Originally Posted by Dark Saint Alaick
याद आते हैं पुराने हिन्दी फिल्मी गीत
-सागर
सुबह आकाशवाणी की उर्दू सर्विस सुन रहा था। इतने अच्छे फिल्मी गीत आ रहे थे कि काम करते-करते उंगलियां कई बार ठिठक जाती थीं और गीतों के बोलों में खो जाता था। गजलें कई बार दिमाग स्लो कर देती हैं और एक उदास सा नजरिया डेवलप कर देती हैं। कभी कभी इतनी भारी भरकम समझदारी का लबादा उतार कर एकदम सिंपल हो जाने का मन होता है। रेट्रो गाने सुनना, राम लक्ष्मण का संगीत, उनसे कहना जब से गए हैं, मैं तो अधूरी लगती हूं, टिंग निंग निंग निंग। इन होंठों पे प्यास लगी है न रोती न हंसती हूं। लता जब गाती हैं तो लगता है, मीडियम यही है। इन गानों में मास अपील है। सीधा, सरल, अच्छी तुकबंदी, फिल्मी सुर, लय, ताल जो आशिक भी गाएगा और उनको डांटने वाले उनके अम्मी-अब्बू भी। समीर के गीत गुमटी पर पान की दुकान पर खूब बजे। ट्रक ड्राईवरों ने अल्ताफ राजा को स्टार बना दिया। और कई महीनों बाद जब इन गानों पर हमारे कान जाते हैं तो लगता है जैसे दादरा, ठुमरी, ध्रुपद और ख्याल का बोझ हमारा दिल उठा नहीं सकेगा। हम आम ही हैं खास बनना एक किस्म की नामालूम कैसी मजबूरी है। हालांकि यह भी सच है कि देर सवेर अब मुझे इन्हीं चीजों तक लौटना होता है, नींद इसी से आती है और सुकून भी आखिरकार यही देते हैं। शकील बदायूंनी साहब ने वैसे एक से एक कातिल गीत लिखें हैं। याद में तेरी जाग जाग के हम रात भर करवटें बदलते हैं। मोहम्मद रफी के गाए गीत तो सारे क्लासिक लगते हैं। उन्होंने 98 प्रतिशत अपने लिए सटीक गीत चुने और 99 प्रतिशत अच्छे गीत गाए हैं। लचकाई शाखे बदन, छलकाए जाम। वो जब याद आए बहुत याद आए का एक पैरा,कई बार यूं भी धोखा हुआ है, वो आ रहे हैं नजरें उठाए,प्यार के सुकोमल अहसास में से एक है। वहीं लता का गाया,खाई है रे हमने कसम संग रहने की,का एक मिसरा प्रेम को बड़े ही अच्छे शब्दों में अभिव्यक्त करता है। ऐसे तो नहीं उसके रंग में रंगी मैं पिया अंग लग लग के भई सांवली मैं। ये सोच कमाल है जो अंदर तक सिहरा से देते हैं। उदास गीतों में थोड़ी सी बेवफाई के टायटल गीत की वह लाइन,जो रात हमने बिताई मर के वो रात तुमने गुजारी होती या फिर आगे की पंक्तियों में, उन्हें ये जिद के हम पुकारें, हमें ये उम्मीद वो बुलाएं, मुहब्ब्त के कशमकश को शानदार तरीके से व्यक्त करता है। कुमार सानू का सीधी लाइन में गाया, मेरा दिल भी कितना पागल है, एक रेखीय लय में लगता है। इसके अलावा सत्रह साला ईश्क तब फिर से जिगर चाक करता है जब उन्हीं की आवाज में दिल तो ये चाहे पहलू में तेरे बस यूं ही बैठे रहें हम सुनते हैं। ये यादें मेरी जान ले लेगी। पटना के सदाकत आश्रम में लगे सरसों के फूल याद आने लगते हैं। और दिल त्रिकोणमिति बनाते हुए अक्सर किसी सुंदर, मीठे गीत को सुनते हुए सोचता है कि इसे कैसे फिल्माया गया होगा। दरअसल रेडियो यही है, दृश्य को होते हुए कान से देखना। शराबी अमिताभ के जन्मदिन पर किशोर के गाना गा चुकने के बाद नायिका का कहना कि ओ मेरे सजना लो मैं आ गई.. गाते ही म्यूजिक का तेज गति से भागना बंद आंखों से सोचा था तो लगा कि लंबे लंबे पेड़ों के जंगलों में यहां दोनों एक दूसरे को खोजते हुए भाग रहे होंगे। मन के सिनेमा में समानांतर ट्रैक पर हमेशा एक और सिनेमा चल रहा होता है।
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