24-06-2013, 12:53 PM | #1 |
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फिल्में कैसी होनी चाहिए?
९० का दशक पुरा होने से पहेले राम गोपाल वर्मा, नागेश कुकुनुर, मनिरत्नम जैसे दिग्दशेको ने एक नया ट्रेन्ड शुरु कर दिया था । यह ट्रेन्ड उन्हॉने जारी रखा । बोलीवुडने कहोना प्यार है, कुछ कुछ होता है जैसी फिल्मो ने अपना वही लव-स्टोरीवाला ट्रेन्ड ज़ारी रखा । प्रियदर्शनने कोमेडी फिल्म को नया आयाम देना शुरु किया । २००५ तक नये नये हिरो-हीरोईन आ रहे थे और अपना सिक्का ज़मा रहे थे ।
नये दिगदर्शक भी अपना काम दिखा रहे थे । लेकिन साथ साथ बोलिवुड की हालत ब़िगड रही थी । क्रिएटीवीटी मानो कम ही हो गई थी । एक दो गीने चुने दिग्दर्शको के अलावा अब हालात थोडे से खराब है । अब फिल्में केवल बोक्स ओफिस कलेक्शन से अच्छी या बुरी मानी जाती है। क्या बिझनस ही सब कुछ है? क्या फिल्म एक कला नहि है? हरबार फिल्म देखने से पहेले दिमाग घर पे रख के जाना होगा? क्या एक्की-दुग्गी फिल्मो के अलावा टेलेल्ट खत्म हो गया है? हमें अब तक होलीवुड तक ना सही लेकिन चीन, रशियन फिल्मो से आगे निकल जाना चाहिए था या नहि? क्या फिल्मे भारत के बाहर भारत का एक रूप प्रदशित नहिं करती? |
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फिल्म, बोलिवुड, bollywood, film |
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