और आम आदमी के सपनों, संघर्षों और डर को जिस खूबी से कैमरे में कैद किया है, वह काबिले तारीफ है। संगीत: इस तरह की जोनर की फिल्मों से अलग हटकर सिटी लाइट्स का संगीत भी प्रभावित करता है। हालांकि फिल्म में दो गाने अनावश्यक डाले गए हैं, लेकिन इसका बैकग्राउंड म्यूजिक कर्णप्रिय बन पड़ा है। क्यों देख सकते हैं फिल्म? यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर फिल्म को क्यों देखा जाए। 'सिटी लाइट्स' एक कमर्शियल फिल्म नहीं है। यह ऐसी फिल्म नहीं है जिसे आप अपने परिवार के साथ महज मूड को सही करने के लिए सिनेमाघरों में जाएं।
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06-06-2014, 11:08 AM | #7 |
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Re: Movie Review: सिटी लाइट्स
दीपू जी का धन्यवाद कि उन्होंने 'सिटी लाइट्स' जैसी नई फिल्म की एक संतुलित समीक्षा प्रस्तुत की है जिसमें उन्होंने फिल्म के सभी प्लस पॉइंट्स को दर्शकों के सामने रखा है ताकि सिनेमा हाल तक जाने के लिये उनके पास एक मकसद तो हो.
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06-06-2014, 11:52 AM | #8 |
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Re: Movie Review: सिटी लाइट्स
लेख को पड़कर फिल्म देखने की इच्छा हो गई !धन्यवाद भाई
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07-06-2014, 10:25 PM | #9 |
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Movie Review: फिल्मिस्तान
फिल्मिस्तान बॉलीवुड फिल्मों की दीवानगी को नए सिरे से दिखाती एक ऐसी फिल्म है, जिसमें पाकिस्तान भी साथ-साथ चलता दिखता है। फिल्म की कहानी ताजा और मजेदार है।
इधर कुछ समय से कमर्शियल फिल्मों के साथ ही एक-दो फिल्में लगातार लीक से हटकर सामने आई हैं, जिन्होंने अपनी अलग पटकथा से सिने प्रेमियों का ध्यान खींचा है। पिछले हफ्ते सिनेमाघरों में 'सिटी लाइट्स' ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी शुरुआत कर यह साबित किया कि कमर्शियल फिल्मों के इतर भी सिने प्रेमियों की अच्छी-खासी जमात है। इस हफ्ते भी बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से हटकर एक ताजा कहानी 'फिल्मिस्तान' के रूप में सिनेमाघरों में अपने अलग सब्जेक्ट के चलते चर्चाओं में है। युवा निर्देशक नितिन कक्कड़ की इस फिल्म को थिएटर तक पहुंचने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। करीब दो वर्ष पूर्व इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड तो मिला, लेकिन फिल्म को कोई खरीदार नहीं मिल पाया। अब जाकर यह फिल्म सिनेमाघरों तक पहुंच सकी है। हालांकि, फिल्म की डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ने अक्षय कुमार स्टारर मेगा बजट फिल्म 'हॉलिडे' के सामने रिलीज का जोखिम उठाया। फिल्म को देख कर लगता है कि 100 करोड़ रुपए क्लब फिल्मों के इस दौर में भी लीक से हटकर फिल्म बनाने का जोखिम लेने वाले जुनूनी फिल्मकारों की कोई कमी नहीं है। कहानी : सनी अरोड़ा (शारीब हाशमी) बॉलीवुड की फिल्मों का दीवाना है और वह खुद को बॉलीवुड के किसी हीरो से कम नहीं आंकता। सनी के बोलने का अंदाज, उसके हंसने, रोने और चलने का अंदाज पूरा फिल्मी है। सिल्वर स्क्रीन पर चमकने का उसका यही जुनून उसे एक दिन मायानगरी मुंबई खींच लाता है। यहां आने पर उसे फिल्म इंडस्ट्री के कायदा और उसकी रफ्तार के बारे में समझ आता है। सनी को यहां आकर हीरो बनने का मौका तो नहीं मिल पाता, लेकिन एक विदेशी प्रोडक्शन कंपनी में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम मिल जाता है। यहीं से सनी का सफर शुरू होता है। उसे पता चलता है कि खाली वह कहने भर को असिस्टेंट डायरेक्टर है, जबकि उसे स्पॉट ब्वॉय तक का काम करना होता है। सनी फिल्म की यूनिट के साथ राजस्थान बॉर्डर से सटे एक छोटे से गांव में शूटिंग के लिए आता है। पाकिस्तान बॉर्डर से सटे इस एरिया में फिल्म की शूटिंग के दौरान विदेशी प्रोडक्शन कंपनी के लोगों को बंदी बनाने के लिए पाकिस्तानी आंतकवादी हमला कर देते हैं, और रात के अंधेरे में सनी को उसके कैमरे सहित उठाकर अपने साथ ले जाते है। पाकिस्तानी बॉर्डर से सटे एक छोटे से गांव में सनी को आफताब (इनामउल हक) के घर में बंदी बनाकर रखा जाता है। आफताब हिंदी फिल्मों के साथ-साथ पोर्न फिल्मों की पाइरेटेड सीडी बेचने के बिजनेस में लिप्त है। आफताब का भी सपना है कि वह फिल्म बनाए। सनी को बंधक बनाने वाले आतंकवादी अब उसके अपहरण का विडियो बनाकर भारत सरकार से अपनी मांगें मनवाना चाहते है। आगे सनी का क्या होता है? क्या सनी भारत पहुंच पाता है? क्या आफताब अपनी फिल्म बनाने में कामयाब हो पाता है और आतंकवादी जो विदेशी फिल्मकारों को अपने साथ ले आए हैं उनका क्या होता है? यही फिल्म की कहानी है। एक्टिंग : सनी अरोडा के किरदार में शारिफ हाशमी ने अपनी दमदार अदाकारी से जान फूंक दी है। कहीं-कहीं शारिफ के ऐसे सीन्स भी फिल्म में ठूंसे हुए लगते हैं, जिनकी बहुत ज्यादा जरूरत महसूस नहीं होती। बॉलीवुड फिल्मों की पायरेटेड फिल्में बेचकर अपनी फैमिली का पेट पालने वाले आफताब के रोल में इनामउल हक की अदाकारी भी फिल्म में देखने लायक है। आफताब बेचता तो इंडियन फिल्मों की पायरेटेड सीडी है, लेकिन उसका सपना पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री लॉलीवुड को बॉलीवुड से आगे देखने का है। उसके अंदर गलत धंधों के बावजूद एक कलाकार को निर्देशक ने बखूबी पर्दे पर दिखाया है। आतंकवादी सरगना के किरदार में कुमुद मिश्रा भी अपनी अदाकारी से ध्यान खींचते हैं। डायरेक्शन : फिल्म के निर्देशक और लेखक नितिन कक्कड़ की तारीफ पहले तो इसलिए करनी चाहिए कि उन्होंने इस तरह के सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का जोखिम उठाया है। अपने काम में नितिन ने पूरी ईमानदारी दिखाई है जो पर्दे पर नजर आती है। नितिन ने कहीं ना कहीं भारत-पाक के रिश्तों पर बनी अपनी इस फिल्म को अन्य हिंदी मसाला फिल्मों से दूर रखा और एक बेहद ताजी कहानी में व्यंग्यों के जरिए अपनी बात कही। कुछ एक सीन्स को छोड़ दें तो नितिन ने बेहद खूबसूरती से फिल्म के दृश्यों को कैमरे में कैद किया है। क्यों देखें : नई कहानी देखने से गुरेज ना हो तो यह फिल्म जरूर देखें। लीक से हटकर अच्छी फिल्मों के शौकीन सिने प्रेमियों के लिए यह फिल्म संजोने लायक है।
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07-06-2014, 10:26 PM | #10 |
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Re: Movie Review: फिल्मिस्तान
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