14-02-2011, 04:14 AM | #31 |
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दिल्ली के दर्शनीय स्थल
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14-02-2011, 04:15 AM | #32 |
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दिल्ली के दर्शनीय स्थल
जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र,मिस्र यंत्र, आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है। जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र,मिस्र यंत्र, आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है। जो खगोल यंत्र राजा जयसिंह द्वारा बनवाये गए थ, उनकी सूची इस प्रकार से है:
1.सम्राट यन्त्र 2.सस्थाम्सा 3.दक्सिनोत्तारा भित्ति यंत्र 4.जय प्रकासा और कपाला 5.नदिवालय 6.दिगाम्सा यंत्र 7.राम यंत्र 8.रसिवालाया राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पं। जगन्नाथ ने इसी विषय पर 'यंत्र प्रकार' तथा 'सम्राट सिद्धांत' नामक ग्रंथ लिखे। ५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में यह वेधशालाएं बाद में बनने वाले तारामंडलों के लिए प्रेरणा और जानकारी का स्त्रोत रही हैं। हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर में स्थापित रामयंत्र के जरिए प्रमुख खगोलविद द्वारा शनिवार को विज्ञान दिवस पर आसमान के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र की स्थिति नापी गयी थी। इस अध्ययन में नेहरू तारामंडल के खगोलविदों के अलावा एमेच्योर एस्ट्रोनामर्स एसोसिएशन और गैर सरकारी संगठन स्पेस के सदस्य भी शामिल थे।
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14-02-2011, 04:16 AM | #33 |
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दिल्ली के दर्शनीय स्थल
कनॉट प्लेस में स्थित स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना 'जंतर मंतर 'दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है । यह एक वेधशाला है। जिसमें १३ खगोलीय यंत्र लगे हुए हैं। यह राजा जयसिंह द्वारा डिजाईन की गयी थी। एक फ्रेंच लेखक 'दे बोइस' के अनुसार राजा जयसिंह खुद अपने हाथों से इस यंत्रों के मोम के मोडल तैयार करते थे।
जयपुर की बसावट के साथ ही तत्कालीन महाराजा सवाई जयसिंह [द्वितीय] ने जंतर-मंतर का निर्माण कार्य शुरू करवाया, महाराजा ज्योतिष शास्त्र में दिलचस्पी रखते थे और इसके ज्ञाता थे। जंतर-मंतर को बनने में करीब 6 साल लगे और 1734 में यह बनकर तैयार हुआ। इसमें ग्रहों की चाल का अध्ययन करने के लिए तमाम यंत्र बने हैं। यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है।दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद [उज्बेकिस्तान] की वेधशाला से प्रेरित है। मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। राजा जयसिंह ने भारतीय खगोलविज्ञान को यूरोपीय खगोलशास्त्रियों के विचारों से से भी जोड़ा । उनके अपने छोटे से शासन काल में उन्होंने खगोल विज्ञानमें अपना जो अमूल्य योगदान दिया है उस के लिए इतिहास सदा उनका ऋणी रहेगा।
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14-02-2011, 04:20 AM | #34 |
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यह एक वृहत आकार की सौर घड़ी है
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14-02-2011, 04:21 AM | #35 |
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वेधशाला का राम यंत्र
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14-02-2011, 04:22 AM | #36 |
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जंतर मंतर
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14-02-2011, 04:24 AM | #37 |
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जंतर मंतर, दिल्ली, 1858
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14-02-2011, 04:25 AM | #38 |
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बड़ी बड़ी इमारतों से घिर जाने के कारण आज इन के अध्ययन सटीक नतीजे नहीं दे पाते हैं। दिल्ली सहित देशभर में कुल पांच वेधशालाएं हैं- (बनारस, जयपुर , मथुरा और उज्जैन) में मौजूद हैं, जिनमें जयपुर जंतर-मंतर के यंत्र ही पूरी तरह से सही स्थिति में हैं।
मथुरा की वेधशाला १८५० के आसपास ही नष्ट हो चुकी थी। यह दिल्ली में जन आंदोलनों /प्रदर्शनों/धरनों की एक जानी मानी जगह भी है ।
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14-02-2011, 04:29 AM | #39 |
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क़ुतुब मीनार
कुतुब मीनार भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित, ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। इसकी ऊँचाई ७२.५ मीटर (२३७.८६ फीट) और व्यास १४.३ मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर २.७५ मीटर (९.०२ फीट) हो जाता है। क़ुतुबमीनार मूल रूप से सात मंजिल का था लेकिन अब यह पाँच मंजिल का ही रह गया है। इसमें ३७९ सीढियाँ हैं। मीनार के चारों ओर बने आहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन ११९३ या पूर्व के हैं। यह परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है।
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14-02-2011, 04:31 AM | #40 |
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दिल्ली के दर्शनीय स्थल
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार, इसके निर्माण पूर्व यहाँ सुन्दर २० जैन मन्दिर बने थे। उन्हें ध्वस्त करके उसी सामग्री से वर्तमान इमारतें बनीं। अफ़गानिस्तान में स्थित, जाम की मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक, ने कुतुब मीनार का निर्माण सन ११९३ में आरम्भ करवाया, परन्तु केवल इसका आधार ही बनवा पाया। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया, और सन १३६८ में फीरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अन्तिम मंजिल बनवाई। ऐबक से तुगलक तक स्थापत्य एवं वास्तु शैली में बदलाव, यहाँ स्पष्ट देखा जा सकता है। मीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है। कुतुब मीनार पुरातन दिल्ली शहर, ढिल्लिका के प्राचीन किले लालकोट के अवशेषों पर बनी है। ढिल्लिका अन्तिम हिन्दू राजाओं तोमर और चौहान की राजधानी थी। इस मीनार के निर्माण उद्देश्य के बारे में कहा जाता है कि यह कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद से अजान देने, निरीक्षण एवं सुरक्षा करने या इस्लाम की दिल्ली पर विजय के प्रतीक रूप में बनी। इसके नाम के विषय में भी विवाद हैं। कुछ पुरातत्व शास्त्रियों का मत है कि इसका नाम प्रथम तुर्की सुल्तान कुतुबुद्दीन एबक के नाम पर पडा, वहीं कुछ यह मानते हैं कि इसका नाम बग़दाद के प्रसिद्ध सन्त कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर है, जो भारत में वास करने आये थे। इल्तुतमिश उनका बहुत आदर करता था, इसलिये कुतुब मीनार को यह नाम दिया गया। इसके शिलालेख के अनुसार, इसकी मरम्मत तो फ़िरोज शाह तुगलक ने (१३५१–८८) और सिकंदर लोधी ने (१४८९–१५१७) करवाई। मेजर आर.स्मिथ ने इसका जीर्णोद्धार १८२९ में करवाया था।
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