Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
तस्माद्वा एते देवा अतितरामिवान्यान्देवान्यदग्निर्वायुरिन्द्रस्ते ।
ह्येनन्नेदिष्ठं पस्पर्शुस्ते ह्येनत्प्रथमो विदाञ्चकार ब्रह्मेति ॥२॥
परब्रह्म का स्पर्श दर्शन इन्द्र अग्नि वायु ने,
कर प्रथम जाना ब्रह्म को, लगे ब्रह्म को पहचानने।
ये श्रेष्ठ अतिशय देवता, विश्वानि विश्व प्रणम्य है,
इनके ह्रदय में ब्रह्म तत्व का मर्म अनुभव गम्य है॥ [2]
|