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Old 20-12-2010, 09:15 PM   #81
YUVRAJ
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....
aap sabhi vayask hai aur kya sahi hai kya nahi behatar samajhate hai.

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Originally Posted by madhavi View Post
क्या अपनी यौनेच्छाओं पर काबू रखना ही चरित्र-निर्माण है?
अपने दैनिक कार्यों को ईमानदारी से करना सबसे बड़ा चरित्र-निर्माण है ! अगर आपको पराई वस्तु की लालसा नहीं, अपने परिश्रम द्वारा अर्जित धन, सुख-साधन से संतोष है तो आपका चरित्र बेदाग है।
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Originally Posted by vidrohi nayak View Post
माध्वी जी सही कहा आपने की यौनेच्छाओं ही नहीं अपितु अपनी प्रत्येक 'अति इछाओ' को नियंत्रित कर ही चरित्र का निर्माण हो सकता है ! किसी भी प्रकार की लालसा जो अपने सम्पूर्ण होने के लिए आत्मिक, सामाजिक बंधनों को दरकिनार करती है वह चारित्रिक पतन तो करती ही है !
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Old 20-12-2010, 11:35 PM   #82
aksh
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aksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant futureaksh has a brilliant future
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Originally Posted by arvind View Post
देश मे जितने भी घोटाले अभी तक हुये है, उन सब को एक साथ जोड़ दिया तब भी ये मुद्दा उन सब पर दस गुणा भारी पड़ेगा, क्योंकि घोटालो मे तो धन की हानि होती है, जो पूरा किया जा सकता है, मगर यह तो पूरे समाज और संस्कृति को तबाह कर रहा है।
मित्र अरविन्द जी, नमस्कार ! हो सकता है कि पोर्न साइट्स की वजह से बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही हो पर ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि जनसँख्या में भी बेहताशा बृद्धि हुयी है और सामाजिक असंतुलन भी बढ़ता जा रहा है. मैंने मित्र अमित जी द्वारा लिखा गया पूरा लेख पढ़ा और मुझे विचार के तौर पर इसने बहुत ही प्रभावित किया परन्तु साथ ही साथ आपका ये निष्कर्ष भी आ गया कि बाकी सब समस्याओं से दस गुनी बड़ी ये समस्या है ये आपका कथन मुझे कुछ उचित प्रतीत नहीं हुआ. समस्या वाकई बहुत ही गंभीर है और इस पर जितना संभव है रोक लगनी चाहिए पर सारी समस्याओं की जड़ इसको बता देना ठीक नहीं है.

क्या पोर्न साइट्स के प्रचलन से पहले बलात्कार नहीं होते थे ???

क्या पोर्न साइट्स के प्रचलन से पहले लोग जुआ, नशे और अन्य व्यसनों के शिकार नहीं थे ???

क्या गरीबी, अशिक्षा, सामजिक असंतुलन जैसी समस्याओं को जो हमारे देश में हर समस्या की जड़ साबित हुयी हैं हम किसी भी दृष्टि से छोटी समस्या मान सकते हैं ???

मैं A * F पर पहले एक सदस्य की तरह ही गया था और वहां पहला आकर्षण शायद पोर्न ही रहा होगा पर समय बाद मैंने वहां जाना बंद कर दिया. कुछ दिन बाद दोबारा गया तो देखा को फोरम चल रही है जिसका मैं भी सदस्य बन गया. मैं कभी भी उसके उस नकारात्मक पहलू की तरफ गया ही नहीं क्योंकि मैं शिक्षित हूँ और मुझे पता है कि इसमें मेरा भला नहीं हैं. मैंने कभी कोई चित्र नहीं डाला और ना ही कभी किसी चित्र की तारीफ़ की क्योंकि मैंने कभी उस चीज को ठीक से ध्यान से देखा ही नहीं क्योंकि मुझे पता था कि यहाँ पर सिर्फ और सिर्फ गंदगी है और कुछ भी नहीं. आप और हम मिले तो उसी फोरम के उस विभाग में जहाँ पर आप और मैं गर्व से जाना पसंद करते थे. उस साईट पर पोर्न भी उपलब्ध था पर वो मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सका ये इस बात का द्योतक है कि अगर समाज को सही रूप से चलाने के लिए सभी चीजों की एक निश्चित मात्रा में आवश्यकता होती है. पर कुछ चीजें जैसे कि शराब, पोर्न साइट्स ये मस्तिष्क पर गलत प्रभाव डाल सकती हैं इसकी जानकारी देना एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है जो कि हर हाल में किया जाना चाहिए. समाज से गरीबी हटाना, सबको शिक्षित बनाना, नारी सशक्तिकरण, नारी जागरण और अपराधियों का सुधार जैसे कार्य होते रहने चाहिए जिससे इन चीजों से पड़ने वाले किसी भी संभावित दुष्प्रभाव को समाप्त किया जा सके और लोग आप और मेरी तरह भी इन साइट्स पर जाकर भी इनके दुष्प्रभावों से अछूते रह सकें. मेरे ख्याल से ज्यादातर सदस्य इस तरह की समस्याओं के समाधान के विशेषज्ञ नहीं हैं और मैं भी इसका अपवाद नहीं हूँ. फिर भी अपने अनुभव के आधार पर इतना कह सकता हूँ कि भारत में दो किस्म के अपराधी खास तौर पर पाए जाते हैं

a ) एक तो वो हैं जो मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा होते हैं और वो समाज के उच्च वर्ग से आते हैं ( दिल्ली में हुए कुछ हाई प्रोफाइल मर्डर और रेप इसके उदाहरण हैं ). इस तरह के अपराधी अनाप शनाप पैसा, रूतबा, बेख़ौफ़ जिंदगी जीने के तरीके और संस्कारों के अभाव की वजह से पैदा होते हैं और ये किसी पोर्न साईट के मोहताज नहीं हैं. मेरे विचार से ऐसे अपराधी कुछ भी करने से पहले सोचते नहीं हैं और धीरे धीरे ये लोग नौकरी के नाम पर, काम के नाम पर और अपने साम्राज्य को फ़ैलाने के लिए किसी भी नाम पर अन्य लोगों को अपराध की दुनिया में धकेलने से नहीं डरते. जो लोग इनकी नौकरियां करके अपराधी बनते हैं वो कोई पोर्न साईट देखकर इनके पास नहीं आते बल्कि वो सामाजिक और आर्थिक अन्याय के सताए हुए लोग होते हैं और इन बड़े रसूख वालों की नौकरी करना और अपराध के रास्ते पर चलना इनकी मजबूरी बन जाती हैं.

मेरे विचार से इस तरह के दबंग समाज के लिए बड़ा खतरा हैं क्योंकि यही वो लोग हैं जो कभी ब्यूटी कोंटेस्ट के नाम पर और कभी मोडलिंग के लिए ट्रेनिंग के नाम पर इस तरह के धंधों में लिप्त हो जाते हैं जो इनको अपराध की नयी नयी ऊँचाइयों पर ले जाते हैं. इसलिए इस तरह के दबंग अपने समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं क्योंकि ये न्यायपालिका तक को काफी हद तक प्रभावित कर सकने की क्षमता रखते हैं. ( यहाँ पर ये साफ़ कर देना चाहता हूँ कि महंगे वकील कर पाने की क्षमता सिर्फ इनके पास होना भी न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करता है ) ये लोग हर तरह का अवराध करते हैं और साफ़ बच निकलते हैं.

b ) दुसरे तरह के अपराधी वो हैं जो दबे कुचले अशिक्षित, राजनेताओं और दबंगों द्वारा बहलाए और फुसलाये लोगों का है जो आर्थिक रूप से इतने कमजोर वर्ग से आते हैं कि इनके पास अपराधी बनकर छोटे मोटे हाथ मार कर अपना काम चलाने के अलावा कोई और चारा नहीं होता. ये वर्ग एक सामजिक शोषण और अव्यवस्था का शिकार है क्योंकि इसको अपनी स्थिति बदलने के अवसर बहुत ही कम मिलते हैं और अगर मिलते हैं तो अक्सर दूसरी समस्याओं के चलते इनको अपराध ही सबसे सरल और अच्छा रास्ता दिखाई देता है सफलता पाने का. और ये पोर्न देखकर अपराधी नहीं बनते बल्कि अपराधी बनने के बाद पोर्न का आनंद लेते हैं. ये वो तबका है जो अक्सर दबंगों द्वारा अपने कामों के लिए इस्तेमाल होता है अब वो चाहें उनके काम धंधे हों या फिर राजनितिक इस्तेमाल हो.

मेरे विचार से अगर पोर्न की वजह से अपराध में बढ़ोत्तरी होती तो भारत का सुप्रीम कोर्ट उन सभी अखबारों पर पाबंदी लगा चुका होता जो रोज ही दर्जनों नंगी फोटो छापते हैं अपने अखबारों में जो पोर्न के स्तर तक गिर चुकी हैं.

इसलिए बड़े ही आदर के साथ कहना चाहता हूँ मित्र कि पोर्न एक समस्या तो है पर ये सबसे बड़ी समस्या नहीं है और उन अपराधों का सबसे बड़ा या एक मात्रा कारण नहीं हैं जिनके साथ इसको जोड़ा जा रहा है. पोर्न का घोर विरोधी हूँ में जब एक अख़बार समूह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी तो एक प्रार्थना पत्र उसमें मेरा भी था. पर इसको देश की दुर्गति के सबसे बड़े कारण के रूप में मैं नहीं देख पा रहा हूँ. मुझे लग रहा है कि आपने शायद बात को कुछ ज्यादा ही बड़ा चड़ा कर अतिश्योक्ति में बात की है. धन्यवाद.
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Old 21-12-2010, 03:50 AM   #83
amit_tiwari
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Only a short note to Mr. Arvind :

Now you see what i said earlier! Or should i say anything more?
It was your hope that we should give everyone chance to improve. I think now you know reformation is right or my way Re-Formation!!!

One line for Mr. Abhishek : Wait for right time has been really long, its too late now my friend.
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Old 21-12-2010, 10:59 AM   #84
arvind
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Originally Posted by aksh View Post
मित्र अरविन्द जी, नमस्कार ! हो सकता है कि पोर्न साइट्स की वजह से बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही हो पर ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि जनसँख्या में भी बेहताशा बृद्धि हुयी है और सामाजिक असंतुलन भी बढ़ता जा रहा है. मैंने मित्र अमित जी द्वारा लिखा गया पूरा लेख पढ़ा और मुझे विचार के तौर पर इसने बहुत ही प्रभावित किया परन्तु साथ ही साथ आपका ये निष्कर्ष भी आ गया कि बाकी सब समस्याओं से दस गुनी बड़ी ये समस्या है ये आपका कथन मुझे कुछ उचित प्रतीत नहीं हुआ. समस्या वाकई बहुत ही गंभीर है और इस पर जितना संभव है रोक लगनी चाहिए पर सारी समस्याओं की जड़ इसको बता देना ठीक नहीं है.

....................

इसलिए बड़े ही आदर के साथ कहना चाहता हूँ मित्र कि पोर्न एक समस्या तो है पर ये सबसे बड़ी समस्या नहीं है और उन अपराधों का सबसे बड़ा या एक मात्रा कारण नहीं हैं जिनके साथ इसको जोड़ा जा रहा है. पोर्न का घोर विरोधी हूँ में जब एक अख़बार समूह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी तो एक प्रार्थना पत्र उसमें मेरा भी था. पर इसको देश की दुर्गति के सबसे बड़े कारण के रूप में मैं नहीं देख पा रहा हूँ. मुझे लग रहा है कि आपने शायद बात को कुछ ज्यादा ही बड़ा चड़ा कर अतिश्योक्ति में बात की है. धन्यवाद.
अक्स जी, आपने मेरे जिस उद्धरण के बारे मे जवाब लिखा है, हो सकता है वो अतिशयोक्ति हो....
गुणीजनो/विद्वानो ने भी कहा है कि.....
धन की हानि - कुछ नहीं गया।
तन की हानि - बहुत कुछ गया
चरित्र की हानि - सब कुछ गया।
अभी कुछ दिनो पहले की बात है - श्री नितीश कुमार जी ने राजस्व बढ़ाने के लिए बिहार मे लगभग हर गाव मे शराब की दुकान खोलने की अनुमति दे दी। राजस्व बढ़ा या नहीं, ये तो अलग बात है, परंतु हरेक गाव मे शराबियों की संख्या जरूर बढ़ गयी। हाँ, एक बात जरूर कहूँगा की सारा गाव शराबी नहीं हो गया, क्योंकि जो अच्छे चरित्र के लोग होते है, उनपर किसी भी खराब माहौल का असर नहीं पड़ता है, परंतु वो अच्छे चरित्र वाले लोग भी न चाहते हुये भी उन शराबियों का सामना करते ही है, उनके घर के माँ-बहनो और बच्चो को भी उन शराबियों से परेशानी जरूर होती है। आने वाली पीढ़ी भी जो टीन-एज है - ज्यादा से ज्यादा शराबी बनेगी, क्योंकि माहौल भी है और उपलब्ध भी है।

अब परिस्थिति को उलट दीजिये, यानि गाव मे शराब कि दुकान है ही नहीं, तब सोचिए।

उपरोक्त उदाहरण के द्वारा मै यह बताना चाहता हूँ कि अगर साधन उपलब्ध न हो तो बहुत सारे लोग दलदल मे जाने से बच सकते है।
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Old 21-12-2010, 11:36 AM   #85
VIDROHI NAYAK
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Originally Posted by arvind View Post

उपरोक्त उदाहरण के द्वारा मै यह बताना चाहता हूँ कि अगर साधन उपलब्ध न हो तो बहुत सारे लोग दलदल मे जाने से बच सकते है।
आपकी बात से सहमति है परन्तु हम किसी विशेष वस्तु को हानि की द्रष्टि से ही क्यों देखें ? जबकि हम जानते है की संसार में प्रत्येक इंसान छोटी छोटी खुशियो के सहारे ही जी रहा है ...आपको क्या लगता है की १२ घंटे घोर परिश्रम करने वाला मजदूर क्या सिर्फ परिश्रम के सहारे ही जी रहा है? आप उसके लिए कौन सी छोटी खुशी सोच सकते हैं? कम कपड़ो में उसका परिवार या भूखे बच्चे? माना की वो उन सब के लिए जी रहा है परन्तु क्या है उसका मनोरंजन? क्या टेलिविज़न सभी के पास हो सकता है? ऐसे में क्या अगर वो दिन भर के लिए कुछ मदिरा पी लेता है तो क्या हर्ज है? आखिर इससे सस्ता और सुगम मनोरंजन उसके लिए और हो भी क्या सकता है ? अब हम इस में दोष आर्थिक असमानता को देंगे ...ऐसे ही हर चीज़ ...या कहिये हर बुराई एक चक्रिक रूप से आपस में बंधी है या ये कहिये की एक दूसरे के लिए उत्तरदाई है !अब किसी १० टायर के ट्रक में एक टायर को पंचर करने से ट्रक नहीं गिरेगा ...और कुछ हमारा सिस्टम या ये कहिये इस भारत की दुर्दशा कुछ ऐसे ही है ! भूखे पेट चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता और चरित्र के बिना व्यक्ति का ...और व्यक्ति के विकास में धन का बहुत बड़ा योगदान है ! ऐसे में हुई न चक्र की बात? शराब के बिना और भी व्यवसन है जो गंभीर और घातक है ...क्या चरस ,भांग आदि गावों में आसानी से उपलब्ध नहीं होती ? या इनका शारीर पर कम असर होता है? ...तो हम किसी चीज़ का नकारात्मक पहलु ही क्यों देखें?
आज से कुछ साल पहले तक स्त्री को बिकनी में देखकर ही हो हल्ला मचता था पर आज यह आम है अब इस मानसिक विस्त्रता को आप किस रूप में देखेंगे...बुराई या अच्छाई? तब लड़कियों कुछ आज़ाद थी या आज?
कुल मिलकर मित्र यह एक चक्र है और प्रत्येक सवाल एक दूसरे का उत्तरदाई है ![/b]
__________________
( वैचारिक मतभेद संभव है )
''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है''

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Old 21-12-2010, 12:00 PM   #86
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चाहे मैं गाओ में पला और चाहे मैंने पढाई भी कम की हो लेकिन आज भी भारत को देखना हो तो गाओ जरूर जाओ i
हम जिस देश में रहते हैं उस देश की संस्कृति सबसे बड़ी मानी जाती है और सबसे ज्यादा बड़ी बात होती है संस्कृति का पालन करना, कोई आदमी यदि संस्कृति का अपमान करके खुद को बड़ा दिखने की कोशिश करता है तो वह ढोंगी है. चरित्र तो व्यक्तिगत मामला है, संस्कृति सार्वजानिक मामला है और संकृति का दोषी आदमी समाज का दोषी होता है, देश का दोषी होता है i
यदि चरित्र में कोई खोट आया है तो कभी भी सुधर जायेगा लेकिन संस्कृति में खोट पैदा हो गया तो न देश बचेगा न समाज और ना ही आदमी i

पहले संस्कृति बचाओ, अपना देश बचाओ
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Old 21-12-2010, 12:10 PM   #87
arvind
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Originally Posted by vidrohi nayak View Post
आपकी बात से सहमति है परन्तु हम किसी विशेष वस्तु को हानि की द्रष्टि से ही क्यों देखें ? जबकि हम जानते है की संसार में प्रत्येक इंसान छोटी छोटी खुशियो के सहारे ही जी रहा है ...आपको क्या लगता है की १२ घंटे घोर परिश्रम करने वाला मजदूर क्या सिर्फ परिश्रम के सहारे ही जी रहा है? आप उसके लिए कौन सी छोटी खुशी सोच सकते हैं? कम कपड़ो में उसका परिवार या भूखे बच्चे? माना की वो उन सब के लिए जी रहा है परन्तु क्या है उसका मनोरंजन? क्या टेलिविज़न सभी के पास हो सकता है? ऐसे में क्या अगर वो दिन भर के लिए कुछ मदिरा पी लेता है तो क्या हर्ज है? आखिर इससे सस्ता और सुगम मनोरंजन उसके लिए और हो भी क्या सकता है ? अब हम इस में दोष आर्थिक असमानता को देंगे ...ऐसे ही हर चीज़ ...या कहिये हर बुराई एक चक्रिक रूप से आपस में बंधी है या ये कहिये की एक दूसरे के लिए उत्तरदाई है !अब किसी १० टायर के ट्रक में एक टायर को पंचर करने से ट्रक नहीं गिरेगा ...और कुछ हमारा सिस्टम या ये कहिये इस भारत की दुर्दशा कुछ ऐसे ही है ! भूखे पेट चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता और चरित्र के बिना व्यक्ति का ...और व्यक्ति के विकास में धन का बहुत बड़ा योगदान है ! ऐसे में हुई न चक्र की बात? शराब के बिना और भी व्यवसन है जो गंभीर और घातक है ...क्या चरस ,भांग आदि गावों में आसानी से उपलब्ध नहीं होती ? या इनका शारीर पर कम असर होता है? ...तो हम किसी चीज़ का नकारात्मक पहलु ही क्यों देखें?
आज से कुछ साल पहले तक स्त्री को बिकनी में देखकर ही हो हल्ला मचता था पर आज यह आम है अब इस मानसिक विस्त्रता को आप किस रूप में देखेंगे...बुराई या अच्छाई? तब लड़कियों कुछ आज़ाद थी या आज?
कुल मिलकर मित्र यह एक चक्र है और प्रत्येक सवाल एक दूसरे का उत्तरदाई है ![/b]
भाई साहब, अगर भूखे पेट चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता है, तो अपने कम कपड़ो मे भूखे बच्चे के लिए, बजाय, कपड़े और खाना देने के, कोई पिता अगर शराब पीता है तो उसका चरित्रवान होना असंभव है। चरित्र किसी पैसे वालो की दासी नहीं है। और आपसे ये किसने कहा की शराब पीना सस्ता और सुगम "मनोरंजन" का साधन है।

भले दस ट्रक वाले ट्रक का एक टायर पंचर हो जाने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, परंतु सड़ी मछ्ली को तालाब से निकाल देना ही तालाब और अन्य मछलियों के लिए अच्छा रहता है।

एक बात कहूँगा.... गलत रास्ते बहुत ही सुगम होते है और सही रास्ता बहुत कठिन।
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Old 21-12-2010, 02:47 PM   #88
YUVRAJ
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vaah ...kyaa baat hai Arvind bhai ji ............
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भाई साहब, अगर भूखे पेट चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता है, ...............
.........................
........................... परंतु सड़ी मछ्ली को तालाब से निकाल देना ही तालाब और अन्य मछलियों के लिए अच्छा रहता है।

एक बात कहूँगा.... गलत रास्ते बहुत ही सुगम होते है और सही रास्ता बहुत कठिन।
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Old 21-12-2010, 03:55 PM   #89
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आज जो सिक्का हम कमा रहे हैं वो कैसा कमा रहे हैं ? उस से हमें क्या मिल रहा है ? आलस्य, विलास, परिचिंता और अहंकार i ऐसी कमाई का क्या फायदा जो हमें इस प्रकार की चीजे देता हो, ऐसी चीजें जो ना सिर्फ हमें बल्कि हमारे आश्रितों के मन तक को दूषित कर देता हो i
मैं यहाँ कम ही आता हूँ, क्यूंकि मेरे पास साधन ही इतने हैं लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ तो मन में एक दुःख होता है कि प्रेम कहीं खो गया है और अहंकार के मद में एक दुसरे को नीचा दिखने की लालसा लिए एक्के दुक्के लोग यहाँ बेकार में सभी को लपेट रहे हैंi कितने लोग ऐसे हैं जो एक दुसरे को जानते हैं ? जब जानते ही नहीं तो बेवजह एक दुसरे को दोषी ठहराने से क्या मिलने वाला है ?

चलिए कौन बता सकते हैं कि विवाह की परिभाषा क्या है ? ध्यान रहे यहाँ इन्द्रिय सुख की बात नहीं हो i परिभाषा छोटी और अपने में पूरी हो i
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Old 21-12-2010, 04:46 PM   #90
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आज जो सिक्का हम कमा रहे हैं वो कैसा कमा रहे हैं ? उस से हमें क्या मिल रहा है ? आलस्य, विलास, परिचिंता और अहंकार i ऐसी कमाई का क्या फायदा जो हमें इस प्रकार की चीजे देता हो, ऐसी चीजें जो ना सिर्फ हमें बल्कि हमारे आश्रितों के मन तक को दूषित कर देता हो i
मैं यहाँ कम ही आता हूँ, क्यूंकि मेरे पास साधन ही इतने हैं लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ तो मन में एक दुःख होता है कि प्रेम कहीं खो गया है और अहंकार के मद में एक दुसरे को नीचा दिखने की लालसा लिए एक्के दुक्के लोग यहाँ बेकार में सभी को लपेट रहे हैंi कितने लोग ऐसे हैं जो एक दुसरे को जानते हैं ? जब जानते ही नहीं तो बेवजह एक दुसरे को दोषी ठहराने से क्या मिलने वाला है ?

चलिए कौन बता सकते हैं कि विवाह की परिभाषा क्या है ? ध्यान रहे यहाँ इन्द्रिय सुख की बात नहीं हो i परिभाषा छोटी और अपने में पूरी हो i
भाई छोटु जी, यहा पर बहुत सारे सदस्य एक-दूसरे से मिल चुके है और फोन से भी संपर्क मे रहते है, और तो और, इस फोरम पर मिलकर विभिन्न विषयो पर अपने विचार भी शेयर करते है। बहुत सदस्य तो इसी फोरम के माध्यम से अच्छे मित्र भी बन चुके है। फिर आप कैसे कह सकते है की एक-दूसरे को जानते तक नहीं। और रही बात एक-दूसरे को बेवजह दोषी ठहराने की तो अगर गलत बात को कोई गलत कहता है तो क्या यह आपके नजर मे गलत है? पहले किसी भी फोरम को अच्छी तरह से समझने की कोशिश कीजिये, फिर सबंधित सूत्र मे सबंधित चर्चा कीजिये। अब जैसे ये सूत्र है - "एडल्ट साइट्स : स्वयं का मूल्याँकन", और आप यहा विवाह की परिभाषा पूछ रहे है। क्या इस तरह से सूत्र अपने चर्चा के विषय से भटक नहीं जाएगा? आप इसके लिए सबंधित सूत्र मे जाकर इस प्रश्न को पूछ सकते है, और अगर सबंधित सूत्र नहीं है तो संबन्धित विभाग मे जाकर नया सूत्र बना सकते है।
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