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View Full Version : काव्य-सौरभ


Suresh Kumar 'Saurabh'
07-04-2012, 08:38 AM
प्रिय मित्रों तथा बड़े भाइयों,
नमस्कार! आदाब! शत श्री अकाल!
मैं बहुत दिन से सोच रहा था कि मैं भी अपनी रचनाएं यहाँ पर प्रेषित करूँ,
परन्तु मन में एक झिझक थी। मैं सोच रहा था कि यहाँ के अतिविशिष्ट तथा
वरिष्ट कवि आदरणीय श्री डा. राकेश श्रीवास्तव जी (जिनका मैं दिल से
सम्मान करता हूँ) के आगे भला मुझे कौन पढ़ेगा? मैं आदरणीय सिकन्दर भाई जी
को हार्दिक धन्यवाद दूँगा जिन्होंने मुझे मेरी रचनाएं प्रेषित करने के
लिए प्रेरित किया।
मित्रों, जीवन के विविध रंग हैं। इन रंगों को मैं अभी बहुत ठीक से नहीं पहचान पाया हूँ। दुनियादारी से पूर्णतया अनिभिज्ञ हूँ। विचार अपरिपक्व हैं। मेरी
अवस्था है बीस वर्ष तीन महीने। स्नातक का विद्यार्थी हूँ। सम्भवत:
इसीलिए जीवन तथा दुनियादारी के बहुआयामी पहलुओं को ठीक से नहीं समझ सका हूँ। सुना है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति विचारवान बनता है। मेरे काव्य में विचारपरक बातें देखने को न मिले या बहुत कम मिले इसके लिए
क्षमा चाहूँगा।
आशा है कि आप लोग मेरा उत्साहवर्द्धन करने में पीछे नहीं हटेंगे।
धन्यवाद!

Sikandar_Khan
07-04-2012, 08:47 AM
मित्र कविवर , आपकी रचनाएं पढ़ने को मै व्याकुल हूँ ! हर व्यक्ति का अपना महत्व अपनी गुणवत्ता होती है अतः आप निश्चिँत होकर अपने लेख, रचनाएं , कहानियाँ प्रविष्ट कीजिए |

Suresh Kumar 'Saurabh'
07-04-2012, 09:10 AM
कुछ भी लिखने से पहले मैं ज्ञान की देवी माता सरस्वती से कुछ प्रार्थना करना चाहूँगा -

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=15519&d=1333771668
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हे वीणा वादिनी! हंस विराजिनी! मुझ पर कृपा दृष्टि डार दो माता।
विद्या-प्रकाश दो हे विद्यादायिनी कर दूर सब अन्धकार दो माता।
अज्ञानता-सिंधु में डूबता हूँ लो ज्ञान-किनारे उतार दो माता
बुद्धि में है जो अशुद्धि की रेखा वो शक्ति से अपने सुधार दो माता
खोये हुए हैं जो स्वप्न नयन में वो स्वप्न मेरे सब सकार दो माता
गहरी से गहरी मैं बात कहूँ अब सोच में और विस्तार दो माता
कुछ हो अलग जो न पहले कहा हो मुझे नित नूतन विचार दो माता
अरजी करे है अबोध ये बालक कि लेखनी मेरी निखार दो माता
शीश नवाके नमन करे 'सौरभ' आशीर्वाद अपना अपार दो माता
.
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==सुरेश कुमार 'सौरभ'
Sureshkumarsaurabh@gmail.com

Suresh Kumar 'Saurabh'
07-04-2012, 10:21 AM
यह कविता मैंने अपने लिए ही लिखी है। असफलता की निराशा में इसे पढ़कर मांसिक बल मिलता है।
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----------- यदि समझता है ---------
यदि समझता है कि तू किसी से कम है,
तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है।
.
समुद्र की तलहटी में छिपा हुआ अमूल्य मोती है तू
जिसके अभाव में दीप जल नहीं सकता वो ज्योति है तू
यही तुझमें कमी है कि तू अपने को आँक नहीं पाता
जो अन्तर्निहित क्षमताएँ हैं उसमें झाँक नहीं
पाता
कर देगा भूडोल धरा पर, तू वो अणु बम है।
यदि समझता है कि तू किसी से कम है,
तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है।
.
तुझमें साहस है उस एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का
तुझमें सामर्थ्य है हिन्दमहासागर में उतरने का
तुझे तुच्छ समझने वाला पछताएगा देख लेना
तुझ पर हँसने वाला विस्मित रह जाएगा देख लेना
जागृत कर दे तुझमें छिपा जितना भी दम है।
यदि समझता है कि तू किसी से कम है,
तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है।
.
निराश, हताश बैठा इस प्रकार मजबूर न हो
हे पथिक! तुझे चलना है थककर अभी चूर न हो
तेरी मंजिल वहाँ लगाये है तेरे आने की आस
तू गिर-गिर कर ही सही पहुँच जा उसके पास
मंजिल तेरी प्रिया तू उसका प्रियतम है। यदि समझता है कि तू किसी से कम है,
तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है।
.
हाँ, अभी तू चमकता सूर्य महकता फूल नहीं है
यह इसलिए कि मौसम अभी तेरे अनुकूल नहीं है
कब तक मेघ मिलकर रोकेंगे रवि को चमकने से
पुष्प कभी रोके नहीं रूकते 'सौरभ' महकने से
कौशल तेरा सब देखेगा वो दिन निकटतम है।
यदि समझता है कि तू किसी से कम है,
तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है।

.
रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
Sureshkumarsaurabh@gmail.com

Suresh Kumar 'Saurabh'
07-04-2012, 12:33 PM
न आलीशान महल में न छोटे घर में रहो तुम ।
आओ आ जाओ आके मेरे अब जिगर में रहो तुम ।।
.
मैं तो जीवन के सफर में निकल पङा तनहा,
हम सफर बनके मेरे संग-संग सफर में रहो तुम ।।
.
तुम मेरे दिल की मंजिल हो कहीं मत जाना,
मैं जिस डगर पे चल रहा उसी डगर में रहो तुम।।
.
डूब जाऊँगा उस नदी में मैं सदा के लिए,
जिसकी उठती हुई गिरती हुई लहर में रहो तुम ।।
.
मैं तो पी जाऊँगा जहर भी बस शर्त ये है,
गंध बनके ऐ हमदम उस जहर में रहो तुम ।।
.
फिर ना देखेगा दुनिया के रंगीन नजारे,

हर लम्हा गर''सौरभ'' की नजर में रहो तुम।।
.
रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

Sikandar_Khan
07-04-2012, 01:01 PM
न आलीशान महल में न छोटे घर में रहो तुम ।
आओ आ जाओ आके मेरे अब जिगर में रहो तुम ।।
.
मैं तो जीवन के सफर में निकल पङा तनहा, हम सफर बनके मेरे संग-संग सफर में रहो तुम ।।
.
तुम मेरे दिल की मंजिल हो कहीं मत जाना, मैं जिस डगर पे चल रहा उसी डगर में रहो तुम।।
.
डूब जाऊँगा उस नदी में मैं सदा के लिए, जिसकी उठती हुई गिरती हुई लहर में रहो तुम ।।
.
मैं तो पी जाऊँगा जहर भी बस शर्त ये है,
गंध बनके ऐ हमदम उस जहर में रहो तुम।।:fantastic:
.
फिर ना देखेगा दुनिया के रंगीन नजारे,
हर लम्हा गर''सौरभ'' की नजर में रहो तुम।।
.
रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
सुरेश भाई जी , बहुत ही खूब लिखा है खासकर इन पंक्तियोँ को |

Suresh Kumar 'Saurabh'
07-04-2012, 03:58 PM
सुरेश भाई जी , बहुत ही खूब लिखा है खासकर इन पंक्तियोँ को |

आपके विचार मेरे लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

Suresh Kumar 'Saurabh'
07-04-2012, 05:41 PM
-------- कोई अपना भी है -------
.

अब पुष्प सैय्या से ऊब चुका,
चाहता हूँ पथ में काँटे बोना,
बस वही बोने नहीं देता ।
.
अब कुछ पाने की आशा नहीं,
चाहता हूँ सब कुछ खोना,
बस वही खोने नहीं देता ।
.
अब मुस्काने की इच्छा नहीं,
चाहता हूँ दिन भर रोना,
बस वही रोने नहीं देता ।
.
पल भर सोकर दु:ख जाता नहीं,
चाहता हूँ चीर निद्रा में सोना,
बस वही सोने नहीं देता।
.
न जाने क्या कर जाता मैं तो,
बस वही कुछ होने नहीं देता,
बस वही कुछ होने नहीं देता।
.
जुड़ गया जीवन में मेरे वो,
सुख की ऐसी लड़ी बनकर,
व्यथा के कंटक पिरोने नहीं देता।
.
उत्साह बढाता, धीरज बँधाता,
जिजीविषा जाग गयी मुझमें,
जीवित रहना भी है।
मैंने मान लिया 'सौरभ'
कोई अपना भी है।
कोई अपना भी है।
.
रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

Dark Saint Alaick
07-04-2012, 05:58 PM
अति उत्तम रचनाएं पढवाने के लिए आपका शुक्रिया ! उम्मीद है आपका यह सृजन - कर्म अनवरत जारी रहेगा !

Suresh Kumar 'Saurabh'
08-04-2012, 06:35 AM
अति उत्तम रचनाएं पढवाने के लिए आपका शुक्रिया ! उम्मीद है आपका यह सृजन - कर्म अनवरत जारी रहेगा !

धन्यवाद!
इसी प्रकार सहयोग की आशा रहेगी।

Suresh Kumar 'Saurabh'
08-04-2012, 08:30 AM
ग़म की दुनिया में दिल इसका कहीं खो गया होगा।
इसी सबब शायद ये शराबी हो गया होगा।।
.
नींद न आयी होगी तो ये मजबूर होके,
चैन की नींद पीकर यूँहीं सो गया होगा।
.
सब उछाले बदनामी का कीचड़ इस पर,
कोई तो सोचे ये पीने क्यों गया होगा।
.
किसी दिल में इसे पनाह न मिली हो शायद,
होके बेबस ये मैख़ाने तभी तो गया होगा।
.
संग इसके हुआ है कोई इक बड़ा धोखा,
फूल की आड़ में काँटा कोई पिरो गया होगा।
.
इसके दिल को अजीज़ जाम क्यूँ है 'सौरभ'?
ज़ख्म-ए-दिल को ये दारू क्या धो गया होगा?

.
रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

abhisays
08-04-2012, 09:50 AM
बहुत ही सुन्दर रचनाये हैं मित्र. :cheers:

Dr. Rakesh Srivastava
08-04-2012, 04:28 PM
सौरभ जी , जैसा कि आप ने अपने '' काव्य - सौरभ '' के प्रारम्भ में मेरा नाम श्रृद्धा के साथ लिया है तो मै आपके सन्दर्भ में हार्दिक कामना करता हूँ कि आप निरंतर अच्छा लिखें . फिलहाल तो आपकी आयु और अनुभव को देखकर कह सकता हूँ कि इस मंच पर आपकी शुरुवात काफी अच्छी है और मैं भी आपसे संतुष्ट हूँ . जहाँ तक हो सके इस मंच व इसके गुणी व सक्रिय सदस्यों के मार्गदर्शन का भरपूर लाभ उठाइये . आपको ये बताना चाहता हूँ कि आज मैं जितना कुछ हूँ , इसी फोरम के सहयोग व उत्साह वर्धन की बदौलत हूँ .

jayeshh
08-04-2012, 06:14 PM
सुरेश जी आपकी रचना.... कुछ कहने के लिए शब्द नहीं है.... बस ऐसे ही निरंतर हमें अपनी रचनाएँ देते रहिये....

Suresh Kumar 'Saurabh'
08-04-2012, 07:44 PM
सुरेश जी आपकी रचना.... कुछ कहने के लिए शब्द नहीं है.... बस ऐसे ही निरंतर हमें अपनी रचनाएँ देते रहिये....

आपका यहाँ हार्दिक स्वागत है। उम्मीद है कि इस मंच पर आपको अच्छा लगेगा।

jayeshh
08-04-2012, 08:44 PM
आपका यहाँ हार्दिक स्वागत है। उम्मीद है कि इस मंच पर आपको अच्छा लगेगा।

शुक्रिया सुरेश जी.... स्वेता भी आ गयी है.....

Suresh Kumar 'Saurabh'
08-04-2012, 08:53 PM
शुक्रिया सुरेश जी.... स्वेता भी आ गयी है.....

जी हाँ, उनका भी स्वागत मैंने कर दिया है।

Suresh Kumar 'Saurabh'
08-04-2012, 09:06 PM
सौरभ जी , जैसा कि आप ने अपने '' काव्य - सौरभ '' के प्रारम्भ में मेरा नाम श्रृद्धा के साथ लिया है तो मै आपके सन्दर्भ में हार्दिक कामना करता हूँ कि आप निरंतर अच्छा लिखें . फिलहाल तो आपकी आयु और अनुभव को देखकर कह सकता हूँ कि इस मंच पर आपकी शुरुवात काफी अच्छी है और मैं भी आपसे संतुष्ट हूँ . जहाँ तक हो सके इस मंच व इसके गुणी व सक्रिय सदस्यों के मार्गदर्शन का भरपूर लाभ उठाइये . आपको ये बताना चाहता हूँ कि आज मैं जितना कुछ हूँ , इसी फोरम के सहयोग व उत्साह वर्धन की बदौलत हूँ .



सर्वप्रथम आपको चरण स्पर्श!
आपके इन शब्दों का मेरे लिए उतना ही अधिक महत्व है जितना कि संजीवनी बूटी लक्ष्मण जी के लिए। एक अतिविशिष्ट कवि जब किसी नवउदित रचनाकार की सराहना करे और उसका उचित मार्गदर्शन करे तो इससे बढ़कर कोई और बात हो ही नहीं सकती। आशा है कि यह स्नेह नित वृद्धि की दिशा में ही होगा।
मैं यहाँ के गुणवान सदस्यों के मार्गदर्शन का सदा स्वागत करूँगा। अत्यन्त हर्ष की बात है कि उच्च पदासीन सदस्य मेरा सहयोग कर रहे हैं। इसी प्रकार के सहयोग का आकांक्षी भी हूँ।
.
आपका----- सुरेश कु0 'सौरभ'

sombirnaamdev
09-04-2012, 12:07 AM
कर देगा भूडोल धरा पर, तू वो अणु बम है।
यदि समझता है कि तू किसी से कम है,
तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है।

बहूत ही अच्छा लिखा है सौरभ जी

Suresh Kumar 'Saurabh'
09-04-2012, 08:07 AM
कर देगा भूडोल धरा पर, तू वो अणु बम है।
यदि समझता है कि तू किसी से कम है,
तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है।

बहूत ही अच्छा लिखा है सौरभ जी

विचार रखने के लिए आपका आभार!

Suresh Kumar 'Saurabh'
09-04-2012, 08:21 AM
एक ओजयुक्त गीत प्रस्तुत है-
.
------------- आ जा रे मन ------------

.
आ जा रे मन कुछ मिलके ऐसा कर जायें।
नभ की ऊँचाईयां कदमों में उतर जायें ।।
.
क्यों मूक है दृढ़ होजा कुछ संवाद हो,
हुंकार कर इतना कि ऐसा नाद हो,
जो सिंह बनते हैं स्वयं वो डर जायें ।।

आ जा रे मन कुछ मिलके ऐसा कर जायें।
नभ की ऊँचाईयां कदमों में उतर जायें ।।
.
निर्बल नहीं फिर इतना तू मजबूर क्यों?
मंजिल तुझे ढूढ़े तू भागे दूर क्यों?
पथ सामने है कहता तू किधर जायें ।।

आ जा रे मन कुछ मिलके ऐसा कर जायें।
नभ की ऊँचाईयां कदमों में उतर जायें ।।
.
इतिहास तूनें भी रचा देना गवाही,
इक पंथ चुन उस पंथ का बन जा तू राही,
जिस पर चले तू लोग उसी पर जायें ।।

आ जा रे मन कुछ मिलके ऐसा कर जायें।
नभ की ऊँचाईयां कदमों में उतर जायें ।।
.
इतना चमक कि चाँद, रवि, तारे करें,
चर्चा चमक की तेरे अब सारे करें,
जग के अखिल दीपक भी फीके पङ जायें।।

आ जा रे मन कुछ मिलके ऐसा कर जायें।
नभ की ऊँचाईयां कदमों में उतर जायें ।।
.
शालीनता '' सौरभ '' कभी न छोड़ना,
बातों से कोई का हृदय न तोड़ना,
नीचे कदम हो जितना भी उपर जायें ।।

आ जा रे मन कुछ मिलके ऐसा कर जायें ।
नभ की ऊँचाईयां कदमों में उतर जायें ।।
.
रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

Sikandar_Khan
09-04-2012, 09:08 AM
:fantastic::fantastic:
अतिसुन्दर रचनाओँ के आनन्द सागर मेँ गोता लगवाने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद |
आशा करता हूँ निरन्तर ये क्रम जारी रहेगा |

alysweety
09-04-2012, 11:34 AM
सौरभ जी,
बहुत ही खुबसूरत रचनाएँ हैं आपकी
इन्हें पढ़ कर दिल करता है काश मैं भी लिख पाती
लेकिन ये मैं नहीं कर पाऊँगी ये मैं जानती हूँ
मैं हमेशा से ये मानती रही हूँ -
सिखा सब कुछ जा सकता है
लेकिन कवि कुछ अलग ही दिलवाले लोग होते हैं
और ये दिल के साथ ही जन्म लेना होता है

Suresh Kumar 'Saurabh'
09-04-2012, 11:54 AM
--------------------

Suresh Kumar 'Saurabh'
09-04-2012, 02:44 PM
----------------------

Suresh Kumar 'Saurabh'
09-04-2012, 02:48 PM
अरे गज्जब आप ने तो कविता ही लिख दिया स्वेता जी। ये आपका कथन मात्र एक कथन नहीं, बल्कि किसी समकालीन कविता का प्रारूप दिख रहा है। कोशिश कर के देख लीजिए, आप भी लिख सकती हैं। काव्य के आचार्यों का मानना है कि काव्य प्रतिभा किसी व्यक्ति में नैसर्गिक होती है तो कुछ लोग परिश्रम के बल पर भी अच्छा लिख सकते हैं।
आपने अपना हृदयोदगार रखा इसके लिए कोटि-कोटि आभार!
साथ ही आपको बताना चाहूँगा कि यहाँ पर और में सशक्त रचनाकार हैं, जिनमें आदरणीय डा. राकेश जी, सोमवीर जी का नाम उल्लेखनीय है। आपका यह मित्र इन लोगों से कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। आप भी इनकी रचनाएं पढिए, आपको आनन्द मिलेगा।

jayeshh
10-04-2012, 08:12 PM
सुरेश जी बहुत अछि रचनाएं है....ज्यादा शब्द मुझे आते नहीं है...

sombirnaamdev
13-04-2012, 05:39 PM
मैं तो पी जाऊँगा जहर भी बस शर्त ये है,
गंध बनके ऐ हमदम उस जहर में रहो तुम ।
nice poetry , i realy hat off to this job

Suresh Kumar 'Saurabh'
15-04-2012, 04:54 PM
अल्लाह कोई, कोई वाहे गुरू,कोई गौड, कोई ईश्वर कहता है।
सबका मालिक तो एक ही है, आपस में क्यों इंसाँ लड़ता है।।
.
अल्लाह को गाली दोगे तो, अपने आराध्य को दोगे तुम
भगवान को गाली दोगे तो, अपने आराध्य को दोगे तुम
वाहे गुरू गौड हैं दो तो नहीं, बस एक ही कर्ता-धर्ता है।
सबका मालिक तो एक ही है, आपस में क्यों इंसाँ लड़ता है।।
.
मन्दिर मस्जिद का झगड़ा तो, मालिक को भी मंज़ूर नहीं
पर इंसानों को दोष क्यों दें, ये मूर्ख हैं इनका क़सूर नहीं
वो जानवरों की टोली भली, जो ये सब काम न करता है।
सबका मालिक तो एक ही है, आपस में क्यों इंसाँ लड़ता है।।
.
मज़हब की खाई ने अक्सर, दो इंसानों को दूर किया
इस पापी भेद-भाव ने भी, कट्टर मानव को ज़रूर किया
न जाने दिल के बाग़ से क्यों, ईर्ष्या का
फूल न झड़ता है।
सबका मालिक तो एक ही है, आपस में क्यों इंसाँ लड़ता है।।
.
वो बाइबिल के ज्ञाता और वो, गुरुग्रन्थ
साहिब के ज्ञानी हैं
इनको कुरान तथा इनको, रामायण याद ज़ुबानी है
बस प्रेम के अक्षर याद नहीं, ये बात ही 'सौरभ' खलता है।
सबका मालिक तो एक ही है, आपस में क्यों इंसाँ लड़ता है।।
अल्लाह कोई, कोई वाहे गुरू,कोई गौड, कोई ईश्वर कहता है।
सबका मालिक तो एक ही है, आपस में क्यों इंसाँ लड़ता है।।

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रचनाकार :- सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता :- वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा,
जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
e-mail :-sureshkumarsaurabh@gmail.com
here:- http://www.rachanakar.org/2012/04/blog-post_8482.html

jayeshh
15-04-2012, 05:21 PM
Sabka malik ek dost ekta ho to kisiki majal nahin hamari taraf ankh uthane ki

Suresh Kumar 'Saurabh'
15-04-2012, 06:14 PM
sabka malik ek dost ekta ho to kisiki majal nahin hamari taraf ankh uthane ki जी हाँ, सही बात है।

jayeshh
20-04-2012, 08:01 PM
दोस्त रचनाएं बंद कर दी क्या?

Suresh Kumar 'Saurabh'
20-04-2012, 10:14 PM
दोस्त रचनाएं बंद कर दी क्या? अरे नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। प्रतीक्षा कीजिए मिलेगा पढ़ने को।

sombirnaamdev
20-04-2012, 11:16 PM
अरे नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। प्रतीक्षा कीजिए मिलेगा पढ़ने को।
umeed karte hai bahoot jalad hi koi rachna padhane ko milegi

Suresh Kumar 'Saurabh'
24-04-2012, 10:32 PM
मेरी भावनाएँ


.
हृदय में संवेदनाएँ, संवेदनाओं में भावनाएँ,
भावनाओं में कुछ बन्द है।
बता दूँ? (सुनोगे?)
इसमें कुछ कविता, कुछ गीत, कुछ ग़ज़ल
कुछ प्यारा-प्यारा छन्द है।
.
भावनाएँ रहती संग-संग, संग जगती-संग सोती हैं/
जब मस्तिष्क में कुछ विशेष बातें चल रही होती हैं/
तो कलम की नीली-काली स्याही में भरकर,
उतर आती हैं पृष्ठों पर,
क्योंकि लिखना मुझे पसन्द है।
.
थक जाता हूँ सम्पूर्ण मांसिक श्रम लगाकर भी/
कभी बनती, तो कभी बनती नहीं कविता बनाकर भी/
मन की कोई भावना जब देखती है,
कशमकश मेरी तो,
मुस्कराती मन्द-मन्द है।
.
पीड़ितों की व्यथा देखकर दु:खद अनुभूति होती है/
दलितों, पिछड़ों, शोषितों के प्रति गहरी सहानुभूति होती है/
कलम को परवाह नहीं मेरे यदि मेरी,
कही यह बात,
शोषकों को नापसन्द है।
.
हृदय के कानों में चुपके से कहती है भावना/
सत्य को सत्य, असत्य को असत्य ही मानना/
पक्ष नहीं लेता मैं भी किसी पक्ष का,
निष्पक्ष हूँ मैं,
मेरी विचारधारा भी स्वच्छन्द है।
.
.
रचनाकार:- सुरेश कुमार 'सौरभ'
पता:- जमानिया कस्बा, जिला गीजीपुर, उत्तर प्रदेश
Sureshkumarsaurabh@gmail.com

Sikandar_Khan
24-04-2012, 11:55 PM
बहुत ही खूब सौरभ जी |
:bravo::fantastic:

jayeshh
25-04-2012, 08:12 AM
अछि भावनाएं व्यक्त की दोस्त..........

Suresh Kumar 'Saurabh'
29-04-2012, 07:30 PM
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अतिआवश्यक सूचना :- अब मैं हर रचना के लिए अलग सूत्र बनाऊँगा। फिर उस रचना को इस सूत्र में संकलित करूँगा। इसलिए अब इस सूत्र में संकलित रचना पर कृपया कोई टिप्पणी न की जाय, बल्कि अलग बने सूत्र में ही टिप्पणी करें।

*****************************

Suresh Kumar 'Saurabh'
07-05-2012, 12:57 PM
इस सूत्र को मैंने मिटाने के लिए कहा था, परन्तु न नियामक जी सुन रहे हैं न ही प्रशासक जी।

jayeshh
07-05-2012, 04:01 PM
ये क्या हो रहा है सौरभ जी.....