07-04-2012, 08:38 AM | #1 |
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काव्य-सौरभ
नमस्कार! आदाब! शत श्री अकाल! मैं बहुत दिन से सोच रहा था कि मैं भी अपनी रचनाएं यहाँ पर प्रेषित करूँ, परन्तु मन में एक झिझक थी। मैं सोच रहा था कि यहाँ के अतिविशिष्ट तथा वरिष्ट कवि आदरणीय श्री डा. राकेश श्रीवास्तव जी (जिनका मैं दिल से सम्मान करता हूँ) के आगे भला मुझे कौन पढ़ेगा? मैं आदरणीय सिकन्दर भाई जी को हार्दिक धन्यवाद दूँगा जिन्होंने मुझे मेरी रचनाएं प्रेषित करने के लिए प्रेरित किया। मित्रों, जीवन के विविध रंग हैं। इन रंगों को मैं अभी बहुत ठीक से नहीं पहचान पाया हूँ। दुनियादारी से पूर्णतया अनिभिज्ञ हूँ। विचार अपरिपक्व हैं। मेरी अवस्था है बीस वर्ष तीन महीने। स्नातक का विद्यार्थी हूँ। सम्भवत: इसीलिए जीवन तथा दुनियादारी के बहुआयामी पहलुओं को ठीक से नहीं समझ सका हूँ। सुना है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति विचारवान बनता है। मेरे काव्य में विचारपरक बातें देखने को न मिले या बहुत कम मिले इसके लिए क्षमा चाहूँगा। आशा है कि आप लोग मेरा उत्साहवर्द्धन करने में पीछे नहीं हटेंगे। धन्यवाद! |
07-04-2012, 08:47 AM | #2 |
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Re: काव्य-सौरभ
मित्र कविवर , आपकी रचनाएं पढ़ने को मै व्याकुल हूँ ! हर व्यक्ति का अपना महत्व अपनी गुणवत्ता होती है अतः आप निश्चिँत होकर अपने लेख, रचनाएं , कहानियाँ प्रविष्ट कीजिए |
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07-04-2012, 09:10 AM | #3 |
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Re: काव्य-सौरभ
कुछ भी लिखने से पहले मैं ज्ञान की देवी माता सरस्वती से कुछ प्रार्थना करना चाहूँगा -
. . हे वीणा वादिनी! हंस विराजिनी! मुझ पर कृपा दृष्टि डार दो माता। विद्या-प्रकाश दो हे विद्यादायिनी कर दूर सब अन्धकार दो माता। अज्ञानता-सिंधु में डूबता हूँ लो ज्ञान-किनारे उतार दो माता बुद्धि में है जो अशुद्धि की रेखा वो शक्ति से अपने सुधार दो माता खोये हुए हैं जो स्वप्न नयन में वो स्वप्न मेरे सब सकार दो माता गहरी से गहरी मैं बात कहूँ अब सोच में और विस्तार दो माता कुछ हो अलग जो न पहले कहा हो मुझे नित नूतन विचार दो माता अरजी करे है अबोध ये बालक कि लेखनी मेरी निखार दो माता शीश नवाके नमन करे 'सौरभ' आशीर्वाद अपना अपार दो माता . . ==सुरेश कुमार 'सौरभ' Sureshkumarsaurabh@gmail.com Last edited by Suresh Kumar 'Saurabh'; 11-04-2012 at 11:03 AM. |
07-04-2012, 10:21 AM | #4 |
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Re: काव्य-सौरभ
यह कविता मैंने अपने लिए ही लिखी है। असफलता की निराशा में इसे पढ़कर मांसिक बल मिलता है।
. ----------- यदि समझता है --------- यदि समझता है कि तू किसी से कम है, तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है। . समुद्र की तलहटी में छिपा हुआ अमूल्य मोती है तू जिसके अभाव में दीप जल नहीं सकता वो ज्योति है तू यही तुझमें कमी है कि तू अपने को आँक नहीं पाता जो अन्तर्निहित क्षमताएँ हैं उसमें झाँक नहीं पाता कर देगा भूडोल धरा पर, तू वो अणु बम है। यदि समझता है कि तू किसी से कम है, तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है। . तुझमें साहस है उस एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का तुझमें सामर्थ्य है हिन्दमहासागर में उतरने का तुझे तुच्छ समझने वाला पछताएगा देख लेना तुझ पर हँसने वाला विस्मित रह जाएगा देख लेना जागृत कर दे तुझमें छिपा जितना भी दम है। यदि समझता है कि तू किसी से कम है, तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है। . निराश, हताश बैठा इस प्रकार मजबूर न हो हे पथिक! तुझे चलना है थककर अभी चूर न हो तेरी मंजिल वहाँ लगाये है तेरे आने की आस तू गिर-गिर कर ही सही पहुँच जा उसके पास मंजिल तेरी प्रिया तू उसका प्रियतम है। यदि समझता है कि तू किसी से कम है, तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है। . हाँ, अभी तू चमकता सूर्य महकता फूल नहीं है यह इसलिए कि मौसम अभी तेरे अनुकूल नहीं है कब तक मेघ मिलकर रोकेंगे रवि को चमकने से पुष्प कभी रोके नहीं रूकते 'सौरभ' महकने से कौशल तेरा सब देखेगा वो दिन निकटतम है। यदि समझता है कि तू किसी से कम है, तो ये सत्य नहीं, मात्र तेरा भ्रम है। . रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ' पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश Sureshkumarsaurabh@gmail.com Last edited by Suresh Kumar 'Saurabh'; 11-04-2012 at 11:05 AM. |
07-04-2012, 12:33 PM | #5 |
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Re: काव्य-सौरभ
न आलीशान महल में न छोटे घर में रहो तुम ।
आओ आ जाओ आके मेरे अब जिगर में रहो तुम ।। . मैं तो जीवन के सफर में निकल पङा तनहा, हम सफर बनके मेरे संग-संग सफर में रहो तुम ।। . तुम मेरे दिल की मंजिल हो कहीं मत जाना, मैं जिस डगर पे चल रहा उसी डगर में रहो तुम।। . डूब जाऊँगा उस नदी में मैं सदा के लिए, जिसकी उठती हुई गिरती हुई लहर में रहो तुम ।। . मैं तो पी जाऊँगा जहर भी बस शर्त ये है, गंध बनके ऐ हमदम उस जहर में रहो तुम ।। . फिर ना देखेगा दुनिया के रंगीन नजारे, हर लम्हा गर''सौरभ'' की नजर में रहो तुम।। . रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ' पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश Last edited by Suresh Kumar 'Saurabh'; 09-04-2012 at 11:39 AM. |
07-04-2012, 01:01 PM | #6 | |
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Re: काव्य-सौरभ
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07-04-2012, 03:58 PM | #7 |
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Re: काव्य-सौरभ
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07-04-2012, 05:41 PM | #8 |
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Re: काव्य-सौरभ
-------- कोई अपना भी है -------
. अब पुष्प सैय्या से ऊब चुका, चाहता हूँ पथ में काँटे बोना, बस वही बोने नहीं देता । . अब कुछ पाने की आशा नहीं, चाहता हूँ सब कुछ खोना, बस वही खोने नहीं देता । . अब मुस्काने की इच्छा नहीं, चाहता हूँ दिन भर रोना, बस वही रोने नहीं देता । . पल भर सोकर दु:ख जाता नहीं, चाहता हूँ चीर निद्रा में सोना, बस वही सोने नहीं देता। . न जाने क्या कर जाता मैं तो, बस वही कुछ होने नहीं देता, बस वही कुछ होने नहीं देता। . जुड़ गया जीवन में मेरे वो, सुख की ऐसी लड़ी बनकर, व्यथा के कंटक पिरोने नहीं देता। . उत्साह बढाता, धीरज बँधाता, जिजीविषा जाग गयी मुझमें, जीवित रहना भी है। मैंने मान लिया 'सौरभ' कोई अपना भी है। कोई अपना भी है। . रचनाकार~ सुरेश कुमार 'सौरभ' पता~ वार्ड नं. 24, मोहल्ला- बुद्धिपुर/ पठान टोली, जमानिया कस्बा, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश Last edited by Suresh Kumar 'Saurabh'; 07-04-2012 at 06:03 PM. |
07-04-2012, 05:58 PM | #9 |
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Re: काव्य-सौरभ
अति उत्तम रचनाएं पढवाने के लिए आपका शुक्रिया ! उम्मीद है आपका यह सृजन - कर्म अनवरत जारी रहेगा !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
08-04-2012, 06:35 AM | #10 |
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Re: काव्य-सौरभ
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