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Old 11-11-2012, 05:24 PM   #121
amol
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Default Re: तोलस्तॉय की कहानियाँ

धर्म सिंह ने चरन सिंह से कहा- भाई चरन! आओ, एक बार फिर यत्न कर देखें, हिम्मत न हारो। चलो, मैं तुम्हारी सहायता करने को तैयार हूँ।
चरनसिंह- मुझमें तो करवट लेने की शक्ति नहीं, चलना तो एक ओर रहा। मैं नहीं भाग सकता।
धर्म सिंह- अच्छा, रामराम, परंतु मुझे निर्दयी मत समझना।
धर्म सिंह चरन सिंह से गले मिला, बाँस का एक सिरा सुशीला ने पकड़ा, दूसरा सिरा धर्म सिंह ने। इस भाँति वह बाहर निकल आया।
धर्म सिंह- सुशीला, तुम्हें भगवान कुशल से रखें। मैं जन्मभर तुम्हारा जस गाऊँगा। अच्छा, जीती रहो, मुझे भूल मत जाना।
धर्म सिंह ने थोड़ी दूर जाकर पत्थरों से बेड़ी तोड़ने का बहुत ही यत्न किया, पर वह न टूटी। वह उसे हाथ में उठा कर चलने लगा। वह चाहता था कि चंद्रमा उदय होने से पहले जंगल में पहुँच जाय, परंतु पहुँच न सका। चंद्रमा निकल आया, चारों ओर उजाला हो गया, पर सौभाग्य से जंगल में पहुँचने तक राह में कोई न मिला।
धर्म सिंह फिर बेड़ी तोड़ने लगा, पर सारा यत्न निष्फल हुआ। वह थक गया, हाथ-पाँव घायल हो गए। विचारने लगा, अब क्या करुँ? बस, चलो, ठहरने का काम नहीं। यदि एक बार बैठ गया, तो फिर उठना कठिन हो जायेगा। माना कि प्रातःकाल से पहले किले में नहीं पहुँच सकता, न सही, दिन भर जंगल में काट दूँगा, रात आने पर फिर चल दूँगा सहसा पास से दो मरहठे निकले, वह झट झाड़ी में छिप गया।
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Old 11-11-2012, 05:25 PM   #122
amol
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Default Re: तोलस्तॉय की कहानियाँ

चाँद फीका पड़ गया, सवेरा होने लगा। जंगल पीछे छूट गया, साफ मैदान आ गया। किला दिखाई देने लगा। बाईं ओर देखने पर मालूम हुआ कि थोड़ी दूर पर कुछ राजपूत सिपाही खड़े हैं। धर्म सिंह मगन हो गया और बोला- अब क्या है, परंतु ऐसा न हो कि मरहठे पीछे से आ पकड़ें, मैं सिपाहियों तक न पहुँच सकूँ, इस कारण जितना भागा जाए भागो।
इतने में बाईं ओर दो सौ कदम की दूरी पर कुछ मरहठे दिखाई दिए। धर्म निराश हो गया, चिल्ला उठा- भाइयों, दौड़ो, दौड़ो! मुझे बचाओ, बचाओ!
राजपूत सिपाहियों ने धर्म सिंह की पुकार सुन ली। मरहठे समीप थे, सिपाही दूर थे। वे दौड़े, धर्म सिंह भी बेड़ी उठा कर 'भाइयों, भाइयों' कहता हुआ ऐसा भागा कि झट सिपाहियों से जा मिला, मरहठे डरकर भाग गए।
राजपूत पूछने लगे कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो, परंतु धर्म सिंह घबराया हुआ 'भाइयों, भाइयों' पुकारता चला जाता था। निकट आने पर सिपाहियों ने उसे पहचान लिया। धर्म सिंह सारा वृत्तांत कह कर बोला- भाइयों, इस तरह मैं घर गया और विवाह किया। विधाता की यही लीला थी।
एक महीना पीछे पाँच हजार मुद्रा देकर चरन सिंह छूटकर किले में आया। वह उस समय अधमुए के समान हो रहा था।
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