14-09-2014, 10:19 PM | #1 |
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ऐसा देस हो मेरा
ऐसा देस हो मेरा
हमारे धर्म अलग हैं , जाति अलग हैं , भाषा अलग हैं , वेश-भूषा अलग़ हैं , पर फिर भी हम एक हैं , क्यूंकि हम सब इन सभी विभिन्नताओं के बावजूद एक नाम से जाने जाते हैं - "भारतीय" . Last edited by Pavitra; 14-09-2014 at 10:22 PM. |
14-09-2014, 10:29 PM | #2 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
हम चाहते हैं कि हम प्रगति करें , परन्तु हमारी प्रगति से पहले हम चाहते हैं कि हमारा देश प्रगति करे।
हम सभी अपने देश को विकसित होते देखना चाहते हैं। और हमेशा यही सोचते हैं कि हमारा भारत कैसा हो ? ये सूत्र मैंने ऐसे ही देश प्रेमी बुद्धिजीवी लोगों के लिए शुरू किया है , जहाँ हम अपने सपनों के भारत की तस्वीर बना सकें। और कैसे अपने देश को सर्वश्रेष्ठ बनाएं इस पर विचार कर सकें। |
14-09-2014, 10:49 PM | #3 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
किसी भी देश की प्रगति उस देश के देशवासियों से जुडी होती है , तो सबसे पहले जो चीज़ आवश्यक है वो ये कि हमारे सभी देशवासी प्रगति करें , यानि सबका विकास हो। सबका विकास तभी होगा जब सबके पास रोज़गार होगा। क्यूंकि जब रोज़गार होगा तभी लोगों के पास धन होगा , और लोगों का जीवन स्तर सुधर सकेगा।
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14-09-2014, 10:54 PM | #4 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
एक अच्छी बहस की शुरुआत के लिये धन्यवाद.
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14-09-2014, 10:58 PM | #5 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
बहुत प्यारा और देशभक्ति से भरा सूत्र आपने चुना है लावण्या जी , इसके लिए धन्यवाद देना चाहूंगी आपको . खूद से पहले देश को चुनना ही बहुत बड़ी बात कही है आपने,. आपकी तरह यदि हर भारतीय ये विचारधारा आपना ले तो हमारे भारत की कई बड़ी समस्याओं का समाधान खुद बखुद हो जाये ग जेइसे की भ्रष्टाचार .
अब रही बात आपने देश को हम कैसा देखना पसंद करे? तो इसके जवाब में कहूँगी की सबसे पहले तो हमे विदेश को प्राथमिकता देनी बंद करके खुद आपने देश की हर एक चीज़ को प्राथमिकता देनी होगी हम विदेशी चीजों का मोह न रखें ताकि उत्पादन में वृध्धि हो और आयत कम और निर्यात ज्यदा हो जिससे हमारा राज कोष बढे और देश को आगे बढ़ने के लिए धन की पर्याप्त मात्र हमे उपलब्ध हो जिससे उध्धोगिक क्षेत्र में प्रगति की बजह से करोडो लोगो को रोजगार मिले और गरीबी की समस्याएं दूर हो और हमारा देश साक्षर बने ताकि और लोगो का मानसिक विकास हो और हम नित नए आविष्कार करके दुनिया में सबसे पहला नाम ला सके ये सब बहुत सिमित शब्दों में लिख रही हूँ नही तो एक लेख मेरा ही न बन जय कहीं लावण्या जी...मे आपने भारत देश को दुनिया के सबसे पहले देश के रूप में देखना चाहूंगी हर क्षेत्र में उन्नति हो और हमारा देश खुशहाल रहे . धन्यवाद |
14-09-2014, 10:59 PM | #6 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
अब जो प्रश्न उठता है वो ये कि सभी के पास रोज़गार कैसे हो ?
ऐसा क्या किया जाये जिससे सभी लोगों को रोज़गार मिल सके ? कार्य दो प्रकार के होते हैं या तो शारीरिक या फिर मानसिक। मानसिक कार्यों को संपन्न करने हेतु व्यक्ति का शिक्षित होना आवश्यक है। और शारीरिक कार्यों के लिए व्यक्ति को किसी विशिष्ट कार्य में पारंगत होना आवश्यक है , यानि हुनरमंद होना आवश्यक है। |
14-09-2014, 11:06 PM | #7 | |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
Quote:
मैं चाहूंगी कि आप इसी प्रकार ज़्यादा से ज़्यादा आप लोग अपने विचार यहाँ रखें जिससे कि हम सभी लोगों को idea मिल सकें कि ऐसा क्या किया जाये जिससे ये देश आगे जा सके। |
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14-09-2014, 11:11 PM | #8 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
तो रोज़गार हेतु जो दो बातें सामने आई हैं वो हैं कि हमें लोगों को शिक्षित करना होगा या फिर हुनरमंद करना होगा।
इन दोनों ही बातों पर हमारी सरकार प्रयास कर रही है। परन्तु अभी तक पूरी तरह से सफलता नहीं मिली है। शिक्षा के क्षेत्र में बहुत समय से प्रयास जारी हैं , और अब स्किल डेवलपमेंट के लिए भी प्रयास किये जा रहे हैं। |
14-09-2014, 11:16 PM | #9 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
आजकल एक नयी बहस छिड़ी हुई है , रोज़गार परक शिक्षा के ऊपर। क्या है ये रोज़गार परक शिक्षा ?
या ऐसे कहें तो ज़्यादा उचित होगा की कैसी हो ये रोज़गार परक शिक्षा ? |
17-09-2014, 02:16 PM | #10 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में जो सबसे बड़ी खामी है वो ये है कि यहाँ पर शिक्षा कुछ बनने के लिए या ज्ञानार्जन हेतु नहीं बल्कि सिर्फ अंक प्राप्त करने या पास होने के लिए ग्रहण की जाती है।
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