24-02-2013, 07:56 PM | #11 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
पहली बार जब मैं जेल गया
मेरे हाथों में एक खिलौने का डब्बा था उसमें कुछ कंचे थे गली में पड़ा मिला एक जंग खाया चाकू था कुछ बिजली के फ्यूज हुए तार थे और तब मैं यह भी नहीं जानता था कि आतंकवादी होने का मतलब क्या होता है दूसरी बार जब जेल गया तो मैं कुछ बड़ा हो गया था और एक अजीज दोस्त से बतिया रहा था एक नक्सली की पुलिसिया हत्या के बाद अखबार में छपी खबर और तस्वीर के बारे में तब मैं नहीं जानता था नक्सली होने का मतलब और यह भी नहीं कि नक्सली शब्द उचारना, जबान पर लाना कोई जुर्म है तीसरी बार जब जेल गया तब मैने बिल्कुल नहीं जाना कि मैं जेल क्यों गया इतना मालूम चला था अखबारों से कि उनका प्रचार कामयाब हुआ और पूरा देश घृणा करने लगा है मुझसे हालांकि, जेल में मिलने आती अपनी नन्ही बच्ची की आंखों में मैं देख लिया करता था अपना चेहरा उसकी आंखें बोलती थीं मैं दोषी नहीं --krishnakant
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
Bookmarks |
|
|