10-12-2010, 03:46 PM | #81 |
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Re: ~ अनमोल मोती ~
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15-12-2010, 03:08 PM | #82 |
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Re: ~ अनमोल मोती ~
परहित सरिस धरम नहीं भाई
परपीड़ा सम नहीं अधमाई दुसरो की सेवा और उनका हित करने के सामान कोई धर्म नहीं हैं दुसरो को पीड़ा पहुचने के सामान कोई अधर्म नहीं हैं |
15-12-2010, 03:12 PM | #83 |
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Re: ~ अनमोल मोती ~
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22-12-2010, 10:03 AM | #85 |
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Re: ~ अनमोल मोती ~
चिंता से चतुराई घटे दुःख: से घटे शरीर
और पाप से घटे लक्ष्मी कह गए दास कबीर कबीर दास जी कह गए हैं कि व्यर्थ कि चिंता से बुद्धि को और व्यर्थ के दुःख से शरीर को हानि पहुचती हैं और पाप कर्म से धन वैभव का नाश होता हैं तो मनुष्यों को इन तीनो को अपने जीवन से दूर रखना चाहिए
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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27-12-2010, 09:18 PM | #86 |
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Re: ~ अनमोल मोती ~
वाह वाह क्या बात है
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ईश्वर का दिया कभी 'अल्प' नहीं होता,जो टूट जाये वो 'संकल्प' नहीं होता,हार को लक्ष्य से दूर ही रखना,क्यूंकि जीत का कोई 'विकल्प' नहीं होता. |
29-12-2010, 12:35 PM | #88 |
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Re: ~ अनमोल मोती ~
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥ अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन। पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥ |
25-01-2011, 01:44 PM | #89 |
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Re: ~ अनमोल मोती ~
भक्त्ति को कितना भी छुपाओ,
परन्तु उसकी सुगन्ध तो फैलती है ! भक्त्ति की सुगन्ध वासनाओं की दुर्गन्ध को एक एक कर के ख़तम कर देती है !
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25-01-2011, 02:57 PM | #90 |
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Re: ~ अनमोल मोती ~
सूर्यं कभी नही पूछता कि अन्धकार कितना पुराना है !
अन्धकार आज का है या वर्षो पुराना है ? सूर्य की किरणे तो अंधकार के पास पहुँचते ही उसे मिटा देती है ! ऐसे ही प्रभु की कृपा कभी यह नही पूछती कि सामने बाला कितना बड़ा पापी है ! प्रभु की कृपा होते ही जीव के समस्त पाप व् कष्ट मिट जाते है !
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