03-02-2013, 07:11 PM | #11 |
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Re: कहीं दूर क्षितिज पर
‘‘शीले शीले उठो। देखो हम कहाँ पहुंच गये हैं।’’ पुरुष जो कि दरअसल शीले ही था, उसने कसमसा कर आँखें खोल दीं और अपने उड़नतश्तरी नुमा यान की स्क्रीन पर नज़रें गड़ा दीं, ‘‘अरे, लगता है हम किसी अनजान ग्रह पर पहुंच चुके हैं।’’ ‘‘सम्राट को जब पता चलेगा कि हम उसके चंगुल से छूटकर भाग निकले हैं तो वह हमारी तलाश में पूरा यूनिवर्स छनवा देगा और आखिरकार हम पकड़े जायेंगे।’’ ‘‘ऐसा नहीं होगा। क्योंकि सम्राट की नीयत भांपकर मैंने अपने आविष्कार को उसी के ऊपर प्रयोग कर लिया है। मैंने सम्राट के चारों तरफ अपना बनाया कृत्रिम यूनिवर्स फैला दिया है। उस यूनिवर्स में एक शीले था जिसे वह अपने जानते खत्म कर चुका है और एक ज़ारा भी है जिसे वह अपनी बाहों में लेने की कोशिश कर रहा है।’’ ‘‘क्या? तुमने मेरी हमशक्ल बनाकर उसे सम्राट की बाहों में दे दिया।’’ ज़ारा ने बनावटी गुस्से के साथ कहा। ‘‘फिक्र मत करो यार, वह उसे छू भी नहीं पायेगा। क्योंकि वह सिर्फ एक परछाई है।’’ ‘‘फिर भी तुम सम्राट को बेवकूफ मत समझो। हो सकता है कि उसे पता लग जाये कि उसे नकली वातावरण के द्वारा फंसाया गया है। ऐसे में वह हमारी तलाश ज़रूर करेगा।’’ ‘‘फिर भी वह हमारा पता नहीं लगा पायेगा। क्योंकि हम अपने यूनिवर्स को ही छोड़ चुके है और वार्महोल के द्वारा मल्टीवर्स दुनिया के दूसरे यूनिवर्स में पहुंच चुके हैं।’’ ‘‘क्या मतलब?’’
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
03-02-2013, 07:12 PM | #12 |
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Re: कहीं दूर क्षितिज पर
‘‘ज़ारा मैंने तुम्हें उस दिन यूनिवर्स की अधूरी कहानी सुनाई थी। दरअसल हमारा यूनिवर्स एक तैरती मेम्ब्रेन या झिल्ली पर मौजूद है और लगातार फैल रहा है। और इस तरह की अनगिनत झिल्लियां जहान में मौजूद हैं अपने अपने यूनिवर्स को फैलाते हुए। खास बात ये भी है कि यूनिवर्सेज को संभालने वाली झिल्लियां पूरी तरह एक दूसरे से अलग न होकर आपस में इस तरह जुड़ी हैं कि एक झिल्ली की चीज़ें दूसरी झिल्ली पर भी प्रभाव डाल रही हैं। मतलब ये कि एक मेम्ब्रेन दूसरी से पूरी तरह अलग है और एक पर मौजूद यूनिवर्स में कोई भी घटना हो तो दूसरी मेम्ब्रेन के यूनिवर्स पर उसका कोई असर नहीं पड़ता। लेकिन इसके बावजूद ग्रैविटी जैसी कुछ चीजें दूसरी मेम्ब्रेन तक छन कर पहुंच जाती हैं, कुछ इस तरह जैसे कोई दरवाज़े को पूरी तरह बन्द करने के बाद उसमें हलकी सी झिर्री छोड़ दे, जहां से बाहरी रोशनी और महीन पार्टिकिल छन कर हमारे यूनिवर्स में दाखिल हो रहे हों। इसी तरह एक मेम्ब्रेन से दूसरे में दाखिल होने के लिये कभी कभी वार्महोल भी बना करते हैं। ऐसे ही एक वार्महोल के ज़रिये हम अपने यूनिवर्स को पार करके दूसरे यूनिवर्स में पहुंच गये हैं। और वह वार्महोल बस एक सेकंड के लिये बना था। अब दुनिया की कोई ताकत न तो हमें पुराने यूनिवर्स तक पहुंचा सकती है और न ही वहां का कोई व्यक्ति इस नये यूनिवर्स में आ सकता है।’’
‘‘यानि अब हम अपनी पुरानी दुनिया में कभी नहीं लौट सकते।’’ ‘‘शायद। खैर छोड़ो। मैं देखना चाहता हूं कि हम हैं कहां पर।’’ उसने बगल में रखा रिमोट उठाया और स्क्रीन का दृश्य बदलने लगा। फिर स्क्रीन का रिसीवर शायद कोई लोकल न्यूज़ चैनल कैच करने लगा था, जिसपर एंकर कोई खबर बता रहा था। शीले ने रिमोट के कुछ बटन दबाये और एंकर की अजीबोग़रीब भाषा उनकी भाषा में बदलकर सुनाई देने लगी।
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03-02-2013, 07:12 PM | #13 |
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Re: कहीं दूर क्षितिज पर
एंकर कह रहा था, ‘‘आज रात को लगभग दस बजे हिमालय के लद्दाख क्षेत्र के लोगों ने एक अजीबोग़रीब यान को अपने सरों पर रोशनी बिखेरते हुए देखा। यह यान किसी उड़नतश्तरी जैसा ही लग रहा था। थोड़ी देर दिखने के बाद यह यान पहाड़ों के बीच गायब हो गया। भारत के साथ साथ पूरी दुनिया में उस अज्ञात यान के लिए कौतूहल पाया जा रहा है। क्या वह किसी एलियेन का यान था? या भारत के किसी पड़ोसी का कोई जासूसी यान? भारत सरकार ने अपनी सेना को सतर्क कर दिया है और सेना ने उस क्षेत्र में गहन तलाशी अभियान आरम्भ कर दिया है।’’
यह ग्रह तो हज़ारों साल बैकवर्ड मालूम हो रहा है। क्या हमें इनके बीच अब जिंदगी गुज़ारनी होगी? खैर उस सम्राट के मनहूस साये से दूर तुम्हारी बाहों में मैं कहीं भी जिंदगी गुज़ार लूंगी।’’ कहते हुए ज़ारा शीले की बाहों में समा गयी। --समाप्त--
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