14-04-2013, 09:40 AM | #11 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
ये हवा मज़हबी हुई है क्यों अब नहीं दिखता प्यार रौनक को जात ये अजनबी हुई है क्यों khoon ki tishngi hui hai kyon ye hawa mzhabi hui hai kyon ab nahi dikhta pyaar raunak ko jaat ye ajnabi hui hai kyon दीपक खत्री 'रौनक' |
14-04-2013, 09:40 AM | #12 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
अपने अहसास को छुपाना मत
अब इसे लाज़मी दिखाना है apne ahsaas ko chhupana mat ab ise lazmi dikhana hai दीपक खत्री 'रौनक' |
14-04-2013, 09:41 AM | #13 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
दर्द का मेरे न तू अंदाजा लगा
काम ये तेरे बस का तो बिल्कुल नही Dard ka mere n tu andaza lga Kaam ye tere bas ka to bilkul nahi दीपक खत्री 'रौनक' |
14-04-2013, 09:42 AM | #14 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
डर रहा जलने से लुत्फ -ऐ-चाँदनी
हमने तो खाए लू के थपेड़े बहुत Dar rha jalne se lutf a chandni Hamne to khaye loo ke thapede bahut दीपक खत्री 'रौनक' |
14-04-2013, 09:45 AM | #15 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
लहू बख्श तुम देना कातिल को मेरे
यकीनन कोई यार ही होगा मेरा Lahoo bakhash tum dena katil ko mere Yakinan koi yaar hi hoga mera दीपक खत्री 'रौनक' |
14-04-2013, 09:45 AM | #16 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
दोस्तों ने बचा ही लिया हर कदम
जोर दुश्मन ने तो था दिखाया बहुत Dosto ne bcha hi liya har kadam Jor dushman ne to tha dikhaya bahut दीपक खत्री 'रौनक' |
14-04-2013, 09:48 AM | #17 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
शादी का सब नशा तब उतरने लगा
रात जब पहली गुजरी थी ससुराल में Shadi ka sab nsha tab utarne lga raat jab pahli guzri thi sasural main दीपक खत्री 'रौनक' |
14-04-2013, 09:50 AM | #18 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
ग़जल-
==== उल्फत का ये जवाब करारा दिया मुझे हिम्मत रही न प्यार की,ईज़ा दिया मुझे फिसलन बढ़ी फिसलता गया राहे ज़ीस्त पर इक मोड़ ने ही फिर से सहारा दिया मुझे वाकिफ रहा हूँ खेल के हर मात शह से मैं हरपल मगर नसीब ने बहका दिया मुझे अच्छी लगी सड़क जो शहर की तरफ गई पर मुफलिसी मे उसने इजाफा दिया मुझे तनहा रही ये लाश शहादत के बाद से जलते हुये जमीर ने कांधा दिया मुझे देखे है खाब सैंकड़ो रौनक ने पल ब पल हर मर्तबा उम्मीद ने धोका दिया मुझे दीपक खत्री 'रौनक' |
14-04-2013, 09:52 AM | #19 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
ग़जल-
==== मेरे जख्मो को वो ऐसी इक रवानी दे गया छोड़ कर तन्हा मुझे आँखों मे पानी दे गया काठ की हांडी चढ़ी इक बार जो इस आग पर तह तलक सुलगेगी फिर ऐसी बयानी दे गया हुस्न वादा करके आने का भी अब आता नहीं जीने का बस इक सहारा वो जुबानी दे गया अलविदा कहते हुए लब मेरे जो उसने छुये खूबसूरत सी मुझे वो इक निशानी दे गया बदले बदले इन नजारों में ये दिल लगता नहीं जाने कैसी ये अलग सी वो कहानी दे गया ज़िन्दगी जीने की रौनक आरज़ू अब है नहीं उम्र लम्बी हो दुआ वो फिर पुरानी दे गया दीपक खत्री 'रौंनक' |
14-04-2013, 09:55 AM | #20 |
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Re: दीपक खत्री 'रौनक' -मेरी रचनाये-8
पहली बार लम्बी बहर मे लिखने की कोशिश की है, आप सब दोस्तो की खिदमत मे पेश कर रहा हूँ , जरूर बताये कोशिश कामयाब हुई या नही -
दुकान मज़हब की खोल अपने हिसाब से सब कमा रहे है ये सेंकने को यूँ रोटी अपनी शवों से चूल्हा जला रहे है लगा के देखो हिसाब तुम क्या मिला यहाँ आजमा के किस्मत निकालने को ये अपना मतलब सभी को उल्लू बना रहे है लबो से छिन जो गयी हंसी आसमां बहाने लगा है आंसू वतन ए सहरा मे हम मुहब्ब...त के फूल फिर भी खिला रहे है चलो भुला दे वो किस्से उल्फत के जिंदगी को जलाते है जो पुरानी यादों से हौंसला जिंदगी का क्यों आजमा रहे है करो शिकायत जमीर से अपने गर लिहाज़ी रहा न कोई यूँ सड़कों पर क्यों उतर उतर कर ये शोर इतना मचा रहे है छुपा लो रौनक को अपनी बाँहों मे तुम नज़र लग न जाये गम की हमारे दिल अब मिलन की खुशियाँ सजा के महफ़िल मना रहे है दीपक खत्री 'रौनक' |
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