My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > India & World
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 25-05-2012, 08:03 AM   #1
abhisays
Administrator
 
abhisays's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Location: Bangalore
Posts: 16,772
Rep Power: 137
abhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond repute
Send a message via Yahoo to abhisays
Default जनाब! ‘आइएएस’ की तो बात ही और है

जनाब! ‘आइएएस’ की तो बात ही और है



।। श्रीश चौधरी ।।

* आइएएस अधिकारी के अधिकारों वाली सामाजिक छवि पर एक नजर

अभी भी बिहार में लोग जितना ‘आइएएस’ पदाधिकारी लोगों से प्रभावित होते हैं, उतना शायद और कहीं नहीं होते हैं. कल मेरे एक मित्र ने फोन किया. उनकी लड़की दिल्ली के एक अच्छे कॉलेज की ग्रेजुएट है, फिर किसी और अच्छे कॉलेज से उसने एमबीए किया है.

अब वह उस लड़की के लिए वर ढ़ूंढ़ रहे हैं. योग्य वरों में इनकी सूची में ‘आइएएस’ सबसे ऊपर है. क्यों? मैंने जब पूछा, तो उनका एक ही उत्तर था,’आइएएस’ की तो बात ही और है.

मेरी राय में यह उत्तर ही नहीं है. यह एक धारणा है. हम किसी के भी विषय में कह सकते हैं,उसकी तो बात ही और है. आज के भारत में न तो उसे सबसे अधिक वेतन मिलता है, ना ही आज के भारत में उसके पास कोई वास्तविक अधिकार है. आज का आइएएस/आइपीएस अधिकारी सीमित अधिकार परंतु असीमित जिम्मेदारी वाला एक अत्यंत प्रतिभावान परंतु उतना ही असहाय एक ‘बेचारा’ नागरिक है. उसके सगे-संबंधी अवश्य ही उसकी कुरसी से फैली रोशनी में धूप सेंकते रहते हैं.

भले ही यह आइएएस/आइपीएस अधिकारी उनके किसी काम न आ सके, भले ही परिवार में मृत्यु होने पर भी वह शोक के दस दिन तथा विवाह होने पर उत्सव के चार दिन अपने परिवार-परिजनों के साथ न बिता सके, परंतु सगे-संबंधियों के लिए वह आदर पाने का साधन या साधन पाने का भ्रम आवश्य बन जाता है. उसके चचेरे-मौसेरे भी उसके साथ अपना परिचय सिर्फ ‘भाई’ बताकर देते हैं.

अन्य विशेषण वह लगभग भुला ही देते हैं. उसके बड़े भी लगभग उसके पांव छूने को प्रस्तुत होते हैं. यदि जीवन-यापन का सुखद मार्ग चुनने को यही सबसे बड़ा आधार है, तो फिर आइएएस/आइपीएस में भरती हो जाना, जीवन-यापन का एक अच्छा रास्ता है. परंतु जिंदगी के सुख और दुख सामाजिक छवि मात्र से नहीं प्रभावित होते हैं.

इन विषयों में इसका भी महत्व है कि आपको कितने पैसे मिलते हैं? कितनी सुविधाएं (पर्क्स) मिलती हैं? एवं इसके उपयोग-उपभोग के लिए आप को कितना समय मिलता है?
आइएएस/आइपीएस आदि सेवा में चुने गये पदाधिकारी को कई सुविधाएं मुफ्त में प्राप्त होती है.

आवास, यातायात, कई प्रकार के भत्ते, छुट्टियां आदि उन्हें मुफ्त ही मिलते हैं. सरकारी नौकरी में सबसे अच्छी तनख्वाह भी इन्हीं लोगों की होती है. परंतु आज के भारत में इनसे कम योग्यता रखनेवाले, इनसे काफी कम आयु के लोग भी इतना कुछ या इससे अधिक कमा लेते हैं.

साफ्टवेयर कंपनियों में, बीपीओ कंपनियों में तथा अन्य कई सरकारी एवं गैर-सरकारी कंपनियों में भी लाख रुपये महीने की या उससे अधिक की तनख्वाह पानेवालों की संख्या भी काफी बड़ी हो गयी है. इन्हें भी इनकी कंपनी कई प्रकार की सुविधाएं मुफ्त देती हैं.
अधिकतर लोगों का घर से दफ्तर तक का यातायात, कार्यस्थल पर भोजन आदि नि:शुल्क या अत्यंत कम शुल्क पर मिलता है. फिर इन्हें बोनस, तरक्की या कंपनी के स्टाक (स्वामित्व) में हिस्सा भी अक्सर ही मिलता है.

इस प्रकार ये किसी आइएएस/आइपीएस पदाधिकारी से काफी अधिक पैसे कमा लेते हैं. सरकारी अधिकारियों के पास अतिरिक्त आय के अवसर आवश्य अधिक होते हैं. परंतु ये अवसर अनिश्चित एवं असामान्य होते हैं.

बिरला ही कोई पदाधिकारी ऐसा होता है, जो काला धन पाकर भी स्वस्थ एवं प्रसन्न रह जाता है. इसलिए इसे न ही गिनना ठीक है. आइएएस/आइपीएस अफसरों की तुलना में आज के ‘बिजनेस एक्जीक्यूटिव्स’ को देश-विदेश जाने एवं ‘स्वच्छ’अतिरिक्त आय के अवसर कहीं अधिक है.

छवि नहीं रही अच्छी : वर्ष 1994 में प्रकाशित आइआइएम बंगलोर के प्रो पी सिंह एवं उनके सहयोगियों द्वारा किये गये लगभग 300 आइएएस पदाधिकारियों के एक सर्वेक्षण में पाया कि अधिकारी मानते हैं कि आम जनता में अब आइएएस पदाधिकारियों की छवि अच्छी नहीं रह गयी है.

लोग समझते हैं कि ये उतने ही भ्रष्ट, जनता के कल्याण से उदासीन तथा जनता की पहुंच से बाहर हैं, जितना मंत्रीगण या अन्य राजनीतिक नेता. सर्वेक्षण में शामिल साठ प्रतिशत से अधिक आइएएस पदाधिकारियों ने स्वीकार किया कि मंत्रियों-नेताओं की कृपा के बिना कैरियर में तरक्की लगभग असंभव है.

पचपन प्रतिशत अधिकारियों ने चैन से नौकरी कर पाने के लिए भी राजनीतिक कृपा को आवश्यक कहा था. फिर सरकारी नौकरी में छोटे-बड़े सभी पदाधिकारियों-कर्मचारियों बदली होती रहती है.

कभी-कभी तो देश के एक भाग से देश के दूसरे भाग तक जाना पड़ता है. जो पदाधिकारी नेताओं के अतरंग नहीं होते हैं, उनकी तो कुछ ज्यादा ही बदली होती है. यह बदली शहर-विभाग दोनों की हो सकती है. बल्कि नियम कुछ ऐसा है कि अधिक प्रतिभाशाली व्यक्ति को अधिक अनाकर्षक काम दिया जाये. इससे ये पदाधिकारी तथा इनका परिवार काफी कुंठा तथा कष्ट उठाता है.

यदि इनके परिवार के सदस्य स्वयं भी कुछ काम करना चाहते हैं या उच्च स्तर की अच्छी पढ़ाई करना चाहते हैं, कला, कौशल, संगीत, पेंटिंग तथा खेल जैसे टेनिस, गोल्फ, हॉकी, तैराकी आदि सीखना चाहते हैं, तो अभी भी भारत के अनेक हिस्सों में ये सुविधाएं उपल्ब्ध नहीं हैं. तथा इनके परिवार के इन इच्छुक सदस्यों को या तो बाहर जाना पड़ता है अथवा इन अवसरों से वंचित रह जाना पड़ता हैं.

यह सत्य है कि भारत सरकार की इन ऊंचे पदों वाली नौकरियों में नौकरी की पूरी अवधि में प्राय: तीन वर्षों का अध्ययनावकाश मिलने का भी प्रावधान है. इन तीन वर्षों का अनेक आइएएस तथा आइपीएस पदाधिकारी अनेक प्रकार से उपयोग करते हैं.

कुछ लोग देश-विदेश में अध्ययन करते भी हैं, तथा पीएचडी आदि की उपाधि अजिर्त करते हैं. परंतु इन बड़े पदाधिकारियों में अधिकांश को अध्ययन का अभ्यास कुछ इस तरह छूट गया होता है कि अध्ययन-अवकाश के इस प्रावधान का उनके लिए कोई मतलब नहीं रह जाता.
लगभग ऐसी ही स्थिति चिकित्सा सुविधा की भी है. सैद्धांतिक रूप से चिकित्सा देश में कहीं भी हो सकती है. परंतु कुछ ही शहरों में ऐसे अस्पताल हैं, जहां मनोनुकूल चिकित्सा के लिए ये पदाधिकारी तथा इनके सगे-संबंधी वस्तुत: जाते हैं. ऐसी स्थिति में भी इन्हें अपने सगे-संबंधियों से अलग होना पड़ता है.

- वक्त के साथ बदली हैसियत

सबसे पहले हम आज के आइएएस अधिकारी के अधिकारों वाले सामाजिक छवि को जांचें. किसी जमाने में सारे भारत में आइसीएस एवं उसका उत्तराधिकारी आइएएस अधिकारी अनेक विषयों में स्वतंत्र निर्णय करता था.

किरानी-चपरासी की नौकरी, पुलिस में लगभग दरोगा के स्तर तक की नौकरी वह इच्छानुसार दिला सकता था, दिला देता था. परंतु अब वह खुद का अपना भी ड्राइवर अपनी मर्जी से नहीं चुन सकता है.

उसके कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप इतना अधिक है कि जो कार्य स्वयं उसके अपने कार्यक्षेत्र (जुरिस्डिक्शन) में है, वहां भी उसे छोटे-बड़े मंत्री , नेता -अभिनेता की सिफारिशें सुननी पड़ती हैं. कुछेक बार. और ऐसा सिर्फ बिहार में नहीं हुआ है.

आइएएस अधिकारी स्वयं बुरी तरह इन नेताओं के द्वारा अपने ही कार्यस्थल पर अपमानित हुआ है. फिर भी यह अफसर इन नेताओं को कोई दंड नहीं दे पाया है. इन नेताओं की लंबी सूची है. सरकार के उच्च अधिकारी भी अब मात्र अतिप्रतिष्ठित बाबू भर रह गये है. विधिवत एवं वस्तुत: सत्ता अब नेताओं के पास है.

( प्रोफेसर, मानविकी एवं समाज विज्ञान विभाग, आइआइटी मद्रास )

Source :: Prabhat Khabar
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum
abhisays is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 11:35 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.