02-08-2011, 08:18 PM | #41 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
आज स्वप्न में देख तुम्हें झंकार उठे वीणा के स्वर शायद जैसे तुमने मुझको याद किया अन्तरमन से ! जैसे तड़प उठी हो सजनी ! करके यादें प्यार की ! लगता पहली बार महकती, बगिया अपने प्यार की ! कैसे भूल सकी होगी तुम ? मिलना पहली बार का ! कैसे सह पायी होगीं इस तरह बिछड़ना प्यार का ? लगता कोई सखी सहेली , याद दिलाये प्यार की ! मन में उठती आज महक क्यों सुमुखि हमारे प्यार की कैसे प्रिये ,छिपा पाऊं यह प्रीति भला अपने मन में कैसे भला बता पाऊं जो टीस उठे मेरे दिल में मन में आता है बतला दूं , सबको बातें प्यार की ! लगता सारा गगन पढ़ रहा, पोथी अपने प्यार की ! लोग पूंछते तरह तरह के प्रश्न, लिए शंका मन में , किसको क्या बतलाऊं कैसा रंग चढ़ा ?व्याकुल मन में , गली गली में चर्चा चलती, सजनी अपने प्यार की ! लिख लिख बारम्बार फाड़ता , पाती अपने प्यार की !
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26-08-2011, 08:43 PM | #42 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
गीतों में-
इस पार उस पार एकांत संगीत क्या भूलूँ क्या याद करूँ कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ कोई पार नदी के गाता जीवन की आपाधापी में जो बीत गई सो बात गई ड्राइंगरूम में मरता हुआ गुलाब तुम मुझे पुकार लो दिन जल्दी-जल्दी ढ़लता है पथ की पहचान बहुत दिनों पर मेरा संबल युग की उदासी लहरों का निमंत्रण
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26-08-2011, 08:44 PM | #43 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
अगणित उन्मादों के क्षण हैं, अगणित अवसादों के क्षण हैं, रजनी की सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूँ मैं! क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं! याद सुखों की आँसू लाती, दुख की, दिल भारी कर जाती, दोष किसे दूँ जब अपने से अपने दिन बर्बाद करूँ मैं! क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं! दोनों करके पछताता हूँ, सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ, सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आज़ाद करूँ मैं! क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
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24-09-2011, 10:16 PM | #44 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
चाह तो है शब्द होठों पर स्वयं आ गीत गाये
स्वप्न आँखों में सजे तो हो मुदित वह गुनगुनाये पॄष्ठ सुधियों के अधूरे, पुस्तकों में सज न पाते उम्र बीती राग केवल एक, वंशी पर बजाते हाथ जो ओढ़े हुए थे माँगने की एक मुद्रा बाँध कर मुट्ठी कहाँ संभव रहा कुछ भी उठाते कर्ज़ का ले तेल बाती, एक मिट्टी का कटोरा चाहता है गर्व से वह दीप बन कर जगमगाये सावनों के बाद कब बहती नदी बरसात वाली बिन तले की झोलियाँ, रहती रहीं हर बार खाली मुद्रिकाओं से जुड़े संदेश गुम ही तो हुए हैं प्रश्न अपने आप से मिलता नहीं होकर सवाली ओस का कण धूप से मिलता गले तो सोचता है है नियति उसकी, उमड़ती बन घटा नभ को सजाना अर्थ तो अनुभूतियों के हैं रहे पल पल बदलते इसलिये विश्वास अपने, आप को हैं आप छलते मान्यताओं ने उगाये जिस दिशा में सूर्य अपने हैं नहीं स्वीकारतीं उनमें दिवस के पत्र झरते रात के फँदे पिरोता, शाल तम का बुन रहा जो उस प्रहर की कामना है धूप को वह पथ दिखाये
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30-09-2011, 08:23 PM | #45 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
अजीब सी खामोशी के साथ धीमी बरसात है
शायद आज फिर से एक लम्बी रात है निहारती हैं एक टक आँखे बाहर के मौसम को, फिर से याद आ रही किसी मौसम की हर बात है वो सुरूर मोहब्बत का, वो आँखों की प्यास वो बेताब धड़कने, वो मिलने की आस वो तन्हाईयों में अक्सर उनकी तस्वीर से बातें, उनसे आँखे टकराने पर वो अजीब सा एहसास उनके खयालो से मेरा दिल महकता था हर पल उनके दिखने से मेरे खुशियों में होती थी हलचल एक झलक के लिए पागल हम कोई अकेले नहीं थे देख के मौसम को मौसम भी हो जाता था चंचल जिंदगी खुश थी और मौसम खुशगवार था पर शायद इतनी खुशियों से वक़्त को इंकार था जाने क्या सोच कर ठुकरा दिया मौसम ने मुझे मेरे सामने तो बस सवालों का अंबार था मौसम में कई नए फूल खिलने लगे थे जैसे तैसे हम अपने ज़ख्म सिलने लगे थे अब मौसम के दिल का कुमार कोई और था कई सवालों के जवाब भी हमे मिलने लगे थे खैर!! अब बहुत दूर हो चुके हैं अपनी जिंदगी के रास्ते शायद दर्द भी ढल जाये यूँ ही अहिस्ते अहिस्ते जाने क्यूँ समझ नहीं पाया इस छोटी सी बात को अरे! मौसम तो होता ही है बदलने के वास्ते …
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30-09-2011, 08:28 PM | #46 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
बुहुत खूब मित्र
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -------------------------------------------------------------------------- जिनके घर शीशो के होते हे वो दूसरों के घर पर पत्थर फेकने से पहले क्यू नहीं सोचते की उनके घर पर भी कोई फेक सकता हे -------------------------------------------- Gaurav Soni
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25-10-2011, 11:44 AM | #47 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
सुधियोँ की उल्टी धारा ही कभी उत्स तक ले जाएगी |
सीधी धाराओँ ने भ्रम के सिवा नही कुछ और दिया है , मधू-घट पीने की चाहत मे जाने कितना गरल पिया है , जिसने भी पाया है उल्टा चलकर ही मधू-घाट पाया है , अब यह उल्टी धार चांद के घर से सुधा खीँच लाएगी | सुधियोँ की उल्टी धारा ही कभी उत्स तक ले जाएगी | बहाँ त्रास का नाम न होगा होँगे रस-रंजित उजियारे , नव-स्फूर्ति दायक पल होँगे होँगे नहीँ कहीँ , पल हारे , जीवन की अनन्त निधि होगी प्राणोँ मेँ वसन्त का आगम , मृग-तृष्णा चिर-तृप्ति मुखी हो अभिनव अमृत-गीत गाएगी | सुधियोँ की उल्टी धारा ही कभी उत्स तक ले जाएगी |
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25-10-2011, 12:33 PM | #48 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
वाह, आप कविराज भी हैं ! आज ही पता लगा ! अच्छे गीत पढ़वाने के लिए शुक्रिया !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
25-10-2011, 01:00 PM | #50 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
फिर तो यह बेईमानी है ! बेचारे कवियों का क्या दोष कि उनके नाम नदारद हैं !
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