05-02-2017, 12:58 PM | #81 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (5 फ़रवरी)
चौरी चौरा विद्रोह / Chauri Chaura Vidroh दिनांक 5 फरवरी 1922 का चौरी चौरा (जिला गोरखपुर, उत्तर प्रदेश) का विद्रोह, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वह अभूतपूर्व घटना है, जिसने सत्याग्रह आन्दोलन के दूसरे चरण में किसान विद्रोह के क्रांतिकारी पक्ष को उभारा. इस विद्रोह में चौरी चौरा थाने को आग लगा दी गई थी जिसमें 23 पुलिस कर्मियों को ज़िन्दा जला दिया गया था. यह किसानों पर किये गए अत्याचारों पर उनकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी जिसे गुंडागर्दी या अपराध समझने की प्रवृत्ति, ज़मींदारी और ताल्लुक्दारी व्यवस्था व संस्कृति का ही एक षड़यंत्र थी. इस काण्ड के लिये परोक्ष रूप से स्थानीय ज़मींदार और उनका संरक्षक सब-इंस्पेक्टर गुप्तेश्वर सिंह ज़िम्मेदार था जो खुद इसी सामन्ती तबके से आता था. ग्रामीण जनता इन ज़मींदारों द्वारा मनमाना लगान वसूले जाने के शोषण से पहले ही तंग आ चुकी थी. इस स्थिति ने चिंगारी का काम किया. दरअसल, इस घटना से कुछ दिन पहले यानी 1 फरवरी को एक ऐसी घटना हुयी जिसने निरीह किसानों को विद्रोह के लिये मजबूर कर दिया. उस दिन बिशुनपुरा जागीर के कारिंदों के उकसाने पर एस आई गुप्तेश्वर सिंह ने अकारण भगवान अहीर की मार मार कर चमड़ी उधेड़ दी थी. 4 फरवरी को जब किसान अपने साथी को अकारण पीटे जाने का कारण पूछने थाने पर गए तो एस आई को यह नागवार लगा और उसने किसानों के जलूस पर पहले लाठी चार्ज किया और एकाएक गोली चलाने का आदेश दे दिया. एक वर्ष पूर्व (सन 1921 में) गांधी जी यहाँ लोगों में आज़ादी का शंखनाद फूंक गए थे. चौरी चौरा की गरीब जनता ने असहयोग आन्दोलन में अपने को एकजुट किया. स्वराज उनका मंत्र था और आज़ादी उनका लक्ष्य- चाहे किसी भी तरीके से मिले. अतः यह उनकी आकांक्षा का विद्रोह था. ग्रामीण आबादी के लिये ब्रिटिश सत्ता का सबसे नज़दीकी केंद्र पुलिस का थाना ही था जहां वे अपना विद्रोह जता सकते थे. करीब 60 गाँवों के स्वयं सेवकों का संगठन इसमें शामिल हुआ. विद्रोहियों पर मुकद्दमा चला और 9 जनवरी सन 1923 को सेशन कोर्ट ने 172 किसानों को फाँसी की सजा सुना दी. इससे सारे भारत में उबाल आ गया. बाद में हाई कोर्ट में इसके विरुद्ध अपील की गई और लंबी सुनवाई के बाद बहुत से लोगों को बरी कर दिया गया, कईयों की सजाएं कम की गई और 19 लोगों को फाँसी की सजा बहाल रखी गई. 2 जुलाई 1923 से 11 जुलाई के बीच इन बहादुर विद्रोहियों को फाँसी दे दी गई. इन सभी शहीदों को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि.
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23-02-2017, 11:01 PM | #82 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (8 फ़रवरी)
डॉ ज़ाकिर हुसैन / ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह / निदा फ़ाज़ली / जुल्स वर्न
Dr Zakir Husain / Singer Jagjit Singh / Nida Fazli / Jules Verne ^ ^
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23-02-2017, 11:08 PM | #83 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (10 फ़रवरी)
सुदामा पाण्डेय धूमिल / Sudama Pandey Dhumil
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23-02-2017, 11:14 PM | #84 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (10 फ़रवरी)
सुदामा पाण्डेय धूमिल / Sudama Pandey Dhumil
9 नवंबर 1936 को बनारस के खेवली गांव में जन्मे स्व. सुदामा पाण्डेय की प्रारंभिक शिक्षा गांव की प्राथमिक पाठशाला में हुई। 1953 में उन्होंने हाई स्कूल किया लेकिन घर की आर्थिक दशा ठीक न होने के कारण वे आगे न पढ़ सके। भटकने के बाद पहले मजदूरी और बाद में एक नौकरी मिली। यहाँ कुछ समय बाद मालिक से कहा सुनी हो गईl इसके बाद सरकारी नौकरी भी मिली लेकिन अपनी साफ़गोई के कारण उसमें लाभ कम, मानसिक यंत्रणा अधिक रहीl पहले अभावों तथा बाद के चुनौतीपूर्ण परिवेश ने उनकी कविता को उसका तीखापन व आकार दियाl हिन्दी साहित्य की साठोत्तरी कविता के शलाका पुरुष स्व. सुदामा पाण्डेय धूमिल अपने बागी तेवर व समग्र उष्मा के सहारे संबोधन की मुद्रा में ललकारते दिखते उन्होंने वंचित लोगों को जुबान दी। कालांतर में यही बुलन्द व खनकदार आवाज जन-जन की जुबान बन गई। उन्हें यदि जनकवि कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगीl उनके चार काव्य संग्रह प्रकाशित हुये.- एक उनके जीवन काल में, तीन मरणोपरांत l उनके पहले काव्य संग्रह ‘संसद से सड़क तक’ की कवितायें भय, भूख, अकाल, सत्तालोलुपता, अकर्मण्यता और अन्तहीन भटकाव को रेखांकित करती हैंl ये आक्रामक तेवर की कवितायें हैं तथा अपने में बेजोड हैं। ये कवितायें ही हिंदी साहित्य में धूमिल के नाम को सदा के लिये अंकित कर देने में सक्षम हैl 10 फ़रवरी सन 1975 को मात्र उनतालिस वर्ष की छोटी आयु में ही वे ब्रेन ट्यूमर की वजह से मृत्यु को प्राप्त हुये।
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23-02-2017, 11:18 PM | #85 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
कविता: मोचीराम (एक अंश)
सुदामा पाण्डेय धूमिल राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझे क्षण-भर टटोला और फिर जैसे पतियाये हुए स्वर में वह हँसते हुए बोला- बाबू जी सच कहूँ-मेरी निगाह में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है मेरे लिए, हर आदमी एक जोड़ी जूता है जो मेरे सामने मरम्मत के लिए खड़ा है। और असल बात तो यह है कि वह चाहे जो है जैसा है, जहाँ कहीं है आजकल कोई आदमी जूते की नाप से बाहर नहीं है .... असल में वह एक दिलचस्प ग़लतफ़हमी का शिकार है जो वह सोचता कि पेशा एक जाति है और भाषा पर आदमी का नहीं, किसी जाति का अधिकार है जबकि असलियत है यह है कि आग सबको जलाती है सच्चाई सबसे होकर गुज़रती है कुछ हैं जिन्हें शब्द मिल चुके हैं कुछ हैं जो अक्षरों के आगे अंधे हैं वे हर अन्याय को चुपचाप सहते हैं और पेट की आग से डरते हैं जबकि मैं जानता हूँ कि 'इन्कार से भरी हुई एक चीख़' और 'एक समझदार चुप' दोनों का मतलब एक है- भविष्य गढ़ने में, 'चुप' और 'चीख' अपनी-अपनी जगह एक ही किस्म से अपना-अपना फ़र्ज अदा करते हैं।
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24-02-2017, 05:12 PM | #86 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (11 फ़रवरी)
पं. नरेन्द्र शर्मा / Pt Narendra Sharma
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24-02-2017, 05:15 PM | #87 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (11 फ़रवरी)
पं. नरेन्द्र शर्मा / Pt Narendra Sharma
फिल्म सत्यम शिवम् सुन्दरम् (1978) के गीत ‘सत्यम शिवम् सुन्दरम’ और ‘जसुमति मैया से बोले नंदलाला’ आप सभी ने सुने होंगे। इनके गीतकार पं. नरेंद्र शर्मा का जन्म जिला बुलंदशहर की तहसील खुर्जा के एक गांव में हुआ था. उनके पिता पटवारी थे. उन्होंने 1936 में इलाहाबाद से एम ए इंगलिश में किया. और वे कांग्रेस से जुड़ गए. 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो के आन्दोलन के दौरान उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें महाराष्ट्र के देवलाली में नज़रबंद किया गया. वहाँ से छूटने के बाद वे मुंबई आ गए । भगवती चरण वर्मा की कोशिश से पं. नरेन्द्र शर्मा बंबई टाकीज़ से जुड़ गए । वर्मा जी खुद उन दिनों बंबई टॉकीज में ही काम करते थे। 1943 में आई फिल्म ‘हमारी बात’ ही नरेंद्र शर्मा की पहली फिल्म मानी जाती है। हमारी बात में नौ गीत थे और सब नरेंद्र शर्मा ने ही लिखे थे। एक जनवरी 1943 को रिलीज की गई यह अकेली फिल्म पंडितजी की बहुमुखी प्रतिभा की झलक दिखाने के लिए काफी है। अनिल बिस्वास इसके संगीत निर्देशक थे। वे (पं. नरेन्द्र शर्मा) 40 वर्षों तक फिल्मों से जुड़े रहे। आधुनिक युग में उनसे अच्छे दोहे शायद ही किसी ने लिखे हों। यही कारण है कि जब बी.आर. चोपड़ा ने ‘महाभारत’ सीरियल बनाया और उसके लेखन का जिम्मा हिंदी के बड़े उपन्यासकार राही मासूम रजा को सौंपा तो रजा ने दोहे लिखवाने के लिए नरेंद्र शर्मा का नाम ही सुझाया। पं. नरेन्द्र शर्मा जी काफी समय तक विविध भारती के प्रधान नियोजक भी रहे. प्रसारित होने वाले गीतों के स्तर पर उन्होंने बड़ा ध्यान दिया था। रेडियो सुनने वाला अपने घर में बैठा हुआ सुनता है। वह शायद ही पसंद करे कि उसका घर सिनेमाघर, अजायबघर, कैबरे या नाइट-क्लब बन जाये। पंडित नरेन्द्र शर्मा ने हिन्दी-फ़िल्मों के लिये बहुत से गीत लिखे। उनके 17 कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक जीवनी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं 1932 से प्रकाशित होने लगी थीं 1934 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘शूल फूल’ प्रकाशित हुआ था। फिल्मों में आने के बाद भी उनकी साहित्य सेवा अनवरत चलती रही। शूल-फूल (1934), कर्ण-फूल (1936), प्रभात-फेरी (1938), प्रवासी के गीत (1939), कामिनी (1943), मिट्टी और फूल (1943), पलाश-वन (1943), हंस माला (1946), रक्तचंदन (1949), अग्निशस्य (1950), कदली-वन (1953), द्रौपदी (1960), प्यासा-निर्झर (1964), उत्तर जय (1965), बहुत रात गये (1967), सुवर्णा (1971), सुवीरा (1973) पंडित नरेन्द्र शर्मा ने हिन्दी-फ़िल्मों के लिये बहुत से गीत लिखे। उनके 17 कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक जीवनी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं 1932 से प्रकाशित होने लगी थीं.
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24-02-2017, 05:18 PM | #88 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (11 फ़रवरी)
पं. नरेन्द्र शर्मा / Pt Narendra Sharma गीत: युग और मैं (एक अंश )उजड़ रहीं अनगिनत बस्तियाँ, मन, मेरी ही बस्ती क्या! धब्बों से मिट रहे देश जब, तो मेरी ही हस्ती क्या! जाने कब तक घाव भरेंगे इस घायल मानवता के? जाने कब तक सच्चे होंगे सपने सब की समता के? सब दुनिया पर व्यथा पड़ी है, मेरी ही क्या बड़ी व्यथा! रीतबदल है त्योहारों में, घर फुकते दीवाली से, फाग ख़ून की, है गुलाल भी लाल लहू की लाली से! दुनिया भर में ख़ूनख़राबी, आँख लहू रोई तो क्या? बदल रहे सब नियम-क़ायदे, देखें दुनिया कब बदले! मानव ने नवयुग माँगा है अपने लोहू के बदले! बदले का बर्ताव न बदला, तुम बदले तो रोना क्या! हाथ बने किसलिए? करेंगे भू पर मनुज स्वर्ग निर्माण! बुद्धि हुई किसलिए? कि डाले मानव जग-जड़ता में प्राण! आज हुआ सबका उलटा रुख़, मेरा उलटा पासा क्या!
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24-02-2017, 06:25 PM | #89 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (12 फ़रवरी)
प्राण / pran
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24-02-2017, 06:37 PM | #90 |
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Re: और आज की हमारी शख्सियत हैं
और आज की हमारी शख्सियत हैं (12 फ़रवरी)
प्राण (वास्तविक नाम प्राण कृष्ण सकिंद) / Pran
जन्म: 12 फरवरी 1920 मृत्यु: 12 जुलाई 2013 हिन्दी फिल्मों के जाने-माने अभिनेता प्राण का जिक्र आते ही आंखों के सामने एक ऐसा भावप्रवण चेहरा आ जाता है जो अपने हर किरदार में जान डालते हुए यह अहसास करा जाता है कि उसके बिना यह किरदार अर्थहीन हो जाता. हिन्दी फिल्मों के एक लोकप्रिय खलनायक और शानदार चरित्र अभिनेता प्राण की संवाद अदायगी की विशिष्ट शैली आज भी लोग नहीं भूले हैं. उनकी अदाकारी में दोहराव कहीं नजर नहीं आता. भूमिका चाहे मामूली लुटेरे की हो या किसी बड़े गिरोह के मुखिया की हो या फिर कोई लाचार पिता हो, प्राण ने सभी के साथ न्याय किया है. कुछ फिल्में ऐसी भी हैं जिनमें नायक पर खलनायक प्राण भारी पड़ गए. पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में 12 फरवरी 1920 को जन्मे प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सकिंद है. पिता की तबादले वाली नौकरी के चलते प्राण कई शहरों में रहे. लाहौर में गणित विषय के मेधावी छात्र रहे प्राण की अभिनय यात्रा 1940 में पंजाबी फिल्म ‘यमला जट’ से शुरू हुई. यह फिल्म उस साल की सुपरहिट फिल्म रही. इसके बाद प्राण ने ‘चौधरी’ और फिर ‘खजांची’ में काम किया. प्राण ने कभी अभिनय का प्रशिक्षण नहीं लिया. वह उस दौर के कलाकार हैं जब अभिनय प्रशिक्षण केंद्रों का देश में नामोनिशान तक नहीं था. लेकिन उन्हें अभिनय की चलती फिरती पाठशाला कहा जा सकता है. तुमसा नहीं देखा, बड़ी बहन, मुनीम जी, पत्थर के सनम, गंवार, गोपी, हमजोली, दस नंबरी, अमर अकबर एंथनी, दोस्ताना, कर्ज, अंधा कानून, पाप की दुनिया, मृत्युदाता करीब 350 से अधिक फिल्मों में अभिनय के अलग अलग रंग बिखेरने वाले प्राण कई सामाजिक संगठनों से जुड़े रहे.
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