27-12-2012, 05:38 PM | #21 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
27-12-2012, 05:43 PM | #22 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
मैं फिर कभी शिकायत नहीं करूंगा
1970 के दशक की बात है। एरिजोना इलाके से गुजर रहा एक व्यक्ति भारी बारिश के बीच एक गैस स्टेशन पर अपनी कार में गैस भरवाने के लिए रुका। भारी बारिश के बीच वह अपनी कार में ही बैठा रहा जबकि उस गैस स्टेशन पर मौजूद कर्मचारी ने भीगते हुए उसकी कार में गैस भरी। वहां से जाते समय उसने गैस स्टेशन के कर्मचारी से कहा - “मुझे माफ करना। मैंने तुम्हें इतनी बारिश में परेशान किया। “ कर्मचारी ने उत्तर दिया - “आपको माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है। इस काम में मुझे कोई तकलीफ नहीं हुयी। जब मैं वियतनाम युद्ध के दौरान शत्रुओं की घेराबंदी में फंसा हुआ था, उसी समय मैंने निश्चय कर लिया था कि यदि मैं वहां से जीवित निकलने में कामयाब हो जाता हूं तो जीवनभर फिर कभी शिकायत नहीं करूंगा। इसके बाद मैंने कभी शिकायत नहीं की। “
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27-12-2012, 05:59 PM | #23 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
बहुत ही अच्छा सूत्र है।
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27-12-2012, 06:06 PM | #24 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
तुम बैठे हो मैं दौड़ रहा
तुम परम बने मैं गौड़ रहा मेरा जीवन उपहासित है पर मानव जीवन को जोड़ रहा वक्त पर लोग मुझे 'बाप' भी बना लेते हैं .. हा हा हा हा ....
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27-12-2012, 06:08 PM | #25 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
चित्र में लिखा हुआ वाक्य चित्र को सार्थक कर रहा है ...... है न ....
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27-12-2012, 09:34 PM | #26 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
मजबूरी
बचपन में सरोज जब अपने साथियों को काजू-मेवे खाते हुए देखता तो उसके मुंह में पानी भर आता. उसका मन करता कि वो भी जी भर कर काजू-मेवे खाए. काजू-मेवे वो खा नहीं सकता था.उसके माँ-बाप गरीब थे. इतने गरीब के वे अपने बेटे के लिए मूंगफली भी नहीं खरीद सकते थे. दोस्तों से काजू-मेवा मुफ्त में लेकर खाना सरोज के लिए भीख मांगने के बराबर था. कोई उसपर तरस खा कर काजू-मेवे के कुछ दाने दे,ये भी उसको मंज़ूर नहीं था. एक दिन सोहन ने काजू के कुछ दाने उसको दिए थे लेकिन उसने न कह दिया था. बचपन बीता यौवन आया. सरोज की काजू-मेवे खाने की चाह पूरी न हो सकी . गरीबी उसे घेरे रही. बुढापे का प्रवेश हुआ. गरीबी ने सरोज का पीछा नहीं छोडा. एक दिन सरोज घर लौट रहा था. उसकी नज़र एक बोर्ड पर पड़ी. लिखा था-” एक रूपये की लोटरी टिकेट खरीदो और अपनी गरीबी भगाओ.” उस की जेब में एक रुपया ही था. पढ़ कर वो बढ़ गया..कुछ कदम बढ़ा ही था, वो मुड़ पडा. मन मारकर उसने ज़ेब से एक रुपया निकाला और लोटरी का टिकेट खरीद लिया. सरोज की लोटरी लग गयी. खुशी को वो बर्ताश्त नहीं कर सका. हार्ट अटैक से उसे अस्पताल में दाखिल होना पड़ा. ठीक हुआ तो हार्ट स्पेशलिस्ट ने उसे डाएटिशियन के पास भेज दिया. चूँकि सरोज को कोलेस्ट्राल भी था, इसलिए डाएटिशियन ने उसे ऐसा डाएट चार्ट बना कर दिया जिसमें चिकनी चीज़ों की साथ-साथ काजू-मेवे खाना उसके लिए बिलकुल वर्जित था. उसने पढ़ा तो वो मन मार कर रह गया. ज़ेब में ढेर सारे रुपयों -पैसों के होने पर भी सरोज काजू-मेवे नहीं खा सकता था.
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27-12-2012, 09:40 PM | #27 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
एसा भी होता है ...
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27-12-2012, 09:49 PM | #28 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
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27-12-2012, 09:51 PM | #29 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
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28-12-2012, 04:22 AM | #30 |
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Re: कुछ अपनी कुछ जग की
कहानी घर घर की
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