01-04-2011, 11:06 PM | #1 |
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रामचरित मानस से सीख
हर मनुष्य को रामचरित मानस का अनुकरण करना चाहिये जिससे वो जीवन मे कभी भी निराश ना हो और अपने जीवन को सफ़ल बना सके ।
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01-04-2011, 11:09 PM | #2 |
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Re: रामचरित मानस से सीख
श्री राम वन्दना माता रामो मत्पिता रामचंद्र: स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: सर्वस्वं में रामचंद्रो दयालु नार्न्यम जाने नैव जाने न जाने ll ध्यायेदाजानुबाहू धृतशरधनुष बद्धपद्मासनस्थम
पीत वासो वासन नवकमलदलस्पर्धिनेत्रम प्रसन्नं वामाकारूढ़ सीतामुखकमलमिल्ल्लोचनम नीरदाभं नानालंकारदिप्त दधतमुरुजटामंडन रामचंद्रम
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01-04-2011, 11:14 PM | #3 |
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Re: रामचरित मानस से सीख
सबसे पहले मैं कुछ ''राम चरित मानस'' के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ
''राम चरित मानस'' को सिर्फ एक कहानी और एक रामायण के रूप में ही नहीं लिया जा सकता ये एक रामायण से ज्यादा हैं. क्योकि एक पुस्तक, ग्रन्थ का नाम ही ये बता देता हैं कि पुस्तक के अन्दर क्या हैं अगर ये सिर्फ रामायण ही होती तो इसका नाम भी रामायण ही रखा जा सकता था तो राम चरित मानस क्यों रखा गया. रामायण का मतलब ''राम की लीला और चरित जो राम ने किये''. राम चरित मानस का मतलब ''राम के वो चरित जो मन में उदित हो''. रामायण जो मह्रिषी वाल्मीकि जी ने लिखी थी वो उसमे श्री राम जी का वो चरित्र और लीला का बखान किया गया हैं उसमे कुछ भी उस विषय से अलग नहीं हैं. पर गोस्वामी जी ने जो रामचरित मानस लिखी हैं उसमे बहुत कुछ ऐसा हैं जो चिंतनीय, मनन करने योग्य हैं. राम चरित मानस में वेदों का, वाल्मीकि रामायण का और भी ग्रंथो का आधार लिया गया हैं. चूँकि इसका नाम राम चरित मानस रखा गया हैं तो उसे भी उसी तरह से लेना चाहिए. इस के हर चरित्र को अपने अन्दर उदित करने की जरूरत हैं उस के बिना इसका मूल भाव स्पष्ट नहीं हो सकता. क्योकि जो जिस तरह हैं अगर उसी तरह उसका आनंद लिया जाय उचित हैं. वैसे तो आप स्वयं सब तरह से हर ज्ञान को अर्जित करने में सक्षम हैं पर मन में जिज्ञासा हुई इसलिए कुछ बताने की चेष्टा की. अब कोई पूछता हैं की राम चरित मानस के पात्रो को अपने मन में उदित कैसे करे तो उसका उदाहरण देने की कोशिश करता हु. राम चरित मानस में लिखा हैं कि "मोह सकल व्याधीन कर मूला" मोह को संसार में सभी व्याधियों की जड़ बताया गया हैं वैसे ही रावन को रामायण के सब झगडे का कारण बताया गया हैं तो अगर हम रावन को मोह का रूप माने तो जब मनुष्य के अन्दर जब मोह का प्रवेश होता हैं तो सर्वप्रथम बुद्धि का हरण हो जाता हैं तो सीता को बुद्धि का रूप माना गया हैं और जब तक मनुष्य में ज्ञान नहीं आता तब तक मोह का अंत नहीं होता हैं तो राम को ज्ञान का रूप माना गया हैं. और जब तक वैराग्य की भावना उदित नहीं हो तब तक ज्ञान और बुद्धि का मिलन नहीं हो सकता तो हनुमान जी को वैराग्य का रूप बताया गया हैं कहने का तात्पर्य ये हैं की जब मोह रूपी रावन, बुद्धि रूपी सीता का हरण करता हैं यद्यपि मोह का बुद्धि पर कोई जोर नहीं चल सकता परन्तु मोह के कारण बुद्धि परबस हो जाती हैं और वोह कुछ करने के लिए असमर्थ होती हैं पर जब वैराग्य रूपी हनुमान का आगमन होता हैं तो मोह के सारे भेद जान उसके सारे रचाए प्रापंचो को जला (मिटा) देता हैं फिर मनुष्य में ज्ञान रूपी राम का उदय होता हैं जो मोह का समूल नष्ट कर बुद्धि रूपी सीता को मोह के जाल से मुक्त करा देता हैं. राम चरित मानस में एक और चौपाई आई हैं कि अवध वहा जहा राम निवासु. तो कौनसी अवध हैं जो उत्तर प्रदेश में हैं नहीं अवध मतलब वध मतलब मारना अवध मतलब जिसको कभी मारा न जा सके मतलब जो अवध्य हो वो एक ही हैं आत्मा. तो राम का निवास उसी अवध में हैं न की दूसरी अवध हैं
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01-04-2011, 11:28 PM | #4 |
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Re: रामचरित मानस से सीख
चौपाई
पर उपदेश कुसल बहुतेरे । जे आचरहि ते नर ना घनेरे । यहा पर गोस्वामी जी ने लिखा है कि दुसरो को सलाह, ग्यान और उपदेश देने वाले मनुष्य इस जग मे बहुत है पर स्वयं उस ग़्यान पर अनुकरण करने वाले लोग ज्यादा नही है । कहने का तात्पर्य यही है कि जो शिक्षा आप दुसरो को देते हो कम से कम उसी शिक्षा का अपने जीवन अनुकरण करो
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01-04-2011, 11:47 PM | #5 | |
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Re: रामचरित मानस से सीख
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Gaurav kumar Gaurav |
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02-04-2011, 12:04 AM | #6 |
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Re: रामचरित मानस से सीख
परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥
भावार्थ:- जिनके मन में दूसरे का हित बसता है (समाया रहता है), उनके लिए जगत्* में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। परहित सरिस धर्म नही भाई । परपीरा सम नही अधमाई ॥ संसार मे दुसरो के हित करने के सामान कोइ धर्म नही है और दुसरो को दु:ख पहुचाना ही सबसे बड़ा अधर्म है । तात्पर्य ये है कि जीवन मे अपने स्वार्थ को साधने के लिये किसी को भी किसी का नुकसान करना सबसे बड़ा धर्म है । जहा तक समर्थ हो तब तक निस्वार्थ होकर दुसरो का हित करना ही मानव का परम धरम है । आप किसी का भला कर सकते हो तो करो ना तो ना करो क्योकि आप भगवान नही पर जीवन मे किसी का भी बुरा ना करो क्योकि आप इंसान हो शैतान नही
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02-04-2011, 07:29 AM | #7 |
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Re: रामचरित मानस से सीख
बहुत अच्छा बताया हे अपने राम चरित्र मानस के बारे में
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02-04-2011, 09:07 AM | #8 |
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Re: रामचरित मानस से सीख
बहुत ही अनुपम सूत्र है, रामचरित मानस के बारे में बहुत ही अच्छी जानकारी दे रहे हैं नमन जी.
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03-04-2011, 12:32 AM | #9 |
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Re: रामचरित मानस से सीख
जेहि ते कछु निज स्वार्थ होई, तेई पर ममता कर सब कोई ।
जिस व्यक्ति से मनुष्य का कुछ निजी स्वार्थ होता है उस व्यक्ति पर उसका स्नहे और प्रेम अवश्य रहता है । निस्वार्थ प्रेम तो कोई विरले मनुष्य ही कर पाते है ।
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03-04-2011, 12:37 AM | #10 |
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Re: रामचरित मानस से सीख
नहि कोऊ अस जन्मा जग माहि, प्रभुता पाई जाहि मद नाहि
तुलसीदास जी कहते है इस संसार मै ऐसा कोई नही जन्मा है जिसे शक्ति और राज पाने के बाद उसका अभिमान और नशा ना आया हो ।
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