06-02-2012, 08:12 PM | #41 | |
अति विशिष्ट कवि
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35 |
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
Quote:
सम्माननीय Dark Saint Alaick जी ; आपकी सोच सही और मेरे लिए अनुकूल है . मुझे आपकी उस समय की ही प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी , जब आप फुर्सत मिलने पर रचना को पूरा पढ़ लें . धन्यवाद . Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 06-02-2012 at 08:40 PM. |
|
06-02-2012, 08:13 PM | #42 |
अति विशिष्ट कवि
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35 |
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
|
06-02-2012, 08:17 PM | #43 |
अति विशिष्ट कवि
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35 |
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
|
07-02-2012, 07:45 AM | #44 | |
Administrator
|
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
Quote:
मैं जल्द ही इसे पूरा पढता हूँ और अपनी प्रतिक्रिया देता हूँ..
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
|
09-02-2012, 06:20 PM | #45 |
Special Member
|
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
अपनी रचना पढ़ने हेतु निवेदन भेजने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
रचना कैसी लगी ये तो पढ़कर ही बता पाऊंगा फिलहाल चंद प्रविष्टियाँ ही पढ़ पाया हूँ
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
10-02-2012, 05:30 AM | #46 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
कविवर ! आज आपका 'टुकड़ा-टुकड़ा सच' पूरा पढ़ डाला ! साहित्य की दो धाराएं मुख्य हैं - एक यथार्थवादी और दूसरी आदर्शवादी ! आपका सृजन मुझे दूसरी धारा, और उसमें भी अत्यधिक रोमानी अनुगूंज वाला लगा ! इसमें कोई संशय नहीं है कि आपने सृजन के लिए जो धारा चुनी है, उसमें यह श्रेष्ठ है, किन्तु क्षमा करें कि, ग़ज़ल को छोड़ दें तो, कैशोर्य से मैं यथार्थवादी साहित्य पढ़ने का आदी रहा हूं, अतः मुझे इस रचना ने बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया ! कथा में माहौल बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि पाठक यह महसूस करे कि यह सब मेरे इर्द-गिर्द ही हो रहा है और उससे पूरी तरह जुड़ जाए, किन्तु इस कृति में आप माहौल निर्मित करने के बजाय संवादों पर अधिक जोर देते दिखे हैं ! मसलन, शुरुआत को ही लें, जहां एक युवती आत्महत्या के लिए कार के आगे आ कूदी है, वहां युवक (चंचल) और युवती (पायल) का वार्तालाप कथानक पर अत्यधिक हावी है ! मैंने यह दृश्य पढ़ते वक्त सोचा, अगर मेरी कार के आगे कोई इस तरह आ कूदा होता, तो क्या मेरा व्यवहार ऐसा ही होता ! जवाब मिला, नहीं ! मैं एक बार तो अवश्य उस पर चीखता चिल्लाता, यकीनन उसे शांत लहजे में उपदेश कदापि नहीं देता ! अर्थात मेरे विचार से, आपके इस ट्रीटमेंट से कथा एक मार्मिक दृश्य उपस्थित होने से वंचित रह गई ! दूसरे पात्रों का नामकरण बेहद फिल्मी या कहूं अविश्वसनीय प्रतीत हुआ ! ग़ज़ल, गेसू, गुलशन जैसे पात्रों को कोई भी पाठक स्वप्नमय ही समझेगा, उनसे हृदय से जुड़ना मेरे विचार से संभव नहीं है ! हो सकता है कि आपने कथा का खाका किसी फिल्म निर्माता को ध्यान में रख कर खींचा हो, यदि ऐसा है तो मेरा मानना है कि इस कृति पर एक लोकप्रिय फिल्म बन सकती है, जो कई दृश्यों में निश्चय ही स्त्रियों के रूमाल भिगोने की क्षमता वाली होगी ! इस धारा को पसंद करने वालों के लिए आपका उपन्यास निश्चय ही रोचक, पठनीय और ज़ेहन में देर तक कौंधते रहने वाला है और इस दृष्टि से आप सफल सिद्ध हुए हैं ! मेरा कोई कथन आपको अनुचित लगे, तो कृपया उसे अन्यथा नहीं लें और उसके लिए मेरी अग्रिम क्षमाप्रार्थना स्वीकार करें ! धन्यवाद !
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
10-02-2012, 06:58 PM | #47 | |
अति विशिष्ट कवि
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35 |
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
Quote:
यूं तो मैं पहले से ही मन ही मन आपके समृद्ध शब्द कोष एवं साहित्यिक ज्ञान की गहराई एवं विस्तार का कायल था किन्तु अब तो आपके तटस्थ व बेबाक आलोचक रूप का लोहा भी काफी हद तक मान रहा हूँ . सच कहूं तो उपन्यास से भी अधिक अच्छी आप द्वारा की गयी आलोचना है . दरअसल मेरे पास आपकी तरह न तो समृद्ध शब्द कोष है और न ही पर्याप्त साहित्यिक समझ एवं बारीकियां . परम्पराओं से हटकर मेरी सरल सपाट सोच समझ मात्र इतनी है कि व्यवहार में साहित्य मोटे तौर पर तीन तरह का होता है . पहला पढ़ाकर समझाने व मनोरंजन कराने वाला , दूसरा सुनाकर समझाने व मनोरंजन कराने वाला और तीसरा दिखाकर समझाने व मनोरंजन कराने वाला . पर्दे व मंच पर एक साथ दिखा सुना कर मनोरंजन का प्रयास किया जा सकता है . रेडियो पर मात्र सुनाया जा सकता है और पुस्तकों या प्रिंट में मात्र पढ़ाने की सीमा होती है . इसी सीमा के अंतर्गत अधिकाधिक प्रभाव उत्पन्न करने की लालसा वश मैंने संवाद एवं शैली के भरपूर दोहन का जी तोड़ प्रयास किया है . ये एहसास मुझे भी था कि कथानक व घटनाक्रम में तीव्रता का अभाव है और समुचित वातावरण के निर्माण में मैं पर्याप्त सफल नहीं हो पाया हूँ . किन्तु मैंने जान बूझकर इसे नजर अंदाज किया क्योंकि मेरा मुख्य उद्देश्य तो रोचक संवाद और शैली के बल पर अपने अधिकाधिक विचारों को पाठकों तक इस उपन्यास के माध्यम से पहुंचाना व उनका स्वस्थ मनोरंजन करना तथा कुछ सोचने हेतु प्रेरित करना भर था . जिसका आपने नोटिस भी लिया है किन्तु हाय री किस्मत , इस सन्दर्भ में मैं आपको और अधिक मुखर होने के लिए बाध्य न कर सका . जहाँ तक आपकी विशिष्ट रूचि की बात है तो मैं अत्यंत विनम्रता पूर्वक कहना चाहूंगा कि ये आपकी अपनी खींची हुई सीमा है . न तो इसका मुझे पहले से इल्म था और न ही मैंने कुछेक विशिष्ट व्यक्तियों हेतु ही ये रचना गढ़ी थी . इस सन्दर्भ में मैं आपका अन्जाने में दोषी हूँ और आपका समय व्यर्थ करने हेतु क्षमा ही मांग सकता हूँ . जहां तक कार के आगे लड़की के कूदने का प्रसंग है तो उस सन्दर्भ में इतना ही कहूँगा कि पुनः अवलोकन करें तो पायेंगे कि चंचल लड़की पर एक बार बड़बड़ाया व एक बार झुंझलाया था . अब मैं या मेरे द्वारा रचित पात्र आपकी सोच की तरह इतना भी निष्ठुर नहीं हो सकते कि किसी चोटिल , दुखी व साथ ही साथ बला की खूबसूरत हसीना पर इससे अधिक क्रोध करें . आखिरकार कहानी को आगे बढ़ाने व भविष्य में दोनों को मिलाने हेतु कुछ संभावनाएं भी तो शेष रखनीं थीं . समझा करें मित्र . पात्रों के नामों तक का छिद्रान्वेषण होगा , मैंने सोचा तक न था . और ये क्या ! आप मुझ अदना को फ़िल्मी ख़्वाब क्यों दिखा रहे हैं . अंत में यही कहूँगा कि मैं चाहे जो भी कहूं , निर्णायक तो अंततः आप पाठक ही रहेगे . आशा है आगे भी ऐसा ही प्रेम बनाये रखेंगे . धन्यवाद . |
|
11-02-2012, 06:44 AM | #48 |
Senior Member
Join Date: Feb 2012
Location: जिला गाजीपुर
Posts: 261
Rep Power: 16 |
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
प्रणाम कविवर श्री!मैं धीरे-धीरे उपन्यास पढ़ता हूँ। पूरा उपन्यास पढ़ने के बाद मैं भी कुछ प्रतिक्रिया दूँगा।
|
12-02-2012, 06:16 AM | #49 |
Senior Member
Join Date: Sep 2011
Location: मुजफ़्फ़रपुर, बि
Posts: 643
Rep Power: 18 |
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
राकेश जी, आपका कवि रूप तो मुझे पता था, पर यह रूप मेरे लिए हीं नहीं शायद अन्य लोगों के लिए भी नया है। आज कुछ समय बाद यहाँ फ़ोरम पर आना हो सका है सो आज हीं आपका सुत्र देखा। बस एक दिन का समय दीजिए, उपन्यास पढ़ कर, कुछ आगे प्रतिक्रिया दुँगा।
|
13-02-2012, 07:28 PM | #50 |
Special Member
|
Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच
कविवर जी नि:संदेह अपने बहुत ही सुन्दर उपन्यास लिखा है समय की कमी के चलते मै इसे अभी पूरा पढ़ नहीं सकती हूँ परन्तु जल्द ही अपनी प्रतिक्रिया दूंगी ..................!
__________________
फोरम के नियम
ऑफलाइन में हिंदी लिखने के लिए मुझे डाउनलोड करें ! आजकल लोग रिश्तों को भूलते जा रहे हैं....! love is life |
Bookmarks |
|
|