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#31 |
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![]() गरदूँ ने घड़ी उम्र की एक और घटा दी किसके लिए रुका है किसके लिए रुकेगा करना है जो भी कर ले ये वक़्त जा रहा है ... पानी का बुलबुला है इन्साँ की ज़िन्दगानी दम भर का ये फ़साना पल भर की ये कहानी हर साँस साथ अपने पैग़ाम ला रहा है करना है जो भी ... दुनिया बुरा कहे तो इल्ज़ाम ये उठा ले खुद मिट के भी किसी की तू ज़िन्दगी बचा ले दिल का चिराग़ तुझको रस्ता दिखा रहा है करना है जो भी ... काँटे जो बोये तूने तो फूल कैसे पाए तेरे गुनाह ही आख़िर हैं आज रंग लाए अब सोच में क्यूँ पगले घड़ियाँ गंवा रहा है करना है जो भी ...
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#32 |
Special Member
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मोहब्बत की मेरे इम्तेहां हो गई,
सारी बातें खत्म बस यहां हो गई, क्या से क्या हो गये जिनकी खातिर, बातें अब ये उनके लिये बचपना हो गयीं
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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#33 |
Special Member
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तुम्हारे लिए मेरी हर सांस गम उठाएगी,
तुम्हारे लिए ये जिंदगी भी बर्बाद हो जायेगी, आजमाना हो तो बोलो खुद को खाक कर के दिखा दूं, तुम्हारे नाम की आवाज़ तो मेरे खाक से भी आएगी |
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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#34 |
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अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की |
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#35 |
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तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए,तुमसे,वो अफ़साने कहाँ जाते तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाखाने की तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते चलो अच्छा काम आ गई दीवानगी अपनी वगरना हम जमाने-भर को समझाने कहाँ जाते |
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#36 | |
Diligent Member
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बहुत शानदार दिल के करीब लगी ।क्या खूबसूरती है कि मैँने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की । |
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#37 |
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उल्फ़त की नई मंज़िल को चला, तू बाँहें डाल के बाँहों में
दिल तोड़ने वाले देख के चल, हम भी तो पड़े हैं राहों में क्या क्या न जफ़ायेँ दिल पे सहीं, पर तुम से कोई शिकवा न किया इस जुर्म को भी शामिल कर लो, मेरे मासूम गुनाहों में जहाँ चाँदनी रातों में तुम ने ख़ुद हमसे किया इक़रार-ए-वफ़ा फिर आज हैं हम क्यों बेगाने, तेरी बेरहम निगाहों में हम भी हैं वहीं, तुम भी हो वही, ये अपनी-अपनी क़िस्मत है तुम खेल रहे हो ख़ुशियों से, हम डूब गये हैं आहों में |
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#38 |
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इक-इक पत्थर जोड़ के मैंने जो दीवार बनाई है
झाँकूँ उसके पीछे तो रुस्वाई ही रुस्वाई है यों लगता है सोते जागते औरों का मोहताज हूँ मैं आँखें मेरी अपनी हैं पर उनमें नींद पराई है देख रहे हैं सब हैरत से नीले-नीले पानी को पूछे कौन समन्दर से तुझमें कितनी गहराई है तोड़ गये पैमाना-ए-वफ़ा इस दौर में कैसे कैसे लोग ये मत सोच "क़तील" कि बस इक यार तेरा हरजाई है |
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#39 |
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#40 |
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जिनको मिली है ताक़त दुनिया सँवारने की /ख़ुदगर्ज आज उनका ईमान हो रहा है //
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