03-02-2013, 09:36 PM | #1 |
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दो बीघा ज़मीन और बियर
(संस्मरण / बलराज साहनी) जिस दिन ‘घोडागाडी’ से मेरे रेस करने का दृश्य लिया गया उस दिन दौड़-दौड़ कर मेरी जो हालत हुई, उसका वर्णन नहीं कर सकता. कोलतार की तपती हुयी सड़कों पर मेरे नंगे पाँव जल रहे थे और उन पर बड़े बड़े खूनी छाले उभर आये थे. मैं जब भी शूटिंग बंद करने की प्रार्थना करता, बिमल राय कहते,”बस दो शॉट और रह गए हैं.” उस समय मेरे चेहरे पर दुःख और पीड़ा के भाव शायद बहुत स्पष्ट और स्वाभाविक रूप में आ रहे थे. बिमल राय को उन्हें फिल्माने का लालच था और वे रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. आखिर मैंने तंग हो कर कहा,”अब तो बियर की दो बोतलें मेरे सामने लाइए, तभी मैं दौड़ सकूंगा, वरना नहीं.” बिमल राय ने यकीन दिलाया शॉट ख़तम होते ही असित सेन मुझे फर्पो में ले जायेंगे और वहां मैं जितनी चाहूँ, बियर पी सकूंगा.यह लालच दिला कर उन्होंने कई शॉट और लिए. आखिर जब असित सेन और मैं फर्पो पहुंचे तो पता लगा कि उस दिन ‘ड्राई डे’ था. मैंने बाहर निकलते ही असित सेन को गले से पकड़ लिया और कहा,”जहाँ से भी हो, मेरे लिए बियर लाओ, वरना मैं तुम्हें जान से मार डालूँगा!” असित सेन ने काफी भटकने के बाद आखिर बियर प्राप्त कर ही ली, लेकिन तब तक मेरा जोश और मेरा जिस्म दोनों ठंडे हो चुके थे. तब मैंने ब्रांडी पीनी चाही. मैंने असित सेन से कहा,”अब मैं बियर नहीं पियूंगा. मुझे ब्रांडी पिलाओ.” असित सेन के सब्र की हद हो चुकी थी. सो, हमारे बीच अच्छा-ख़ासा झगड़ा हुआ. असित सेन को बियर पिलाने का आदेश मिला था, सो वे बियर पिलायेंगे, ब्रांडी चाहे सस्ती ही क्यों न हो. आखिर मुझे बियर ही पीनी पड़ी, और बाद में ठंडे पेट और बेहद थकावट के कारण मुझे जुकाम हो गया. *** |
03-02-2013, 10:09 PM | #2 |
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Re: दो बीघा ज़मीन और बियर
अच्छा संस्मरण है बन्धु।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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