My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 17-09-2011, 06:43 PM   #11
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

हमसे बस एक ही रोटी बन सकी


हमारी पत्नी बहुत दिनों से घर जाने की जिद कर रही थीं मगर हम हमेशा मना कर देते थे। जब एक बार उन्होंने ताना दिया कि मैं जानती हूँ मेरे बिना घर नहीं सँभल सकता न इसीलिए आप मुझे नहीं जाने देते, तो हमने तुरंत उन्हें उनके घर भेज दिया और कह दिया कि तुम क्या समझती हो हम घर नहीं सँभाल सकते। जाओ, और जब तक तुम्हारा मन करे, अपने घर रहना।
पत्नी के जाने के बाद हम होटल पर खाना खाने लगे थे, मगर जब देखा कि होटल में खाने पर पैसे भी ज्यादा खर्च होते हैं और पेट भी खराब होता जा रहा है तो हमने घर में ही खाना बनाना तय किया। उसी दिन हम खाना बनाने की विधि नाम की एक किताब भी खरीद लाए।
अगले दिन हमने मेज पर किताब खोलकर रख ली और उसमें से पढ़कर एक गिलास आटा थाली में रख लिया। फिर किताब में लिखे अनुसार उसमें नमक मिला लिया। पानी डालकर गूँथ लिया और फिर स्टोव जलाकर उस पर तवा रख दिया। एक रोटी बेलकर तवे पर डाल भी दी। इस तरह एक रोटी तैयार हो गई।
अब हमने दूसरी रोटी बेली और तवे पर डाल दी। मगर अभी तवे पर रोटी डाले एक मिनट भी न हुआ था कि वह तवे से चिपक गई और तीन मिनट में तो जलकर राख हो गई। हमने तीसरी रोटी बेल कर डाली, पर उसका भी दूसरी जैसा ही हाल हुआ और फिर बाकी रोटियों का भी। आखिर मन मारकर हम एक रोटी खाकर रह गए। हमारी समझ में नहीं आया कि बाकी रोटियाँ जल क्यों गईं ?
हमने राजू की मम्मी से जाकर पूछा तो उन्होंने बताया, ‘‘तवा बहुत ज्यादा गरम हो गया होगा और तुमने एक रोटी जलने के बाद तवे को साफ नहीं किया होगा, न स्टोव मंदा किया होगा।’’
दूसरे दिन हम रोटी के झमेले में न पड़कर खिचड़ी बनाने लगे। राजू और रानी भी आ गए थे। हमने स्टोव पर कुकर चढ़ाकर उसमें एक गिलास पानी और एक गिलास चावल-दाल डाल दिए। तभी राजू बोला, ‘‘भाई साहब, दो गिलास पानी और डालिए।’’ तभी रानी बोली, ‘‘नहीं भाई साहब, एक गिलास और डालिए।’’ हमने किताब में देखा। उसमें लिखा था। मनमर्जी। सो हमने तुरंत दो गिलास पानी राजू के कहने पर और एक रानी के कहने पर और एक गिलास अपनी मर्जी से डाल दिया। कुकर बंद कर सीटी लगाई और गप्पें मारने लगे।

इधर हम गप्पें मारते रहे उधर सीटियाँ बजती रहीं। अचानक घड़ाम की आवाज पर हम तीनों ने स्टोव की तरफ देखा। हमारा कुकर जमीन में ओंधा पड़ा था। तमाम खिचड़ी पास में टंगे कपड़ों पर जा लगी थी। हमें काफी देर ढूँढ़ने पर भी कुकर का ढक्कन नहीं मिला। अचानक राजू ने हमें बताया, ‘‘भाई साहब, ढक्कन तो छत से चिपका पड़ा है।’’

अगले दिन इतवार था। हमारे तमाम कपड़े खिचड़ी में सन चुके थे। हमने सोचा, क्यों न आज कपड़े ही धो डालें। हम कपड़े और टब लेकर बाथरूम में जा पहुँचे। टब में कपड़े डालकर नल खोल दिया।
अचानक हमें ध्यान आया कि साबुन तो है ही नहीं। हम तुरंत पैसे लेकर बाजार गए, मगर इतवार को तो हमारे यहाँ का बाजार बंद रहता है। अब क्या हो ? हमने तुरंत बस पकड़ी और दूसरी कॉलोनी जा पहुँचे। वहाँ से साबुन लेकर लौटे तो अपने घर का हाल देखकर हमारी आँखें फटी की फटी रह गईं।
हुआ यह कि हम तो नल बंद करना ही भूल गए थे। इधर इस बीच दो ढाई घंटे नल लगातार चलता रहा सो पूरे मकान और गली में पानी भरा पड़ा था। हमारे कपड़े गली में पानी पर ऐसे तैर रहे थे जैसे समुद्र में मोटरबोट चल रही हो।
हमने झटपट कपड़े समेटे। नल बंद किया और कपड़े व टब कमरे में पटककर मकान में ताला डाल तुरंत पत्नी के मायके जाने वाली गाड़ी में जा बैठे। अगले दिन उन्हें किसी तरह मनामनूकर घर ले आए।
अब उसी दिन से हमारी पत्नी जब देखो तब ताना देती रहती हैं, ‘‘कहो बड़े आए थे घर चलाने वाले। पता लग गया न घर चलाना हँसी खेल नहीं है।’’
अब हम सिर झुकाए चुपचाप उनकी बात सुनने के सिवा कर भी क्या सकते हैं।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 17-09-2011, 07:23 PM   #12
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ


राजा हरिश्चन्द्र के आंसू




वह रो रहा था। सचमुच रो रहा था। जब मैंने उसकी आँखों में टावेल लगाया। कहा, ‘‘भैया, मत रोओ, सिर दुखेगा।’’
उसने कहा, ‘‘होनी को कौन टाल सका है ? देखो, क्या होना था, क्या हो गया।’’ और उसके आंसुओं ने फिर स्पीड पकड़ ली। उसने अचानक पास में रखी हुई मसाला दोचने की लुढ़िया उठायी और अपने सिर पर मारते हुए कहा, ‘‘ले भुगत।’’
उसके सर पर एक बहुत बड़ा गुरमा निकल आया। मैंने टावेल निचोड़कर उसकी आँखों पर रख दिया।

वह फूड इंस्पेक्टर था। यूं उसका रंग वही था, जो भगवान कृष्ण का था, मगर उसके गाल लाल सुर्ख थे। इस सदी में यदि किसी को निखालिस दूध मिलता था, तो उसे ही, क्योंकि वह शहर के होटलों में दूध चेक करता था। उसके बच्चे भी मोटे-ताजे थे और उसकी बीवी गहनों से लदी रहती थी। वह स्वयं घी का व्यापारी नही था पर उसके घर में घी के कनस्तर रखे रहते थे। वह फूड इंस्पेक्टर की नौकरी करता में इतना खुश था कि अगर राष्ट्र के सबसे बड़े पद का आफर भी मिलता, तो वह ठुकरा देता। वह जानता था कि किसी को भी वह एडवांटेज नहीं है, जो फूट इंस्पेक्टर को है।

वह हफ्ते में एक बार शहर के बाहर नाके पर खड़ा हो जाता था और देहात से दूध लाने वाले ग्वालों के दूध में डिग्री लगाता था। यदि दूध में पानी होता, तो वह सैंपल की बोतल भर लेता और गद्वाले से कहता, ‘‘अब कचहरी में मिलना।’’
ग्वाला कहता, ‘‘छोड़ दो मालिक।’’

वह कहता, ‘‘तुम भ्रष्टाचार छोड़ दो।’’

ग्वाला कहता, ‘‘हुजूर, भ्रष्टाचार से तो गृहस्थी चलती है। विशुद्ध दूध बेचूंगा तो शुद्ध गृहस्थी कैसे चलेगी।’’
वह कहता, ‘‘फिर मेरी कैसे चलेगी ?’’
ग्वाला विचार करता।
अब चपरासी कहता, ‘‘अबे, समझा नहीं ? दूध में पानी मिलाता है और अकल नहीं रखता ? चल उधर कोने में।’’
ग्वाला कोने में चला जाता। चपरासी पूछता, ‘‘कितना दूध लाता है ?’’
‘‘बीस सेर।’’
‘‘पानी कितना डालता है ?’’
‘आधा।’’

‘‘साले, भ्रष्टाचार के घूस-रेट फिक्स हैं। अगर तू बीस सेर में दस सेर दूध लाता है तो पांच रुपये हफ्ता देना पड़ेगा। ज्यादा जल डालेगा तो हफ्ते के रेट भी बढ़ जायेंगे।’’

‘‘अगर मैं बिलकुल न मिलाऊं तो ?’’
चपरासी खीझ जाता। कहता, ‘‘अबे, पानी तो मिलाया ही कर। वरना तू क्या खायेगा और हम क्या खायेंगे ? हमारे साहब को भी दूध में पानी मिलाने में एतराज नहीं है। उन्हें एतराज है हफ्ता न देने का। अब तू जा और दूसरे दूध वालों को समझा दे। मिल-जुलकर जो होता है, वह भ्रष्टाचार नहीं होता।’’
ग्वाला टेंट से पांच रुपये निकालता और चपरासी को दे देता। आगे जाकर वह नगरपालिका के नल से और पानी मिला देता, क्योंकि पांच रुपये की चेंट वह क्यों भोगे ?’’
वह रोये जा रहा था। तौलिया भीगकर वजनदार हो गया।
उसने रोते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पास टिक ट्वेंटी है ?’’
मैंने कहा, ‘‘नहीं।’’

वह बोला, ‘‘मैं पैसे देता हूं। ला सकते हो ?’’

मैंने कहा, ‘‘आज दुकान बंद है।’’
वह बहुत निराश हुआ और रोने लगा। उस समय वह आत्महत्या करने के मूड में था और मूड का कोई भरोसा नहीं, कब बदल जाये, इसलिए लगातार रो रहा था।
मैंने कहा, ‘‘उठो और मुंह धो लो। तुम्हारी क्या गलती थी ? तुमने तो अपना कर्तव्य किया।’’ वह चिढ़ गया। बोला, ‘‘कर्तव्य ने ही तो मुझे डुबाया। कर्तव्य करके इस जमाने में कौन सुखी हुआ है ?’’
मैंने उसे पहली बार इतना दार्शनिक होते हुए देखा था। दूध की डिग्री से वह दर्शन पर कैसे आ गया, वह एक गोलाईदार बात है ?’’

मैंने कहा, ‘‘फिर तुमने सैंपल की बोतलें फार्वर्ड क्यों कर दीं ?’’

वह बोला, ‘‘बोतलें मैंने तो धमकी देने के लिए धरी थीं। पर वह मिलने नहीं आया तो मैं क्या करूं। ड्यूटी ही कर डाली। नीति कहती है कि जब जनता के साथ बेईमान न हो सको तो सरकार के साथ ईमानदार हो जाओ। अच्छे कर्मचारी की यही परिभाषा है।’’
मैंने कहा, ‘जब इतना समझते हो तो रोते क्यों हो ? आखिर सरकार तो तुमसे खुश है।’’
वह चिढ़ गया। बोला, ‘‘नहीं, सरकार ने भी उस पार्टी का साथ दिया, जिसके खिलाफ मैंने मिलावट का केस चलाया। कर्त्तव्यपरायणता ने मुझे मार डाला। आह !’’ फिर पूरा किस्सा सुनाया।
....कुछ हफ्ते पहले की बात है, वह डिग्री लेकर बाजार में खड़ा था। उसे पता चला कि कुछ नये दूधवालों ने धंधा शुरू किया है और बिना ‘हफ्ता’ दिये मिलावट का दूध बेचते हैं। इससे जनता के स्वास्थ पर भी भारी असर पड़ता था और उसकी कमाई पर भी। सो, उसने चपरासी से कहा, ‘‘देखो कालूराम,’’ मैं सामने मंदिर के पीछे छिप जाता हूं। जैसे ही कुप्पे आयें, तुम पूछ-पूछ कर छोड़ते जाना। जो काम का है, उसे रोक लेना।’’

चपरासी ने कहा, ‘‘जी हाँ, हुजूर। मैं देख लूंगा। फिकर मत करें। यह कोई आज का काम तो है नहीं ?’’

साहब बहुत खुश हुआ और मंदिर के पीछे छिप गया। थोड़ी देर में दूध वाले आने लगे। चपरासी ने पहली साइकिल को रोका। पूछा, ‘‘हफ्ता दे दिया ?’’
दूधवाले ने कहा, ‘‘साहब के घर जाकर दिया है।’’ चपरासी ने साइकिल छोड़ दी। कुछ देर बाद दूसरी साइकिल आयी। यह एक नये दूधवाले की थी। चपरासी ने उसे भी रोका। दूधवाले ने पूछा, ‘‘क्या बात है ?’’
चपरासी ने कहा दूध में डिग्री लगेगी।’’
दूधवाले ने कहा, ‘‘सबके दूध में लगती है ?’’
चपरासी बोला, ‘‘लग भी सकती है और नहीं भी लग सकती। यह तो हमें तय करना है कि किसके दूध में डिग्री लगेगी। तुमने ‘हफ्ता’ नहीं दिया इसलिए तुम्हारे दूध में लगेगी।’’
‘‘अगर मैं हफ्ता न दूं तो ?’’

चपरासी खिलखिलाकर हंसा। बोला, ‘‘फिर कानून किसलिए है ? यहीं पर तो हम कानून का सहारा लेते हैं।’’

दूधवाले ने कुछ न कहा और जाने लगा। चपरासी ने इशारा किया और साहब मंदिर के पीछे से निकल आये। आते ही बोले, ‘‘ऐ रुको, डिग्री लगेगी।’’
साहब ने डिग्री लगायी। बोतलें भरी और दूध वाले से कहा, ‘‘जाओ, बाद में हमसे मिल लेना। या तो कुछ होगा नहीं या बहुत कुछ होगा। सोच लेना।’’

दूधवाला सर झुकाकर चला गया।....

मैंने कहा, ‘‘यार, चुप भी हो जाओ। देखो पूरी दरी भीग गयी है।’’
वह कहने लगा, ‘‘अजातशत्रु भाई, मैंने तीन दिन दूधवाले की राह देखी। बोतलें जाँच के लिए नहीं भेजीं। सोचा कि वह जरूर आयेगा। शुद्ध दूध कब तक बेचेगा, पर वह नहीं आया। लाचार होकर मैंने सैंपल की बोतलें ‘फारवर्ड’ करवा दीं। तुम्हीं बताओ, जब घूस न मिले तो अपनी ड्यूटी नहीं करनी चाहिए ?’’
मैंने कहा, ‘‘करनी चाहिए।’’
उसे राहत हुई और उसने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘और, भैया, थोड़े ही दिनों में ‘पब्लिक एनालिस्ट’ (दूध-विश्लेषक) की रिपोर्ट आ गयी। उस दूध वाले पर केस कायम हो गया। दूध में पानी निकला।’’
मैंने कहा, ‘‘ठीक है, उसे सजा मिलनी चाहिए।’’

वह बिगड़ उठा। बोला, ‘‘जानते-समझते नहीं हो, बीच में क्यों बोल पड़ते हो। कल शाम को ही उस दूधवाले के एक रिश्तेदार आए थे। वे सामाजिक कार्यकर्ता हैं और मेरे मित्र हैं। उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘यार डायन भी एक घर छोड़ देती है तुमने हमारे आदमी का ही दूध पकड़ लिया।’

‘मैं बहुत लज्जित हुआ, क्योंकि पिछले साल जब मेरे खिलाफ नगर भ्रष्टाचार उन्मूलन युवक समिति ने शासन को लिखा था और रातोंरात मेरा तबादला करवाया था, तब इन्हीं सज्जन ने मेरा ट्रांसफर रुकवाया था और उक्त समिति के नेता को पिटवाया था।’’

‘‘तुमने उन्हें क्या सफाई दी ?’’ मैंने पूछा।

वह बोला, ‘‘मैंने जवाब दिया कि मामा जी, अगर मुझे पता चलता कि यह आपके आदमी का दूध है तो मैं खुद उसे सलाह देता कि पानी डाल ले, पर उसने भी कुछ नहीं बताया। फिर मैंने बोतल भी खोल रखी थी, पर वह नहीं आया। अब तो मैं कुछ कर नहीं सकता। उसे बचाऊंगा तो खुद फस जाऊंगा।’’
इतना कहकर वह चुप हो गया और गर्दन नीचे झुका ली।
मैंने बाल-जिज्ञासा से पूछा, ‘‘अब क्या होगा ?’’

‘‘होगा क्या ? हो चुका है।’’ उसने कहा, ‘‘उस दूधवाले के रिश्तेदार ने ऊपर जाकर मेरा ट्रांसफर करा दिया है। कहा है, ‘‘और लगा ले दूध में डिग्री ?’’ और इतना कहकर वह दहाड़ें मार कर रो उठा। मेरे पास अब गद्दा बचा था, इसलिए मैंने उसे ही उसकी आंखों से लगा दिया। वह रोते हुए कहता जा रहा था, ‘‘देखो, मैंने अपनी ड्यूटी की, तो सरकार ने ट्रांसफर कर दिया। अब कितना भरोसा करूं—ईमान का या बेईमानी का ?’’

गद्दा गीला होता जा रहा था। मुझे उसकी चिंता थी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 17-09-2011, 09:10 PM   #13
sagar -
Exclusive Member
 
sagar -'s Avatar
 
Join Date: Feb 2011
Posts: 5,528
Rep Power: 41
sagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond reputesagar - has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

मजेदार कहानिया हे ...
sagar - is offline   Reply With Quote
Old 17-09-2011, 11:02 PM   #14
MissK
Special Member
 
MissK's Avatar
 
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36
MissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond reputeMissK has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

लाजवाब कहानियों का संग्रह है आपके सूत्र में मलेठिया जी!!
__________________
काम्या

What does not kill me
makes me stronger!
MissK is offline   Reply With Quote
Old 17-09-2011, 11:38 PM   #15
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

Quote:
Originally Posted by missk View Post
लाजवाब कहानियों का संग्रह है आपके सूत्र में मलेठिया जी!!
सूत्र भ्रमण व प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद ..........
malethia is offline   Reply With Quote
Old 09-11-2011, 09:53 PM   #16
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

(घर की छत के ऊपर से हवाई जहाज के उड़ने की आवाज, अखबार पलटने की आवाज।)
गेंदा सिंह- अरे शकुंतला सुनती हो । जरा इधर आना ।
शकुंतला – क्या है? मैं किचन में बिजी हँ । वहीं से बता दीजिये ।
गेंदा सिंह- अरे दो मिनट के लिये इधर तो आ जाओ । एक बड़ी बढ़िया खबर छपी है ।
शकुंतला – देखिये अगर मैं सवेरे सवेरे अखबार पढ़ने ल्रगूंगी तो शिव शंकर को स्कूल जाने में देर हो जायेगी और आप भी आफिस लंच के समय ही पहुंचोगे ।
गेंदा सिंह- अरे जरा इधर तो आओ । अखबार में ऐसी खबर छपी है कि अगर यह बात सच हो जाये तो तुत्हारा बचपन का सपना सच हो जाये ।
शकुंतला – (कमरे में आती है) देखिये मेरे बचपन के सपनों की तो आप बात मत ही कीजिये । जब से ब्याह कर आयी हँ एक भी सपना आपने सच नही किया, इसलिये अब न तो सपने देखती हँ और न ही पुराने सपनों को याद करती हूँ । हाँ एक सपना मैंने बहुत दिन तक देखा था कि मैं इंटर पास हो जाऊं । पर इस घर-गृहस्थी के चक्कर में मेरा वह सपना भी टूट गया । अब तो मेरा यह सपना मेरा बेटा शिव शंकर ही पूरा करेगा । आप से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार है।
गेंदा सिंह- अरे देवी जी धीरे बोलो । क्यों तुम पड़ोसियों को मेरा बायो-डेटा बताने पर तुली हो ? बड़ी मुश्किल से तो तीन बार में किसी तरह इंटर और पांच साल में बी.ए. पास की है । अब क्या तुम्हारे लिये मैं फिर इंटर की परीक्षा में बैठूं ।
शकुंतला – अब जल्दी से अपनी बात बोलिये क्यों गडे मुर्दे उखाड़ रहे हैं । दाल चढ़ा कर आयी हँ । जल गयी तो शिवू बिना खाये ही चला जायेगा ।
गेंदा सिंह – देखो अखबार में लिखा है कि लातविया के वैज्ञानिक एक टू सीटर हवाई जहाज बना रहे हैं, जो हल्का और छोटा तो है ही, उसकी कीमत भी मात्र पांच लाख रूपये है ।
शकुंतला – कल से ये पेपर मंगाना बंद । पहली अप्रेल निकले दो महीने हो गये और ये लोग अप्रेल फूल आज मना रहे हैं । मेरी सब्जी जल रही है । दाल भी जल गई तो शिवू बिना खाना खाये ही चला जायेगा । आप फ्र्री फंड में बैठे हैं तो आप ही पढ़िये । दस मिनट बाद जब नल चला जायेगा तब बैठ कर खाली बाल्टी झांकियेगा । मैं चली । (बड़बड़ाते हुये) मुंआ न जाने कैसा इनका दफ्तर भी है, जो ग्यारह बजे के पहले खुलता भी नहीं । अभी वो ज्ञान चंद भी आ जायेगा कचहरी जामने के लिये ।
गेंदा सिंह – हुंह दसवीं पास । जब भी हवाई जहाज छत के ऊपर से गुजरता है तो आंगन में खड़ी हो जाती है । बचपन का सपना है कि हवाई जहाज में बैठेंगी । अब जब हवाई जहाज इतना सस्ता होने जा रहा है तो अखबार बंद कर दो ।
(डोर बेल बजने की आवाज और शकुंतला की किचन से आवाज)
शकुंतला - सुनिये, दरवाजा खोल दीजिये । ज्ञानजी आये होंगें ।
(दरवाजा खुलने की आवाज)
गेंदा सिंह- आओ भाई ज्ञान चंद । बिटिया को स्कूल छोड़ आये ।
ज्ञान चंद- हाँ । छोड़ आया । और क्या खबर है अखबार में ?
गेंदा सिंह- अमां यार ये डेली धमाका अखबार रोज कोई न कोई धमाका करता रहता है । अब बताओ भला पांच लाख रूपये में कहीं हवाई जहाज भी मिल सकता है । बैठे बैठे ख्याली पुलाव पकाते हैं और हम लोगों को खिलाते हैं ।
ज्ञान चंद- क्या कह रहे हो गेंदा सिंह । पांच लाख में हवाई जहाज ? कौन बना रहा है ? कहाँ छपा है? दिखाइये हम भी तो देखें ।
गेंदा सिंह- लो तुम भी पढ़ लो । ये सबसे ऊपर छपा है । अब पांच लाख में मिलेंगे हवाई जहाज
( अखबार के पन्ने पलटने की आवाज)
ज्ञान चंद- अमां क्या खाक पढ़ूं । चश्मा तो घर पर ही भूल के आ रहा हूँ । तुम ने खबर पढ़ी होगी तुम ही बता दो क्या लिखा है अखबार में ।
गेंदा सिंह- तुम भी यार, भाभी को तो बिना चश्मे के भी एक किलोमीटर दूर से पहचान लेते हो और अखबार पढ़ने के लिये चश्मा लगाते हो ।
ज्ञान चंद- तुम से कितनी बार कहा है कि मेरी दुखती रग पर पांव मत रखा करो ।
गेंदा सिंह- दुखती रग पर हाथ रखा जाता है ज्ञान चंद, पैर नहीं । थोड़ा मुहावरों पर तो रहम किया करो । ज्ञान चंद- वही यार, एक ही बात है। चाहे पैर रखो या हाथ । दर्द तो दुखती रग को ही होना है न, फिर पैर रखना मुहावरे की सुपरलेटिव डिग्री है । तो मैं कह रहा था कि शिकारी शेर के शिकार के लिये जिस बकरी को चारे के लिये इस्तमाल करता है, उस बकरी को शेर की गंध दूर से ही पता चल जाती है । मैं भी अपनी बीबी के सामने बकरी ही हँ । वो हर रोज मेरा शिकार करती है ।



जारी...........

__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 09-11-2011, 09:55 PM   #17
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

गेंदा सिंह- चलो छोड़ो भी तुम तो खामखाह अच्छी भली भाभी को बदनाम करते फिरते हो । फिर ताली एक हाथ से नहीं बजती है ।
ज्ञान चंद- छोड़ो ये सब बातें तुम तो वो हवाई जहाज की कहानी बताओ । इतना सस्ता जहाज बना कौन रहा है ।
गेंदा सिंह- हाँ तो सुनो, लातविया एक देश है । वहाँ के वैज्ञानिक लोग लगे हैं एक सस्ता, हल्का, टिकाऊ और छोटा सा हवाई जहाज बनाने में । कीमत होगी मात्र नौ हजार डॉलर । यानि की पचास से गुणा करने पर भारतीय रूपये में होगा साढ़े चार लाख रूपये । पचास हजार तुम टैक्स वगैरह जोड़ लो । इस तरह से पांच लाख रूपये का इंतजाम करना पड़ेगा । बस ।
ज्ञान चंद- हूँ! बात तो तुम ठीक कह रहे हो पर विश्वास नही होता है गेंदा सिंह जी । इतना सस्ता हवाई जहाज ?
गेंदा सिंह- बात तो तुम्हारी भी ठीक है, पर ज्ञान चंद आज विज्ञान इतना तरक्की कर गया है कि आज सब कुछ संभव है । फिर हमें थोड़े ही बनाना है जहाज । यह तो लातविया वालों का सिर दर्द है । हमें तो बस पांच लाख रूपये इकट्ठे करने हैं और इंतजार करना है कि कब यह जहाज बन कर तैयार होगा और कब भारत में बिकने के लिये आयेगा । यार जब से पढ़ा है सब्र नहीं होता ।
ज्ञान चंद- गेंदा सिंह जी और भी तो कुछ छपा होगा अखबार में जहाज के बारे में ।
गेंदा सिंह- हाँ हाँ क्यों नहीं । ये जहाज बनेगा फाइबर और डयूरालोमिनियम से ।
ज्ञान चंद- कौन से मिलेनियम से ?
गेंदा सिंह- अमां यार मिलेनियम से नहीं डयूरालोमिनियम से । इस जहाज को उड़ने के लिये एक छोटी सी हवाई पट्टी की जरूरत पड़ेगी । सो इसके लिये अपनी छत से काम चल जायेगा । मकान मालिक माधो जी थोड़ा बड़बड़ायेगें पर उनको एकाध बार जहाज में घुमा दिया जायेगा तो वो भी खुश हो जायेंगे । छत पर एक फूस की मड़ई है । अपना पुष्पक विमान रात में वही विश्राम करेगा । इस जहाज में वैसे तो दो इंजन होंगे पर वह उड़ेगा एक से ही । बस टेक ऑफ के समय दो इंजनों की जरूरत पड़ेगी ।
ज्ञान चंद- ये बढ़िया है । एक इंजन से उड़ेगा तो पेट्रोल की बचत भी होगी और पैसों की भी । कंबख्त पेट्रोल वैसे भी आज कल 54 रूपये लीटर चल रहा है । इसी बहाने हम लोग पेट्रोल पंप का मुंह भी देख लेंगे क्योंकि अपनी मर्सडीज में तो सिर्फ बरसात बाद ही ऑयलिंग ग्रीसिंग होती है ।
गेंदा सिंह- ज्ञान चंद चुप कर । मुझे पहले जहाज की खबर तो पूरी सुना लेने दे फिर अपना ज्ञान बांचना । और साइकिल को मर्सडीज मत कहा कर । मर्सडीज वालों ने सुन लिया तो अपने सिर के बाल नोंच डालेंगे ।

cont..............
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 09-11-2011, 09:58 PM   #18
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

ज्ञान चंद- देखिये गेंदा सिंह जी मेरे लिये तो वह टुटही साइकिल मर्सडीज से कम नहीं है । आप जहाज के बारे में आगे बताइये ।
गेंदा सिंह- इस जहाज में सुरक्षा के भी बेहतरीन इंतजाम होंगे । किसी भी दुर्घटना के समय इसकी सीट आपको पैराशूट के साथ बाहर फैंक देगी ।
ज्ञान चंद- जहाज का बीमा तो होगा ही इसलिये नुकसान की भी चिंता नहीं होगी । क्या बात है ! आर्थिक और शारीरिक दोनों ही नुकसान से बचाव हो जायेगा ।
(हवाई जहाज की आवाज)
गेंदा सिंह- अरे सक्कू आज तो जल्दी तैयार हो जाती । (बड़बड़ाता है) ये औरतें भी तैयार होने में इतना समय लगाती हैं कि इतने में चिड़िया खेत चुग कर अंडे भी दे देगी । (तेज आवाज में) अरे तुम्हारा मेकअप नीचे से दिखाई नहीं देगा । हम लोग शहर का एक चक्कर लगा कर लौट आयेंगे ।
शिव शंकर- पापा, पापा में तो तैयार हो गया ।
गेंदा सिंह- ओये राजाबाबू, ये स्कूल का बस्ता क्यों पीठ पर लादे हुये है? तेरे स्कूल में इत्ती जगह नहीं की हमारा जहाज लैंड कर सके । आज तेरी छुट्टी है । जा कर अपनी माता जी को ले कर आ ।
शकुंतला- गला फाड़ कर क्यों चिल्लाते रहते हो । एक तो वैसे ही कौन सा घुमाने ले जाते हो । साल में एकाध बार घुमाने ले जाते हैं तो क्या ढंग के कपड़े भी न पहनूं । और सुनिये जरा सुशीला के घर भी होते चलियेगा, उसको पांचवा बच्चा हुआ है, उसका हाल चाल लेते चलेंगे ।
गेंदा सिंह- सक्कू डार्लिंग, रिश्तेदारों को जलाने के लिये फिर कभी चले चलेंगे । आज तो इस जहाज का फैमिली ट्रायल लिया जायेगा । शहर का एकाध चक्कर लगा कर घंटे भर में लौट आयेंगे ।
शकुंतला- मैंने तो पिक्चर का भी प्लान बनाया था । प्लाजा में जय संतोषी माँ लगी है । शुक्रवार का दिन है देख लेते तो बड़ा पुण्य होता ।
गेंदा सिंह- सक्कू प्लाजा में कार पार्क करने की तो जगह है नहीं । लोग गली में खड़ी कर देते हैं । अपना जंबो जेट वहाँ कहाँ खड़ा होगा । छत भी उस पिक्चर हॉल की टीन की बनी है कि वहीं खड़ा कर देते । पिक्चर फिर दिखला दँगा ।
शकुंतला- बहाना मत बनाइये । जहाज ले कर आफिस चले जायेंगे और उस मुई सुलेखा को हर दिन घर छोड़ते हुये आयेंगे । सब जानती हूं मैं ।
गेंदा सिंह- अरे उस बिचारी सुलेखा ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है । मूड मत घराब करो मेरा, जल्दी से जहाज में बैठा जाओ । आज पहली बार जहाज उड़ाने जा रहा हूँ, फे्रश मूड से जहाज उड़ाने दो मुझे।
शकुंतला- हुंह ।
शिव शंकर- पापा मैं कहाँ बैठूं । यहाँ तो सिर्फ दो ही सीट है ।
गेंदा सिंह- बेटा तू मम्मी की गोद में बैठ जा । कल तेरे वास्ते एक छोटी सी सीट इसमें लोहार से बैल्ड करवा दूंगा ।
(जहाज के घुरघुराने की आवाज)
शकुंतला- क्यों जी ये स्टार्ट क्यों नहीं हो रहा है ।
गेंदा सिंह- पता नहीं क्या बात है । कोशिश तो कर रहा हँ ।
शकुंतला- कंपनी वालों को पहले एकाध बार चला कर दिखाना चाहिये था । ट्रक पर लाद कर लाये और क्रेन से उठा कर छत पर रख कर चले गये । देखिये किताब में कुछ दिया होगा । कुछ अंजर पंजर तो बने थे किताब में ।
शिव शंकर- पापा रिंकी के पापा का स्कूटर जब र्स्टाट नहीं होता तो वो उसको टेढ़े कर के र्स्टाट करते हैं!




cont ...............
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 09-11-2011, 10:00 PM   #19
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

गेंदा सिंह- अरे हाँ । चोक लेना तो भूल ही गया था । लो अब र्स्टाट हो जायेगा ।
(जहाज के र्स्टाट होने की आवाज और उड़ने की आवाज)
शकुंतला- एजी सुनिये । आप बहुत तेज जहाज उड़ाते हैं । मुझे चक्कर आ रहा है । थोडा धीरे उड़ाईये ।
गेंदा सिंह- अरे ये साइकिल नहीं है, पांच लाख का हवाई जहाज है । धीरे धीरे साइकिल चलती है जहाज नहीं । …..वो देखो तुम्हारा मायका आ गया । हमारे फादर इन लॉ निकर पहन कर छत पर बैठे लाल मिर्च सुखा रहे हैं । ऊपर से ही प्रणाम कर लो अपने पिता जी को ।
शिव शंकर- पापा मामाजी भी बैठे हैं दीवार के पीछे । नाना जी से छुप कर नावेल पढ़ रहे हैं ।
गेंदा सिंह- कितनी बार मना किया है साले को की नॉवेल पढ़ना छोड़ कर कोर्स की किताब पढ़ा कर । पर लगता है ये चौथी बार भी हाई स्कूल पास नहीं कर पायेगा ।
शकुंतला- आप को तो बहाना चाहिये मेरे भाई को डाटने का ।
गेंदा सिंह- काम ही ऐसा करता है तो क्या करें ।
शकुंतला- सुनिये, सरिता दीदी के घर की तरफ चलिये न । जीजा जी भी घर पर होंगे ।
गेंदा सिंह- चलेंगे, चलेंगे । अगले इतवार सबके यहाँ चलेंगे । आज इसका एवरेज वगैरह तो नाप लिया जाये, कि पता चला बीच रास्ते में पेट्रोल खत्म हो गया तो कहीं सड़क पर उतारना पड़ जायेगा।
शकुंतला- देखते हैं आपको अगले इतवार तक याद रहता है कि नहीं ।
गेंदा सिंह- अरे वो नीचे देखो, ज्ञान चंद अपनी दादाजी की साइकिल पर सब्जी मंडी से सब्जी खरीद कर आ रहा है । (चिल्ला कर) ओ ज्ञान । ज्ञान चंद ऊपर देख । ज्ञान… चंद.. ।
शकुंतला- अरे चुप भी रहिये । पूरा शहर देख रहा है आपको । ऐसे हलक फाड़ कर चिल्लायेंगे तो शहर भर की चीलें जहाज के पास इक्कठी हो जायेंगी ।
गेंदा सिंह- सलाह के लिये शुक्रिया ।
शिव शंकर- वो देखिये पापा कितनी पतंगे उड़ रही हैं । एक पतंग तोड़ कर दीजिये न ।
गेंदा सिंह- ना, ना । हाथ खिड़की से बाहर नहीं निकालते शिवू । हाथ अंदर करो । उड़ते जहाज में से हाथ पैर बाहर नहीं निकालते । एक्सीडेंट हो जायेगा ।
शिव शंकर- पापा एक ठो पतंग लूट लेने दो । बस एक ठो ।
गेंदा सिंह- नहीं, नहीं । हाथ अंदर करो । नहीं, नहीं ।
(हवाई जहाज की आवाज)
ज्ञान चंद- अरे सिंह साहब क्या हो गया आपको । ये बैठे बैठे क्या नहीं नहीं करने लगे । जहाज खरीदने का विचार त्याग दिया क्या आपने ।
गेंदा सिंह- (संभल कर) हाँ, हाँ । क्या । कुछ नहीं । कुछ नहीं । क्या कह रहे थे ।
ज्ञान चंद- मैं कह रहा था कि जहाज का बीमा तो होगा ही ।
गेंदा सिंह- हाँ, हाँ, क्यों नहीं होगा । साईकिल थोड़े ही है जो बीमा वाले छोड़ देंगे । बीमा तो करवाना ही पड़ेगा ।
ज्ञान चंद- करवा लेंगे । बीमा भी करवा लेंगे । इतनी मंहगी चीज जो है । चोरी चकारी का भी तो डर लगा रहता है ।
गेंदा सिंह- लेकिन इस जहाज को लेकर हवाई प्रशासन थोड़ा परेशान है ।

ज्ञान चंद- वो किसलिए ।
गेंदा सिंह- वो इसलिये, जहाज सस्ता हो जायेगा तो हर कोई मारूति 800 छोड़ कर जहाज पर ही चलेगा । आसमान में ट्रैफिक जाम होगा, एक्सीडेंट होगा । ऊपर आसमान में टै्रफिक लाइटें और सिग्नल लगाने पड़ेंगे । कोई आदमी टै्रफिक के नियम तोड़ कर भागेगा तो टै्रफिक पुलिस वाला बुलेट पर बैठ कर तो उसको चहेटेगा नहीं । उस को भी तो एक हवाई जहाज चाहिये कि नहीं, दौड़ा कर पकड़ने के लिये ।


cont.............
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 09-11-2011, 10:01 PM   #20
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: हास्य कहानियाँ

ज्ञान चंद- बरोबर बोलते हो गेंदा सिंह जी । खर्च तो प्रशासन का भी बढ़ जायेगा । उनकी वो जाने, मैंने तो अपने खर्च का हिसाब मन ही मन लगा लिया है ।
गेंदा सिंह- कैसा हिसाब मन ही मन में लगा लिया हुजूर ने ।
ज्ञान चंद- देखिये गेंदा सिंह जी अगर कोई ऐसा जहाज बन कर मार्केट में बिकने आता है तो मैंने उसको खरीदने का निश्चय कर लिया है । पांच लाख होती क्या चीज है । आज कल तो छोटी मोटी कार पांच लाख की आती है । और फिर सरकार के लिये पांच लाख रूपये क्या मायने रखते हैं ।
गेंदा सिंह- क्या मतलब । आप सरकार के पैसों से जहाज खरीदना चाहते हैं । वह कैसे ?
ज्ञान चंद- आप तो जानते ही हैं कि मेरी मर्सडीज, जिसे आप साइकिल कहते हैं, वह मेरे दादाजी के जामाने की है । एंटीक पीस है । पुरातत्व वाले हाथ धो कर उसके पीछे पड़े हुये हैं । उस साइकिल का तो ऐतिहासिक महत्व भी है ।
गेंदा सिंह- ऐतिहासिक महत्व भी है । वह कैसे ?
ज्ञान चंद- अरे आप को नहीं पता । पूरे मोहल्ले को पता है । सन 1939 के चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने इसी साइकिल पर चढ़ कर कन्वेसिंग की थी । मेरे दादाजी भी कांग्रेस के चवन्निया मेंम्बर थे । इस तरह से हुई न ऐतिहासिक साइकिल । मैं सरकार से दरख्वास्त करूंगा कि इस राष्ट्रीय संपत्ति को अब मैं राष्ट्रीय संग्रहालय को सौंपना चाहता हँ और बदले में अगर वो मुझको कोई मूल्य देना चाहती है तो मुझको कतई इंकार नहीं होगा । मैं दान दहेज को गलत मानता हूँ, इसलिये अपनी यह साइकिल राष्ट्रीय संग्रहालय को दान नहीं करूंगा । इससे सरकार की भी बेइज्ज़ती होगी कि बताओ इत्ती बड़ी सरकार हो करके एक पुरानी कबाड़ साइकिल का मूल्य भी नहीं चुका सकती । बस केवल दस लाख की ही तो बात है ।
गेंदा सिंह- दस लाख रुपये ! इतने रूपयों का तुम क्या करोगे । जहाज तो पांच लाख में ही आ जायेगा।
ज्ञान चंद- जहाज तो पांच लाख में तो आ जायेगा पर पेट्रोल भी तो भरवाना पड़ेगा । दो तीन साल के पेट्रोल का भी तो इंतजाम करना पड़ेगा ।
गेंदा सिंह- वाह भाई ज्ञान चंद तुम्हारा तो इंतजाम हो गया । पर मेरी साइकिल को कौन खरीदेगा । वह तो अभी मात्र 32 साल ही पुरानी है । चुनाव में तो नहीं, हाँ एक बार दंगे में फंस गई थी सो 15 दिन थाने में पड़ी रही । पुलीस वालों ने 15 दिन इस पर खूब सवारी ठोंकी । वापस आने पर 200 रूपये ओवरहालिंग में लगे सो अलग ।
ज्ञान चंद- भाई गेंदा सिंह जी आज कल इतने एक्सीडेंट होते हैं उसकी एक बड़ी वजह है कि लोग बाग पी पा कर गाड़ी चलाते हैं । अब ऐसे ही जहाज भी उड़ाने लगे तो हो गया । अपना तो मरेंगे ही, जिसके सिर पर कूदेंगे वो भी बेचारा गया काम से ।
गेंदा सिंह- हाँ ये तो है ही । … एक आइडिया आया है दिमाग में । विज्ञान इत्ता तरक्की कर गया है तो एक मशीन ऐसी बनाये जो जहाज में हेंडिल के पास फिट हो सके । वो मशीन पायलट की नाक सूंघ कर यह पक्का करे कि ड्राईवर पी पा कर तो नहीं आया है । जहाज का कम्प्यूटर घुसते ही चेतावनी दे-दे कि नशा पत्ती करने वाले, नशा उतरने के बाद ही जहाज पर चढ़ें, नहीं तो मरे।
ज्ञान चंद- ये आइडिया ठीक रहेगा ।
( शकुंतला का कमरे में प्रवेश )
शकुंतला- यात्रियों को सूचित किया जाता है कि हमारा जहाज भटिंडा पहुंच चुका हैं, कृपया अपनी अपनी बेल्ट बांध लीजिये । बाहर का तापमान 25 डिग्री सेल्सीयस है और चाय का तापमान 98 डिग्री । लीजिये ज्ञान भइया गर्म गर्म चाय पीजिये । बहुत आसमान में उड़ चुके अब धरती पर उतरिये । (गेंदा सिंह से) शिव शंकर कब का बस्ता लटका कर तैयार बैठा है । उसको आज फिर स्कूल के लिये देरी हो जायेगी । आपकी साइकिल उसने कपड़े से रगड़ कर चमका दी है । उसको ही हवाई जहाज मान कर अब काम पर निकलिये ।
गेंदा सिंह- अरे! दस बज गये । आज फिर देरी हो गई । ये अखबार वाले भी कहाँ कहाँ की उड़ा कर ले आते हैं और हम लोग भी हंस की चाल चल देते हैं ।
ज्ञान चंद- हाँ गेंदा सिंह जी ऐसी खबरें तो हर दिन निकला करती हैं कि पानी से चलेंगी कारें, हवा से चलेंगी गाड़ियां । पर जब तक चलेंगी हम लोग दादा-नाना बन चुके होंगे ।
गेंदा सिंह- और हम लोग अभी से ही ख्याली पुलाव पका कर खाये जा रहे हैं । चल भइये ज्ञान चंद तेरे को भी तो ऑफिस की देर हो रही होगी ।
ज्ञान चंद- हाँ हाँ, चलता हूँ । जरा चाय तो पी लूँ । आपके जहाज के चक्कर में मैं तो अपनी मर्सडीज ही बेचने जा रहा था । उसका मुकाबला भला कोई हवाई जहाज क्या कर सकता है । न पेट्रोल की जरूरत और न लाइसेंस की । …..वाह भाभी, आपकी चाय का भी जवाब नहीं । ऐसी कड़क चाय तो दार्जलिंग वालों को भी नसीब नहीं होती होगी ।
(साइकिल की घंटी की आवाज)
शिव शंकर- पापा जल्दी चलिये । आज फिर स्कूल को देरी हो गई ।
गेंदा सिंह- ओये ठहर जा अपने बाप के पुत्तर । मेरे कू तैयार तो हो लेने दे ।
(उड़ते हुये जहाज की आवाज )
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:59 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.