29-04-2011, 07:06 PM | #41 |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
ही ही ही ही
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
29-04-2011, 11:02 PM | #42 | |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
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कुछ गलती हो जाए तो क्षमा करें ;- संतोष पाने का सबका अपना अपना तरीका है कोई ७० रुपये की कमाई पर संतोष करने का प्रयास करता है तो किसी को ७०,००० भी कम लगते हैं कोई सुखी रोटी के साथ आचार खाकर खुद को संतुष्ट करने का प्रयास करता है तो किसी को ५६ भोग भी बेकार लगता है जो गावं में रहते हैं वो शहर की चकाचौंध के पीछे भागते हैं और शहर वाले गावं की शांति और शुद्धता की ओर परन्तु संतुष्टि कभी मिल ही नहीं पाती भीड़ में रहकर भी असंतुष्ट मन अकेला ही रहता है
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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30-04-2011, 01:02 PM | #43 | |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
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आज का गाँव बगैर खाद और किटनाशक के कोई फसल उपज कर नहीँ आसकता हैँ शुध्द देशी घी लेकर घर आओ बगैर डालडा मिले मिलेगा नहीँ शुध्द हवा को ईँट भट्टो के चिमनी के धुँआ ने जहरीला कर दिया हैँ हल्दी बगैर मिलावट के मिल नहीँ सकता हैँ दुध बगैर पानी के मिलावट के बहुत मुश्किल होता हैँ मिलना बागीचे का सिर्फ नाम बाकी हैँ अभी तो ऐसा हैँ गाँव
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
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30-04-2011, 11:52 PM | #44 | |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
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मैं इससे सहमत नहीं हूँ की संतुष्टि कभी नहीं मिलती आप उस पिता से पूछिये जिसने अपनी बेटी की शादी संपन्न की हो उस इंसान से पूछिये जिसने दिन भर काम करने के बाद घर लौट कर भोजन किया हो उस इंसान से मिलिए जिसने अपनी सारी जमा पूंजी बेटे की पढ़ाई पर खर्च कर दी और उसके बेटे को नौकरी मिल गयी हो संतुष्टि आपको उस बच्चे के चहरे पर भी मिलेगी जिसे अपना मन पसंद खिलौना मिल गया हो
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01-05-2011, 09:10 PM | #45 | |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
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हाँ पर इतना कहूंगा की ये संतुष्टि क्षणिक ही है परिस्तिथियों का बोझ इतना ज्यादा होता है की ये संतुष्टि स्थाई नहीं रह पाती अस्वीकृति , निराशा ,असुरक्षा ,चिंता ,नैराश्य ,निकम्मापन ,अर्थहीनता ,आक्रोश ......इतनी सारी चीज़ें हैं मनुष्य में की ये हमेशा संतुष्टि पर भारी पड़ जातीं हैं
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02-05-2011, 06:46 PM | #46 | |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
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दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो । |
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03-05-2011, 07:10 AM | #47 | |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
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संतोष का कमाई से कोई लेना देना नहीं है, इस बात को कोई झुठला नहीं सकता पर ये कहना की संतोष कभी मिलता ही नहीं, मैं इससे असहमत हूँ हाँ पर ये भी सत्य है की सभी को नहीं मिलता
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23-02-2012, 07:45 PM | #48 | |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
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23-02-2012, 08:47 PM | #50 |
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Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
जी हाँ , मेरा भी प्रयास है । बस अलैक जी की प्रतीक्षा है ।
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