17-04-2013, 09:22 PM | #41 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
लता जी को आज भी याद है कि फिल्म ‘अंदाज़’ के गीत ‘उठाये जा उनके सितम और जिए जा’ की रिकार्डिंग के अवसर पर नर्गिस, राज कपूर और दिलीप कुमार भी मौजूद थे.वह बताती हैं, “रिकार्डिंग के बाद राज कपूर जी ने मुझे बुलाने के लिए एक नौजवान को हमारे घर भेजा. उस स्वस्थ और सुन्दर युवक को देख कर मैंने अपनी बहन स कहा ‘मीना, देख तो आर.के.स्टूडियो का यह संदेशवाहक भी अपने मालिक की भाँति ही हीरो मालूम होता है.’ लता जी जब राज कपूर के चेम्बूर कार्यालय में पहुंची तो उनका परिचय उस सुन्दर संदेशवाहक से करवाया गया. वह और कोई नहीं ‘जय किशन’ थे – फिल्म ‘बरसात’ की संगीत-निर्देशक जोड़ी ‘शंकर-जयकिशन’ में से एक. लता जी उनके बारे में बताती हैं, “शंकर-जयकिशन के संगीत में एक ताजगी थी. यद्यपि उनमे अनिल बिस्वास तथा नौशाद जैसी शास्त्रीय परिपक्वता नहीं थी, लेकिन उन्हें अपनी धुनों को जानते थे, वे गायकी में ताल की महत्ता से वाकिफ थे और ओर्केस्ट्रा संयोजन का उनका अलग ही स्टाइल था. |
17-04-2013, 09:27 PM | #42 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
1949 में उनके गाये हुए गीत ज़बरदस्त रूप से कामयाब हुए. यह गीत फिल्म ‘बरसात’ ‘अंदाज़’ ‘बड़ी बहन’ ‘बाज़ार’ और ‘लाहौर’ से थे. लता जी बताती हैं कि फिल्म ‘महल’ के उस ऐतिहासिक गीत ‘आएगा आने वाला’ की रिकार्डिंग बहुत बड़े रिकार्डिंग स्टूडियो में की गई थी जिसके बीचो-बीच माईक रखा गया था और लता जी को एक कोने में खड़ा कर दिया गया. फिर गाने का आलाप (खामोश है ज़माना, चुप-चाप हैं सितारे) गाते हुए से उन्हें धीरे धीरे माइक की ओर आना था. इस प्रकार गाने में ऐसा प्रभाव’ पैदा किया गया जैसे कोई चलते हुए गीत को गा रहा हो.
लता जी बड़ी विनम्रता से यह स्वीकार करती हैं कि संगीतकार अनिल बिस्वास ने ही उन्हें यह बताया कि गाते हुए श्वाँस कब अन्दर लेना है और कब बाहर छोड़ना है. उन्होंने ही यह भी बताया कि गाते हुए बीच में कब रुकना है तथा गानों में ताल और काल का सही संतुलन कैसे बनाए. उनके गीत ‘आँखों से दूर जाके’ ‘जाना न दिल से दूर’ ‘कहाँ तक हम उठायें ग़म’ मेरा नरम करेजवा डोल गया’ इसी बात की निशानदेही करते हैं. लता जी अपनी गायकी में संगीतकार सज्जाद हुसैन की देन को याद करते हुए बताती हैं कि सज्जाद ने ही उनकी आवाज़ को एक पैनापन दिया. सज्जाद हुसैन छोटी से छोटी बात का भी पूरा ध्यान रखते थे और 100% लगन से काम करते थे. लता जी धीमे स्वरों में आलाप की प्रभावशाली अदायगी दे पाने की अपनी क्षमता के लिए भी उन्हें ही श्रेय देती हैं. लता जी मानती हैं कि संगीत-निर्देशक सचिन देव बर्मन को लोक गीतों की गहरी जानकारी व पकड़ थी. वह किसी गीत की सिचुएशन को समझने में विशेष महारथ रखते थे जिसमें गाना प्रस्तुत किया जाने वाला है. क्योंकि वो स्वयं एक अच्छे गायक थे इसलिए वे लता जी को बखूबी समझा सकते थे कि वे किसी अमुक गीत को उनसे कैसा गवाना चाहते है. “फिल्म ‘हाऊस नं. 44’ के जाने माने गीत ‘फैली हुयी हैं सपनों की बाहें, आजा चल दें कहीं दूर’ की सफल गायकी व रिकार्डिंग के बाद बर्मन दा इतने खुश थे कि उन्होंने मुझे एक पान भेंट किया जिसमें उनकी शाबाशी छुपी थी.” |
20-04-2013, 08:02 AM | #43 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
जयदेव लम्बे समय तक एस.डी.बर्मन के सहायक के तौर पर काम कर चुके थे. उन्हें शास्त्रीय संगीत की अच्छी समझ थी. स्वतंत्र संगीत निर्देशक की हैसियत से देखे तो ‘हम दोनों’ उनके पहली फिल्म थी. पूर्व में लता जी और जयदेव का किसी बात को लेकर विवाद हो चुका था, अतः लता ने इस फिल्म में गाना गाने से मन कर दिया. तब देव आनंद ने लता से कहा कि यदि वे इस फिल्म में नहीं गायेंगी तो हो सकता है उन्हें जयदेव की जगह किसी और से काम करवाना पड़े. इस पर लता गाने के लिए सहमत हो गयीं. इस फिल्म में लता द्वारा गाये दोनों भजन ‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम’ और ‘प्रभु तेरो नाम, जो ध्याये फल पाए, सुख लाये तेरो नाम’ अप्रतिभ हैं तथा अपनी श्रेष्ठता व मिठास के कारण आज भी सुनने वालों को भक्तिभाव में भिगो देते हैं. |
20-04-2013, 08:04 AM | #44 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
मदन मोहन की संगीत के प्रति प्रतिबद्धता के बारे लता जी बताती है कि मदन मोहन को खुश करना बड़ा विकट होता था. उनसे जुड़े एक प्रसंग का ज़िक्र करते हुए वह बताती हैं कि “फिल्म ‘मेरा साया’ के एक गीत ‘नैनो में बदरा छाये’ की रिकार्डिंग के अवसर पर मैं माइक पर रिहर्सल कर रही थी. मदन भैया ने देखा कि कुछ वादक कलाकार बेसुरे हो रहे हैं. उन्हें गुस्सा आ गया. वे तेजी से उन की ओर लपके बीच में एक दरवाजा था. दरवाजा खोने के बजाय उनका हाथ दरवाजे के शीशे से टकराया. हाथ बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया और उसमे से खून निकलना शुरू हो गया मगर वो फिर भी कहते जा रहे थे, “बेसुरे बजाते हो, सुर के साथ बे-ईमानी करते हो, शर्म नहीं आती तुमको?” लता जी बड़े क्षोभ से बताती हैं कि महान संगीतकार मदन मोहन को अपने जीवनकाल में उस प्रकार की मान्यता नहीं मिल पायी जिसके वो हकदार थे. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वे खेमेबाजी में यकीन नहीं रखते थे.
लता जी संगीत निर्देशक चित्रगुप्त के बारे में एक रोचक घटना को याद करते हुए बताती हैं कि एक दफ़ा वह उनके साथ एक गाना रिकॉर्ड कर रही थीं कि उनकी नज़र चित्रगुप्त की टूटी हुयी चप्पल पर पड़ गई. लता जी ने उनका ध्यान इस ओर दिलाया तो वे कहने लगे कि मैं इस चप्पल को नहीं बदल सकता क्योंकि रिकार्डिंग के समय यह बड़ी शुभ रहती है. लता जी ने हंस कर चिरागुप्त जी से कहा, “क्यों चित्रगुप्त जी, आपको अपनी चप्पल पर इतना विश्वास है, हमारे गाने पर नहीं?” (चित्रगुप्त जी फिल्मों में गीत भी गाते थे. गीत के गायक कलाकार के रूप में वह अपना नाम चितलकर उपयोग में लाते थे) Last edited by rajnish manga; 20-04-2013 at 09:17 AM. |
21-04-2013, 11:18 PM | #45 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
संगीत निर्देशक रोशन और लता मंगेशकर के मध्य बहुत मधुर सम्बन्ध रहे. जब रोशन बम्बई आये तो उन्होंने रहने के लिए एक गैराज किराए पर लिया जो लता जी के घर के पास ही था. रोशन के पुत्र राकेश रोशन का जन्म इस गैराज में ही हुआ था. रोशन के संगीत निर्देशन में लता जी के गाये निम्नलिखित गीत लता जी के दिल के बहुत नज़दीक रहे हैं:
1. ऐ री मैं तो प्रेम दिवानी मेरा दरद न जाने कोय 2. रहें न रहें हम महका करेंगे 3. रहते थे कभी जिनके दिल में |
21-04-2013, 11:19 PM | #46 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का नाम आते ही लता जी को वह दिन याद आ जाता है जब वे उनके पास गाना गाने के लिए पहली बार आये थे. वह अपने साथ रू 101/- का चैक मुझे देने के लिए लाये थे. लता जी उस गीत को याद करते हुए बताती हैं कि गाना इतना अच्छा था कि यदि वे मुझे रू 1/- भी देते तो भी मुझे बड़ी ख़ुशी होती (उन्होंने 1963 से 1998 तक लगभग 635 फिल्मों में संगीत दिया था. उनकी पहली प्रदर्शित फिल्म ‘पारसमणि’ थी).
जानकार लोग बताते है कि लता जी ने सबसे अधिक गीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए गाये (700 से अधिक) और सबसे अधिक वेरायटी भी उन्हीं के संगीत बद्ध किये गए गीतों में आ सकी. इन यादगार गीतों में ‘मा मुझे अपने आँचल में छुपा ले’ से ले कर फिल्म ‘इन्तक़ाम’ में हैलन पर फिल्माए केबरे गीत ‘आ जाने जां’ तक को ले सकते हैं. उनके सभी गीतों में लता जी को अपनी गायन प्रतिभा का खुल कर प्रदर्शन करने का मौका मिला. |
21-04-2013, 11:22 PM | #47 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
आर.डी.बर्मन ने स्वतंत्र संगीत निर्देशक के तौर पर सब से पहले नाज़िर हुसैन की फिल्म ‘बहारों के सपने’ से पहचान मिली. उन्होंने ही सबसे पहले ‘ओवर-लेपिंग ट्रैक्स’ के विचार की शुरुआत की. लता जी बताती हैं कि वह संगीतकारों के साथ मेरी रिकार्डिंग करते थे और फिर संगीतकारों को भेज देते थे. उसके बाद वह मुझसे ‘हैड फोन पर रिकॉर्ड किया हुआ गीत सुनने के लिए बोलते और तब मुझसे ‘ओवर-लैपिंग’ गीत गवाते. आर.डी.बर्मन जीवन भर इस प्रकार के बहुत से प्रयोग करते रहे. खैय्याम के बारे में बात करते हुए लता जी बताती हैं कि वे पूरे तौर पर एक पूर्णतावादी थे. उनका एक विशेष स्टाइल था और उनके गीतों में एक ख़ास बात होती थी जिसकी वजह से उनके गीत अलग से पहचाने जा सकते थे. |
24-04-2013, 11:39 PM | #48 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
नौशाद के बारे में लता जी बताती हैं कि वे हर गाने पर बहुत मेहनत करते थे और 10 से 15 दिन तक रिहर्सल करवाते थे. उसके बाद भी कई टेक और री-टेक करवाए आते. नौशाद ने एक बार बताया कि फिल्म ‘अमर’ में जब वे लता जी से ‘मेरे सदके बालम ...’ गीत रिकॉर्ड करवा रहे थे तो एक मुरकी में वह प्रभाव नहीं आ रहा था जो वो चाहते थे. 18 री-टेक के बाद लता जी रिकॉर्डिंग रूम में ही अचेत हो कर गिर पड़ीं. होश आने पर लता जी ने दोबारा गाया तो फिर गीत ओ.के. हुआ.
संगीत निर्देशक गुलाम मोहम्मद के बारे में लता जी बताती हैं कि वह हमेशा कुछ नया और ताजगी भरा संगीत देने की कोशिश करते थे. यही कारण है कि आज भी उनके स्वरबद्ध गीत संगीत प्रेमियों के कानों में गूंजते रहते हैं. उनकी रचनाओं में शास्त्रीय और लोक संगीत का ज़बरदस्त तालमेल देखने को मिलता है. फिल्म ‘पाकीज़ा’ के उनके गीतों ने फिल्म के रिलीज़ होने पर जैसे एक सनसनी पैदा कर दी थी. ये गीत आज भी अपने बोलों और संगीत के कारण दिलो दिमाग़ पर वही असर डालते हैं. नए संगीतकारों जैसे ए.आर.रहमान और विशाल भारद्वाज आदि ने भी लता जी की आवाज से मेल खाने वाले कुछ गीत उनसे गवाए हैं. उम्र के इस मोड़ पर लता जी पार्श्वगायन से लगभग अलग हो चुकी हैं लेकिन संगीत से नहीं. उनका रियाज़ बदस्तूर जारी है. हम कह सके हैं कि लता जी द्वारा गाये हज़ारों गीत संगीत सुनने वालों पर अपना जादू बरसाते रहेंगे और उन्हें मदहोश करते रहेंगे. ***** |
24-04-2013, 11:44 PM | #49 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
हिंदी फिल्मों की मशहूर नृत्यांगना 'कुक्कू' Last edited by rajnish manga; 24-04-2013 at 11:49 PM. |
24-04-2013, 11:51 PM | #50 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
बीते हुए कल की लोकप्रिय तारिका-नर्तकी कुक्कू
एक बाल कलाकार के रूप में 1940 में हिंदी फिल्मों में प्रवेश करने वाली नर्तकी - अभिनेत्री कुक्कू को अपने समय में शोहरत और पैसा खूब मिला. 1940 के दशक में उनके नृत्य गीतों की बहुत मांग थी. वे उन दिनों एक एक गीत का पांच हजार रूपए पारिश्रमिक लिया करती थीं जो उस वक्त एक बड़ी रकम समझी जाती थी. बतौर बाल कलाकार उनकी पहली फिल्म थी ‘लक्ष्मी’ जो 1940 में प्रदशित हुयी. एंग्लो-इंडियन पृष्ठभूमि से आई कुक्कू के नृत्यों के तो दर्शक दीवाने थे. कहा जाता है कि दर्शक उनके नृत्य पर खुश हो कर तालियाँ ही नहीं मारते थे, बल्कि परदे पर पैसे भी फेंकते थे. ‘सोना चाँदी’ जैसी कुछ फिल्मों में कुक्कू को नायिका के तौर पर भी पेश किया गया लेकिन वह मूलतः नर्तकी के रोल में ही अपने को संतुष्ट समझती थीं. दर्शकों ने भी नर्तकी के रूप में उनको बहुत प्यार दिया. उस ज़माने में कुक्कू का खार जैसे इलाके में अपना बंगला था. उनके पास अपनी कई कारें थीं. वह अपने पति विभूति मित्रा के साथ सुख पूर्वक रहती थीं किन्तु आयकर विभाग के प्रति अपनी देनदारियों के चलते तथा बीमारी के कारण उनका आख़िरी समय बड़े कष्ट और अभाव में व्यतीत हुआ. कैंसर से जूझती हुयी, 1928 में जन्मी यह लोकप्रिय अदाकारा दिनांक 30 सितम्बर 1981 को इस दुनिया को अलविदा कह गयीं. आज भी दर्शक हिंदी सिनेमा में नृत्य की मलिका और रबड़ की गुड़िया के नाम से जानी जाने वाली इस नृत्यांगना के नृत्य को भूल नहीं पाए जैसे: 1. तू कहे अगर ... (फिल्म: अंदाज़) 2. पतली कमर है ... (फिल्म: बरसात) अपने फ़िल्मी जीवन में कुक्कू ने लगभग 170 फिल्मों में काम किया था. उनकी कुछ मशहूर फिल्मों का नाम इस प्रकार है: अनोखी अदा (1948) अंदाज़, बरसात (1949) बावरे नैन (1950) आवारा (1951) आन (1952) बरादरी, मि. एण्ड मिसेज़ 55 (1955) चलती का नाम गाड़ी, फागुन, यहूदी (1958) मुझे जीने दो (1963) आदि. ***** Last edited by rajnish manga; 24-04-2013 at 11:55 PM. |
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